गंगा में पांच साल में ही बदलाव देखिएगा-प्रकाश जावडेकर

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को विश्वास है कि गंगा शुद्धिकरण के कार्य के लिए सरकार ने यद्यपि दस साल की समय सीमा रखी है, परंतु सरकार के पांच वर्ष पूर्ण होते-होते ही इस संबंध में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगेगा। उनसे हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंशः-

गंगा नदी के संदर्भ में अपनी भावनाएं स्पष्ट करें।
गंगा नदी का विषय केवल भावनात्मक नहीं है। जल ही जीवन है। जल पर ही सभी जीवों का जीवन निर्भर है। हर नदी के प्रति लोगों के मन में अच्छा भाव है। इन सभी में गंगा नदी का महत्व अधिक है; क्योंकि भारत की ४० प्रतिशत आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। अध्यात्म और हमारी पुरातन परंपराओं से जुड़ी गंगा के प्रति दुनियाभर के हिन्दुओं के मन में असीम श्रद्धा है।

श्रद्धा से जुड़ी गंगा आज बहुत मैली दिखाई दे रही है। आपके दृष्टिकोण से इसका मुख्य कारण क्या है?
राज कपूर की एक फिल्म का गीत है ‘राम तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते-धोते।’ इस गीत के बोलों में सच्चाई नहीं है। गंगा पापियों के पाप धोते-धोते मैली नहीं हुई है। जो मल गंगा के तट पर बसे शहरों में निर्माण होता है उसमें से ८०% मैला गंगा में डाला जाता है। गंगा में बहाए जाने वाले कचरे पर कोई भी रासायनिक प्रक्रिया नहीं की जाती। अगर की भी जाती है तो उसका प्रमाण सही नहीं होता। उचित व्यवस्था न होने के कारण शवों से लेकर हानिकारक रासायनिक पदार्थों तक सभी कुछ गंगा में बहाया जाता है। इसी कारण गंगा का पानी अब शुद्ध नहीं रह गया है। निर्मल गंगा अभियान केवल गंगा स्वच्छता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश की सभी नदियां शुद्ध रहें इस दिशा में बढ़ाया गया कदम है।

मोदी सरकार के द्वारा गंगा शुद्धिकरण के संदर्भ में जो घोषणाएं की गईं हैं, उसे प्रत्यक्ष रूप में लाने हेतु कौन से प्रयास हो रहे हैं?
मोदी सरकार ने शुरू से ही इस विषय को प्रधानता दी है। कार्य शुरू करते समय तीन बातों पर गहराई से विचार किया गया है। पहली बात यह कि प्रदूषण को रोकना है। आज कई सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट ठीक तरह से कार्य नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें फिर से क्रियान्वित करना है। नए सीवरेज प्लांट शुरू करना है। ग्रामीण क्षेत्र से बहने वाली नदियों पर भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना है। दूसरी बात है औद्योगिक प्रदूषण को रोकना। गंगा के किनारे ७६४ रासायनिक उद्योग हैं। इन सभी पर प्रदूषण नियंत्रण के लिए बने कानूनों को लागू करना है। तीसरी बात है गंगा के किनारे होने वाले धार्मिक विधि-विधानों तथा दैनिक कार्यकलापों के कारण जो कूड़ा पैदा होता है उस पर उचित प्रक्रिया की जाए, जिससे इनके माध्यम से होने वाला प्रदूषण भी कम हो सके।

सन १९८५ से गंगा शुद्धिकरण की सिर्फ घोषणा हो रही है, बजट मंजूर हो रहा है परंतु गंगा शुद्ध नहीं दिखाई देती। इस बार भी जनता के मन में संदेह है, आप इस संदेह का निर्मूलन कैसे करेंगे?
हमारे पास गंगा की स्वच्छता के लिए ‘गंगा स्वच्छता अभियान’ के रूप में १० सालों की योजना है। यूरोप और अमेरिका की नदियां भी कुछ सालों पहले तक बहुत गंदी थीं। दस सालों के अथक प्रयासों के बाद उन्होंने कई नदियों को साफ कर दिया है। हमारा भी विश्वास है कि हम भी गंगा और अन्य नदियों को साफ कर पाएंगे।
गंगा नदी में जो भी कचरा आता है, उसे तुरंत साफ करने के लिए कचरा ढोने वाले जहाजों की व्यवस्था की गई है। ये जहाज गंगा के प्रवाह से कचरा ढोकर किनारे पर लाते हैं जहां उस कचरे पर रासायनिक प्रक्रिया की जाती है। देश की अन्य नदियों में भी यह व्यवस्था करने का हमारा विचार है।
गंगा शुद्धिकरण का विचार लेकर हमने सभी उपायों एवं योजनाओं पर कार्य शुरू किया है। हमने इस कार्य के लिए दस सालों की समय सीमा अवश्य रखी है, परंतु हमारा विश्वास है कि सरकार के पांच वर्ष पूर्ण होते-होते ही इस संबंध में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगेगा।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का इस कार्य में प्रत्यक्ष योगदान किस तरह होता है?
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी गंगा स्वच्छता अभियान से संबंधित सभी मंत्रियों एवं अधिकारियों से महीने में एक बार होने वाली बैठक में संवाद साधते हैं। योजना के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं पर चर्चा की जाती है। उनके द्वारा उचित तथा परिणामकारक निर्णय लिए जाते हैं। इस बैठक में अगले महीने में होने वाले कार्यों की रचना की जाती है तथा पिछले महीने में किए गए कार्यों का ब्यौरा लिया जाता है। चूंकि इस अभियान को जनता के सहयोग से पूरा करना है अत: जनता तक इसकी पहुंच को कैसे बढाया जाए इस पर भी विचार किया जाता है। यह अभियान भले ही सरकार का है परंतु इसे जनता की मदद से ही पूर्ण किया जा सकता है। पहले गंगा स्वच्छता अभियान न सरकार का था न ही उस पर उचित सोच थी। अत: वह कारगर साबित नहीं हुआ था। परंतु अब निश्चित रूप से इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।

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