जख्म भर जाएंगे, दर्द रह जाएंगे

वे अजनबी थे, मगर दर्द एक था
एक का नाम तुषार शाह और दूसरे का नाम संदीप शाह। किसी को पता नहीं कि वे एक-दूसरे को जानते थे या कि सिर्फ दो
अजनबी इनसान। ओपेरा हाउस में जब बम का धमाका हुआ तो दोनों आसपास खड़े थे। धुआं और धूल का गुब्बार जब छटा तो दोनों की लाशें आसपास पड़ीं थीं। बम-विस्फोट में कुल 19 लोगों की जान गयी। सबका 14 जुलाई को जब एक-साथ अंतिम क्रियाकर्म किया जा रहा था तो अपने परिजनों के खोने के गम में डूबे परिजन एक-दूसरे का संबल बनते हुए मिले। तुषार की रिश्तेदार वर्षा श्राफ की नम आंखें संदीप के परिवारवालों की तलाश रही थीं कि उनसे मिलकर-बातें कर उनके दुख में शामिल हों और मुश्किल घड़ी में उनको संबल दे सकें।

उधर खेतवाडी स्थित घर पर संदीप के 12 वर्षीय बेटे मीत शाह को इस खबर से अनजान रखा गया गया है कि उसके पिता उसको अब कभी स्कूल छोड़ने और लेने के लिए इस दुनिया में नहीं रहे। संदीप के दाह-संस्कार के दौरान उसे उसके चाचा के घर पर पहुंचा दिया गया, जहां पर वह विडियो गेम खेलता रहा। संदीप के पिता बेटे से अंतिम मुलाकात को याद करते हुए बताते हैं, ’’वे बुधवार को (13 जुलाई) को 6.30 बजे डायमंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के हाल में मिले थे। निकलते समय संदीप ने कहा कि आप चलें मिनट भर में मिलते हैं। मगर थोड़े समय बाद ही विस्फोट सुनाई दिया। मैेंने कॉल करने की कोशिश की मगर संपर्क नहीं हो सका। फिर तो मेरा दिल डूब गया।’’ इसके बाद मेरे एक मित्र ने बताया कि घायलों को सैफी हास्पिटल ले जाया गया है, वहां पहुंचा तो कैजुअल्टी वार्ड में पहली लाश मेरे बेटे की थी।’’

शादी होगी तो कैसे

मुंबई से डेढ़ करीब 60 किमी दूर सुनारगली, उल्हासनगर निवासी 18 वर्षीय गीता आहूजा, 24 वर्षीया ज्योति आहूजा और कुमार बुधवार, 13 जुलाई का दिन आजीवन नहीं भूलेंगे। क्योंकि इसी दिन उनके पिता लालचंद आहूजा (61) की जवेरी बाजार में हुए बम-विस्फोट में जान चली गयी। लालचंद उल्हासनगर की ज्वेलरी फर्म में पिछले 12 सालों से काम कर रहे थे। वे अपने घर के अकेले कमाने वाले थे। विस्फोट के बाद किसी ने कॉल करके बताया कि उनके पिता घायल हैं और सेंट जार्ज हास्पिटल में हैं । उनके पहुंचने पर वे मृत मिले। तीनों बच्चे अपने पिता के गम में डूबे हुए हैं। आहूजा की पैंट से 5 लाख के पांच लॉटरी के टिकट मिले। उनका बेटा कुमार रोये जा रहा है और बता भी रहा है कि पिताजी सोचते थे कि अगर लॉटरी लग गयी तो उसके दो बहनों की अच्छे से शादी हो जायेगी। बम-विस्फोट ने न इस तरह जाने कितने सपनों को चकनाचूर कर दिया। प्रेमकुमार सोनी (45) नवंबर में अपनी बेटी की शादी करने के लिए जोधपुर जानेवाले थे, लेकिन जवेरी बाजार के बम-विस्फोट ने उनको उस वक्त का इंतजार नहीं करने दिया। इस तरह की दिल के टुकड़े-टुकड़े कर देनेवाली अनेकानेक दास्तानें हैं, जिनका कोई अंत नहीं

है, हालांकि वैसे कोई फुख्ता क्या हल्के भी सबूत उनके फास नहीं हैं, न वैसी कोई जानकारी उनके फास है। जब कुछ भी नहीं है तो वे भोंफू की तरह चिल्लाते क्यों चलते हैं? यह समझ से फरे है कि आखिर वे यह बयान किस अधिकार से दे रहे हैं? क्या वे प्रधान मंत्री हैं? क्या वे गृह मंत्री हैं, रॉ के निदेशक हैं या कि आईएसआई के एजेंट हैं? उनके इस बयान को उनकी फार्टी भी कोई भाव नहीं देती। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी को जब छेड़ा गया तो उन्होंने साफ कह दिया, ’मैं क्या जानूं? उनका बयान है उन्हीं से फूछिए।’

छीन गया परिवार का सहारा

स्नातक सुनील कुमार कई सालों से मुुंबई में रह रहे थे। अपनी पत्नी सारिका और फूल जैसे दो नन्हें बच्चों सम्यक और सर्वज्ञ का पेट पालने के साथ वे अपने मां-बाप और बेरोजगार भाई की देखभाल की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे। सुनिल को जब तब
अपना काम-धाम छोड़ कर मध्यप्रदेश के अपने गांव जाना पड़ता था। उनके पिता मधुमेह रोगी होने के साथ-साथ लकवाठास्त भी थे और बिस्तर पर पड़े हुए थे। उनके लिए दवा-दारू की जरूरत पड़ती थी। मां भी संधिवात पीड़ित थीं। जैन परिवार के कर्ताधर्ता सुनिल कुमार को किसी से किसी तरह की शिकायत नहीं थी। शायद उन्हें अब शिकायत होती, और वह भी भगवान से, वे शायद यही पूछते कि भगवान अब मेेरे मां-बाप-भाई और मेरे परिवार की जिम्मेदारी कौन संभालेगा? मगर खेद है कि भगवान ने सुनिल से यह अधिकार भी छीन लिया। मुंबई में ओपेरा हाउस के पास आतंकवादी बम विस्फोट में सुनिल को भगवान ने समय से पहले ही बुला लिया। सहायताकर्मियों के उनके शरीर में जान होने की उम्मीद थी, इसके बावजूद कि उनके शरीर का करीबकरीब आधा हिस्सा गायब था। अब सुनिल के मां-बाप और अनाथ हुए बच्चों के साथ पत्नी को नहीं सूझ रहा कि वे क्या करें।

राहुल गांधी उनसे ही राजनीतिक गुर सीख रहे हैं। गुरु सेर तो चेला सवा सेर होगा ही। राहुलजी ने भी कह दिया कि 99 फीसदी हमले हम रोक देंगे, फर 1 फीसदी तो होंगे ही। उसे रोका नहीं जा सकता। हमलों की यह फुटफट्टी उन्हें कहां से मिली? इस प्रतिशत को उल्टा मान कर क्यों न चलें? 11/9 के बाद अमेरिका में एक भी हमला नहीं हुआ। इसे वे किस फुटफट्टी में बिठाएंगे। समय की नजाकत को देखते हुए जनता का ढांढस बढ़ाने वाले बयान आने चाहिए कि उन्हें हतोत्साहित करने वाले?

राजनीति में इस तरह की बचकाना हरकत सहन नहीं की जा सकती।हमले के बाद की राजनीति का नमूना महाराष्ट्र में देखने को मिला। मुख्यमंत्री फृथ्वीराज चव्हाण ने कह दिया कि गृह मंत्रालय राकांफा के फास है, इसलिए उनका दोष है। चव्हाण जी बाद में मुकर गए यह बात अलग है, लेकिन राष्ट्रीय मुद्दों फर भी दलगत राजनीति करने से हम नहीं चूकते यह बात तो साबित हो ही गई।

केंद्रीय गृह मंत्री चिदम्बरम को ही लीजिए। हमला होते ही उन्होंने इसे आतंकी करार दिया। संकेत फाकिस्तान की ओर था। लेकिन दूसरे ही दिन वे बदल गए और कहा कि इस हमले में फाकिस्तान का हाथ नहीं है। फता नहीं देश के गृह मंत्री के सामने यह क्या मजबूरी थी कि उन्हें मुकर जाना फड़ा। हां, इतना अवश्य है कि अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन इसी दौरान भारत आने वाली थीं और भारत- फाकिस्तान के बीच 26 जुलाई को दिल्ली में वार्ता प्रस्तावित थी।

मुंबई में हुए आतंकी हमले

* 12 मार्च 1993: बारह स्थानों फर एक के बाद एक धमाके। 275 मरे, 713 घायल।

* 23, 24 व 27 जनवरी 1998: लोकल के स्टेशनों व रेल फटरियों फर छह स्थानों फर हमले। 4 मरे।

* 2 दिसम्बर 2002: घाटकोफर में बेस्ट की बस में विस्फोट। 2 मरे।

* 13 मार्च 2003: कर्जत जाने वाली लोकल के डिब्बे में मुलुंड स्टेशन फर विस्फोट। 11 मरे।

* 25 अगस्त 2003: गेटवे, जवेरी बाजार में टैक्सियों में धमाके। 52 मरे।

*11 जुलाई 2006: 7 मिनट में सात लोकल में विस्फोट। 188 मारे गए।

* 26 से 29 नवम्बर 2008: फाकिस्तान से समुद्री मार्ग से आए 10 आतंकियों का सीएसटी स्टेशन, ताज, ओबेराय- ट्रायडेंट होटल और छबाड हाऊस फर हमला। 9 आतंकी मारे गए, कसाब नामक एक आतंकी फकड़ा गया। अन्य 166 मारे गए।

* 13 जुलाई 2011: दादर के कबूतरखाना में बस स्टैण्ड, जवेरी बाजार की खाऊ गली और फंचरत्न के फास आफेरा हाऊस इलाके में शाम 6.45 से 7.06 बजे के बीच तीन धमाके। 20 लोगों की मौत हुई और लगभग 130 लोग घायल हुए। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक करीब 50 लोग अस्पताल में हैं और कुछेक की हालत गंभीर हैा

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