मालदीव में भारत विरोधी बयार

सामरिक महत्व वाले दक्षिण एशियाई देश मालदीव मे भारत विरोधी ताकतें मजबूत होती जा रही हैं। वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद के खिलाफ ‘इस्लाम के रक्षकों’ ने पिछले साल दिसम्बर के अंत में सड़कों पर जिन उग्र प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू किया था, उसकी परिणति 7 फरवरी को पुलिस और सेना के मिले-जुले विद्रोह में हुई। बंदूक की नोंक पर राष्ट्रपति नाशीद से इस्तीफा लिखवाया गया और उपराष्ट्रपति वहीद हसन ने चटपट राष्ट्रपति की कुर्सी संभाल ली। इस तख्ता पलट के असली सूत्रधार पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम थे।

मालदीव के इस घटनाक्रम को सही परिप्रेक्ष्या में समझने के लिए पिछले साल दिसम्बर में मौमून अब्दुल गयूम की इस घोषणा को याद करना चाहिए कि ‘मालदीव के लोग किसी और मजहब की इजाजत नहीं दे सकते। मालदीव की जनता को इस्लाम की रक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। नाशीद इस्लाम को कमजोर करने की कोशिश बंद करें।’

मालदीव के कट्टरपंथियों के मुताबिक नाशीद ने 2008 में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद कई गुनाह किए थे। एक-उन्होंने पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए। इससे मालदीव में पश्चिमी देशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। नाशीद के विरोधियों ने यह दुष्प्रचार किया कि सौ फीसदी मुस्लिम वाले मालदीव का धार्मिक स्वरूप बदलने की कोशिश की जा रही है। दूसरे-नाशीद ने मदरसों में भी सुधार करने की कोशिश की। उनके शासनकाल मे 36 संस्थानों की सूची जारी कर कहा गया कि इनकी डिग्रियां जिनके पास नही होंगी, उन्हें इस्लाम प्रचार का अधिकार नही होगा इन 36 संस्थानो मे भारत का देवबंद और उससे संबद्ध 6 मदरसे भी थे। इस सूची में जिहादी फैक्ट्री का काम करने वाले कई पाकिस्तानी मदरसों का नाम नहीं था। पाकिस्तान और सऊदी अरब से संपर्क रखने वाले तत्वों ने फौरन मालदीव मे ‘इस्लाम खतरे में’ का नारा बुलंद कर दिया।

नए राष्ट्रपति वहीद हसन ने यद्यपि घोषणा की है कि अगले साल जुलाई 2013 में मालदीव में चुनाव कराये जाएंगे, लेकिन उनकी घोषणा पर अपदाय राष्ट्रपति नाशीद और उनके समर्थक विश्वास नही कर पा रहे हैं। अप्रैल में भारत के दौरे पर आए नाशीद ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें आशंका है। कि मालदीव के बर्मा जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वहां की बर्मा की तरह लम्बे समय तक के लिए सैनिक तानाशाही कायम होने के आसार नजर आ रहे हैं। नाशीद ने दो टूक शब्दों में कहा कि यदि 20/3 तक इंतजार किया गया तो वहां चुनाव होंगे हो नहीं बल्कि बर्मा की तरह सेना सत्ता मे काबिज हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मालदीव में धार्मिक कट्टरपंथियों की ताकत लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि मालदीव में पाकिस्तान जैसे हालात बनते जा रहे हैं। नाशीद ने सुझाव दिया कि मालदीव मे स्थिति में सुधार लाने का एकमात्र उपाय यह है कि वहां तत्काल स्वतंत्र चुनाव कराए जाएं। उन्होंने चेताया कि चुनाव कराने मे जितनी ही देरी होगी कट्टरपंथी उतने ही मजबूत बनते जाएंगे। नाशीद ने भारत से अपील की कि वह मालदीव के शासकों को स्पष्ट तौर पर संदेश दे कि हमारे पड़ोस में लोकतंत्र पर इस तरह का प्रहार सहन नहीं किया जाएगा।

मालदीव के वर्तमान शासकों के निशाने पर भारत भी है। वहां सत्ता पलट होने के कई महीने पहले से ही युवकों को ट्रेनिंग के लिए बड़ी संख्या में पाकिस्तान भेजा जा रहा था। पिछले साल राजधानी माले में चीन का दूतावास खुलने के बाद वहां चीन की सक्रियता भी काफी बढ़ गई है। एक लम्बे अर्से से चीन और पाकिस्तान दोनों को भारत-मालदीव की मित्रता खटक रही थी। सितम्बर, 2009 रक्षा सहयोग पर दस्तखत किया था। मालदीव सेना का प्रमुख भारत के नेशनल डिफेंस जलील को बना दिया गया था। मालदीव में 30 हजार भारतीय मूल के लोग रहते हैं। भारत की कई कंपनियां मालदीव में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर रही हैं। चीन और पाकिस्तान दोनों मालदीव में भारत की स्थिति कमजोर करने की फिराक में थे।
नए राष्ट्रपति ने सत्तारूढ़ होने के बाद भारत विरोधी लोगो को प्रश्रय देना शुरु कर दिया है। मोहम्मद जमील अहमद को गृह मंत्री और मोहम्मद नाजिम को रक्षा मंत्री बनाया गया हैं। दोनों भारत विरोधी माने जाते हैं। जमील ने भारतीय कंपनी जीएमआर को माले हवाई अड्डे का ठेका दिए जाने के खिलाफ पर्चे बांटे थे। नाशीद शासन के बरखास्त पुलिस उप प्रमुख को अब पुलिस प्रमुख की कुर्सी पर बैठाया गया है। अहमद सियाम को सेना प्रमुख बनाया गया है।

यद्यपि राष्ट्रपति वहीदे हसन ने अपने पहले सार्वजनिक बयान मे यह जरूर कहा है कि वे भारत के साथ हुए सभी समझौतों का आदर करेंगे तथा मालदीव में भारत के आर्थिक और सामरिक निवेश तथा अन्य हितों को सुरक्षित रखा जाएगा। उन्होंने तो यह भी दावा किया कि मालदीव में विद्रोह नही, बल्कि संवैधानिक तरीकों से सत्ता परिवर्तन हुआ है। मालदीव के इतिहास में पहली बार हुए स्वतंत्र चुनाव के बाद बने राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद को बलपूर्वक हटाए जाने के परिणामस्वरूप सत्ता हथियाने वाले वहीद हसन यदि इतना बड़ा झूठ बोल सकते हैं, तो भारत को उनके दिए गए भरोसे पर कतई यकीन नहीं किया जा सकता। शातिर खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय संम्बधों का अत्यंत होशियारी से करते हैं। स्मरण रहे कि बांग्लादेश में शेख मुजीब की हत्या के बाद नये शासकों ने भारत-बांग्लादेश संधि को तोड़ा नहीं, धीरे-धीरे उसे निष्प्राण कर दिया था। मालदीव में भी यही कहानी दोहराई जाने की प्रबल संभावना नजर आ रही हैं।

सामरिक महत्व वाले मालदीव में भारत विरोधियों की ताकत बढ़ने का अनिवार्य नतीजा भारत के हितों के विपरीत होगा। सवाल यह उठता है कि क्या भारत मालदीव की घटना को प्रभावित कर सकता था या आगे प्रभावित कर पायेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत दक्षिण एशियाई देशों की राजनीति को प्रभावित करने में सक्षम है लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली वर्तमान भारत सरकार रामभरोसे चल रही हैं। उसमे कुछ करने की इच्छा शक्ति ही नहीं बची है। कई महीने से मालदीव में चल रही हवाओं के संदेशों को दिल्ली में नहीं सुना गया। यह समझने के लिए कोई राजनीतिक पंडित होना जरुरी नहीं है कि जब ‘बुतपरस्ती’ के खिलाफ अभियान चला कर ‘इस्लाम की हिफाजत’ और ‘जिहाद’ की आवाज बुलंद की जा रही हो तो उसकी मंशा क्या होती है और नतीजा क्या हो सकता है। पिछले साल नवम्बर में सार्क सम्मेलन के दौरान जब मालदीव मे हिंसा हुई उसके बाद कदम उठाने का वक्त था, लेकिन भारत चूक गया।

अपदस्थ राष्ट्रपति नाशीद की वाजिब शिकायत है कि भारत सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की। नाशीद के अपदस्थ किए जाने के बाद भारत सरकार भी कह रही है कि मालदीव में सत्ता परिवर्तन संवैधानिक है। मौजूदा सरकार की विदेश नीति में एक और भटकाव की यह मिसाल है। निसंदेह मालदीव में भारतीय हितों की घोर उपेक्षा हो रही है। वैसे कोई यह तर्क दे सकता है कि अपदस्थ राष्ट्रपति नाशीद के बारे में भारत को भावुक होने की क्या जरुरत है। आखिर राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होते हैं और नई सरकार की तरफ से भारत को चिंतित नही होना चाहिए। भारत के लिए मालदीव में हुआ सत्ता परिवर्तन खास चिंता की बात है। कुछ प्राइवेट भारतीय कंपनियों को वहां बड़ी परियोजनाओं के ठेके मिले हुए हैं। साथ ही मालदीव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह प्रशांत क्षेत्र में मजबूत ताकत बनने मे भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है।

मालदीव में काफी पहले से ही पाकिस्तान, चीन और श्रीलंका सक्रिय थे। मालदीव के सामरिक महत्व के मद्देनजर अमेरिका की निगाह भी वहां टिकी हुई है। दो वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी तो राजधानी माले पहुंच कर फैसला भी सुना चुके हैं कि मौजूदा हालत में चुनाव संभव नहीं है। इन सबका अनिवार्य परिणाम यह होने जा रहा है कि मालदीव में सत्ता के डाकुओं को पैर जमाने और वैधानिकता हासिल करने का मौका मिलने जा रहा है, दुर्भाग्य से भारत सरकार भी अमेरिकी रूख का समर्थन कर रही है। भारत सरकार इस बात को समझना ही नहीं चाहती कि इस वर्ष 7 फरवरी को पुलिस और सेना की मदद से मौमून अब्दुल गयूम के मार्गदर्शन में हुए विद्रोह को अंतरराष्ट्रीय निगरानी मे गारंटीशुदा स्वतंत्र चुनाव से ही निरस्त किया जा सकता है।

एक नजर

श्रीलंका के दक्षिण पश्चिम में हिंद महासागर में, 1,200 छोटे-छोटे प्रवाल द्वीप
केवल 199 द्वीपो पर आबादी
कुल आबादी 1,17,280
क्षेत्रफल 298 वर्ग किलोमीटर
राजधानी : माले
धर्म : सुन्नी मुस्लिम
भाषा : दिवेही (सिंहली की एक बोली)

इतिहास के आईने में

1588- पुर्तगालियों का कब्जा
1887 ब्रिटेन के अधिकार में आया
26 जुलाई, 1965 – आजादी मिली, मौमून अब्दुल गयूम लगातार 30 वर्षों तक राष्ट्रपति रहे।
1988 – प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ऑपरेशन कैक्टस के तहत 1,600 फौजी भेजकर बगावत नाकाम करने में राष्ट्रपति गयूम की मदद की।
2008 – बहुदलीय पार्टी प्रणाली के तहत गयूम को हराकर मोहम्मद नाशीद राष्ट्रपति निर्वाचित

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