यज्ञ बचाए पर्यावरण

यज्ञ (अग्निहोत्र) ब्रह्माण्ड् के जड़-चेतन पदार्थों से जुड़ी वह पद्धति है जिसको आचरण में लाकर मनुष्य, जो सभी योनियों में श्रेष्ठ समझा जाता है, सुख बटोरता है और परोसता है। यज्ञ का उद्देश्य मनुष्य को असुरत्व और मनुष्यत्व से ऊपर उठाकर देवत्व को प्राप्त कराना है। प्रकृति अर्थात् पंच महाभूत तत्वों व समस्त प्राणी मात्र को स्वस्थ शुद्ध वातावरण देकर सुख-शान्ति देता है। जो विज्ञान यज्ञ की भावना से रहित है वह समाज को सुख-सुविधा तो दे सकता है किन्तु वह मानव को शान्ति, आनन्द और पवित्र वातावरण नहीं दे सकता। यज्ञ को वेद तथा वैदिक वाङ्मय में ‘विश्वतोधार’ कहा गया है। वैदिक शास्त्रों की इस परिभाषा पर जितना ही विचार करे उतनी ही यह गहरी और यथार्थ दृष्टिगोचर होती है। यज्ञ का धूम्र जहां मनुष्यों के लिये उपकारी है वहीं पशु-पक्षी, वृक्ष इत्यादि जो मूक जगत् है उसके लिये भी उतना ही सहकारी है।

‘यज्ञ’ शब्द का प्रयोग होते ही जो सहज अर्थ समझ में आता है वह कि किसी उद्देश्य से किसी देवता के लिये मंत्रोच्चार के साथ हवन-कुंड की अग्नि में घी, सामग्री और समिधा की आहुति प्रदान करना। यह अर्थ सामान्य हवन-अग्निहोत्र-से लेकर अश्वमेध तक यज्ञों के लिए समझा जाता है। ‘यज्ञ’ शब्द ‘यज्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है- देव-पूजा, संगतिकरण और दान। ‘यज्ञ’ वैदिक संस्कृति का आधार स्तंभ है।

विगत 35 वर्षों से प्रदूषण की भयंकरता से हमारी पृथ्वी का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित तथा रोगग्रस्त होता जा रहा है जिससे केवल मनुष्य ही नहीं सम्पूर्ण चराचर जगत् पर संकट बढ़ रहा है। अनियंत्रित भोगवाद की प्रवृत्ति के कारण प्रकृति के लगातार दोहन से यह प्रदूषणरूपी जहर समस्त प्राणियों व प्रकृति को नष्ट कर रहा है।

किस-किस तरह से बचाएं अपना पर्यावरण

 

1) सर्वप्रथम तो पंचमहाभूत में पृथ्वी का अनुचित दोहन न किया जाये अर्थात् वृक्षादि न काटना, सोना-चांदी, कोयला आदि खनिज पदार्थों के लिये भूमि का क्षरण न करना, एक ही भूमि पर अदल-बदल कर फसल उगाना जिससे उसके पोषक तत्व नष्ट न हों, रासायनिक खाद का प्रयोग न करना, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कम करना, उद्योग-धंधों के आणविक परीक्षणों तथा प्राणियों की मलिनताओं को शोधित कर भूमि में डालना।

2) गाय आदि पशुओं का गोबर-मूत्र, कृमिनाशक होता है और भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ता है, अत: गोपालन, पशुओं की रक्षा-आवश्यक है।

3) जल में भी उक्त प्रदूषित तत्व डालने से वह हानिकारक हो जाता है तथा अनेक रोगों का प्रकोप बढ़ता है।

4) अग्नि जीवन शक्ति को बढ़ाती है। पर्यावरण को संतुलित रखने व प्रदूषण रहित करने में अग्नि का स्थान सर्वोपरि है।

5) यज्ञाग्नि के लाभों में यज्ञ-चिकित्सा सबसे अधिक लाभदायक है।

6) शुद्ध जल और वायु अपने आप में रोगनाशक औषधि है, अत: ऋषियों ने शुद्ध-पुष्ट, जल-वायु के लिए प्रतिदिन हवन-यज्ञ का सिद्धांत प्रतिपादित किया।

7) मनुष्य प्रश्वास द्वारा, औद्योगीकरण के द्वारा, वृक्षादि को काटकर, पशु-पक्षी को मारकर, दूषित गैसों से वायु को प्रदूषित करता है। अत: उसका यह कर्तव्य है कि गाय के घी, सुगंधित औषधियुक्त सामग्री तथा लाभदायक समिधाओं से यज्ञ कर उसके धूम्र से वायु मण्डल को शुद्ध-पवित्र करें।

8) ऊर्जा की खपत कम करें- ग्लोबल वार्मिंग के ग्रीनपीस के कार्यकर्ताओ ने ताप विद्युत उत्पादन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को मुद्दा बनाया और बिजली की बचत के लिए बताया कि सी. एफ. एल और ट्यूब लगाकर ऊर्जा की बचत और वातावरण की गर्मी (ताप) को कम किया जा सकता है। 100 वाट के बल्ब के बदले मात्र 16 वाट का लेम्प लगाकर उतनी ही रोशनी के साथ ही शीतलता भी पाई जा सकती है।

9) कम दूरी के आवागमन के लिये पैदल चलें और लम्बी दूरी के लिये पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें।

10) ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं। घरों के आसपास तुलसी, फूलों के पौधें और जगह न हो तो भी मकानों की दीवारों के साथ बेलें लगाएं।

11) प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न करें क्योंकि ये धरती पर प्रति वर्ष कई गुना संख्या से बढ़ती रहती हैं, नष्ट नहीं होतीं। यह सारा प्लास्टिक मिट्टी में सड़े-गले बिना ज्यों का त्यों बना रहता है, अत: ये थैलियां अंतत: प्राकृतिक आपदा का कारण बनती हैं। पर्यावरण पर इनके प्रभाव को महसूस करने के लिए चेन्नई और मुंबई की बाढ़ अध्ययन का सटीक उदाहरण हो सकती है और उनसे सबक सीखा जा सकता है। वेदों में भी कहा गया है कि अनुभव से बढ़कर महान शिक्षक और कोई नहीं होता।

12) कचरे की मात्रा को कम करें और किसी एक स्थान पर ही गड़्ढे में फेंकें।

13) विकास की योजना बनाते समय वृक्षों को बचाने के विकल्प का उपयोग किया जाए।

14) ट्रांसपोर्ट सिस्टम मजबूत हो, मेट्रो रेल जैसी सुविधाएं लोगों को मिलें और कुछ सड़कें ऐसी हों जहां कार आदि वाहन ले जाने की मनाही हो।

15) जिस प्रकार बिजली, पानी, टेलीफोन की लाइनों के लिए जगह छोड़ी जाती है उसी तरह वृक्षों के लिये भी जरूरी स्थान छोड़ा जाए। आवासीय जरूरतें पूरी करने के लिये खेलों के मैदानों व आयोजनों के लिये, व्यावसायिक स्थान बढ़ाने के लिए बड़े-बड़े 25-50 वर्ष पुराने वृक्षों को काट दिया जाता है। प्रत्येक के बदले में 10 वृक्ष लगाने की योजना तो है लेकिन वे कहां लगते हैं? और यदि वहीं कहीं आसपास लगते भी हैं तो इतने पास-पास लगते हैं कि कुछ मर जाते हैं और कुछ पनप नहीं पाते। वे इतने छोटे रह जाते हैं कि 10-12 साल उन्हें परिपक्व होने में लग जाते हैं। तब तक शहर के प्रदूषण और बढ़े हुए तापमान को सोखने की क्षमता उतने अंतराल तक बहुत कम रहती है। बड़े पेड़ों के नहीं होने से बारिश का पानी ठहरकर जमीन के अन्दर नहीं जा पाता। इस कारण से भूजल स्तर में भी सतत गिरावट बनी रहती है।

16) पटाखों से वायु और ध्वनि प्रदूषण बहुत बढ़ता है। ये दीपावली या किन्हीं त्यौहारों पर, शादियों में, नेताओं की जीत पर, क्रिकेट की जीत पर या और किसी कारण पर इतने पटाखे जलाए जाते हैं कि सारा वातावरण सल्फर डायऑक्साइड, कार्बन मोनाक्साईड, कार्बन डायऑक्साइड, सस्पेन्डेड पर्टीक्युलेट मॅटर (सीसा) जैसे घातक तत्वों से भर जाता है, जिनसे आंखों में जलन, दम घुटना, फेफड़ों में संक्रमण आदि रोग होने का खतरा रहता है। साथ ही उनकी भयंकर आवाज से ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है और कान के पर्दों पर भी घातक असर पड़ता है। यह गैस खामोश हत्यारिन की तरह है जो मारने से पहले यह मसूस नहीं होने देती कि मौत कितनी निकट है। दिल्ली में एक बार एक परिवार वर्षा से बचने के लिए ए. सी. कार के कांच बंद करके बैठा रहा और इंजिन से निकलने वाली कार्बन मोनाक्साईड उन्हें लील गई। विषैली गैस के ऐसे कई उदाहरण हैं।

17) साधारण धुएं की तुलना में पटाखों, सिगरेट आदि का और रासायनिक धुआं अधिक घातक होता है क्योंकि यह धरती के निकट ही नहीं होता बल्कि हमें चारों ओर से घेरे हुए भी होता है और श्वास द्वारा हमारे शरीर में जाता रहता है। इनके श्वास से- अस्थमा तथा एलर्जी वाले रोगियों को बहुत कष्ट होता है। पटाखों के धमाकों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से गर्भस्थ शिशुओं की श्रवण-शक्ति और क्षमता तक प्रभावित होती है और बच्चे व बूढ़े बहरेपन का शिकार होते हैं। मुम्बई में 40 वर्ष आयु के 52 प्रतिशत लोग आंशिक तौर पर बहेरपन का शिकार हैं और यहां का 20 वर्ष का आम निवासी सुनने की क्षमता की दृष्टि से अफ्रीका के मसाई निवासी 80 वर्षीय व्यक्ति के बराबर है।

18) दीवाली खुशियों और उल्लास का प्रकाश पर्व है। इसे अवश्य मनाएं किन्तु दीप मालाओं के साथ मर्यादित रूप में तथा किसी एक खुले स्थान पर कम धुएं, कम आवाज वाले पटाखों के साथ जिससे वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण न हो। अन्य अवसरों पर भी पटाखों का प्रयोग करते समय हम उन मासूम गरीब बच्चों के बारे में सोंचें जिनसे पटाखों के कारखानों में काम करवाया जाता है और वह बारुद उनकी नन्हीं छाती में जाकर असमय ही उन्हें काल का ग्रास बना देता है। अनेक समस्याओं का विचार करते हुए पटाखों का प्रयोग खत्म हो जाना चाहिये।

19) इस बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने का सर्वोत्तम और कारगर उपाय यज्ञ-हवन करना ही हैं। ‘यज्ञ’ एक महाविज्ञान है जैसे कहते हैं-

‘‘प्रति दिन एक सेव का सेवन हमें डॉक्टर से दूर रखता है।’’

इसी तरह प्रतिदिन यदि 10 मिनिट का हवन-यज्ञ किया जाए तो आत्मिक पवित्रता के साथ यह वातावरण की प्रदूषणता और भू-वंध्यता को भी दूर करेगा।

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