घनकचरे का निपटारा ‘इंटरजियो’ प्रणाली से

पूरे देश में खास कर शहरों और महानगरों में घनकचरे का प्रबंध एक बड़ी समस्या है। सब से बड़ी दिक्कत तो हमारे यहां आने वाला कचरा मिश्र होता है, जिसमें प्लास्टिक से लेकर कागज तक सब कुछ होता है। इस कचरे को विभाजित कर उससे उपयोगी उत्पाद बनाए जा सकते हैं, कचरे की समस्या का भी निपटारा हो सकता है और पर्यावरण की रक्षा भी हो सकती है। इसी उद्देश्य से आस्ट्रिया व जर्मन कम्पनी के सहयोग से एसएफसी ने संयुक्त उपक्रम स्थापित किया है, जिसका नाम है इंटरजियो। उसका ‘सी टेक’ प्लांट कचरे की समस्या का माकूल समाधान है। इसे विस्तार से बता रही हैं इंटरिजियो की निदेशक अपर्णा कपूर।

आपको इस कार्य की प्रेरणा कैसे मिली?

हम लोगों ने 2005 में एसएफसी कंपनी प्रारंभ की। आज इस कंपनी ने ‘सी टेक’ यानी ‘सिवरेज टेक्नॉलॉजी’ के नाम से क्रांतिकारी कार्य किया है। हमें गर्व है कि हमारी कंपनी की ‘सी टेक’ प्रणाली के देशभर में 150 प्लांट लग चुके हैं। यह प्लांट या टेक्नालॉजी एक प्रकार जलस्रोत ही है। इस तकनीक से वेस्ट वॉटर को हम इस प्रकार ट्रीट करते है कि उस पानी को फिर से उपयोग में लाया जा सकता है। ‘सी टेक’ के माध्यम से इस बात को बढ़ावा देने में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं कि हम भारतवासी ज्यादा से ज्यादा पानी को पुनर्उपयोग में लाकर पानी की बचत किस प्रकार कर सकते हैं।

इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य क्या है?

इस मुपानी की रिसायकलिंग के क्षेत्र में ‘सी टेक’ टेक्नालॉजी के द्वारा हमारी कंपनी ने महत्वपूर्ण योगदान देश के प्रमुख शहरों में दिया है। इस क्षेत्र में कार्य करते समय देश के प्रमुख शहरों की महानगरपालिकाओं से मिलना होता था तब एक बात ध्यान में आई कि देश की एक भी मनपा और तीसरे पर लिखा होता है ‘ओन्ली फूड’। हमारे देश में इस प्रकार अलग ‡अलग स्तर पर कचरे को इकट्ठा करने का प्रयास संभव नहीं हो पा रहा है। इसका कारण है कि लोगों में कचरे के संदर्भ में उचित जागृति नहीं है।

अपने कचरे में ज्यादातर ‘ग्रीन वेस्ट’ होता है यानी सब्जी या किचन वेस्ट। इसमें जल्द ही गंदी दुर्गंध आती है। जल्दी सड़न निर्माण होती है। अपने देश में किचन वेस्ट से तैयार होने वाले कचरे की मात्रा बड़ी तादाद में है। इस कचरे के निर्मूलन की भी अपनी कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

इस प्रकार के कचरे से निपटने की हमारे यहां की महानगरपालिकाओं के पास कोई उचित व्यवस्था ही नहीं हैं। यह सारा कचरा सिर्फ जमीन के बड़े टुकड़े पर लाकर डाल दिया जाता है। सारी नगरपालिकाएं एमएसडब्ल्यू 2000 के नियमों का पालन नहीं कर पाती हैं।

यह कानूनी या कुदरती तौर पर उचित नहीं है। आप जब मिक्स कचरे को डाल देते हैं तो उसमें से मीथेन गैस निकलती है जिससे आग पैदा होती है। बारिश में यही गंदा कचरा गंदगी, बदबू निर्माण करता है। जिससे अनेक तरह की बीमारियां फैलती हैं।

ऐसे कचरे को जलाने का प्रयास हमारे यहां नाकामयाब रहा हैं। क्योंकि हमारे यहां का कचरा मिक्स होता है। ऐसे कचरे में प्लॅस्टिक है, पेपर है, मेटल है, लकड़ी है और मिट्टी के साथ पानी भी बड़ी मात्रा में होता है।

इस समस्या से निपटने के लिए आपकी टेक्नालॉजी किस प्रकार कार्य करती है?

इस तरह के कचरे के निपटारे के लिए बड़ी हाय प्रेशर टेक्नीक हमने निर्माण की है। हाय प्रेशर से कचरे को प्रेस करके उसे छान लेते हैं। छलनी करते वक्त कचरे में मौजूद सभी पानी बाहर निकलता है और बचता है केवल अत्यंत सूखा कचरा। इस टेक्नीक में कचरे से सारी अजैविक सामग्री अलग कर देते हैं। हमने सहज तरीके से कचरे को दो भागों में विभाजित कर दिया। गीला और सूखा कचरा अलग‡अलग कर दिया है। इस प्रकार की टेक्नीक से तीन महीने में स्थिर होनेवाला कचरा कुछ घंटों में ही स्थिर होता है।

हमारी टेक्नालॉजी यह सिंगल स्टेज आटोमैटिक टेक्नॉलॉजी है जिससे मिक्स वेस्ट को अलग‡अलग हिस्सों में विभाजित करते हैं। हमारा उद्देश्य कचरे से निर्माण हो रही समस्या खत्म करना, हर नगरपालिका को लंबे समय से छलती आ रही कचरे की समस्या खत्म करना है। हमारा प्लांट कम से कम बीस से पच्चीस साल तक कार्य करता रहेगा।

क्या इस तकनीक से नए उत्पाद बनाए जा सकते हैं?

कचरे से उपयोगी चीजों का निर्माण कर सकते हैं। कचरे को उत्पादन का माध्यम बनाकर उससे संपत्ति निर्माण हो सकती है। जिससे हर उपक्रम पर हो रहा खर्च निकल आये। प्लांट पर जो पूंजी लगाई गई है उसकी वसूली कर सकते हैं। मिश्र कचरे में से सूखा हुआ 40% मटेरियल निकालकर आप अपने उद्योग समूह के लिए एक तरह से ईंधन प्राप्त कर सकते हैं। यह एक तरह का ईंधन ही होगा। अगर नगर पालिका ऐसा करती है तो उसे इस तरह की चीजों को बेचकर आय भी होगी।

यही बात बात घनकचरे को भी लागू पड़ती है। जिससे आप ऐसे उत्पाद बना सकते हैं जिससे आय हो तथा प्लांट पर किया गया पूंजीगत निवेश वसूल हो। कचरे की समस्या हटाने के साथ साथ आप आय देने वाले उत्पाद भी बना सके तो यह बड़ी बात होगी ही।

कचरे का वर्गीकरण कैसे होता है?

हमारा उद्देश्य है कि जो भी कचरा आ रहा है उसे हम वेटलेस बना दें। केले का छिलका, किचन वेस्ट, सब्जी का कचरा यह जैवीय कचरा है। इससे बायो गॅस बनाये। जैवीय कंपोस्ट बनाये जो कृषि के उपयोग में ला सकते हैं। ड्राय रिसाइकल वेस्ट यानी कपड़ा, प्लॅस्टिक पेपर, लकड़ी आदि। ये चीजें जलती हैं। ऐसी चीजों को मिलाकर आरडीएफ बनाइए।

एक्स्ट्रुजन मशीन में मिश्र कचरा डालकर उसे हाय प्रेशर से दबाते हैं। जिससे एक छोर से ऑरगॅनिक पल्प निकलता है और दूसरे छोर से सूखा कचरा लुगदी होकर बाहर निकलता है। मशीन पूर्णत: स्वयंचलित है।

हायड्रॉलिक प्रेस सिस्टम से यह मशीन चलती है। सूख कर निकले कचरे में पानी की मात्रा जरा भी नहीं होती है। वह पूरी तरह से सूखा होता है। आर्गेनिक कचरा एक लुगदी की तरह होकर निकलता है। वह कंपोस्ट और बायोगैस बनाने के लिए उपयोग में आता है। कचरे का रूप ही बदल जाता है, जिससे कचरा एकदम शून्य हो जाता है।

उत्पाद किस तरह बनाए जाते हैं?

कंपोस्ट की क्वालिटी उत्तम होती है। इस प्रक्रिया में कचरे को जमा करके रखना नहीं पड़ता है। कचरा तुरंत रिसाइकलिंग प्रक्रिया में लाया जाता है। स्वयंचलित व्यवस्था के जरिए यह प्रक्रिया चलती है। इससे निकलने वाले कंपोस्ट की क्वालिटी कई गुना अच्छी होती है। जिसमें खतरनाक मिक्स नहीं होता।

इसकी उपलब्धि क्या है?

इसका फायदा यह है कि जैसे ही कचरा आ गया तो यह प्रोसेस तुरंत शुरू होती है। जैवीय और अन्य चीजों को अलग कर दिया जाए तो कोई भी अन्य मटेरियल उस कंपोज प्रक्रिया में नहीं जाता है। इस प्रकार कचरे से अच्छी प्रकार की खाद उपलब्ध होती है।

इस मशीन से कम जगह में, कम समय में कचरे का निपटारा होता है। साथ ही उस कचरे से अन्य उत्पादों का निर्माण होकर उससे आर्थिक आय होती है।

500 टन कचरे के लिए 3 हेक्टर जमीन पर यह प्लांट काम करता है। आज के उपलब्ध डंपिंग ग्राऊंड की तुलना में 6 गुना कम जमीन इस उपक्रम में लगती है। यह उपक्रम अपने शहर में ही स्थापित कर सकते हैं। अन्य उपक्रमों की तरह शहर से दूर जगह कचरे पर प्रक्रिया करना समय और धन की हानि करने वाला होता है। हमारे उपक्रम से समय और यातायात की बचत से 80% धन की बचत हो सकती है।

कम्पनी का ढांचागत स्वरूप क्या है?

यह हमारी इंटरजियो कंपनी का निर्माण है। यह कंपनी संयुक्त उपक्रम के रूप में बनाई गई है। जिसमे हमारे ऑस्ट्रियन सहयोगी हैं। इंटरजियो घनकचरा प्रबंध कंपनी है। उनका सॉलिड वेस्ट के क्षेत्र में गत तीस सालों का योगदान है। उनका प्रदीर्घ अनुभव हमारे साथ है। हमारे साथ जर्मन एक्स्ट्रुजन टेक्नॉलॉजी से जुड़ी एक और कंपनी है। वह पूरी दुनिया में गत बीस सालों से अपना योगदान दे रही है। हमारी एसएफसी कंपनी गत 7 वर्षों से सिवरेज टेक्नालॉजी में क्रािंंतकारी कार्य कर रही है। ऐसी तीन कंपनियां मिलकर हमने यह कंपनी प्रस्थापित की है। जर्मनी, ऑस्ट्रियन और हमारी एसएफसी कंपनी मिलाकर इस संयुक्त उपक्रम कंपनी का निर्माण हुआ है।

भविष्य को आप किस रूप में देखती हैं?

भारत में कचरे की जो समस्या है उसकी हमें जानकारी है। यहां के कचरे का स्वरूप किस प्रकार का है, उसके निपटारे के लिए किस प्रकार के प्लांट की जरूरत है, इससे समाज को उत्तम आरोग्य देने में किस प्रकार सेवा दी जाए इन बातों को हम समझते हैं। साथ में इस कचरे की समस्या को निपटने हेतु तकनीक और उपकरणों की जानकारी हमारी साथी कंपनियों के पास है। जैसे जैसे हमारा कार्य बढ़ता जाएगा हमारी योजना है कि इस प्लांट को लगने वाले उपकरण भी भारत में ही बनाए जाए ताकि इस उपक्रम का आर्थिक भार कम करके इसे बड़े पैमाने पर उपयोग में ला सकते हैं।

देश की प्रमुख महानगरपालिकाओं से अभी हमारी बातचीत हो रही है। उनके कचरे की समस्या हम समझ रहे हैं। हर जगह कचरे की अलग समस्या है। प्रतिसाद मिल रहा है। आने वाले पांच सालों में हम 8 से 10 प्लांट को स्वरूप देने में अपना योगदान दे रहे होंगे।

हमने तीन तरह के लक्ष्य रखे हैं‡ अल्पावधि, मध्यावधि और दीर्घावधि। अल्पावधि लक्ष्य यह है कि मुंबई, पुणे, दिल्ली जैसे शहरों में अपने संयंत्र प्रारंभ करना ताकि प्रत्यक्ष कार्य का अनुभव हम अन्य शहरों को दे सके। मध्य अवधि योजना है कि इन संयंत्रों के आधार पर देश के अन्य प्रमुख शहरों तक अपनी सेवा का विस्तार कर सके।

दीर्घावधि का लक्ष्य यह है कि देश की हर महानगरपालिका में एक ऑर्गेनिक एक्स्ट्रेक्शन का प्लांट लगे। आज के बीस साल के बाद भी हमारा यह प्रोजेक्ट पर्यावरण की रक्षा हेतु देश का साथ देता रहे। हमारी तकनीक का प्रमुख उद्देश्य ही यह रहा है कि जो भी कार्य करें उच्च दर्जे का करें। हम इस प्रोजेक्ट का पिछलें चार सालों से अध्ययन कर रहे हैं। समाज में जो भी समस्या है उसका हर पहलू समझ कर, उसके उपायोेंं के संदर्भ मेंं सोच कर, अध्ययन करके हम यहां तक पहुंचे हैं। पर्यावरण रक्षा हेतु हमारा प्रोजेक्ट एक उत्तम माध्यम बन सकता है यह विश्वास आज हमारे मन में है।

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