रुपये का अप्रत्यक्ष अवमूल्यन

पिछले महीने मंडी और मुद्रा में कोई सुधार नहीं हुआ था। यूरोप की स्थिति दिन‡ब‡दिन बिगड़ती जा रही है। विशेष रूप से यूनान अर्थात ग्रीस और इटली की हालत इतनी खराब हो गई है कि यूरोप के 20‡जी देशों की बैठक में भी यह समस्या हल न हो सकी। यूरोप में अब केवल एक ही देश बचा है जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है। इंग्लैण्ड और फ्रांस की स्थिति डांवाडोल तो नहीं है, लेकिन वे अब यूरोप में अपनी ताकत जुटा नहीं सकते।

अफ्रीका में लीबिया, सीरिया आदि देशों में क्रांति हो गई है। इसलिए वहां पेट्रोल उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। वहां लोकतंत्र आने में कुछ समय लगेगा।
यूरोप के जी‡ऽ0 देशों की शिखर बैठक के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष युनान को संकट से पार पाने के लिए मदद देगा। लेकिन दूसरे देशों ने मुद्रा कोष को कोष देने में अपनी असमर्थता जताई। यूनान के बाँड के खरीददार यदि 25% रकम लेकर पुराना कर्ज माफ कर देंगे तो शायद ग्रीस की समस्या हल हो जाती। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, बल्कि यूनानी प्रधान मंत्री पाँपेंद्रु और इटली के प्रधान मंत्री बेलरुस्कोनी को इस्तीफा देना पड़ा। इन दो देशों में अब विपक्ष को लेकर संमिश्र सरकारें बनी हैं। यूनान में अब सार्वजनिक चुनाव होंगे और इटली को भी इसी राह जाना पड़ेगा। इन अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का वस्तु और शेयर बाजार पर असर होना स्वाभाविक है। सारी दुनिया के शेयर बाजार लुढ़क गए हैं।

यूरोप की इस हालत का असर भारत पर भी दिखाई देता है। भारत के शेयर बाजार में सुधार की बात सोचना भी मुश्किल लगता है। बीएसई सूचकांक 17000 से नीचे झूल रहा है। निफटी सूचकांक 5060 के नीचे आ गया है। इसके साथ भारत सरकार के लिए एब और चिंता का विषय है और वह है रुपये का अप्रत्यक्ष अवमूल्यन। जुलाई में रुपया‡डॉलर विनिमय दर 45 रुपये था, लेकिन उसके बाद 3‡4 महीनों में वह 52 रु तक हो गया है। भारत का आयात निर्यात से बहुत ज्यादा है। इसका प्रभाव व्यापार संतुलन पर बड़े पैमाने पर हो रहा है। अपनी चालू खाते की पूंजी अब लगातार कम होती जा रही है। पेट्रोल के दाम यदि और बढ़ेंगे तो यह घाटा और घातक हो जाएगा। रुपया और गिरने की आशंका के कारण अनिवासी भारतीय अब भारत में डॉलर का निवेश नहीं करते हैं। रिजर्व बैंक इस बारे में कोई कदम नहीं उठा रहा है। रिटेल व्यवसाय, विमानन और संचार क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश की अनुमति देने की उद्योग क्षेत्र की मांग है। लेकिन सरकार तो ऐसी है कि कूर्म गति से चलती है और कोई निर्णय नहीं करती। महंगाई कम न होने की वजह से रिजर्व बैंक ने रेपो और रिवर्स रेपो ब्याज दरों में तेरहवीं बार 0.25% की बढोतरी की है। महंगाई भले कम न हो लेकिन रुकने का संकेत दिया है। लेकिन् अनाज, सब्जियों, तेल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं। इससे रिजर्व बैंक के अनुमान आने वाले दिनों में बदलेंगे।

आने वाले दिनों के लिए केंद्र सरकार क्या सोच रही है इसका अनुमान लगाना कठिन है। रुपये के अंतरराष्ट्रीय मूल्य में आ रही गिरावट को रोकने के लिए सरकार के पास कोई उपाय नहीं है। टीम अण्णा और भ्रष्टाचार के घेरे से सरकार निकल नहीं पा रही है। विजय मल्या की किंगफिशर का दीवाला पिटने को है और उन्होंने विमानन क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने की मांग की है। मौजूदा कानून के अंतर्गत इस क्षेत्र में फिलहाल 49% विदेशी निवेश की अनुमति है। इससे विमानन में हतोत्साह दिखाई देता है। किंगफिशर घाटे में है और प्रधान मंत्री तक उसकी सहायता करना चाहते हैं। लेकिन विमानन मंत्रालय इसके पक्ष में नहीं है। बैंकों ने किंगफिशर से कहा है कि वे 800 करोड़ इक्विटी में डालें। महाराष्ट्र के सिाकॉम ने 400 करोड़ रु. देने की बात की है। निजी कम्पनियों की इस तरह सहायता करना अनुचित हो सकता है।

पेट्रोल के दाम तेल कम्पनियों‡ इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम ने नवम्बर के पहले सप्ताह में प्रति लीटर 180 रु बढ़ाए थे। इसका कारण यह बताया गया था कि कच्चे खनिज तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और रुपया का मूल्य गिर रहा है। केंद्र की युपीए सरकार की एक घटक ममता बॅनर्जी की तृधमूल कांगे्रस ने इस वृध्दि को वापस न लेने पर सरकार से हट जाने की धमकी दी थी। लेकिन प्रधान मंत्री का कहना था कि कीमतों का संबंध अंतरराष्ट्रीय कीमतों से हैं, इसलिए वृध्दि वापस नहीं होगी। चाहे तो ममता प. बंगाल में वैट कम कर जनता की मदद कर सकती हैं।
लेकिन सरकार जातनी थी कि यह बात संसद के शीत सत्र में हंगामा खड़ा करेगी, इसलिए इन कम्पनियों ने पेट्रोल के दाम अगब 2.20 रु. प्रति लीटर घटा दिए हैं। चूंकि पेट्रोल के दामों का विनियंत्रण किया जा चुका है, इसलिए हर 15 दिनों में इन भावों की समीक्षा की जाएगी और आचश्यकता के अनुसार उनमें घटा‡बढ़ी होती रहेगाी।

नवम्बर में टाटा स्टील, सेल, मोनेट इस्पात, भूषण स्टील जैसी इस्पात कम्पनियों ने सितम्बर 11 को समाप्त तिमाही में घाटा दर्ह किया। यूरोप का संकट सभी कम्पनियों को परेशान कर रहा है। आने वाले छह महीनों में इसमें सुधार की संभावना दिखाई नहीं देती।

केंद्रीय राजस्व में कोई 53000 करोड़ रु. का घाटा होने की संभावना है, क्योंकि डाक घर और सार्वजनिक भविष्य निधि की ब्याज दर कम होने से लोगों ने वहां से पैसे निकाल लिए थे। इसलिए सार्वजनिक भविष्य निधि की ब्याज दर अब 0.60 से बढ़ा कर 8.60% की गई है। जमा राशि की सीमा 70 हजार रु. से बढ़ा कर 1 लाख रु. की गई है। डाक घर बचत खाते पर अब तक 3.5% ब्याज दर थीी, जो अब 4% होगी। किसान विकास पत्र अब बंद किए गए हैं।

रिजर्व बैंक ने अक्टूबर में बैंकों के बचत खातों पर दिए जाने वाली ब्याज दर को विनियंत्रित कर दिया है। बैंक अब इन खातों पर चाहे जो ब्याज दर दे सकते हैं। येस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक इन दो बैंकों ने अपनी ब्याज दरें क्रमश: 6 और 5.5 फीसदी की है। अन्य बैंकों ने इसमें रुचि नहीं जताई है।
अर्थव्यवस्था की इस स्थिति पर संसद में हंगामा होना ही है। सब की आंखें अब फरवरी में आने वाले बजट पर होगी। रेलवे बजट में किराया बढ़ने के संकेत मिल चुके हैं। अब भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 6 फीसदी से भी कम होगी। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्थिति का बहाना बनाकर सरकार अपनी जिम्मेदारी टाल देगी। पांच राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं, जहां केंद्र के सत्तारूढ़ दल को खतरा दिखाई दे रहा है। इसके बाद 2014 के चुनावों तक उसे कोई दिक्कत नहीं हेागी। सरकार ‘ठण्डा कर खाने’ की सोचेगी। जनता को तब तक ‘अंधेर नगरी, टकासेर भाजी टकासेर खाजा’ की स्थिति से निपटना होगा। जन लोकपाल विधेयक पारित होने के बाद अण्णा टीम भी सुस्त हो जाएगी।

 

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