बेंगलुरु दंगे पीएफआई और एसडीपीआई की साजिश

आतंकवादी छात्र संगठन सिमी पर प्रतिबंध के बाद पीएफआई का गठन किया गया। उसी की राजनीतिक शाखा है एसडीपीआई। पीएफआई वह संस्था है जो मुस्लिम संगठनों को आर्थिक मदद देती है। दिल्ली दंगों के मामले में पीएफआई द्वारा दंगाइयों को पैसा पहुंचाने के सबूत मिले हैं।

बेंगलुरु का नाम आईटी और बीटी औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। यह एक ऐसा शहर है जहां रिटायर होने के बाद लोग आराम करने के लिए चुनते हैं। लेकिन अब बेंगलुरु एक अपवाद बनता जा रहा है। लोग सवाल तो यह भी करने लगे हैं कि क्या बेंगलुरु को भी दिल्ली की तर्ज पर साम्प्रदायिक दंगे के शिकार बनाने की कोशिश की गई है। क्या दिल्ली के दंगों के षड्यंत्र में शामिल मुस्लिम संगठन पीएफआई की राजनीतिक इकाई एसडीपीआई ने शहर के डी. जे. हल्ली और के. जी. हल्ली में सुनियोजित तरीके से पुलिस थानों पर हमला कराया और कांग्रेस के पुलकेशीनगर विधान सभा क्षेत्र से विधायक अखंड श्रीनिवास के घर को जला कर राख करने के पहले लूटपाट भी कराई गई। यह और ऐसे ही कुछ सवाल बेंगलुरु के शांतिप्रिय नागरिक पूछ रहे हैं।

बेंगलुरु में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रुद्रेश की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी, जिसकी जांच एन आई ए (राष्ट्रीय जांच एजेन्सी) को सौंपी गई थी, जहां, रुद्रेश की हत्या में पीएफआई और एसडीपीआई के हाथ होने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। वहीं, मामले की जांच करने वाली एनआईए ने निष्कर्ष निकाला कि सभी आरोपी कट्टरपंथी इस्लामी समूह पीएफआई के थे और आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या के लिए जिम्मेदार थे।
पीएफआई के सदस्य इरफान पाशा, (32), गोविंदपुरम के निवासी, ऑस्टिन टाउन के वसीम अहमद (32), मरप्पा गार्डन के मोहम्मद सादिक (35), आरटी नगर के मोहम्मद मुजीब उल्ला (46) और बेंसन के आसिम शेरिफ (40) हैं। टाउन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के प्रमुख सदस्य थे और इसके संबद्ध राजनीतिक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) को मामले में गिरफ्तार किया गया था।

इस जघन्य घटना में डी जी हल्ली और के जी हल्ली पुलिस थानों पर सैकड़ों लोगों द्वारा हमला किया गया। इस हमले में लगभग 60 पुलिसकर्मी घायल हो गए, यहां तक कि पुलिस उपायुक्त को भी हमलावरों ने घायल कर दिया।

12 अगस्त की रात में जिस तरह से मुस्लिम दंगाई एकत्र हुए और ‘अल्ला हो अकबर’ के साथ ही पुलिस वालों को भी मारो का नारा लगाकर घातक हथियारों से लैस होकर हमला किया वह साबित करता है कि मुस्लिम हमलावरों का जमावड़ा यकायक नहीं हुआ था।

एसडीपीआई, पीएफआई की राजनीतिक शाखा है। देश में आतंकवादी छात्र संगठन सिमी पर प्रतिबंध के बाद पीएफआई का गठन किया गया। पीएफआई वह संस्था है जो मुस्लिम संगठनों को आर्थिक मदद करती है। दिल्ली दंगों के मामले में पीएफआई द्वारा दंगाइयों को आर्थिक मदद देने का आरोप लगाया गया है।

मुस्लिम संगठनों द्वारा सीएए के विरुद्ध दिल्ली में 50 दिनों तक जिस तरह से प्रदर्शन किया गया था उसी को मद्देनजर रखते हुए बेंगलुरु में भी उसी तरह के आंदोलन की तैयारी की गई थी परंतु राज्य में भाजपा सरकार की दूरदृष्टि और पुलिस प्रशासन की जागरुकता के कारण आंदोलन एक ही दिन में खत्म हो गया। किसी को भी कहीं भी जमावड़ा नहीं करने दिया गया। सीएए के नाम पर चलने वाले आंदोलन की असफलता पर पीएफआई के राजनीतिक चेहरे एसडीपीआई के लोग कुछ बड़ी साजिश की योजना बना रहे थे। उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा श्री राम मंदिर पुनर्निर्माण के पक्ष में निर्णय दिए जाने के बाद और हाल ही में श्री राम मंदिर पुनर्निर्माण के लिए भूमिपूजन के बाद भी आंदोलन करने की योजना बनाई थी। गौरतलब है कि बेंगलुरु के ही पादरायणपुरा में कोरोना की जांच के लिए गई स्वास्थ्यकर्मियों की टीम पर भी मुसलमानों ने हमला कर दिया था और सार्वजनिक सम्पत्तियों के अतिरिक्त निजी सम्पत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया था। वहां वजीर की मुख्य आरोपी के रूप में पहचान की गई थी। उसी ने स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने के लिए उकसाया था। 126 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। बाद में जमानत पर छूटने के बाद कांग्रेस के विधायक जमीर अहमद खान ने सार्वजनिक रूप से दंगे के आरोपियों का फूलमाला से स्वागत किया था।

राज्य सरकार के केन्द्रीय आपराधिक ब्यूरो (सीसीबी) ने दंगे से संबंधित प्राथमिकी में 317 लोगों को नामजद किया है। बीबीएमपी की पार्षद इरशाद बेगम के पति खालिम पाशा को मुख्य आरोपी के रूप में गिरफ्तार किया गया है। 60 अन्य लोगों को भी दंगे भड़काने के लिए गिरफ्तार किया गया है। 200 लोगों को अभी तक गिरफ्तार किया जा चुका है। 80 आरोपियों को बेल्लारी जेल भेजा गया है। सात जांच टीमों का गठन किया गया है। दंगे की जांच का नेतृत्व संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) संदीप पाटिल कर रहे हैं।

इसी बीच पीएफआई और एसडीपीआई पर प्रतिबंध लगाने की बात जोर पकड़ रही है। एसडीपीआई के बेंगलुरु जिला सचिव मुज़म्मिल पाशा सहित दो अन्य को बुधवार को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का कहना है कि दोषियों को पकड़ने के लिए वीडियो फुटेज बहुत महत्वपूर्ण है तथा इस दंगे में एसडीपीआई की क्या भूमिका रही है वह भी पता चल रहा है। हम इसके बारे में अधिक जानकारी एकत्र कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और कई मंत्री, एसडीपीआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि छह माह पहले मंगलुरु में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान जो दंगा हुआ था उसमें भी पीएफआई और एसडीपीआई का हाथ होने का संदेह व्यक्त किया गया था।

दंगा-पीड़ित इलाकों का दौरा करने वाली भाजपा सांसद शोभा करंदलाजे ने कहा कि सरकार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और एसडीपीआई दोनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

पीएफआई के राजनीतिक घटक के रूप में एसडीपीआई का गठन 2009 में एक राजनीतिक पार्टी के रूप किया गया। यह चुनाव आयोग से पंजीकृत पार्टी है। इसके शुरुआत का कारण है। जब स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो सिमी के सदस्यों को उपयोग करने के लिए एसडीएफआई का गठन किया गया। सिमी के कुछ सदस्यों ने उदारवादी छवि देकर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक में फोरम फॉर सोलडरटी का गठन किया। एसडीपीआई ने कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में संगठन को खड़ा किया है। अपनी राजनीतिक ताकत को बढ़ाने के लिए इसने पंचायत चुनावों में भाग लिया। यही नहीं इसने कर्नाटक विधान सभा के लिए चुनाव तो लड़ा परन्तु एक भी सीट नहीं हासिल कर सकी।

कहा जाता है कि कर्नाटक में, एसडीपीआई मेंगलुरू, मैसूर और बेंगलुरु में सक्रिय है। एक दशक पहले बेंगलुरु में उसने अपनी जड़ें केजी हल्ली में जमानी शुरू कर दी थीं। अभी तक इस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लग सका? इसके कई कारण हो सकते हैं। यद्यपि कांग्रेस सरकार द्वारा इस पर इसलिए प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई थी कि यह संगठन कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक पर कब्जा कर रहा था लेकिन प्रतिबंध लगाने के लिए कानूनी तौर पर ही कार्रवाई हो सकती है। किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगाना आसान काम नहीं है, प्रतिबंध को ट्रिब्यूनल में चुनौती भी दी जा सकती है। ट्रिब्यूनल का निर्णय ही सर्वमान्य होता है। लेकिन राज्य के गृहमंत्री एस.आर. बोम्मई कहते हैं इस सबके बावजूद सरकार हर प्रकार से तैयारी कर रही है, ताकि कानूनी रूप से इस संगठन पर प्रतिबंध लग सके।

एसडीपीआई एक राजनीतिक पार्टी है। नियमों के अनुसार ही काम किया जा सकता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय कानूनी प्रक्रिया पर बारीकी से जांच करती है। यह एक कठिन प्रक्रिया है, लेकिन हमारी सरकार सबूत को जुटा रही है।

पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा ने कांग्रेस विधायक के घर पर हमले की निंदा तो की लेकिन साथ में यह भी कहा कि जो सैकड़ों लोग आरोपी के रूप में गिरफ्तार किए गए हैं उनमें से बहुत से लोग निर्दोष भी होंगे। सरकार को देखना होगा कि निर्दोषों पर कार्रवाई न हो।

नौ प्राथमिकी दर्ज हुई हैं। इनमें कहा गया है कि ’टीपू सेना’ वॉट्स ग्रुप के जरिए दंगाइयों को इकट्ठा किया गया।
पुलिस ने बताया कि एसडीपीआई की मंगलवार को शहर में हुए भयानक दंगों में भूमिका है। पुलिस ने कहा 317 लोगों को आरोपी बनाया गया है। शिवाजीनगर निवासी अबनास और एसडीपीआई के अब्बास, फिरोज, मुजामिल पाशा और हबीब मुख्य आरोपी हैं। अब तक डीजी गांव और केजी गांव दंगा के साथ कुल 9 एफआईआर दर्ज की गई हैं। शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि आरोपी पुलिस स्टेशन पहुंचे और सशस्त्र रिजर्व कर्मियों के हाथों से एक राइफल छीन ली। कोर्ट ने एसडीपीआई के मुजामिल और अफानान सहित पांचों आरोपियों को हिरासत में भेज दिया है। दिल्ली में भी इसी तर्ज पर दंगे करवाए गए थे।
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