पाकिस्तान का समाज और उसकी संस्कृति


पुस्तक का नाम : पाकिस्तान : समाज और संस्कृति
लेखक : फीरोज अशरफ
संस्करण : प्रथम, 2011
पृष्ठ संख्या : 200 पृष्ठ
मूल्य : 200 रुपये
प्रकाशक : परिदृश्य प्रकाशन
6, दादी संतुक लेन, धोबी तलाव, मरीन लाइन्स, मुंबई-400002

भारत की स्वतन्त्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म हुआ। विभाजन की एक बारीक रेखा के अतिरिक्त उस समय ऐसा और कुछ नहीं था, जो दोनों देशों को मौलिक रूप से अलग करता हो। दोनों देशों की एक साझी विरासत थी। एक साझा सामाजिक ढ़ाचा था और एक साझी सांस्कृतिक पहचान थी। दोनों देशों के निवासियों के एक ही पूर्वज थे और सबका एक ही इतिहास था। स्वतन्त्रता संग्राम के शुरुआती दिनों में एक ही उद्देश्य-अंग्रेजी शासन से भारत वर्ष की मुक्ति ही राजनेआतों और जनता के मन-मष्तिस्क में बैठा था। किन्तु आगे चलकर अंग्रेजों की नीति के अनुरुप कुछ, कांग्रेसी मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम लीग के द्वारा मुस्लिमों के लिए एक अलग देश की मांग के साथ ही देश की जनता के मन में गहरे तक बैठा देश प्रेम का साझा भाव दो देशों की कल्पना में बदलने लगा। और मुस्लिम लीग की अलग देश की मांग के साथ ही बैरिस्टर जिन्ना की ‘सीधी कार्रवाई’ की घोषणा से ऐसा विषाक्त वातावरण बना कि देश का वह सब कुछ जो ‘साझा’ था, दो देशों में विभक्त हो गया। वह विभाजन केवल धरातल पर दो देशों के रूप में ही नहीं हुआ, अपितु आगे चलकर विश्व की राजनीतिक दो भिन्न ध्रुवों के साथ जुड़ाव से वैचारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक, साहित्यिक और राजनीतिक स्तर पर भी दो अलग-अलग स्वरूपों में विकसित हुआ। देश के नेतृत्व के साथ ही जनता का वैचारिक बदलाव भी समय-समय पर दिखाई देने लगा। यद्यपि यह कह पाना कि भारत-पाकिस्तान के बीच दरार कितनी गहरी है, कठिन है, फिर भी प्रचार माध्यमों के द्वारा हमें पाकिस्तान के बारे में जो कुछ मालूम होता रहता है और उसके आधार पर हमारी जो सोच विकसित होती है, उसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ पाकिस्तान में है जिसे हम नहीं जान पाते। उसी अजाने से व्यापक रूप से परिचय कराती है वरिष्ठ पत्रकार और सिद्धहस्त लेखक फीरोज अशरफ जी की पुस्तक ‘पाकिस्तान समाज और संस्कृति’।

उनकी सद्य: प्रकाशित यह पुस्तक उन चर्चित लेखों का संकलन है, जो विगत् पच्चीस वर्षों से साप्ताहिक कॉलम ‘पाकिस्ताननामा’ के अन्तर्गत ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रकाशित होते रहे हैं। इस लेखों में फीरोज अशरफ जी ने वहां की संस्कृति, सभ्यता, धर्म, राजनीति, कृषि, उद्योग, भाषा, साहित्य, कला, समाज सबका वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है। यद्यपि उनकी जानकारी का बड़ा आधार पाकिस्तान के प्रसार माध्यमों द्वारा प्राप्त जानकारियां हैं, किन्तु उन्होंने पाकिस्तान यात्रा, वहां के प्रबुद्ध जनों के भारत आगमन पर प्रत्यक्ष भेंट करके भी सच्चाई को उद्घटित किया है।
पुस्तक की प्रस्तावना में वरिष्ठ पत्रकार वेद राही ने लिखा है, ‘‘फीरोज अशरफ ने इन छोटे-छोटे निबन्धों में पाकिस्तान की जो कथा लिखी है, उसमें अपनी ओर से बढ़ा-चढ़ाकर कुछ नहीं लिखा…। वे चाहते थे कि विभाजन की त्रासदी में दोनों ओर के लोगों को जो तकलीफ दी है, उससे उभरकर आने की सोचें और सौहार्द्र के उन तन्तुओं को जीवित रखें जो दिखाई नहीं देते, लेकिन हमारे अस्तित्व को बदस्तूर एकजूट किए हुए हैं।’’ फीरोज अशरफ जी ने भी आत्मकथ्य में इसी बात को व्यक्त किया कि पच्चीस वर्षों तक लिखे गये लगभग बारह सौ लेखों में पाकिस्तान का हरेक पहलू विविध आयामों के साथ सामने आ सका है।

हालांकि ‘पाकिस्तान: समाज और संस्कृति’ पुस्तक पाकिस्तान को समझने और जानने का एक विश्वसनीय माध्यम है, किन्तु इससे भी आगे वहां की राजनीति में समय-समय हुए बदलाव को अधिक निकटता से जानने में यह उपयोगी सिद्ध होगी। विगत् पच्चीस वर्षों में पाकिस्तान की राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन आये हैं। जियाउल हक का सैनिक शासन, नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो की चुनी हुई सरकार, परवेज मुशर्रफ का शासन और आज के युसुफ रजा गिलानी तक के शासन पर गम्भीर टिप्पणी इस पुस्तक में मिलती है। जियाउल हक के समय हुए चुनाव के परिणाम पर वे लिखते हैं, वोटरों के सामने केवल एक ही समस्या थी, पाकिस्तान को एक इस्लामी मुल्क किस तरह बनाया जाये? इस चुनाव के जरिये उन्होंने साबित कर दिया कि वे पाकिस्तान में इस्लामी हुकूमत की स्थापना चाहते हैं।’’

फीरोज अशरफ जी ने पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति पर बेबाकी से लिखा है, ‘‘पाकिस्तान में जहां तीस-चालीस लाख हिन्दू आज सहमी, भयभीत और लाचारी की जिन्दगी गुजारने पर मजबूर हैं। उनकी आबादी का एक बड़ा भाग सिन्ध के कई जिलों में बिखरा है। पंजाब, बलुचिस्तान और सूबा सरहद में भी कई हिन्दू परिवार सदियों से आबाद हैं। बहुसंख्याक मुस्लिम समाज के रोज-ब-रोज हंगामों में उनके अस्तित्व का पता ही नहीं चलता है। होली के रंग की फुहारें और दीवाली में रोशनी के छींटे चुपके से गुजर जाते हैं।’’ (एक नजर उधर भी)

यह पुस्तक फीरोज अशरफ जी के पच्चीस वर्षों तक पाकिस्तान के विषय में चले चिन्तन-मनन का नवनीत है। जिसे हरेक बौद्धिक व्यक्ति को पाकिस्तान के बारे में गहराई से जानने के लिए पढ़ना चाहिए। मैंने स्वयं विगत् अट्ठारह वर्षों से ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रकाशित उनके प्रत्येक लेख को पढ़ा है और उनमें से अनेक, जो इस संकलन में भी शामिल हैं, कतरनों के रूप में मेरे पास सुरक्षित है। कई बार ऐसा हुआ है कि कोई लेख लिखते समय या भाषण तैयार करते समय फीरोज अशरफजी के ‘पाकिस्तान नामा’ से सहायता ली है। पुस्तक को पढ़ते समय जब साहित्य, समाज, संस्कृति, कला, कृषि की चर्चा आती है तो कहीं से ऐसा नहीं लगता कि हम भारत के बाहर का कुछ पढ़ रहे हैं। इस दृष्टि से भी यह पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है।

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