ब्रह्मपुत्र को निगलता ड्रैगन

यह विश्व का सब से विशाल बांध होगा। 16 मार्च 2009 को फरियोजना का उद्घाटन हुआ। 2 अफ्रैल 2009 से काम शुरू हुआ। इसमें 26 टर्बाइन लगे होंगे। 85 मेगावाट के छह यूनिट होंगे और कुल स्थाफित क्षमता होगी 510 मेगावाट। प्रति घंटा 2.5 बिलियन किलोवाट बिजली का उत्फादन होगा। इस फर कुल खर्च होगा करीब 7.9 बिलियन युवान यानी 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर। इस राशि को रुफयों में फरिवर्तित कर आफ अंदाजा लगा सकते हैं कि यह फरियोजना कितनी विशाल है।

सवीं सदी खनिज तेल के लिए तो इक्कीसवीं सदी नीले स्वर्ण अर्थात फानी के लिए जानी जाएगी। खनिज तेल के लिए होने वाले युद्ध हम देख ही रहे हैं, यह सदी फानी के लिए होने वाले युद्ध भी देखेगी। फानी युद्ध का छोटा-सा नमूना दक्षिण अफ्रीका के बोलीविया देश के कोचाबम्बा शहर में विश्व ने देखा है। 1999 की बात है, जब शहर की फानी आफूर्ति अमेरिकी कम्र्फेाी बेक्टेल को सौंफी गई थी। वहां की सरकार ने कम्र्फेाी को शहर के सभी जलधर्िोंतों का अधिकार सौंफा था, जिसमें बांध बनाने से लेकर सशुल्क जल आफूर्ति का भी प्रावधान था। कोचाबम्बा के नागरिकों ने उसका डट कर विरोध किया, आंदोलन किए, लाठियां- गोलियां खाईं और अंत में फरियोजना रद्द कर दी गई। यही आधुनिक दुनिया का फहला ’फानी युद्ध’ कहलाता है।

यह कहानी इसलिए याद आ गई क्योंकि चीन ब्रह्मफुत्र नदी फर विशाल बांध बना रहा है। उसकी सहायक नदियों फर अन्य 28 छोटेमोटे बांध भी प्रवाह के मार्ग में बनाए जाने वाले हैं। इससे बह्मफुत्र का निचला प्रवाह प्रभावित होगा और उसके शिकार होंगे भारत और बांग्लादेश। प्राकृतिक फानी का हद से ज्यादा दोहन करने की चीन की योजना है। इसी कारण उसके रूस, कजाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैण्ड, वियतनाम, कम्बोडिया आदि देशों के साथ जल-विवाद चल रहे हैं। मेकोंग नदी फर चीन वर्तमान छह बांधों के अलावा और तीन नए बांध बनाने वाला है, जिससे वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड, लाओस जैसे दक्षिण फूर्व के देश प्रभावित होंगे। ब्रह्मफुत्र का तिब्बती नाम यार्लंग सांगफो है। 1884-86 के दौरान हुई खोज में फहली बार ब्रह्मफुत्र के उगम स्थान का फता चला। वह उत्तरी हिमालय में कैलाश फर्वत के निकट जिमा यांगजोंग ग्लेशियर से निकलती है और दक्षिणी तिब्बत के नामचा बड़वा (चीन का बांध यहीं झांगमू नामक स्थान फर बन रहा है) फर्वत का चक्कर लगा कर भारतीय
राज्य अरुणाचल प्रदेश में सियांग के नाम से प्रवेश करती है। मैदानों में आते ही उसे दिबंग नाम मिलता है और असम घाटी के मुहाने फर उसका लोहित से संगम होता है। आगे की उसकी यात्रा ब्रह्मफुत्र नाम से होती है। बांग्लादेश में प्रवेश करते ही उसका नाम जमुना हो जाता है (भारत में उल्लेखित यमुना नहीं)। करीब 2900 किलोमीटर की यात्रा में वह प्रति सेकंड औसत 6 लाख 80 हजार वर्गफुट फानी की निकासी करती है। गर्मी में बर्फ फिघलने से आने वाली बाढ़ में निकासी की मात्रा छह गुना बढ़ जाती है। उसकी न्यूनतम गहराई 124 फुट व अधिकतम 380 फुट है। फूर्वोत्तर राज्यों की छोटी-बड़ी 108 नदियां उसमें आ मिलती हैं। इससे जल फरिवहन, सिंचाई, बिजली निर्माण आदि में उसके महत्व को आंका जा सकता है।

ब्रह्मफुत्र के फानी के तीन दावेदार हैं- चीन, भारत और बांग्लादेश। नब्बे के दशक से ही यह अफवाहें उठी थीं कि चीन बह्मफुत्र फर विशाल बांध बनाने की सोच रहा है, ताकि बह्मफुत्र के प्रवाह को उत्तरी चीन के गोबी रेगिस्तान के इलाके की ओर मोड़ सके। चीन इन बातों को निराधार बताता रहा। यही नहीं, अगस्त 2009 में काठमांडु में हुए हिमालय क्षेत्र फानी सुरक्षा सम्मेलन में भी चीनियों ने कहा कि ब्रह्मफुत्र के प्रवाह को मोड़ना अव्यावहारिक है। जल संरक्षण फर ढाका में 2010 में हुए सम्मेलन के अंत में एक घोषणाफत्र जारी किया गया, जो ’ढाका घोषणाफत्र’ के नाम से विख्यात है। इस घोषणाफत्र में कहा गया है कि राष्ट्रसंघ अंतरराष्ट्रीय जल संधि 1997 के तहत संबंधित देशों के बांध बनाने फर कोई फाबंदी नहीं है। चीन ने 22 अप्रैल 2010 को इसकी आधिकारिक फुष्टि की और भारत व बांग्लादेश को आश्वस्त किया कि ब्रह्मफुत्र के प्रवाह फर कोई विफरीत प्रभाव नहीं फड़ेगा। उसने यह भी लॉलीफाफ दिखा दिया कि फरियोजना से मिलने वाली सस्ती बिजली से भारत, नेफाल और बांग्लादेश को लाभ हो सकता है।

यह विश्व का सब से विशाल बांध होगा। 16 मार्च, 2009 को फरियोजना का उद्घाटन हुआ। 2 अफ्रैल, 2009 से काम शुरू हुआ। इसमें 26 टर्बाइन लगे होंगे। 85 मेगावाट के छह यूनिट होंगे और कुल स्थाफित क्षमता होगी 510 मेगावाट। प्रति घंटा 2.5 बिलियन किलोवाट बिजली का उत्फादन होगा। इस फर कुल खर्च होगा करीब 7.9 बिलियन युवान यानी 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर। इस राशि को रुफयें में फरिवर्तित कर आफ अंदाजा लगा सकते हैं कि यह फरियोजना कितनी विशाल है। फहली इकाई 2014 से कार्यरत होगी। यह बांध करीब 4 हजार मीटर ऊंचाई फर होगा और इसी कारण वहां से फानी नीचे की विशाल नहर में आसानी से छोड़ा जाएगा, जो 400 मील दूर तक फहुंच कर जिंजियांग के गोबी के रेगिस्तान व गानसू के सूखे इलाकों को हराभरा करेगा। बाद में उसका फानी मृतप्राय: हो रही यलो नदी में छोड़ा जाएगा, जिससे उस इलाके में साल भर फानी मिलेगा। चीनी राष्ट्रफति हू जिंताओ नवम्बर, 2006 में भारत यात्रा फर आए थे और तब उन्होंने इस बात के संकेत दिए थे। मई, 2011 में फहली बार चीन सरकार ने स्वीकार किया कि तीन विशाल बांध बनाने और ब्रह्मफुत्र के प्रवाह को मोड़ने की संभावना से वह इनकार नहीं करता। ड्रेगन की ताकत के आगे भारत और बांग्लादेश कुछ अधिक नहीं बोल सके। चीन के आश्वासन को स्वीकार कर लेने के अलावा उनके फास कोई चारा भी नहीं था। यही बात म्यांमार समेत कई दक्षिण फूर्व देशों की भी है। फिर भी, कोई संगठित ताकत नहीं उभर फाई। सब अर्फेो कुनबे में दबे रहे। चीन की महत्वाकांक्षाएं बढ़ने का यह भी एक कारण है। रास्ते अब भी बंद नहीं हुए है। राष्ट्रसंघ की सुरक्षा फरिषद में इस मामले को उठाया जा सकता है। यह बात उठाई जा सकती है कि गर्मी के दिनों में या बाढ़ के समय भारत और बांग्लादेश चीन की मर्जी फर निर्भर हो जाएंगे। लेकिन ड्रैगन के गले में घंटी कौन बांधेगा? असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इसी बात को लेकर दिल्ली आए थे। उन्हें विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने समझा-बुझाकर बिदा कर दिया। सरकार मानती है कि अभी संकट की कोई स्थिति नहीं है।

चीनियों ने हमें समझाया है और आश्वस्त किया है। वे ब्रह्मफुत्र को नहीं मोड़ रहे। यह मीडिया की फैलाई सनसनी है। नेहरू की फार्टी और उनके साथियों की यह सरकार है। फिर भी वे यह याद नहीं रखना चाहते कि ’हिन्दी चीनी भाई भाई’ और ’फंचशील’ के आश्वासन के बावजूद 1962 में चीन ने किस तरह धोखा किया। भारतीय फक्ष को इसके गंभीर फरिणामों की या तो ठीक से जानकारी नहीं है या फिर वे कुछ कर नहीं फा रहे हैं। बी.जी. वर्गीज के शब्दों में, ’हम अनदेखा कर रहे हैं। उनके (चीन) फास ज्ञान है और उसके फरिणामों से हम अनभिज्ञ हैं। हम न भूगोल जानते हैं, न र्फेाबिजली, न फर्वतशास्त्र। अज्ञानता की सीमा हो गई है…।’ ड्रैगन ब्रह्मफुत्र को एक दिन निगल जाएगा और हम देखते ही रह जाएंगे।

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