क्यों महाराष्ट्र सीबीआई जांच से कतरा रहा है?

 महाराष्ट्र पुलिस के रवैये से सुशांत सिंह कथित आत्महत्या मामला और उलझता जा रहा है। महाराष्ट्र ने बिहार पुलिस को इस मामले में प्राथमिकी दर्ज होने पर भी जांच में न सहयोग किया और न जांच होने दी, न सीबीआई जांच को राजी है। आखिर इसका राज क्या है?

सिने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या का मामला देश भर की सुर्खियों में है। वजह महाराष्ट्र पुलिस की संदिग्ध भूमिका जो इस मामले में उसकी नीयत पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाने के लिए आम आदमी को विवश करती है। यह न्याय का सर्वमान्य सिद्धांत है कि जब वादी को न्याय मिलने की संभावना न हों या उसे अभियोजन की नीयत पर शक लगे तो तार्किक आधार पर उसकी ऐसी शंकाओं का वैकल्पिक समाधान उपलब्ध कराया जाना चाहिए। देश में विधि के शासन का निहितार्थ भी यही है जिसे एक संवैधानिक गारंटी के रूप में स्थापित किया गया है।

जाहिर है सुशांत केस में भी इस परिपाटी औऱ प्रावधान का अनुपालन किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक ही देश में एक ही पुलिस एक्ट से चलने वाली दो राज्यों की पुलिस आमने सामने खड़ी है। गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। दो राज्यों की कथित अस्मिता का सवाल भी इस कानूनी प्रकरण से खड़ा कर दिया गया। बेहतर होता महाराष्ट्र सरकार ऐसी नौबत ही नहीं आने देती औऱ जब सुशांत के पिता ने जांच पर सवाल उठाए तभी यह मामला सीबीआई को सौंप कर अपने ऊपर लग रहे आरोपों से बरी हो जाती। लेकिन अब ऐसा लगता है कि प्रकरण में कुछ तो ऐसा है जिस पर पर्देदारी का प्रयास महारष्ट्र पुलिस परिस्थिजन्य कर रही है।

खास बात यह है कि मामले में आरोपित रिया चक्रवर्ती ने आरंभ में खुद ही सीबीआई जांच की मांग की थी। इसके बाबजूद महाराष्ट्र सरकार क्यों इसे अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर देख रही है, यह सवालों को जन्म देता है। सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले को कतिपय अधिकार क्षेत्र के आधार पर चुनौती दिया जाना भी संदेह को इसलिए जन्म देता है; क्योंकि सरकार का उद्देश्य सुशांत के परिजनों को न्याय दिलाना है तो यह महत्व नहीं रखता है कि जांच कौन कर रहा है। वैसे भी प्रथम दृष्टया मामला रिया चक्रवर्ती के संदिग्ध संव्यवहार को प्रदर्शित करता ही है। ईडी की आरंभिक जांच में जो तथ्य समझ आ रहे हैं वे इस प्रकरण में उन आरोपों की तस्दीक करते हैं जो सुशांत के परिजन निरंतर लगा रहे हैं। मुंबई पुलिस ने जिस तरह इस मामले को आधार बनाकर कुछ प्रोडक्शन हाउस को निशाने पर लिया वह भी गंभीर सवाल खड़ा करता है।

मामले ने तब यू-टर्न लिया जब सुशांत के पिता के के सिंह ने बिहार की राजधानी पटना के राजीवनगर थाने में रिया चक्रवर्ती व कुछ अन्य लोगों के खिलाफ बेटे को आत्महत्या के लिए साजिश के तहत उकसाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवा दी। इसी एफआईआर के आधार पर बिहार पुलिस की एक टीम जांच करने मुंबई पहुंच गई। मुंबई व पटना पुलिस की तनातनी उस समय जगजाहिर हो गई जब पटना के सीटी एसपी व भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी विनय तिवारी जांच को बेहतर दिशा देने के उद्देश्य से मुंबई पहुंचे लेकिन वहां पहुंचते ही मुंबई महापालिका ने उन्हें क्वारंटीन कर दिया।

आईपीएस अधिकारी को क्वारंटीन करते ही आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला तेज हो गया। बिहार व मुंबई पुलिस भी खुलकर आमने-सामने आ गईं। मुद्दे पर सियासत भी तेज हो गई। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी कहना पड़ गया कि मुंबई में हमारे अधिकारियों के साथ ठीक नहीं हो रहा। लगे हाथ शिवसेना के नेता संजय राउत ने भी बिहार सरकार को नसीहत दे डाली। बिहार विधान मंडल के एक दिवसीय मानसून सत्र में भी सुशांत की आत्महत्या का मामला गूंजता रहा।

दरअसल, सुशांत के घरवालों, करीबियों व उन्हें जानने वालों को उनकी खुदकुशी के दिन यानि 14 जून से ही कुछ अटपटा लग रहा था। सुशांत के पिता ने भी कहा था कि उन्हें बेटे के साथ कुछ अनहोनी की आशंका थी और इस संबंध में उन्होंने मुंबई पुलिस को फरवरी में ही सूचना दी थी। हाल में वायरल हुए एक वीडियो में भी वे कह रहे हैं, उनके बेटे की जान को खतरा था और उन्होंने इसकी सूचना मुंबई पुलिस को दी थी लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया गया। सुशांत की मौत के बाद भी मुंबई पुलिस यथोचित तरीके से जांच नहीं कर रही थी। इसके बाद ही मैं बिहार सरकार के मंत्री संजय झा और फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिला। इसके बाद ही पटना में एफआईआर दर्ज की जा सकी। मुंबई पुलिस उनके द्वारा दी जा रही सूचनाओं को दबाए बैठी है और अब जब बिहार पुलिस इसकी जांच कर रही है तो उसे भी रोक रही है। आखिर मुंबई पुलिस क्यों नहीं जांच करने दे रही?

सुशांत के पिता के के सिंह ही नहीं, बिहार सरकार को भी मुंबई पुलिस का रवैया समझ में नहीं आ रहा। बिहार के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडेय कहते हैं, मुंबई पुलिस सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण में रिया चक्रवर्ती की भाषा बोल रही है। बिहार पुलिस की टीम जब पहले से वहां थी तो उन्हें उसी समय रोकना चाहिए था। जांच में आ रहे व्यवधान के बावजूद हमने कुछ नहीं कहा लेकिन अब तो हद कर दी। हमारे आईपीएस अधिकारी को ही क्वारंटीन कर दिया।

डीजीपी पांडेय कहते हैं, मैंने स्वयं महाराष्ट्र के डीजीपी व मुंबई पुलिस कमिश्नर को कई बार फोन किए। मैसेज भी भेजा। लेकिन न फोन रिसीव किया और न ही मैसेज का जवाब दिया। वहां गई हमारी टीम को मुंबई पुलिस कुछ देने को राजी नहीं चाहे वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट हो या एफएसएल की रिपोर्ट। बिहार के पुलिस प्रमुख कहते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस जितनी भी जुगत लगा ले, हम सचाई सामने लाकर ही रहेंगे। उनका कहना है, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश आने के बाद हम अपनी रणनीति तय करेंगे।

रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पटना में दर्ज मामले को मुंबई स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया है कि सुशांत सिंह राजपूत के बहनोई व फरीदाबाद (हरियाणा) के पुलिस आयुक्त आईपीएस अफसर ओ पी सिंह जांच को लगातार प्रभावित कर रहे हैं।

बिहार पुलिस को असहयोग पर मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह कहते हैं, सहयोग नहीं करने का कोई सवाल ही नहीं है। हम जांच कर रहे हैं कि कानूनन यह बिहार पुलिस के क्षेत्राधिकार में है या नहीं और अगर ऐसा है तो उन्हें यह साबित करना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार का मानना है कि बिहार पुलिस को जांच का अधिकार नहीं है। इसलिए इस मामले से जुड़े कोई भी कागजात बिहार पुलिस को नहीं सौंपे जाएंगे।

मामले में मुंबई पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई के बारे में परमवीर सिंह ने कहा, सुशांत का परिवार पुलिस को जांच में सहयोग नहीं कर रहा। उन्होंने कहा है कि मुंबई पुलिस प्रोफेशनल तरीके से सही दिशा में चल रही है। मुंबई में रहने वाली सुशांत की एक बहन को बयान दर्ज करवाने के लिए बुलाया जा रहा है लेकिन वे सहयोग नहीं कर रहीं। सुशांत के खाते से पैसा निकालने की जांच चल रही है। रिया के खाते में पैसा जाने का कोई सबूत नहीं मिला है। सुशांत के खाते में करीब 18 करोड़ रुपये आए थे जिनमें से साढ़े चार करोड़ रुपये खाते में हैं। सुशांत के सीए का बयान भी दर्ज किया गया है। इससे जुड़े सभी पक्षों की जांच की जा रही है। अभी तक 56 लोगों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। 16 जून को सुशांत के परिवारवालों का बयान दर्ज किया गया था और उस वक्त तक किसी को कोई शक नहीं था। सभी के बयान हमारे पास मौजूद है।

बिहार पुलिस को सुशांत प्रकरण की जांच का अधिकार है या नहीं इस पर पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता शेखर सिंह कहते हैं, निर्भया मामले के बाद जीरो एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान आया था। इसके लिए ज्यूरिडिक्शन कहीं आड़े नहीं आता है। लेकिन केस दर्ज करने के बाद उस एफआईआर को संबंधित पुलिस स्टेशन को सौंप देना होता है जहां का वह मामला है। सुशांत सिंह राजपूत के इस मामले में भी गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दिनांक 6.2.2014 को जारी एडवायजरी के अनुसार पटना के राजीव नगर थाने में जीरो एफआईआर ही दर्ज हुआ। इसे बिहार पुलिस को मुंबई पुलिस के संबंधित थाने को सौंप देना चाहिए था। किंतु भारतीय दंड संहिता की धारा 156(2) के अनुसार उस थाने की पुलिस जांच कर सकती है जहां जीरो एफआईआर दर्ज किया गया है। इसी वजह से बिहार पुलिस इस मामले की जांच कर सकती है और उस पर कहीं प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है। धारा 156 के सब सेक्शन 2 के तहत वह प्रोटेक्टेड है;

हालांकि इस मामले को लेकर सियासत ने भी अपनी राह पकड़ ली। सत्ता पक्ष व विरोधी दल इस मुद्दे पर एक दिखे। सुशांत के चचेरे भाई व भाजपा विधायक नीरज कुमार बबलू ने कहा सुशांत की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप दे दिया गया। पटना में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद मुंबई पहुंची बिहार पुलिस को जांच से रोका जा रहा है। यहां के आईपीएस अफसर को क्वारंटीन कर दिया गया।

कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने सीबीआई जांच के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने की मांग की। सदन के बाहर भी इस मुद्दे पर राजनीति गर्म रही। जनअधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद राकेश रंजन यादव उर्फ पप्पू यादव ने तो यहां तक कह दिया कि रिया का संबंध अंडरवर्ल्ड से है। इन हालातों में आखिर महाराष्ट्र सरकार क्यों इस मामले में अपनी फजीहत करा रही है?
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