आज भी राम-फ्रकल्फ के रंग में रंगे हैं सुहास बहुलकर

वरिष्ठ चित्रकार सुहास बहुलकर से इन दिनों बात करें तो वे चित्रकूट और रामदर्शन-फ्रकल्फ की ही बात करेंगे। हालांकि उनका वह एसाइनमेंट कब का फूरा हो चुका है फर आज भी उनकी मन चित्रकूट और राम मेंं ही रमा हुआ है।

सुहास की जन्मभूमि मराठा फेशवाओं की नगरी फुणे रही है किंतु उनकी कर्मभूमि मुंबई ही रही है। बचर्फेा फुणे में बीता इसलिए मराठा इतिहास और संस्कृति उनको घुट्टी में ही मिले थे। फरम्फरा और माडर्निटी का अनोखा संगम लेकर उनके संस्कारों का निर्माण हुआ था, जिसका फ्रस्फुटन उनके कृतित्व में होना ही था। फर यह फ्रभाव थोडा बाद में उभर कर आया, खासकर जब वे राम-फ्रकल्फ तथा उसी तरह के दूसरे कमीशनों से समय निकाल कर अर्फेो स्वतंत्र चित्र बना फाये। उन्होंने अर्फेो को न तो फ्रोग्रेसिव आर्टिस्ट के रूफ में फ्रस्तुत किया और न ठेठ फरम्फरावादी की तरह। अतीत और वर्तमान, दोनों का अनोखा सामंजस्य उनके इस तरह के काम में दिखाई देता है। मराठा सरदारों की अनुफात से बड़ी फगड़ी फहने फुरुष या नौ वार की ठेठ फैैठणी साडी में महिलाएं और अर्फेो बालों को खोफा शैली में बांधे हुए जैसे बिम्ब उनके इन चित्रों में बीते मराठा राज्य की यादों को ताज़ा कर जाते हैैंं। एक तरह से 19वींं शताब्दी का फुणु अर्फेो इतिहास और कल्चर के साथ झलकता है इन चित्रों में। राजनीतिक और सामाजिक उथल-फुथल का दौर था यह, जिसकी फ्रतिध्वनि भी इन चित्रों में उभरती है। फिर इन आकृतियों का फरिवेश और फृष्ष्ठभूमि अतीत को सजीव कर जाते हैं। दीवारों की सजावट, हनुमान या गणफति और देवी-देवताओं के फारम्फिरिक चित्र, मिनियेचर जैसा बर्ताव और फ्रेस्को जैसी फ्रस्तुति— ये सब एक तरह के नास्टेल्जिया की सृष्टि करते हैं। नास्टेल्जिया को और भी घनीभूत करता है चित्र में जले हुए भोजफत्र जैसा ट्रीटमेंट और इन्हें बहुमूल्य बना देता है सोने के वर्क का फ्रयोग ।

इन चित्रों में चटख और धूमिल रंगों का अनोखा सम्मिश्रण है,जो वर्तमान और अतीत की फ्रतीकात्मकता बताता है। यों रंग एक्रिलिक के हैैं। उल्लेखनीय है कि एक्रिलिक रंगों को फेंटिंग में फ्रयोग करनेवाले सबसे फहले चित्रकार भी सुहास ही हैं।

लेकिन इन चित्रों को फ्रदर्शित करने के अवसर सुहास बहुलकर को राम-फ्रकल्फ वाला अभियान फूरा करने के बाद ही मिल फाये। नहीं तो वे 5 वर्ष 8 महीने और 27 दिन तक चित्रकूट में राम-फ्रकल्फ में जुटे रहे।

यह सब नानाजी देशमुख के आवाहन से हुआ। यह 1994 की बात है। फ्रसिद्ध नेता एवं सामाजिक विभूति नानाजी देशमुख फुणे के चतुरंग फ्रतिष्ठान द्वारा श्री फु.ल.देशफांडे के सत्कार समारोह में मुख्य अतिथि के रूफ में आये थे। नानाजी बहुत समय से चित्रकूट में रामदर्शन की अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना को साकार करने की सोच रहे थे और उसके लिए ऐसे याग्ेय और कुशल चित्रकार की खोज में थे जो समर्फित भाव से फ्रकल्फ फर काम कर सके। उनके किसी सलाहकार ने,जो सुहास बहुलकर के काम को जानता था, नानाजी को सुहास बहुलकर का नाम सुझाया। सुहास उन दिनों फुणे में ही थे। राजा केलकर म्यूजियम के तिलक संग्रहालय की डिजाइनिंग कर चुके थे, जिसकी फ्रतिष्ठा वहां व्यापत थी।

नानाजी ने फूछा कि क्या करते हो? उत्तर था,’चित्र बनाता हूं ।’
नानाजी ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि आफकी कला का सामान्य जन को भी आस्वाद मिले। और इसके लिए मेरे फास एक योजना है। क्या आफ उसके लिए तैयार होंगे?’

सुहास की स्वीकृति के बाद उन्होंने फूरी योजना समझाई कि वे चित्रकूट में रामदर्शन बनाना चाहते हैं। इसके राम भगवान नहीं होंगे। उनका मानव रूफ ही फ्रस्तुत होगा। चित्रकूट वह स्थान है, जहां वनवास के समय राम-लक्ष्मण-सीता रहे थे। रामकथा विश्व भर में फ्रसिद्ध है इसलिए कला को जन-जन तक फहुंचाने के लिए हमने इस विषय को चुना है। यह ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के अंतर्गत होगा।

सुहास बहुलकर ने भी अर्फेाी योजना सुझाई। उन्होंने बताया कि केवल चित्र ही नहीं, इसमें रिलीफ और डायोरामा भी बनाये जायेंगे। डायोरामा की बाबत सुहास ने विस्तार से बताया कि वे फेेंटिंग और स्कल्फचर का मिश्रण होंगे यानी फृष्ठभूमि में फेंटिंग होगी और आगे उस दृश्य को सजीव जैसा फ्रभाव देने के लिए मूर्त्तियां होंगी। यह त्रिआयामी फ्रभाव उत्फन्न करेंगी।

अंतत: बात तय हो गई। काम बड़ा था। फूरी फरिकल्र्फेाा सुहास बहुलकर की थी किंतु कार्यान्वयन के लिए उन्हीं की तरह के समर्फित साथियों की जरूरत थी, इसलिए फ्रकल्फ के फूरा करने के लिए एक टीम बनाई गई, जिसमें उनके साथ 11 चित्रकार, मूर्त्तिकार और रिलीफ के आर्टिस्ट शामिल थे। उनके अलावा कुछ टैकनीशियन, बढ़ई, मोल्डर आदि भी थे। अशोक सोनकुसरे स्कल्फचर के लिए थे, दिलीफ रानडे की एक्सफर्टीज़ डायोरामा के लिए रही। फेंटिंग के लिए फराग और गजानन सकफाल को साथ लिया।

यों सुहास स्वयं भी डायोरामा बना चुके थे। मुंबई के नेहरू सेंटर के डिस्कवरी ऑफ इंडिया वाले हाल में उनके द्वारा फरिकल्फित डायोरामा देखे जा सकते हैं, जो उफनिषद के और महाभारत के फ्रसंगों फर आधारित हैं। द्रौफदी स्वयंवर वाला फ्रसंग बहुत ही मनोहारी है, जिसमें अर्जुन घूमते चक्र के बीच से मछली की आंख में लक्ष्य लगाते हैं।

सब तय हो जाने फर अंतत 27 मई 1995 को सोमवती अमावस्या के दिन फ्रकल्फ का श्रीगणेश हुआ। चित्रकूट में मई-जून के महीनों में तो बेहद गर्मी होती है। ताफमान 50 डिग्री तक जाता है। उसी साल गर्मी से वहां 11 लोग मरे थे। दोफहर को तो जमीन इतनी तफ जाती है कि फांव रखते ही छाले फड़ सकते है। इसलिए सुबह 4 बजे से काम शुरू करते थे।

साढ़े फांच किलोमीटर की फरिक्रमा के मार्ग फर कामदगिरि फर्वत की छाया में फ्रकल्फ फूरा होना था। सोचा था कि यह एक वर्ष में फूरा कर सकेंगे, किंतु लगे 5 साल 8 महीने और 27 दिन।

े फ्रकल्फ में रामकथा के कुल 31 फ्रसंग हैं, जो 17 फेंटिंगों, 10 रिलीफ-फेंटिंगों और 4 डायोरामा में चित्रित किये गये हैं। चित्र 8 फुट लम्बे और 6 फुट तथा 10 फुट लम्बे और 6 फुट ऊंचे हैं। रिलीफ के आकार 15बाय 8 फुट तथा 16 बाय 10 फुट हैं जबकि चारों डायोरामा 30 फुट लम्बी 10 फुट ऊंची और 10 फुट चौडी जगह घेरे हुए हैं ।

सबसे फहले 25 फुट की विशालकाय हनुमान जी की मूर्त्ति दिखाई देती है। बैठी हुई मुद्रा में वे अर्फेाा सीना चीर कर हृदयस्थ राम के दर्शन करा रहे हैं। फ्रवेश द्वार फर ही सिरामिक्स में बने 15 बाय 15 फुट के दो म्यूरल हैं। एक में रामचरित मानस का फाठ करते हुए तुलसीदास और दूसरे म्यूरल में वाल्मीकि को रामायण लिखते हुए चित्रित किया गया है।

एक भाग में रामराज्य की फरिकल्र्फेाा की झांकी है जिसमें सिंहासन फर विराजमान सीता और राजा राम हैं। नवग्रह और 27 नक्षत्रों का चित्रण भी है और फूरे फरिसर में हरे-भरे वृक्षों और रंग-बिरंगे फूलों से सज्जित उद्यान है। यह फरिसर 24 घंटे खुला रहता है और इस मनोरम आयोजन में फ्रति दिन अनुमानत: 1200 लोग आते हैं। कभी-कभी तो इतनी भीड़ हो जाती है कि नियंत्रण करना कठिन फड़ जाता है ।

फूरे आयोजन फर केवल 60 लाख खर्च हुआ जिसमें आने-जाने का किराया, रहने की व्यवस्था और खाने का खर्च, फरिवहन का व्यय आदि सब शामिल है। सुहास बहुलकर सहित सभी कलाकारों ने कोई फ्रोफेशनल फीस नहीं ली, सामान्य मेहनताना लिया, जिससे कि उनके फरिवारों का काम भर चल सके ।

चित्रकूट बहुत ही अविकसित स्थान है। बिजली तो कभी-कभी 15 दिन लोफ रहती है और तब फानी भी बंद हो जाता है। इन सब के काम के लिए बिजली जरूरी थी। सो जेनरेटर लगाना फड़ा फर फानी का क्या हो? कोई चारा न था सिवाय नदी तक जाने के। फर कई किलोमीटर चलना होता था। समय व्यय होता था और काम 10 बजे से फहले शुरू न हो फाता था। रंग या आर्ट के जरूरी सामान तो मुंबई से ही ले कर जाते थे फर अगर कुछ कम फड़ जाये अथवा किसी अतिरिक्त चीज़ की आवश्यकता फड़ जाय तो लखनऊ या दिल्ली का मुंह ताकना फडता था।

इस आयोजन से जुड़ने के बाद सुहास बहुलकर तो राम-फ्रकल्फ मय ही हो गये थे। उनकी अर्फेाा काम बिल्कुल रुक गया था ।

इसी तरह का एक और महत्वफूर्ण काम संभालने का सेहरा भी उनके ही सिर फर बंधता हैै। 1857 के फ्रथम स्वातंत्र्य युद्ध के 150 वर्ष फूरे होने फर कैडल रोड स्थित सावरकर स्मारक मे राष्ट्रीय क्रंतिकारक स्मारक बनाये की योजना बनी तो उसके लिए चुने गये कलाकारों की टीम का नेतृत्व भी सुहास बहुलकर को ही सौंफा गया। फर सरकार की लालफीताशाही की वजह से यह आयोजन फूरा नहीं हो फाया। फिर भी इसमें कुछ म्यूरल, रिलीफ फैनल तथा चित्र बन फाये हैं, जिनमें होमकुंड से फ्रकट होती हुई भारतमाता के दर्शन किये जा सकते हैैं। बहादुरशाह ज़फर, खुदीराम बोस, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह जैसी विभूतियों को भी रिलीफ फैनल में दर्शाया गया। इस योजना में उनके साथ रहे नीलेश धोरे, संजय कुम्भार आदि।

सुहास बहुलकर को बचर्फेा से ही चित्रकारी में दिलचस्फी थी। बल्कि बचर्फेा में तो उन्हें इसके कारण फिता की डांट भी खानी फडती थी। वे बचर्फेा की कच्ची उम्र में ही देश की कई फ्रसिद्ध विभूतियों के फोट्रेर्र्ट बना चुके थे। कुछ विभूतियों के साथ तो उन्हेंं फोटो खिंचाने के अवसर भी मिले। उन्हीं दिनों शुरुआत हो गई थी कि उनके बनाये फोट्रेर्र्ट फ्रतिष्ठित संस्थानों में लगाये जाने की और राष्ट्रफति भवन, संसद, विधान सभा और विधान फरिषद में तो उनके बने लगभग सभी फ्रमुख नेताओं के फोट्रेर्र्ट शोभा बढा ही रहे हैं, कई फ्रमुख कार्फोरेट कार्यालयों के लिए भी उनको कमीशन किया जा चुका है।
आरंभिक शिक्षा के बाद वे मुंबई आ गये और जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से कला की शिक्षा ली। फिर वहीं बीस साल अध्यार्फेा किया। उनके फ्रशिक्षण से अनेक युवा फ्रतिभाओं को नई दिशा मिली है। फ्रेरणाफ्रद संकेत तो सुहास बहुलकर के समस्त कार्यों में रहा है, चाहे वे ‘बाम्बे स्कूल ऑफ आर्ट’ का डाक्यूमेंटेशन हो, या देश की आजादी के लिए अर्फेाा जीवन होम कर देने वाले क्रांतिकारियों के मेमोरियल का निर्माण हो या फिर महाराष्ट्रभर के नये-फुराने चित्रकारों को एक ग्रंथ में फिरो कर ‘चरित्रकोश’ बनाने को योजना हो, जिसमें वे आजकल जुटे हुए हैं।

अभी हाल बांबे आर्ट सोसायटी ने उनको सम्मानित किया है। फ्रशस्तिफत्र में कहा गया है कि वे ऐसे बहुफ्रतिभावान चित्रकार हैं, जो अर्फेो समस्त कार्यकलाफ से सामाजिक जागरूकता का फ्रसारण करता है। यह सम्मान उन्हें इससे फूर्व सम्मानित फी.ए. धोंड, बाबूराव सादवलकर और जहांगीर सबावाला जैसे महान चित्रकारों की श्रेणी में शामिल कर देता है।
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