स्मार्ट मैथ व शार्ट मैथ के नाम पर इस्तेमाल हो रहा वैदिक गणित

वैदिक गणित की फिर से हो रही वापसी
भारत एक बार फिर से अपनी पुरानी परंपराओं के बल पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है और इसमें हमें बड़ी सफलता भी मिल रही है। भारत में शिक्षा, योग और आयुर्वेद सहित ऐसी तमाम ख़ूबियाँ है जिसे पूरी दुनिया अब मान रही है जबकि इससे पहले आयुर्वेद और योग को लेकर मजाक बनाया गया है लेकिन आज पूरी दुनिया योग कर रही है और अंग्रेजी दवा छोड़ लोग फिर से आयुर्वेद की तरफ रुख कर रहे है इतना ही नहीं कोरोना काल में पूरी दुनिया अब हाथ मिलाने की जगह नमस्ते कर रही है। इन सबके बाद अब भारतीय शिक्षा पद्धति को फिर से चलन में लाया जा रहा है। 
 
नई शिक्षा नीति में शामिल करने पर विचार
हाल ही में पीएम मोदी ने अपने मन की बात में भी भारतीय शिक्षा पद्धति के वैदिक गणित की चर्चा की थी और कहा था कि प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए सभी को वैदिक गणित पढ़ना चाहिए, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा करते हुए मोदी ने कहा कि गणितीय चिंतन शक्ति और वैज्ञानिक मानस बच्चों में विकसित हो यह बहुत आवश्यक है। गणितीय चिंतन शक्ति का मतलब केवल गणित के सवाल हल करना ही नहीं है बल्कि यह सोचने का एक तरीका भी है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन बिंदुओं को कैसे शामिल किया जाए यह भी सरकार के पास एक चुनौती है। 

यह प्रश्न स्कूली नेशनल एजुकेशन फ्रेम वर्क से भी जुड़ा हुआ है स्कूली पाठ्यक्रम में एनईपी मूलभूत बिंदुओं को कैसे समाहित किया जाए इसी परिप्रेक्ष्य में यह भी विचार नहीं होगा कि वैदिक गणित की इसमें क्या संभावना है? यद्यपि सामान्य प्रचलित धारणा है कि वेदों में प्रकृति या वेदों का स्तुति गान है लेकिन यह पश्चिमी देशों का एक खतरनाक षड्यंत्र था और उनका उद्देश्य था समृद्ध भारती ज्ञान विज्ञान को दबा कर खत्म कर देना जिससे भारतीयों पर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता स्थापित करते हुए अस्थाई अधिपत्य कायम किया जा सके। 
 
आज विश्व में गणित का जो भव्य राज भवन खड़ा है उसके मूल में शून्य से लेकर 9 तक कि अंक प्रणाली, दसगुणोत्तरी  (इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार आदि) दशमलव और भिन्नात्मक संख्या इत्यादि है। यह सब भारत में वैदिक काल से ही मौजूद थे। ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद की विभिन्न रचनाओं में ऋचाओ में इनका उल्लेख है। आज जिसे वैदिक गणित कहा जाता है वह सिर्फ वेदों तक सीमित नहीं है। वैदिक गणित के आधुनिक प्रणेता स्वामी भारती कृष्ण, बौद्ध ग्रंथ, जैन ग्रंथों से होते हुए आर्यभट्ट, वराह मिहिर, ब्रह्मगुप्त से लेकर आधुनिक काल के रामानुजन और शकुंतला देवी के गणतीय सूत्रों-सिद्धांतों को भी शामिल करते हैं। इस रूप में इसे भारतीय गणित, हिंदू गणित या प्राचीन गणित भी कहा जाता है। प्राचीन भारत की गणितीय प्रगति का बोध इससे भी होता है कि छठी सदी ईशा पूर्व के जिस यूनानी पाइथागोरस प्रमेय की दुनिया में चर्चा होती है उसका उल्लेख उससे कई सौ वर्ष पहले बौधायन ने अपने शुल्व सूत्र में कर दिया था। वास्तव में नये और बदलते भारत के संदर्भ में वैदिक गणित अत्यंत उपयोगी है।
 
आमतौर पर स्कूलों में गणित का विषय कठिन है और बोझिल माना जाता है लेकिन वैदिक गणित द्वारा बहुत सरल तरीके से जटिल से जटिल सवाल भी हल किये जा सकते है। वैदिक गणित की आज की गणित से अगर तुलना करते है तो हमें गुणा के लिए एक ही पद्धति से सिखायी जाती है कि दाहिने तरफ से गुणा करना है जबकि वैदिक गणित में दाहिने के अलावा बायें तरफ से भी गुणा कर सकते है। इसके अलावा गुणा करने के और भी कई तरीके हैं जिनसे बड़ी संख्याओं का गुणनफल बहुत कम समय में संभव है। आप को यह जानकर हैरानी होगी कि आज वैदिक गणित का उपयोग कोचिंग संस्थान खूब कर रही हैं लेकिन उन्हे स्मार्ट मैथ, शॉर्टकट मैथ का नाम दिया जा रहा है। 
 
प्रतियोगिता के लिए वरदान वैदिक गणित
इस  समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर प्रतियोगिता का दौर चल रहा है। देश के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे आईआईटी या आईआईएम आदि की प्रवेश परीक्षाओं में गणितीय क्षमता का मापन होता है इनमें सफलता के लिए दो चीजें आवश्यक है, एक- कम से कम समय में अधिक से अधिक सवाल हल करना और दूसरा- सही होना यानी एक्यूरेसी। इन दोनों में वैदिक गणित का जोड़ नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कूली मूल्यांकन प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट्स एसेसमेंट में भी वैदिक गणित के माध्यम से भारत अपना लोहा मनवा सकता है।
 
अब सवाल यह है की वैदिक गणित को स्कूली अथवा उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में कैसे शामिल किया जाए और इसके लिए शिक्षक कहां से आएंगे?  इस संदर्भ में शिक्षा संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान-न्यास युगांतर कार्य कार्य कर रहे हैं। इनमें से 10 हजार से ज्यादा शिक्षकों को वैदिक गणित के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। वैदिक गणित के विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके अभ्यास से तर्कशक्ति, विश्लेषण एवं संश्लेषण क्षमता बहुत बढ़ जाती है जो शोध अनुसंधान के लिए जरूरी है। 

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