मानवता के देवदूत अग्रसेन-गांधी-लोहिया

अक्टूबर का महीना जहां नवरात्रे तथा दशहरा के लिए महत्वपूर्ण है वहीं यह महीना 3 महान विभूतियों की स्मृति भी कराता है। प्रथम नवरात्रै 12 अक्टूबर महाराजा अग्रसेन की जयंती पर्व है। 2 अक्टूबर महामानव महात्मा गांधी की जयंती का दिन है और वहीं 12 अक्टूबर समाजवादी नेता डॉ. लोहिया का निर्वाण दिवस है। तीनों महान विभूतियां वैश्य समाज में पैदा हुईं तथा सारी मानवता का संदेश वाहक बन गईं। 5 हजार साल से भी पहले महाराजा अग्रसेन का प्रादुर्भाव हरियाणा में हिसार के पास अग्रोहा विश्व में एक ऐसा नगर था जहां समाजवाद का सच्चा दर्शन था तथा वहां प्रत्येक आगंतुक निवास करने वाले को1 ईंट तथा 1 रुपये देने का प्रचलन था ताकि वह अपना निवास तथा कारोबार स्थापित कर सके। दुनिया में समतावादी समाज की ऐसी साकार कल्पना कहीं नहीं की जा सकती। इसी कारण माहराज के वंशज जो अग्रवाल जाति के रूप में सारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में जाकर बसे। जहां अग्रवाल बस गए वहीं के हो गए। उसने अपने व्यापार के साथ-साथ उस क्षेत्र का सामाजिक विकास भी किया तथा उनके वंशज आज भी सामाजिक कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। अपनी उन्नति के साथ जो समाज के हर वर्ग की उन्नति चाहता है वही मानवतावादी है, वही अहिंसावादी है और वही समाजवादी है। लंबी-लंबी व्याख्या, लंबे भाषण, बड़ी-बड़ी किताबें सामाजिक बदलाव का काम नहीं कर सकतीं। जब तक जीवनशैली में ही बदलाव नहीं आएगा। ‘हम भी जियें दूसरे भी जियें तथा सबको समान अवसर प्राप्त हो’, यही अग्रसेन तथा अग्रवाल का नारा है। यही कारण है कि इस समाज पर शोषण, अन्याय, हिंसा का कोई आरोप नहीं लगा सका। दिलतों से आपसी प्रेम तथा उनके लिए शिक्षा, चिकित्सा तथा रोजगार की व्यवस्था करना अग्रकुलों का पुनीत कर्तव्य था और आज भी उनके संस्कारों में यही बसा है। बडे-बडे अस्पताल, शिक्षण संस्था, मेडिकल कालेज, अन्न क्षेत्र, धर्म तथा कथा, कला विज्ञान सब अग्रकुलों की देन है क्योंकि उनमें महाराजा के संस्कार हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर यह समाज राष्ट्रप्रेमी, मानवता प्रेमी तथा गरीब का हिंतचिंतक रहा है। विनयशीलता, दानशीलता इसके खून में है। महाराजा अग्रसेन के बाद इतिहास ने करवट ली। कई राजतंत्र देश में पनप आए और चले गए परंतु देश का नक्शा नहीं बिगाड़ने दिया। मुसलमान आए, पारसी आए, ईसाई आए पर अग्रकुल अपने धर्म पर आरूढ़ रहे। मुसलमानों के राज में कई जातियों के लोग लोभ, लालच तथा डरवश मुसलमान बन गए और उनकी आधीनता स्वीकार कर ली परंतु इतिहास गवाह है अग्रकुल जिस हाल में भी रहे उन्होंने हिंदुत्व तथा भारतमाता का मस्तक झुकने नहीं दिया। राम, लक्ष्मण को जिंदा रखा। आज जो लोग अग्रकुल समाज को नीचा दिखाकर उसे सूदखोर, मिलावटी धंध करने वाला तथा शोषक के रूप में पेश करना चाहते हैं वे शायद अपना अतीत भूल गए हैं। उन्होंने शायद चिढ़कर या तरक्की देखकर इस तरह के मिथ्या शब्दों का प्रयोग किया या राज करने वाले लोगों ने वैश्यों की गलत तस्वीर पेश करने की कोशिश की। परंतु वे कामयाब नहीं हो सके। वैश्यों की तरक्की की मंजिल बढ़ती गई और आज विश्व में बढ़िया से बढ़िया डॉक्टर, बड़ा से बड़ा वैज्ञानिक, बड़े से बड़ा साफ्टवेयर इंजीनियर इस समाज का देश तथा विदेश में सेवा कर रहा है क्योंकि यह अग्र-वैश्यों की हजारों साल की संस्कृति का हिस्सा है।

अग्रसेन जयंती के पावन पर्व पर मैं अग्रवालों का आवाहन करना चाहता हूं कि समय की नजाकत को समझते हुए संगठित हो जाओ, राजनीतिक दखल करो और जो लोग शिखर पर पहुंच सकते हैं उनकी सहायता करो। वे ही कौमें आगे बढ़ती हैं जो किसी को अपना नेता मानकर आगे की रणनीति तय करती हैं। वर्ना असंगठित कौमें वक्त के साथ टूट जाया करती हैं। उनका अस्तित्व समाप्त हो जाया करता हैं समय किसी का इंतजार नहीं करता, सफल वही होते हैं जो समय को अपनी मुट्ठी में बांध लेते हैं। आज हमारा दायित्व है गरीबों के प्रति अपना ममत्व बनाए रखें, संवेदनशीलता तथा विवेक को न मरने दें तथा सारे समाज के साथ-साथ अपने समाज के लोगों को ऊपर उठाने का काम करें। उनकी रक्षा करें क्योंकि कई तरह के कुचक्र देश में चल रहे हैं। इसलिए प्रशासनिक सेवाओं में भी अधिक प्रतिस्पर्धा और कम कोटे में भी अधिक से अधिक आने का प्रयास करें ताकि किसी न किसी रूप में सत्ता में भागीदारी रहे। आत्मचिंतन करो, हृदय को चौड़ा करो, पैसा लूटो मत बल्कि ईमानदारी से कमाओ और आगे बढ़ो यही हमारा आदर्श है, यही अग्रसेन का संदेश है।

2 अक्टूबर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है। संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष गांधी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश अपने-अपने देशो में गांधीजी की अहिंसा को याद करेंगे तथा हिंसा समाप्त करने तथा मानव मूल्यों को जगाने का संकल्प करेगे, यह हमारे राष्ट्र का सम्मान है। यह हमारी नीतियों का सम्मान है और यह हमारी कौम का सम्मान है। आज हिंसा राष्ट्रों में ही नहीं है बल्कि घर-घर में लगातर छोटी-छोटी बच्चियों को बलात्कार के बाद हत्या ताकतवरों का कमजोरों को कुचलने का प्रयास यह सब व्यक्तिगत हिंसा है। पति-पत्नी पर, बेटा बाप पर, भाई बहन पर हिंसारत है तथा औरतों की लाज लूटने की कोशिश हिंसा है। सारी दुनिया हिंसा की शिकार है। ओसामा लादेन, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन क्यों बन रहे हैं। वे क्या चाहते हैं सारा विश्व जानता है। हिंसा के रहते कोई कौम खड़ी नहीं हो सकती। महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर, महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, अब्राहिम लिंकन, कबीर, रैदास, अरविंद घोष, मदर टेरेसा कुछ नाम हैं जो आज भी आदर्श हैं। हिटलर, मुसोलिनी, ईदी अमीन, कंस या रावण या कोई भी आताताई और हिंसक मानवता का संदेशवाहक नहीं हो सकता। हिंसा का एक बड़ा कारण पैसे की बढ़ती तमन्ना, सेक्स की हवस, अपने को ऊंचा मनवाने की तमन्ना, कमजोरों की आबरू पर हाथ डालना कुछ उन इरादों की तरफ इशारा करता है जो इरादे आदमी को हैवान बना देते हैं और इनका अंजाम भी सब जानते हैं। हिंसा द्वारा प्राप्त राज-दौलत, वैभव कभी किसी का भला नहीं कर सकते- न उसका न समाज का।

हिंसा से आत्मा मर जाती है, चरित्र समाप्त हो जाता है। लोग उनसे डरते जरूर हैं पर नफरत करते हैं। बद दुआओं पर खड़ा महल आंसुओं में भीगी खीर और रोटी और खून में सनी नींव कभी बढ़िया महल नहीं बना सकती। गांधी जयंती के अवसर पर गांधी का सत्य का संदेश समझने की कोशिश करो, सारी दुनिया, गांधी की पुस्तक ‘सत्य पर मेरे अनुभव’ पढ़ती है। मैं नौजवानों का आवाहन करना चाहता हूं। इस अवसर पर शराब, मांस न खाने या पीने का संकल्प करो। जीवन से हिंसा का त्याग करो तथा बलात्कार से भरी फिल्में तथा जीवन मूल्यों में गिरावट के रास्तों को रोकने का प्रयास करो। एक स्फूर्ति का संचार तुम्हारे हृदय में होगा, जो नई जीवनशैली प्रदान करेगा।

इसी माह 12 अक्टूबर को महामानव डॉ. राममनोहर लोहिया का निर्वाण दिवस है। 12 अक्टूबर 1967 को 67 वर्ष की अल्पायु में डॉ. लोहिया का निधन हो गया। डॉ. लोहिया वर्तमान में समाजवादी समाज के निर्माण में एक ऐसी शख्सियत थे जिनको सारा विश्व अपना आदर्श मानता है। सिद्धांतों के लिए सत्ता के विशाल पर्वतों से टकरना और उनका मुंह फेर लेने की कोशिश करना लोहिया जैसा व्यक्ति ही कर सकता है। अकबरपुर जिला आंबेडकरनगर उत्तर प्रदेश में हीरारलाल अग्रवाल के घर जन्मे डॉ. लोहिया जर्मन से डाक्टरेट करने के बाद देश की आजादी की लड़ाई में पहली पंक्तियों में हो गए। वे गरमपंथी थे परंतु उनका रास्ता हिंसा का नहीं था। वे उग्र थे परंतु केवल बात मनवाने की तमन्ना में 1942 में वे हजारीबाग जेल से फरार हो गए और नेपाल में रहकर आंदोलन का संचालन किया। 1932 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाने में अहम् भूमिका निभाने वाले आजादी के बाद कांग्रेस से ही अलग नहीं हुए बल्कि जब उनके सिद्धातों में टकराहट आ गई तो उन्होंने जयप्रकाश नारायण, आचार्यं कृपलानी तथा आचार्य नरेंद्र देव से भी अपना नाता तोड़ लिया तथा समाजवादी पार्टी की स्थापना की। सारा जीवन गरीबों के लिए लड़ते रहे। चाहते तो सत्ता सम्राट बन सकते थे परंतु देश का साहित्यकार, पत्रकार, नौजवान डॉ. लोहिया का लोहा मानते थे। नेहरू परिवार यदि किसी राजनेता का लोहा मानता था तो वे डॉ. साहब थे। लड़ते-लड़ते मर गए और छोड़ गए अपने निशान जो हजारों हजार साल तक मानवता को प्रेरणा देता रहेगा। सारी त्रस्त मानवता, दानवता की चक्की में पिसता इंसान तथा पूंजीवादी, हिंसावादी ताकतों की मार झेल रहे लोगो के लिए डॉ. लोहिया का रास्ता हमेशा कारगर रहेगा। मैं उनके निजी संपर्क मे रहा हूं। मैने उनकी तेजस्विनी और मन की आग को अपनी आंखों से देखा है। वह एक ऐसा फकीर था जो अपना सब कुछ लुटाकर औरों का भला करना चाहता था। 50 से भी ज्यादा उनकी पुस्तके हैं तथा इससे ज्यादा पुस्तके औरो द्वारा उन पर लिखी जा चुकी है। महामानव कभी मरते नहीं है। जब-जब रास्तों की तलाश में लोग भटकेंगे तब-तब महाराजा अग्रसेन, गांधी और लोहिया का रास्ता नई राह दिखाएगा। यही न्याय, समता तथा ईमानदारी की पगडंडी पर जाता है।

संपादक-कल हमारा है
मुजफ्फरनगर, (उ.प्र)

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