राफेल बाजी पलटने वाला लड़ाकू विमान

भारतीय वायुसेना राफेल विमान आने से और ताकतवर हो गई है। इस तरह के लड़ाकू विमान न तो चीन के पास है और न ही पाकिस्तान के पास। ये विमान युद्ध को अपने पक्ष में पलटने की क्षमता रखते हैं।

भारतीय वायुसेना विश्व में अपनी पहचान बना रही है और यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्व में सर्वश्रेष्ठ वायुसेनाओं की बराबरी निरंतर करने में अग्रसर है। सी17 ग्लोब मास्टर, 130 जे हर्क्यूलियस भारवाहक परिवहन जहाज़, सुखोई एमकेआई, जेगुआर, मिग और मिराज के बाद अभी हाल में आए राफेल लड़ाकू जहाज़ों ने हमारा आत्मविश्वास द्विगुणित कर दिया है। पांचवीं पीढ़ी के जहाज़ उड़ाने को आतुर हैं हमारी वायुसेना के जांबाज पायलट। भारतीय वायुसेना अब किसी भी चुनौती मुंहतोड़ जवाब देने को सजग और तत्पर है। हमारी तैयारी में नए अपाचे अटैक और चिनूक हेलिकॉप्टरों ने आक्रामक शक्ति में अलग अंदाज भर दिया है। अग्रिम चौकियों की ज़रूरत को पूरा करने का नया विश्वास अब सेना को मिल गया है।
भारतीय वायुसेना ने मूल रूप से सरकार के 2009 के ऑपरेशनल डायरेक्टिव को दो-मोर्चे (चीन और पाकिस्तान) के युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए 126 विमानों, मध्यम मल्टीरोल लड़ाकू विमान (एम एम आर सी ए) श्रेणी के अंतर्गत परिचालन की आवश्यकता का अनुमान लगाया था। इसी संख्या के लिए टेंडर भी हुआ था। अंत में दो कंपनियों में लड़ाई थीं – यूरो फाइटर टायफून और राफेल। आख़िर कीमत और अन्य खरीद फरोख्त की शर्तों में राफेल ने बाजी मार ली थी। 126 लड़ाकू जहाज़ खरीदने थे। 36 फ्रांस से बनकर आएंगे और बाकी भारत में निर्मिति। लेकिन, अप्रैल 2015 में पेरिस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 36 राफेल 58,891 करोड़ रुपये में खरीदने का कड़ा निर्णय लिया था। इस अनुबंध पर सितंबर 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे। और अब पहले पांच लड़ाकू राफेल भारत आ गए हैं। फ्रांस के शहर बोरडेक्स में मौजूद दसॉल्ट एविएशन का निर्माण स्थल है।

सीमा पर हलचल

हमारी तीनों सेनाओं का नेतृत्व मजबूत हाथों में है। कुशल पायलट, दिलेर सैनिक और लहरों पर सवार नौसैनिक नई प्रौद्योगिकी और नेट्सेंट्रिक दौर से जुड़ चुके हैं। अब हम कुशलता के परचम नई ऊंचाई पर ले जाने में सक्षम हो चुके हैं। भविष्य की योजनाओं को सरकार से हरी झंडी मिल रही है। सेना की ज़रूरतों में नई असॉल्ट रायफल, नए हल्के टैंक, बख़्तरबंद वाहन, आर्टिलरी की तोपें और मिसाइलों को खरीदने के लिए सैन्य अधिकारियों को धन का आवंटन और उपयोग में जवाबदारी और छूट दी गई है।

चीन से लद्दाख में गलवान घाटी में हुई अप्रत्याशित भिड़ंत और ज़मीन हथियाने के रुख़ ने 15/16 जून को एक नए आपसी विवाद ने मोड़ लिया है और चरम पर पहुंचते-पहुंचते जुलाई का महीना भी अपनी जद में ले लिया है। बातचीत के कई दौर हुए – कुछ कामयाब, कुछ असफल – लेकिन चीन के कोर कमांडर स्तर की बातचीत चल रही है, वह बात करने को राज़ी है यह इस द्वंद्व युद्ध की अच्छी बात है। बिना बात के आपसी टकराव दूर नहीं किए जा सकते। चीन इस समय वार्ता में अपनी सेनाओं को अलग अलग मोर्चों से वापस लेने के लिए तैयार है, पीछे जाने की प्रक्रिया में समय लग रहा है।

दोनो देशों को बातचीत में संयम बरतना होगा, यह बेहद ज़रूरी है। 1967 के बाद से अब तक चीन और भारत के बीच गोलियां नही दागी गई हैं – आशा है कि 1962 की जंग की तर्ज पर गलवान घाटी में एक बार फिर टकराव की स्थिति ना बने और शांति से हल निकले। प्रयास जारी रखना होगा। अब सवाल है कि नए मल्टी रोल रा़फेल के आने से हमारी शक्ति में कितन इज़ाफा हुआ है या होगा? इस प्रश्न का हल खोजने से पहले रा़फेल की खूबियों से दो – दो हाथ करने होंगे। आख़िर 4.5 पीढ़ी का यह दमदार फ्रांसीसी लड़ाकू जहाज़ का चयन काफ़ी सोच विचार के बाद किया गया था।

राफेल की विशेषताएं

राफेल लड़ाकू हवाई जहाज फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन ने बनाया है। इस शब्द का फ्रांसीसी भाषा में अर्थ है – तेज हवा का झोंका।
पहली उड़ान 4 जुलाई 1986 में हुई थी। यह लड़ाकू जहाज को कई भूमिकाओं में वायुसेना का हवाई वर्चस्व दिखाने में सक्षम है। ज़मीनी हमला, टोह लेना, जमीनी सेना का समर्थन, दुश्मन के इला़के में गहराई में जाकर आक्रमण कर सकता है।

फ्रांस की नौसेना में 2004 में राफेल को शामिल किया गया था। इस लड़ाकू जहाज़ ने अफ़ग़ानिस्तान, लीबिया, माली, इराक़ और सीरिया में अपनी पहचान बनाई है।

राफेल के तीन मॉडेल हैं : राफेल सी – एकल सीट का जहाज हैं, राफेल बी में दो सीट और नौसेना के मॉडेल राफेल एम नाम दिया गया है.राफेल बी और सी मॉडेल में पंखों के नीचे 14 स्थान है जिन्हे हार्ड पॉइंट कहते हैं, जहां पर मिसाइल, रॉकेट इत्यादि फिट किए जाते हैं।

लड़ाकू जहाज राफेल वर्तमान और भविष्य में ईजाद होने वाले अस्त्र – शस्त्रों को ले जाने, दागने एवं उसकी मारक क्षमता के असर को समझने की ताक़त रखता हक्े।

प्रौद्योगिकी की बनावट इस तरह की गई है कि आने वाले समय में आधुनिकरण या नवीनीकरण की सुविधा आसानी से एकीकृत हो जाए। यह लड़ाकू जहाज़ अगली पीढ़ी के हथियारों से लैस होने में सक्षम है।

राफेल जेट विभिन्न भारत-विशिष्ट 13 संशोधनों के साथ आएंगे, जिनमें इजरायली हेलमेट-माउंटेड डिस्प्ले, रडार चेतावनी रिसीवर, कम बैंड जैमर, 10 घंटे की उड़ान डेटा रिकॉर्डिंग, इन्फ्रा-रेड सर्च और ट्रैकिंग सिस्टम शामिल हैं.
राफेल एकमात्र ऐसा लड़ाकू जहाज है जो अपने स्वयं के वजन से डेढ़ गुना ज़्यादा वजन ले जाने की क्षमता रखता है। 9.5 टन वजन कुल भार ले जाने में सक्षम हैं – राफेल।

पहले पांच राफेल

यह डील 2001 में शुरू हुई थी तब 126 राफेल खरीदने की बात तय थी, 18 बनी हुई हालत में भारत लाए जाएंगे और बाकी 108 को भारत में एच ए एल व्दारा निर्मित किया जाएगा। यूरो फ़ाइटर के मुकाबले में राफेल की विजय हुई थी। भारतीय वायुसेना ने इस जहाज़ को भारतीय परिपेक्ष में सर्वोत्तम पाया था और बातचीत और खरीद फ़रोख़्त के दौर में 13 ऐसे नए विशेष संयत्र शामिल किए गए जो भारतीय व्यवस्था के अनुरूप ज़रूरी थे। अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की पेरिस यात्रा में सरकार ने 36 फ्रांसीसी रा़फेल लड़ाकू जहाज़ खरीदने का ़फैसला लिया। इस डील पर बहुत छींटाकशी हुई – कीमत, हिस्सेदारी, समय सीमा और तरतीब को मैग्नीफ़ाइंग ग्लास से गुज़रना पड़ा।

8 अक्तूबर 2019 को भारतीय वायुसेना का स्थापना दिवस, दशहरे का पवन उत्सव और फ्रांस में पहला रा़फेल लड़ाकू जहाज़ हमारे रक्षा मंत्री मो सौंपा गया। फ्रांस के शहर मेरिगनक में यह समारोह पूर्वक हमें मिला, इसकी पूजा की गई और ओम के अक्षरों को इस पर लिखा गया। इसके बाद 29 जुलाई को पांच रा़फेल जहाज़ भारत की धरती पर पहुंचे – अंबाला में वाटर कैनन से स्वागत हुआ, पूरा देश इंतजार कर रहा था और देश में उत्साह की एक लहर दौड़ पड़ी थी। नंबर 17 स्क्वाड्रन गोल्डन एरो में इन्हें शामिल किया गया। ग्रुप कैप्टन हरकिरत सिंह इसके कमांडर नामज़द किए गये थे जिनकी अगुवाई में पांचों रा़फेल ने दहाड़ के साथ अंबाला हवाई अड्डे के उपर प्रवेश किया था। एक नया अध्याय भारतीय वायुसेना में लिख दिया गया। दोपहर तीन बजे के बाद फ्रांस से अबु धाबी में रुकते हुए अंबाला वायुसेना अड्डे पर 7 पायलट पांच रा़फेल में पहंँचे – तीन एकल सीट वाले और दो दो सीट के रा़फेल सकुशल पहुंचे थे – वायुसेना प्रमुख से रूबरू हुए सभी पायलट।रा़फेल लड़ाकू जेट की पांच बड़ी खूबियां हैं, जिसकी वजह से हमने इस जहाज का चयन किया था-

1.लंबी दूरी की मारक क्षमता

2..हवा से ज़मीन पर क्रूज़ मिसाइल से वार 3. उन्नत किस्म का ए ई एस ए रडार 4.सेटेलाइट संचार प्रणाली 5. इंटीग्रटेड इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम।

सामान्य विशेषताएं

लंबाई : 15.27 मीटर
पंखों का फैलाव : 10.90 मीटर
ऊंचाई : 5.34 मीटर
खाली वजन : राफेल बी -10,300 किलोग्राम
राफेल सी – 9850 किलोग्राम
रा़फेल एम – 10,600 किलोग्राम
ग्रोस कुल भार : 15,000 किलोग्राम
टेक ऑफ वजन : 24,500 किलोग्राम
ईंधन : 4400 से 4700 किलोग्राम
इंजन : दो सफ़रान स्नेकमा एम 88 इंजिन
अत्यधिक गति : 2223 किलोमीटर प्रति घंटा
अत्यधिक ऊंचाई : 15,835 मीटर
ऊपर उठने की गति : 304 मीटर प्रति सेकेंड
हथियार : अस्त्र – शस्त्र

राफेल लड़ाकू जहाज पर मौजूद शस्त्र की तादाद और किस्म की तुलना इस समय एशिया में मौजूद सभी देशों से बेहतर है।

स्कॅल्प : लंबी दूरी की हवा से जमीन पर हमला करने वाली मिसाइल है, जो अत्यधिक सटीकता के साथ लक्ष्य पर वार सकती है। इसकी रेंज 300 किलोमीटर से अधिक है। इसका तात्पर्य है कि बालाकोट जैसा आक्रमण हम भारतीय हवाई क्षेत्र में रहते हुए भी कर सकते हैं। पाकिस्तान की हद में सभी महत्वपूर्ण निशाने इस मिसाइल की जद में है। इस मिसाइल का वजन 1300 किलोग्राम है जबकि इसकी लंबाई 5.1 मीटर है। 1994 में मात्रा और ब्रिटिश एरोस्पेस ने इस मिसाइल का निर्माण किया था। तब से इसे स्टॉर्म शैडो नाम दिया गया था और अब एम बी डी ए ( मात्रा बीएई डायनेमिक्स एलेनिया) कंपनी इसे बनाती है। इस मिसाइल को फ्रेंच भाषा में नाम दिया है सिस्टम दे क्रॉसिएरे औतनोमे ए लोन्गुए पोर्ती जिसका हिन्दी शब्दांकन है जनरल पर्पज लाँग रेंज क्रूज़ मिसाइल। फ्रांसीसी भाषा में प्रथम अक्षर से मिसाइल का नाम बना है एससीएएलपी स्कॅल्प।

मीटिओर मिसाइल : दृश्यता से आगे हवा से हवा में मार करने की क़ाबलियत रखती है। इसे एम बी डी ए कंपनी ने बनाया है। इसकी मारक क्षमता 100 किलोमीटर से अधिक है। मिसाइल को फायर करने के बाद यदि निहित लक्ष के स्थान में बदलाव होता है तब भी इसमें उड़ान के दौरान रास्ते का बदलाव किया बदलाव किया जा सकता है। मिसाइल की गति मॅक 4 से अधिक है। स्वीडन के ग्रीपेन लड़ाकू जहाज़ में अप्रैल 2016 में इसे इस्तेमाल किया गया था। इसकी लंबाई 3.7 मीटर और वजन 190 किलोग्राम है। राफेल के अलावा यह मिसाइल यूरो फाइटर, ग्रीपेन में इस्तेमाल होती है।
माइका : एम बी डी ए व्दारा बनाई गई हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल. इसका वजन 112 किलोग्राम है, जबकि लंबाई 3.1 मीटर है। इसमें 12 किलोग्राम विस्फोटक होता है। यह 80 किलोमीटर तक अपने लक्ष्य को भेदने की क़ाबलियत रखती है। मैक 4 गति से चलती है। रा़फेल के अलावा मिराज 2000, मिराज एफ 1, एफ 16 लड़ाकू जहाज़ों में इसे स्थापित कर इस्तेमाल किया है. 11 जून 2007 को एक मिका मिसाइल को पीछे से आने वाले रा़फेल जहाज़ से नये टारगेट की जानकारी फीड की गई थी जिसको उपयोग कर नए निशाने पर सफलता पूर्वक इस मिसाइल ने विस्फोटक से टारगेट को ध्वस्त किया था। इसे ओवर द शहोल्डर फायर कहते हैं।

हैमर : भारत सरकार व्दारा आपातकालीन व्यय के अंतर्गत राफेल लड़ाकू जहाज़ के लिए हैमर मिसाइल की खरीद को भी मंज़ूरी मिली है। 70 किलोमीटर दूरी तक हवा से ज़मीन पर मारक क्षमता की इस मिसाइल को जल्द खरीदा जाएगा। हैमर (हाइली अजाइल मॉडयूलर म्युनिशन एक्सटेंडेड रेंज) की मदद से किसी भी जमीनी मोर्चे या बंकर को बर्बाद करना आसान रहेगा।

नेक्सटर ( जी आई ए टी ) 30 एम – 791 : लड़ाकू जहाज़ों में कैनन का इस्तेमाल होता है, यह गन बेहद तेज गति से फायर करती है। दुश्मन के ज़मीनी टारगेट या हवा में मौजूद ड्रोण या अन्य जहाजों पर यदि गोलियां दागनी हो तो इस किस्म की कैनन का इस्तेमाल किया जाता है जो 2500 राउंड प्रति मिनट के फायर कर सकती है। इसकी बैरेल 2400 एम एम होती है और वजन 80 किलो है। 3500 मीटर दूर तक यह घातक है।

रा़फेल बनाम अन्य लड़ाकू जहाज

चीन के पास स्टेल्थ फ़ाइटर जे-20 है। पाकिस्तान के पास जेएफ-17 के अलावा एफ-16 भी हैं। रा़फेल, एफ-16, जेएफ-17, जे-20; सभी मल्टी रोल लड़ाकू जहाज़ हैं, अर्थात ये विभिन्न ऑपरेशन में काम आते हैं – जैसे लंबी दूरी की हवा से हवा में या हवा से ज़मीन पर की जाने वाली मारक आक्रामक भूमिका। जेएफ-17 चौथी पीढ़ी का जहाज़ है जबकि रा़फेल 4.5 पीढ़ी में शामिल है। रा़फेल से हम चार मिशन पर एक साथ काम कर सकते हैं। चीन का दावा है कि जे-20 पांचवीं पीढ़ी का है लेकिन भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख बी एस धनोआ ने इसे खारिज किया है। रा़फेल और जेएफ-17 दो सीट वाले मॉडेल में भी बनाए जाते हैं, जबकि जे-20 एकल सीट का जहाज़ है। भारत को 28 रा़फेल जहाज़ एकल सीट के मिलेंगे और बाकी 8 दो सीट वाले प्रशिक्षण के लिए मौजूद रहेंगे।

जे-20 का वजन 19,000 किलोग्राम और यह 37,013 किलो भार ले जा सकता है। रा़फेल का वजन 9,900 से 10,600 किलो है और यह 24,500 किलोग्राम भार ले जा सकता है। जेएफ-17 का वजन 6411 किलोग्राम है और टेक ऑफ वजन 12,474 किलोग्राम है। इसका अर्थ है कि रा़फेल और जे-20 ज़्यादा गोलाबारूद/मिसाइल लेकर उड़ान भर सकते हैं।

राफेल की लंबाई 15.3 मीटर है जबकि पंखों का फैलाव 10.9 मीटर, ऊंचाई 5.3 मीटर जबकि जेएफ-17 14.93 मीटर लंबा, पंखों का फैलाव 9.48 मीटर और ऊंचाई 4.77 मीटर है। रा़फेल की अधिकतम गति 2222.6 किलोमीटर प्रति घंटा है जबकि जे-20, जेएफ-17 की अधिकतम गति क्रमश: 2400 और 1975 किलोमीटर प्रति घंटा है। रा़फेल की अधिकतम ऊंचाई (दो लड़ाकू जहाज़ों की लड़ाई में महत्वपूर्ण है) जब पायलट इस द्वंद्व युद्ध में अपने ऊपर आने वाली हवा से हवा में आने वाली मिसाइल से अपने आप को बचाता है – रा़फेल के लिए यह 50,000 फुट है जबकि जे-20 और जेएफ-17 के लिए क्रमश: 65,620 फीट, 54,000 फीट है। एक दूसरे का पीछा करने की लड़ाई को वायुसेना की भाषा में डॉग फ़ाइट कहा जाता है। इसमें ऊपर उठने की गति रा़फेल की 60,000 फुट प्रति मिनिट है जबकि जे-20 59,842 फीट और जेएफ-17 59,000 फीट प्रति मिनिट है।

पाकिस्तान के पास जेएफ-17 के अलावा एफ-16 भी है। इसका पंखों का फैलाव 9.96 मीटर है और लंबाई 15.06 मीटर और ऊंचाई 4.88 मीटर है। एफ-16 का खाली वजन 9200 किलोग्राम है और अधिकतम टेक ऑफ वजन 13,000 किलोग्राम है। 4200 किलोमीटर इसकी अधिकतम दूरी या रेंज है तथा अधिकतम गति 2414 किलोमीटर प्रति घंटा है। इसमें एआईएम 9 साइड विंडर कम दूरी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल, एएमआरएएएम मध्य दूरी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल तथा हवा से ज़मीन पर मार करने वाली एजीएम65 मेवेरिक मिसाइल इस्तेमाल की जाती है। क्लस्टर बम और जी पी एस नियंत्रित बम ले जाने की व्यवस्था है। रा़फेल की डॉग फ़ाइट में बचाव और गति को देखते हुए यह आसमान में दुश्मन के पायलटों को आसानी से चकमा दे सकता है। भविष्य में पायलटों का प्रशिक्षण और युद्ध में क़ाबलियत ही एक जहाज़ को सुरक्षित रख आती है। रा़फेल इस विधा में गेम चेंज़र याने बाजी पलटने वाला ही कहलाएगा!

 

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