अग्रोहा के प्रमुख दर्शनीय स्थल

महाराजा अग्रसेन मंदिर
ट्रस्ट परिसर के ठीक सामने पूर्व की दिशा की और महाराज अग्रसेन का भव्य मंदिर स्थित है। इसमें महाराजा अग्रसेन की राजसी वेश में प्रतिमा अत्यंत ही मनोहारी एवं चिताकर्षक है। मंदिर में निर्माण कार्य का श्रीगणेश जनवरी 1979 में बसंत पंचमी के शुभावसर पर हुआ और 31 जनवरी 1979 में बसंत पंचमी के शुभावसर पर खोल गया। इस अवसर पर प्रथम अग्रवाल कुंभ का भी आयोजन हुआ, जिसमें स्व. राजीव गांधी, हरियाणा के मुख्यमंत्री भजनलाल, बनारसीदास गुप्त एवं अन्य अनेक नेता भी पधारे।

1993 में महाराजा अग्रसेन की प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर नई प्रतिमा स्थापित की गई, जो और भी भव्य एवं चित्ताकर्षक है। यह अग्रोहा के मुख्य दर्शनीय स्थलों मे है। मंदिर की छतों एवं दीवारों को फाइवर ग्लास एवं कांच के सुंदर कलात्मक काम से सजाया गया है। मंदिर मे सामने ही हाल में महाराजा अग्रसेन के राज्य की एक ईट एक रुप्या परिपाटी को दर्शाती चार अति सुंदर झांकियाँ बनाई गई है।

कुलदेवी महालक्ष्मी मंदिर
ट्रस्ट परिसर के मुख्य द्वार के ठीक सामने कुलदेवी महालक्ष्मी का भव्य मंदिर शोभायमान है। महालक्ष्मी अग्रवालो की कुलदेवी है और महाराजा अग्रसेन को उनका वरदान प्राप्त है कि जब तक अग्रकुल में उनकी पूजा होती रहेगी, तब तक उनके वंश में धन-धान्य की वृद्धि होती रहेगी। इस मंदिर में कमलासन पर स्थित चतुर्भुजी मां महालक्ष्मी की प्रतिमा बडी ही चित्ताकर्षक है। दोनों हाथों में कमल के पुष्प है, तीसरा हाथ अभयकादन की मुद्रा के लिए और चौथा लक्ष्मी के ऋद्धिसिद्धि दाता स्वरुप को प्रगट करता है। प्रतिमा के सामने कमल-दावत रखी है जो इस तथ्य का द्योतक है और लक्ष्मी अग्रवालों के बही-बसनों में निवास करती है। मंदिर के चारों और रंगीन कांच का बहुत सुंदर काम किया गया है। और मूर्ती को स्वर्ण छत्र से सुशोभित किया हुआ है। जिससे उसके सौंदर्य मे अपूर्व वृद्धि हुई। महालक्ष्मी जी की प्रतिमा के समीप दीवारों पर महाराजा अग्रसेन के राजदरबार, शेषशायी भगवान विष्णू, महाराजा अग्रसेन द्वारा लक्ष्मीपूजन आदि के भव्य चित्र बने है। बाहर द्वार पर गणपति एवं ऋद्धि सिद्धि के चित्र बने है, जो अत्यंत भव्य लगते है। मंदिर मे दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। 28 अक्टूबर 1985 को शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर इस मंदिर की प्राण- प्रतिष्ठा हुई। इस मंदिर का गुबंद अत्यंत ही भव्य और 180 फीट ऊंचा है। मंदिर का कलश चांदी का है और उस सोने का घोल चढा है। कुलदेवी महालक्ष्मी के मंदिर की प्रतिष्ठा सिद्ध पीठ के रुप में है, ऐसे लोगो की मान्यता है कि यहां मनौती मनाने से इष्ट सिद्धि होती है।

वीणावादिनी सरस्वती
लक्ष्मी के साथ सरस्वती की आराधना भी अपेक्षित है। अग्रवाल विवेक व बुद्धि के आधार पर ही धनार्जन करते है। और उनकी व्यापारिक कुशलता जग विख्यात है, इसलिए महालक्ष्मी मंदिर के एक और मां सरस्वती की प्रतिमा दिव्य तेज से युक्त एवं अत्यंत मनोहारिणी है। इसके चारो और मार्बल का कार्य किया गया है। सन 1993 में शरद-पूर्णिमा के अवसर पर इस मंदिर को जनता के दर्शनार्थ खोला गया तथा 24 अक्तूबर 1999 को मंदिर मे स्वर्ण कलश की स्थापना की गई। इस मंदिर के निर्माणार्थ श्री वेदप्रकाश चिडीपाल ट्रस्ट अहमदाबाद द्वारा 15 लाख रुपए की राशि प्रदान की गई। अग्रोहा पधारने वाले यात्रियों के लिए वह विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर तथा इसके गुंबद निर्माण में लगभग एक करोड रुपए व्यव हुआ है।

शक्ति सरोवर
मंदिर के ठीक पृष्ठ भू-भाग में 300 बाई 400 वर्ग फूट के आकार का विशाल शक्ति सरोवर बना है, जो स्वस्थ जल से परिपूर्ण है। 1983 के प्रारंभ मे बनना प्रारंभ हुआ और इसके निर्माण मे कई वर्ष लगे। 1986 में हरिद्वार स्थित भारतमाता मंदिर के परमाध्यक्ष स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी के सान्निध्य में इसमें 41 नदियों का जल भरा गया और इसे स्नानार्थ तीर्थ यात्रियो के लिए खोला गया। सरोवर के मध्य में देश के सुप्रसिद्ध कला-शिल्पी श्री फकीरचंद परीडा द्वारा निर्मित देवताओं एवं असुरोंद्वारा समुंदर मंथन का दृश्य दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस झाँकी की निर्माण लाखों रुपयों की लागत से किया गया है और उसमे रंग-बिरंगे फव्वारों की भी व्यवस्थी की गई है। इसका उद्घाटन 11 अक्तूबर 1992 की श्री मुरलीधर बुडाकवालोंद्वारा संपन्न हुआ। सरोवर में चारों और चबूतरे, बरामदे तथा 68 कमरे बने हुए है। जिन पर बने गुंबद दूर से यात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। सभी धार्मिक पर्वो नर भारी संख्या में तीर्थ यात्री इस पवित्र सरोवर में स्नान करने आते है।

महाराजा अग्रसेन को लक्ष्मी जी का वरदान आदि की झांकियाँ
महालक्ष्मी मंदिर के दोनों और ही शेषशायी भगवान विष्णु एवं गजेंद्र मोक्ष तथा महाराजा अग्रसेन जी को लक्ष्मी का वरदान आदी भव्य झांकियाँ बनी है। रंग-बिरंगे फाइबर ग्लास द्वारा निर्मित ये झांकियाँ बना कर उनमें फव्वारों की व्यवस्था की गई है। मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार के ऊपर एक विशाल रथ पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए दिखाया गया है, जो अग्रवालों के कर्मयोग का प्रतीक है। महाराजा अग्रसेन मंदिर के आगे महाराजा द्वारा लक्ष्मी पूजन 18 गणाधिपतियों सहित यज्ञ आदि की झांकियाँ बनाई गई है। जो अग्रोहा नगर में पधारने वाले यात्रियों को एक इट-एक रुपया नगरवासियों द्वारा देने की परंपरा एवं अग्रोहा के महान इतिहास का बोध कराती है।

बृजवासी अतिथि सदन
भगवान मारुति के मंदिर के कुछ ही फूट की दूरी पर अग्रोहा विकास ट्रस्ट मथुरा समिति के सहयोग से लगभग तीस लाख रुपयों की लागत से निर्मित इस भवन में यात्रियों के ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। इसमें 30 कमरें एवं एक विशाल कार्ष्णि सत्संग हाल है, जिसमें बांके बिहारी भगवान श्रीकृष्ण जी महाराजा का अनुपम विग्रह है। भवन के मुख्य द्वार पर अग्रेश्वर शिव का भव्य मंदिर है, जहाँ निरंतर पूजा-अर्चना चलती रहती है। इस भवन का शुभारंभ परम पूज्य श्री गुरू शरणानंद जी महाराज के कर कमलों द्वारा 22 अप्रैल 1997 को हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर किया गया।

हनुमान- मंदिर एवं 90 फीट उंची भगवान मारुति की प्रतिमा
अग्रोहाधाम के पश्चिम की और संकट-मोचन हनुमानजी का मंदिर बनाया गया है। जो दर्शनार्थ से ही मनोकामना पुरी करता है। प्रतिवर्ष हनुमान-जयंती एवं शरद पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता है। मंदिर के समीप ही 90 फीट ऊंची भगवान मारुति की विशाल प्रतिमा है, जो दूर से ही यात्रियों कों अपनी और आकर्षित करती है।

यह प्रतिमा संभवत: हनुमानजी की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमाओं में से एक है। प्रतिमा के तीनों और प्राकृतिक पर्वतीय दृश्य बना कर अंजनी माता की प्रतिमा लगाई गई है। जो बहुत ही सुंदर लगती है। इस मंदिर के समीप ही डॉ. तूहीराम गुप्ता (गंगानगर वालों) द्वारा निर्मित शीतल जलगृह है, जिसका उद्घाटन विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष माननीय श्री अशोक सिंघल के कर कमलोंद्वारा संपन्न हुआ।

बाल क्रीडा केंद्र (अप्पू घर)
शक्ति सरोवर के समीप ही बच्चों के मनोरंजन के लिए बाल क्रीडा केंद्र (अप्पू घर) की स्थापना की गई है, जहां बच्चों के झूले-हिंडोले, बच्चों की रेलें, बसें, साइकिलें एवं अन्य अनेक प्रकार के मनोरंजन के आधुनिक उपकरण उपलब्ध है। यह अप्पू घर बच्चों के लिए आकर्षण का विशेष केंद्र है। यहाँ दिनभर पूरे देश से आने वाले बच्चों का तांता लगा रहता है और बच्चे यहाँ आकर बडे ही आनंद की अनुभूति करते है। हाल ही में यहाँ नए राईडर्स की स्थापना की गई है।

नौंका विहार
मंदिर के दर्शनार्थ भारी संख्या में स्त्री-पुरुषों के अलावा बच्चों की सैलानी बच्चों का भी मंदिर परिसर में निरंतर आगमन होता रहता है। बच्चों, महिलाओं एवं युवाओं के मनोरंजन के लिए भगवान मारुति के मंदिर के सामने सडक के दूसरी और एक बृहद कृत्रिम जलाशय बनाकर उसमें नौका विहार की व्यवस्था की गई है। अग्रोहा आने वाले अधिकांश यात्री इसका आनंद लेते है। नौका विहार स्थलो के समीप ही यात्रियों के सुविधार्थ जलपान गृह (कँटीन) की व्यवस्था की गई है।

रज्जूमार्ग
महालक्ष्मी मंदिर के गुंबद से सरस्वती मंदिर के गुंबद तक इस मार्ग का निर्माण किया गया है। इस मार्ग द्वारा वैष्णों देवी की मंदिर से भैरवनाथ के मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।

महाराजा अग्रसेन शोध केंद्र
अग्रसेन ट्रस्ट परिवार में ही अग्रसेन शोध केंद्र की स्थापना 1994 में की गई थी, जहां अनुसंधानार्थिंयों को अग्रवाल साहित्य का अध्ययन करने की सुविधा उपलब्ध है। इस शोध केंद्र हेतू का अध्ययन करने की सुविधा उपलब्ध है। इस शोध केंद्र हेतू स्व. हरिराम गुटगुटिया की स्मृति में अनेक दुर्लभ ग्रंथ उनके सुपुत्र श्री रामनाथ गुटगुटिया द्वारा प्रदान किये गए है। इस शोध केंद्र की स्थापना में डॉ. चंपालाल गुप्त का विशेष सहयोग रहा।

मारुति चरण पादुका मंदिर
यह मंदिर भी नौका स्थल के निकट ही स्थित है। यह वह पावन स्थली है, जहां खुदाई करते समय भगवान मारुति की प्रतिमा निकली थी, यह प्रतिमा रंग-बिरंगे कांच में निर्मित हनुमान जी के मंदिर में स्थापित की गई और उनके चरण पादुका स्थल पर इस मंदिर का निर्माण किया गया। भक्तजन हनुमान जी के चरण कमलों का साक्षात दर्शन कर अदभुत शांति प्राप्त करते है।

वैष्णों देवी मंदिर
सुप्रसिद्ध वैष्णों देवी मंदिर के अनुकरण पर अग्रोहा में महालक्ष्मी मंदिर के ऊपर प्रथम मंजिल पर बना यह भव्य मंदिर भक्तजनों एवं दर्शनार्थिंयों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है दूर दूर के यात्री इस मंदिर के दर्शनार्थ प्रतिदिन पर्याप्त संख्या में आते है। संपूर्ण मंदिर को कृत्रिम पहाडियाँ बना उनके मध्य कलात्मक ढंग से बनाया गया है। मंदिर में मध्य मां वैष्णों देवी की भव्य पिंडी स्थित है, जिसके दर्शन कर मां के भक्तजन मनोकामनाओं को पूर्ण करते है।

मंदिर के दर्शनार्थ ऊपर जाना पडता है। यह मंदिर मुख्य द्वार के ठीक सामने बना है व वास्तुकला की अनुपम कृति है।
इस मंदिर के उद्घाटन श्री नंदकिशोर गोईन्का अध्यक्ष अग्रोहा विकास ट्रस्ट द्वारा 24 अक्टूबर 1999 को अग्रोहा मेले के अवसर पर किया गया।

बाबा भैरव मंदिर
कहते है, मां वैष्णों देवी की यात्रा तब तक सफल नही होती, जब तक भैरव बाबा के दर्शन नही कर लिये जातें। इसलिए भैरव बाबा के इस मंदिर की स्थापना वैष्णों देवी मंदिर के समीप ही माँ सरस्वती के गुंबदस्थलों में की गई है।

तिरुपति बालाजी मंदिर
इस भव्य मंदिर का निर्माण महाराजा अग्रसेन के गुंबद स्थल पर किया गया है। तिरुपति बालाजी की बडी ही मान्यता है और अग्रोहा पधारनेवाले तीर्थयात्रियों को दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध मंदिरों के भी दर्शन हो सकें, इसलिए इस मंदिर का निर्माण अग्रोहा में कराया गया है। भगवान तिरुपति बालाजी की प्रतिमा बडी ही मनोहारी एवं चित्ताकर्षक है। यात्रियों की सुविधार्थ यहां पांच मंजिली लिफ्ट भी लगाई गई है, ताकि वृद्ध, बुजुर्ग एवं महिला तीर्थ यात्रियों को मंदिरों के दर्शन में सरलता रहे।

मंदिर का उद्घाटन 20 अक्तूबर 2002 को अग्रोहा मेले पर किया गया।

डायनासोर
एक कृत्रिम पहाडी का निर्माण कर वहां एक विशालकाय दैत्याकार डायनासोर का निर्माण किया गया है, जो सृष्टि के आदि वन्यजीवों का सुंदर परिचय देते है।

जलधारा से युक्त भोलानाथ की प्रतिमा
ट्रस्ट के जलगृह के समीप ही भगवान हरिहर भोलेनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई है, जिस पर निरंतर प्रवाहित होती जलधारा मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है।

शीला माता मंदिर
अग्रोहा में थेह के दूसरी और स्थित यह भव्य मंदिर शीला माता की प्राचीन मढी पर बना है। और अपनी अदभुत कलाकृति एवं शिल्प से अग्रोहा पधारनेवाले तीर्थ-यात्रियों के दर्शन का विशिष्ट श्रद्धा का केंद्र है। यह मंदिर प्राचीन एवं नवीन स्थापत्य कला का अदभुत संगम है। उत्तरी भारत के मंदिरों में इसका विशेष स्थान है। मंदिर का गुंबद 85 फीट ऊंचा बना है और इसमें राधाकृष्ण, सीताराम, अष्टभुजी दुर्गा, शिव, गणेश, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, हनुमानजी आदी देवी-देवताओं के भव्य विग्रह बने है। मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर महाराजा अग्रसेन की प्रतिमा सुशोभित है। मंदिर के सामने स्व. श्री तिलकराज अग्रवाल (मुंबई वालों) की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है। जिनके परिवार के सहयोग से इस मंदिर का निर्माण हुआ है। मंदिर को रंग बिरंगे फव्वारों प्राकृतिक दृश्यों, उद्यानों, पार्कों एवं अन्य कलाकृतियों सें सुसज्जित करके आंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल का रुप दिया गया है। इस मंदिर में जाने के लिए महाराजा अग्रसेन मेडिकल कॉलेज के सामने स्थित सडक से एक पक्का मार्ग जाता है और ट्रस्ट परिसर में पधारने वाले यात्रियों की लगभग डेढ किलोमीटर की दूरी पार करनी होती है। विशेष प्रकार के लाल पत्थर से बना यह मंदिर बडा ही भव्य है और इसके दर्शनों के बिना अग्रोहाधाम की यात्रा अधूरी रहती है।

महाराजा अग्रसेन मेडिकल कॉलेज, अस्पताल एवं शोध-संस्थान
शोध-संस्थान एवं मेडिकल कॉलेज महाराजा अग्रसेन की गौरवशाली राजधानी अग्रोहा के ऐतिहासिक खंडहरो के सामने लगभग 277 पकड भूमि है फैला है। कोटि कोटि अग्रवालो के आदि पुरुष महाराजा अग्रसेन के नाम पर सर्वप्रथम स्थापित इस मेडिकल कॉलेज का शुभारंभ 1994 में हुआ। यद्यपि इसको कक्षाएं 1989 में ही लगनी प्रारंभ हो चुकी थी। इस सस्थान मे आधुनिकतम चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित एक हजार शय्याओं वाले हस्पताल का प्रावधान किया गया है। जो एशिया के ग्रामीण क्षेत्रो में बनने वाला सबसे बडा अस्पताल होगा। हस्पताल परिसर मे 30 करोड रुपयों की लागत से एक विशाल कँसर जिकित्सा एवं शोध संस्थान स्थापित किए जाने की भी योजना है। कॉलेज एवं अस्पताल में हृदय, मधुमेह, एडस, पथरी, आदी विभिन्न रोगों की विशेष चिकित्सा एवं अनुसंधान की व्यवस्था की गई है।

महाराजा अग्रसेन का प्राचीन मंदिर
अग्रोहा में वर्तमान ट्रस्ट परिसर में थोडा आगे महाराजा अग्रसेन का प्राचीन मंदिर सुशोभित है। इसे 1939 से सेठ रामजीदास बाजोरिया द्वारा बनाया गया था। इस मंदिर में महाराजा अग्रसेन की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और इसमे मार्बल के फर्श आदी लगाकर नवीन रुप दिया गया।

श्री अग्रसेन वैष्णव गौशाला
अग्रोहा की यह प्राचीन गौशाला है। 1915 में भिवानी के सेठ भोलाराम डालमिया तथा लाला सांवलराम के प्रयत्नों से इस गौशाला की स्थापना की गई, जिसमें सैकडों गायों के रहने की व्यवस्था है। गौशाला का आधुनिक साज-सज्जा से युक्त नया भवन दर्शनीय है।

प्राचीन थेह
अग्रोहा किसी समय महाराजा अग्रसेन के राज्य की राजधानी थी। यहां एक लाख परिवार बसते थे और यह नगर अत्यंत समृद्ध और संपन्न था। कालांतर मे विदेशी आक्रमणों से यह नष्ट हो गया। उसी नगर के ध्वंस थेह के रुप मे पांच सौ छियासठ एकंड भूमि मे यहा फैला पडे है। खेडे के ऊपर दीवान नत्रूमल के किले के खंडहर, प्राचीन नगर के अवशेष, इटों से अनेक मूर्तियां, सिक्के, मिट्टी के पात्र, इटों से बने मकान आदी निकलते रहे है। 1938-1939, 1945 तथा बाद मे 1975, 80, 81 आदि में यहां के थेहों की खुदाई भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा की गई जिसमें पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण अनेक प्राचीन वस्तूए मिली है। इसी थेह पर वीर अग्र ललनाओं की भी मढियां है, जिन्होंने आत्मसम्मान की रक्षार्थ कभी जौहर की ज्वाला मे जल अपने प्राणों की आहुति दे ती थी। यही देश के विभिन्न भागों मे श्रद्धालुगण अपने बच्चों का मुंडन-संस्कार कराने आते रहते है।
अग्रोहा मे शीलामाता मंदिर एवं मढियों पर प्रतिवर्ष भाद्रपद अमावस्या को विशाल मेला लगता है। इसके अलावा अग्रोहा में प्रतिवर्ष चैत्रशुद्धी पूर्णिमा और अश्विन पूर्णिमा को हनुमानजी का मेला लगता है, जहाँ हजारों की संख्या में दूर दूर के यात्री आते है और भजन-कीर्तन, हनुमान चालीसा पाठ, सवामनी भोग आदी का कार्यक्रम चलता है।

भगवान श्रीकृष्ण एवं रामदरबार की झांकियाँ
अग्रोहा में महालक्ष्मी एवं महाराजा अग्रसेन मंदिरों के नीचे शक्तिसरोवर की ओर जाने वाले मार्ग पर भगवान राम एवं श्रीकृष्ण की भव्य विद्युत चलित झांकियाँ का निर्माण कराया गया है, जो बडी ही चित्ताकर्षक एवं अग्रोहा पधारने वाले यात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। विशेष कर महिलाए बच्चे तो इन झांकियों को बडी ही उत्सुकता से देखने है। भगवान श्रीकृष्ण को दिव्य झांकियाँ का निर्माण सिरसा के सेठ द्वारिका प्रसाद सर्राफ एवं श्री रामदरबार की झांकियों का निर्माण प्रो. गणेशीलाल के परिवार के सहयोग से कराया गया है।

गंगावतरण
मंदिर की और से शक्ति सरोवर पर जाने वाले मार्ग पर गंगावतरण की भव्य झांकी बनाई गई है, जो अत्यंत ही चित्ताकर्षक एवं भव्य है।

सिंहद्वार
अग्रोहा के मुख्य द्वार के महाराजा अग्रसेन की राजधानी के अनुरुप भव्य रुप दिया जा रहा है। और लगभग एक करोड रुपयों की लागत से इसका निर्माण चालू है। कर्मयोगी नंदकिशोर गोइन्का इसे गौरवानुरुप बनाने के लिए प्राणप्रण से रत है।

अग्रोहा में प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा के अवसर पर अग्रोहा विकास ट्रस्ट की ओर से अग्रवालों के विशाल कुंभ का आयोजन होता है। जिसमे देश-विदेश से अग्रवाल समाज के बंधू, महिलांए बच्चे भारी संख्या में भाग लेते है।

इस अवसर पर शक्ति सरोवर मे स्नान, महालक्ष्मी पूजन, अर्चन आदी के साथ-साथ समाज की बैठक, प्रतिनिधी संमेलन, सेठ द्वारिका प्रसाद सर्राफ राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण, आदी विविध कार्यक्रम भी होते है। इस अवसर पर सामाजिक समस्यों पर विचार विमर्श होता है। एवं विभिन्न क्षेत्रों मे उल्लेखनीय योगदान करनेवाली विभूतियों का सम्मान, अभिनंदन आदी किया जाता है। यह मेला अग्रोहा का विशेष आकर्षण है। इस प्रकार अग्रोहा अग्रवालों की पावनभूमि ही नही, दर्शनीय स्थली भी है। इसका कण-कण पावन एवं दर्शनीय है।

अग्रोहाधाम कैसे पहुंचे?
अग्रोहा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 (महाराजा अग्रसेन मार्ग) पर दिल्ली से लगभग 190 किलोमीटर और हिसार से 20 किलोमीटर की दूरी पर सडक नार्गसे जुडा हुआ है। दिल्ली के अन्तरराज्यीय बस अड्डेसे हिसार एवं सिरसा की ओर जानेवाली बसों से वहां वाया बहादुरगढ, रोहतक, महम, हांसी होते हुए पहुंचा जा सकता है। हिसार रेल्वे एवं बस मार्ग दोनों से जुडा हुआ है और हिसार से फतेहाबाद या भट्ट के लिए जो बसे चलती है, वे प्राय: अग्रोहाधाम होते हुए जाती है और यात्रियो को मेडिकल कालेज के बस स्टाप पर भी उतार देती हैं, जहां अग्रोहा विकास ट्रस्ट का परिसर बिल्कुल सामने ही पडता है। उसी के पास वाटर वर्क्स की टंकी और शीतला माता का मंदिर आदि भी स्थित है। हिसार, सिरसा, फतेहाबाद आदि के लिए बसें, रेल आदि देश के प्राय: सभी क्षेत्रों से उपलब्ध हैं।

अग्रोहा मोड का बस स्टॅण्ड मंदिर से लगभग डेढ किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे 10-15 मिनट में सरलता से पार किया जा सकता है अथवा नजदीकी पैट्रोल पम्प से 227 नं. पर फोन करने से अग्रोहाधाम से जीप भी आ जाती हैं। अग्रोहाधाम में यात्रियों के ठहरने, कॅन्टीन एवं भोजनादि की समुचित व्यवस्था है। वहां पहुंचने पर श्री नंदकिशोर गोइन्का, श्री. हरपतराय टांटिया अथवा कार्यालयसे सम्पर्क करने पर यथा संभव सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। अग्रोहा धाम स्वयं रेलमार्गसे सम्बध्द नहीं है।

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