बिजली गिरा के आप खुद, बिजली से डर गए

शम्मी कपूर एक ऐसा सितारा है, जिसे जिस पीढ़ी ने भी देखा, अपने मन में बसा लिया। शम्मी कपूर के हर पीढ़ी के चहेते होने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी संगीत के साथ अलौकिक संगत की थी।

जब भी हम धुआंधार बरसात की कल्पना मन में करें और थोड़े गहरे उतर कर किसी दीवाने प्रेमी के झूमने, इतराने-इठलाने के दृश्य को याद करने की कोशिश करें और ऐसा करते हुए अभिनेता शम्मी कपूर याद न आएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। पिछले साठ-पैंसठ सालों में रजतपट पर कई सितारे आए, जगमगाए और फिर वक्त की रेत पर अपने निशां छोड़कर गुम हो गए, लेकिन शम्मी कपूर एक ऐसा सितारा है, जिसे जिस पीढ़ी ने भी देखा, अपने मन में बसा लिया। शम्मी कपूर के हर पीढ़ी के चहेते होने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी संगीत के साथ अलौकिक संगत की थी।

दरअसल जिस दौर में सुपर स्टार राजेंद्र कुमार ‘ऐ नर्गिसे मस्ताना’ और ‘मैं प्यार का दीवाना, सबसे मुझे उल्फत है’ जैसे सुपर हिट गीतों में ताल से बाहर जाकर मात्र फुदककर काम निपटाते हों, राज कुमार, भारत भूषण व अजीत पर गाने केवल क्लोज-अप शॉट के जरिए ही फ़िल्मांकित करने पड़े हों, उस दौर में अपनी चाल-ढाल में भी ताल का चमत्कारिक प्रयोग कर समूची फ़िल्म को एक किस्म की ‘नृत्य नाटिका’ में बदलने की शम्मी अनोखी कूव्वत रखते थे।

ताल की इतनी गहरी समझ का श्रेय शम्मी अपनी पारिवारिक मित्र नरगिस को देते थे। वस्तुतः अपने संघर्ष के दौर में जब नरगिसजी राज कपूर की महत्वाकांक्षी फ़िल्म ‘आवारा’ हासिल करने के लिए प्रयत्नरत थीं, तब स्टुडियो में यूं ही तफरी मार रहे किशोर शम्मी ने उन्हें खुश करने के लिए भविष्यवाणी कर दी कि ‘आवारा’ तुम्हें ही मिलेगी। नरगिस ने कहा कि यदि उन्हें फ़िल्म मिली, तो वे शम्मी को इनाम देंगी।

जब वे नरगिस से अपना इनाम हासिल करने गए, तो उन्होंने तुरंत कहा, मांग लो। शम्मी ने मांगा ग्रामोफोन। नरगिस ने तुरंत उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाया और ग्रामोफोन की दुकान में ले जाकर खड़ा कर दिया। शम्मी ने पसंदीदा ग्रामोफोन लिया और महीनों घर की छत पर दोपहर देशी-विदेशी गानों का मित्र-मंडली के साथ मजा लेते रहे। गाना चाहे, नृत्य का हो या एकदम स्लो, वे हर गाने पर नृत्य करने की कोशिश करते। अलसाई दोपहरों को ली गई यह मस्ती, शम्मी के व्यक्तित्व में एक खास ‘ऐडेड वेल्यू’ लाई और यही उनकी पहचान बनी।

शम्मी कपूर द्वारा अभिनीत फिल्मों में भी कोरियोग्राफर हुआ करते थे, लेकिन वे हमारी क्रिकेट टीम के कोच की ही तरह बस नाम के हुआ करते थे, बहुत हुआ तो नायिका को स्टेप्स बता दी, समूह नर्तकों-नर्तकियों को समझा दिया। शम्मी को? सवाल ही नहीं उठता। जो अदाकार ‘मैं चली मैं चली, पीछे पीछे जहां’ (फ़िल्म: प्रोफेसर) के अंतरों के बीच के संगीत में रेल की सिंगल पटरी पर ताल के संग चल सकता हो, जो कलाकार ‘तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया’ (फ़िल्म: कश्मीर की कली) गीत में झील के बीच मौजूद नाव में तालियों की संगत पर नाचते हुए सम पर ही पहुंच कर पानी में लुड़की लगाए, उसे ‘वन टू थ्री लेफ़्ट, वन टू थ्री राइट’ करने वाला कोरियोग्राफर क्या कहकर सिखाएगा? कहा जाता है कि विश्वजीत, जॉय मुखर्जी और जीतेंद्र ने शम्मी कपूर की नकल की थी। बिल्कुल ग़लत बात है यह। शम्मी ऐसी हस्ती थी, जिनकी नकल कोई नहीं कर सकता था, खुद शम्मी भी नहीं। अगर ऐसा होता तो ‘तारीफ करूं क्या उसकी’ गीत के अंत में शम्मी कपूर रफी साहब द्वारा छ: बार अलग-अलग अंदाज में गाए ‘तारीफ करूं क्या उसकी’ टुकड़े पर छ: अलग-अलग अंदाज में प्रस्तुति नहीं देते। ऐसे कलाकारों की अनुकृतियां नहीं बनती, ऐसे कलाकारों के लिए तो यह पंक्ति रची जाती है कि ‘सौ बार बना कर मालिक ने, सौ बार मिटाया होगा’।

संगीत के प्रति शम्मी की इस समझ का ही यह परिणाम था कि उनकी फ़िल्मों में संगीतकार के चयन से लेकर गीत की धुन को ‘ओके’ करने तक की तमाम कवायद में अंतिम मुहर उन्हीं की लगती थी। शंकर-जयकिशन उनके पसंदीदा संगीतकार थे और उनके साथ शम्मी की महफिल चर्चगेट स्थित गैलार्ड कैफे में खूब जमती थी। वहीं बतरस व अन्य प्रकार के रसों का आस्वाद लेते हुए रसीले गीतों की रचना की जाती थी। शम्मी कपूर पर फिल्माए असंख्य गीतों में हमें बरबस ‘दिल तेरा दीवाना’ का गीत याद या जाता है। दिलफरेब शम्मी और दिलकश माला सिंह पर फिल्माए इस गीत की शुरुआत हसरत जयपुरी की लिखी पंक्तियों पर रफी साहब की इस ललकार से होती है:

बिजली गिरा के आप ख़ुद   
बिजली से डर गए
हम सादग़ी पे आपकी
लिल्लाह मर गए

इसके बाद संतूर की तीन नन्ही-नन्ही तरंग उठती है और फिर शुरू होती है इस धरती के सबसे प्रभावशाली गायक-गायिका मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच मेलडी की सुखद जुगलबंदी:

दिल तेरा दीवाना है सनम
जानते हो तुम कुछ ना कहेंगे हम
मुहब्बत की क़सम
मुहब्बत की क़सम

और फिर बजता है धुआंधार ऑर्केस्ट्रा, जिसमें है छत्तीस छत्तीस वायलिन की दो पंक्तियां, सुर और ताल के विभिन्न वाद्य और इन्हीं के साथ सेक्सोफ़ोन की प्रभावी प्रस्तुति।

प्यार के अलबेले                                           
यह हमसफ़र
चल देंगे ले जाएगा
दिल जिधर
राह में खो जाएरगे आज तो
मंज़िल कहार है हमें क्या ख़बर
कुछ चाहत का असर
कुछ मौसम का असर
दिल तेरा दीवाना है सनम
जानते हो तुम कुछ ना कहेंगे हम
मुहब्बत की क़सम
मुहब्बत की क़सम

ऑर्केस्ट्रा के बहाव में बहते-बहाते यकायक शंकर-जयकिशन को कुछ याद आता है और वे बादलों की गड़गड़ाहट दर्शाने के लिए अचानक माइक के सामने सोड़ा लेमन की बोतल खोलते हैं और उसकी आवाज बादल फाड़कर बिजली निकलने का अलौकिक एहसास दे देती है:

तेरी आरख में जो सरूर है
सारा उसी का तो क़सूर है
सइयां अनजानी नगरी प्यार की
नादां यह दिल मेरा मजबूर है
जीवन में एक बार ख़ुद हो जाता है प्यार
दिल तेरा दीवाना है सनम
जानते हो तुम कुछ ना कहेंगे हम
मुहब्बत की क़सम
मुहब्बत की क़सम

गाना यहीं नहीं थमता, हमें एक बार फिर शंकर-जयकिशन के नेतृत्व में बेस गिटार, समूह वायलिन और सेक्सोफोन के समुच्चय के जरिए माधुर्य-वाटिका की सैर करवाता है:

क्या कीजे कोई मन भा गया
दिल में हमारे वह समा गया
हंस के किसी ने देखा इक बार
दिल की मुरादें कोई पा गया
सांसों में मीठी आग
होंठों पे मीठा राग
दिल तेरा दीवाना है सनम
जानते हो तुम कुछ ना कहेंगे हम
मुहब्बत की क़सम
मुहब्बत की क़सम

एक बार फिर बिजली की गड़गड़ाहट होती है और जिस धुआंधार नोट पर गीत की शुरुआत हुई थी, वहीं समाप्त होती है। जो लोग हिंदी सिनेमा में शब्द, मधुरता, गायकी, प्रस्तुति के मुरीद हैं, उन्हें यह गीत एक बार जरूर सुनना चाहिए। उसके बाद वे बार-बार सुनेंगे, इसकी गारंटी मैं लेता हूं।

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