अलविदा कप्तान

इस वर्ष भारत के स्वतंत्रता दिवस अर्थात 15 अगस्त 2020 को भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी। 15 अगस्त की शाम को इंस्टाग्राम पर उन्होंने यह जानकारी सभी के साथ साझा की। सोशल मीडिया में यह खबर आते ही लोगों की प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। पिछले लगभग एक वर्ष से उनके संन्यास की अटकलें तो लगाई जा रही थीं, परंतु उनका इस प्रकार बोर्ड के कुछ सदस्यों को बताकर अचानक संन्यास लेना न केवल उनके प्रशंसकों बल्कि उन सभी को आश्चर्यचकित करने वाला था जो क्रिकेट में रुचि रखते हैं। सभी यह सोच रहे थे कि धोनी 20-20 वर्ल्ड कप खेलने के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहेंगे, परंतु उन्होंने 15 अगस्त की शाम को ही अपने संन्यास की घोषणा कर दी।

अपनी टीम और प्रशंसकों के बीच ‘एमएस’ और ‘माही’ के नाम से प्रसिद्ध महेन्द्र सिंह धोनी के लिए इस प्रकार के चौंकाने वाले निर्णय लेना कोई नई बात नहीं है। उनके पूरे अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन में उनके द्वारा लिए गए निर्णय सभी को चौंकाने वाले और अधिकतम बार भारत को खेल में जीत दिलाने वाले रहे। चाहे वह बल्लेबाजी का क्रम बदलकर खुद मैच की बागडोर अपने हाथ में लेना हो या पार्ट टाइम बॉलर्स पर भरोसा करना हो, माही में समय की मांग और मैच की स्थिति को देखते हुए निर्णय लेने की क्षमता थी और उन निर्णयों को उचित साबित करने की भी। लोग कभी नहीं भूल पाएंगे कि किस प्रकार सन 2011 के विश्वकप के फाइनल मैच में उन्होंने अपनी विशेष पद्धति से छक्का लगाकर भारत को विश्वकप दिलाया था। फाइनल मैच से पहले से स्वयं अर्धशतक भी न बना पाने वाले कप्तान पर अच्छा खेलने का कितना दबाव होता है यह सभी जानते हैं। ऐसी परिस्थिति में भी फॉर्म में चल रहे युवराज की जगह स्वयं मैदान में आना और नाबाद 91 रनों की पारी खेलना बहुत साहसी निर्णय रहा। यह मैच उनकी समय सूचकता और परिस्थिति का आकलन करके उचित निर्णय लेने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। हालांकि उनकी निर्णय क्षमता को प्रदर्शित करने वाला यह केवल एक उदाहरण नहीं है। वे स्वयं बल्लेबाज थे और भारत की बल्लेबाजी गेंदबाजी तुलना में अधिक मजबूत है यह जानते हुए भी उन्होंने कई बार अपने गेंदबाजों पर पूर्ण विश्वास दिखाया और उनके बलबूते ही भारत के लिए कई मैच जीते। 20-20 के पहले विश्वकप में लीग मैच में जब पाकिस्तान के विरुद्ध खेला जा रहा मैच टाई हो गया और मैच का निर्णय ‘बॉल आउट’ के माध्यम से होना था तब सभी को यह लग रहा था कि अब मैच पाकिस्तान की झोली में है क्योंकि पाकिस्तान की गेंदबाजी हमेशा ही भारत से अच्छी रही है। पाकिस्तान ने भी उसके सबसे अच्छे गेंदबाज चुने। परंतु भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने उस कठिन परिस्थिति में भी सहवाग और रॉबिन उथप्पा को बॉलिंग के लिए चुना। परिणाम बताने की आवश्यकता नहीं कि सभी भारतीय गेंदबाजों ने गिल्लियां उड़ाकर यह मैच जीत लिया।

महेन्द्र सिंह धोनी की इसी सफल कप्तानी के कारण क्रिकेट की ऐसी कोई ट्रॉफी नहीं है जो भारत के पास न हो। उनकी कप्तानी में भारत टेस्ट क्रिकेट में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले क्रमांक पर रहा। 50 ओवर के विश्वकप और चैंपियंस ट्रॉफी पर भारत का कब्जा रहा। भारत को 20-20 विश्वकप का पहला विश्वविजेता बनाने का श्रेय भी धोनी को ही जाता है।

ऐसा नहीं है कि धोनी को कभी आलोचनाओं का सामना नहीं करना पड़ा। कई सीनियर खिलाड़ियों से उनकी अनबन की खबरें चर्चा का विषय रहीं। धोनी हर दृष्टि से एक फिट टीम चाहते थे और कई सीनियर खिलाड़ी फील्डिंग में बहुत कमजोर थे। इसलिए धोनी ने उनके स्थान पर युवाओं को टीम में रखने का प्रस्ताव दिया था। टीम के चयनकर्ताओं में से कई लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी और मीडिया में धोनी पर कई आरोप लगाए गए। परंतु धोनी शांत रहकर अपने फैसले पर स्थिर रहे। उसका फल यह रहा कि भारत को एक युवा क्रिकेट टीम मिली जिसने उसे कई बार जीत दिलाई।

धोनी पद्मश्री, पद्मभूषण, राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार से सम्मानित खिलाड़ी हैं। साथ ही वे भारतीय सेना के मानद लेफ्टिनेंट कर्नल भी हैं। सेना और पुलिस के प्रति उनका लगाव जगजाहिर है। वे भारतीय सेना के सैनिक की तरह ही कुछ दिन उनके साथ भी रहे थे।

भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी करने का अर्थ है अत्यंत दबाव और तनाव में खेलना क्योंकि भारत के लोगों के लिए क्रिकेट केवल खेल नहीं है, यह लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। जिन लोगों ने अपनी पूरी उम्र कभी बैट या बॉल भी नहीं पकड़ा हो वे भी क्रिकेट के बारे में ऐसे टिप्पणी करते हैं जैसे उनसे बड़ा जानकार और कोई है ही नहीं। मैच जीतकर आने वाली टीम को लोग सिर आंखों पर बिठाते हैं और कहीं अगर टीम कोई मुख्य मैच हार गई (विशेषत: पाकिस्तान से) तो लोग खिलाड़ियों के घर पर पत्थर फेंकने और आग लगाने से भी बाज नहीं आते। अब तो सोशल मीडिया भी ऐसा सशक्त माध्यम बन गया है जिसमें ट्रोल करके खिलाड़ियों को सीधे निशाना बनाया जा सकता है। परंतु धोनी ने यह साबित कर दिया था कि एक खिलाड़ी कप्तान के रूप में तभी सफल हो पाता है जब वह अपने हर साथी खिलाड़ी की क्षमताओं और कमजोरियों को भी अच्छी तरह से जनता है और परिस्थिति को भांप कर जीतने के लिए खिलाडियों की प्रतिभा का उपयोग कब और कैसे करना है।

क्रिकेट में खिलाड़ियों का आना-जाना तो लगा रहता है। सौरव गांगुली के जाने के बाद लंबे समय तक भारतीय टीम उचित कप्तान की राह देखती रही। भारतीय टीम के इस ‘कैप्टन कूल’ ने वह खाली जगह सक्षमता से भरी थी। अब धोनी के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास के बाद यह रिक्त स्थान जल्द ही भरेगा और भारत को फिर क्रिकेट की दुनिया में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा यही आशा है।

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