मधुमेह की उत्तम दवा जामुन

बरसात के आगमन के साथ ही काले-काले जामुन बाजार में दिखाई पड़ने लगते हैं। जामुन जहां खाने में स्वादिष्ट होते हैं, वहीं ये अनेक रोगों की अचूक औषधि भी हैं। आयुर्वेद के अनुसार, जामुन स्वाद में मधुर, पचने में हल्का, मलरोधक, दीपक, शीत वीर्य, अम्लपित्त व कफ नाशक होता है। इसके फल का प्रयोग खाने के लिए किया जाता है जबकि इसके रस से सिरका बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त जामुन की गुठली का चूर्ण मधुमेह तथा बहुमूत्र में रामबाण औषधि है।

जामुन के फल लगभग आधे से एक इंच लंबे व गोल होते हैं। पकने पर इनका रंग नीला-काला होता है। जामुन के फलों में एक गुठलीनुमा बीज होता है। इसके फलों को लोग अत्यंत चाव से खाते हैं। आकार की दृष्टि से इसकी दो किस्में होती हैं- छोटी और बड़ी। बड़ी जामुन गुण की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है। इसी का फल औषधि के लिए लाभकारी होता है।

उपयोगी अंग– फल, गुठली, छाल, पत्ते।

सेवन मात्रा– स्वरस-10 से 12 मि. ली., चूर्ण-3 से 5 ग्रा., क्वाथ-50 से 100 मि.ली.।

जामुन को संस्कृत में जम्बू, महाफल आदि कहते हैं। हिंदी में इसे जामुन ही कहते हैं। मराठी में जांभुळ; गुजराती में जांबू; पंजाबी में जामुल; तमिल में शबलनावल; तेलगु में बेरेडु; मलयालम में नबल; कन्नड़ में नेरले और अंग्रेजी में ‘जामन’ (व्स्ह) कहते हैं। इसका लैटिन नाम ‘सिजिगियम क्यूमिनि’ है।

जामुन गुण की दृष्टि से लघु व रूक्ष है। रस कषाय, मधुर एवं अम्ल होता है। इसका विपाक कटु एवं वीर्य शीत होता है। यह रूक्ष-कषाय होने के कारण कफ का तथा शीत होने से पित्त का शमन करती है। लेकिन रूक्ष व शीत कषाय होने से वातवर्द्धक है।
जामुन के फलों को ही नहीं, अपितु इसकी छाल, पत्तियां, गुठलियां आदि को भी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जामुन का फल दीपन, पाचन, यकृत उत्तेजक तथा स्तंभक है। इसके पत्ते तथा छाल ‘उल्टी’ रोग में गुणकारी है। इसकी गुठली शर्करा को नियंत्रित करती है।

रक्तस्राव होने पर तथा घावों पर जामुन की छाल का सूक्ष्म चूर्ण बनाकर बुरकने पर लाभ होता है। त्वचा में जलन होने पर इसके फलों का सिरका तिल के तेल में मिलाकर लगाने से जलन शांत होती है। उपदंश, फिरंग आदि चर्म रोगों में जामुन के पत्तों से सिद्ध तेल लगाने से लाभ होता है। जामुन के फलों का सिरका अथवा फल का प्रयोग अग्निमांद्य, अजीर्ण, दर्द, पेचिश, कॉलरा, ग्रहणी आदि रोगों में किया जाता हैं।

मधुमेह की दवा

मधुमेह एवं बहुमूत्र रोग में जामुन की गुठली अत्यंत प्रभावकारी औषधि है। वैज्ञानिक शोधों से भी यह साबित हो चुका है कि जामुन की गुठली का चूर्ण मधुमेही के लिए रामबाण औषधि है। डॉ. सी. ग्रेसर ने अपने एक शोध के माध्यम से यह प्रमाणित किया है कि जहां ‘इंसुलिन’ और ‘ट्राइप्सोजन’ जैसी औषधियां मधुमेह में असफल हो जाती हैं, वहां जामुन की गुठली का चूर्ण का प्रयोग लाभप्रद सिद्ध होता है।

जामुन की गुठली में ‘जंबोलिन’ नामक ग्लुकोसाइड पाया जाता है। इसकी विशेषता यह होती है कि यह पदार्थ स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। जामुन की गुठली का सूक्ष्म चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में जल के साथ दिन में तीन बार प्रयोग करने से एक सप्ताह में ही मूत्रशर्करा कम हो जाती है। यह नुस्खा बहुमूत्र रोग में भी लाभकारी है। मधुमेह में उपयोगी नुस्खे
मधुमेह में उपयोगी जामुन के कुछ नुस्खे इस प्रकार हैं:-

* जामुन के वृक्ष की अंतरछाल लेकर सुखा लें। फिर इस छाल को जलाकर भस्म बना लें। इस भस्म को दस रत्ती की मात्रा में लेकर सुबह खाली पेट तथा दोपहर और रात को भोजन के एक घंटा बाद जल के साथ सेवन करें। यह एक अत्यंत लाभदायक योग है। इस योग के साथ यदि गिलोय सत्व, प्रवाल भस्म अथवा चंद्रप्रभावटी का सेवन भी किया जाए तो अत्यधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है।

* जामुन की गुठली और सूखे आंवले को समभाग लेकर कपड़छान चूर्ण बना कर रख लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में सुबह खाली पेट सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।

* जामुन की गुठली की गिरी, सोंठ, गुड़मार- तीनों को सममात्रा में लेकर सूक्ष्म चूर्ण बना लें। फिर इसे घृतकुमारी के स्वरस में घोंटकर छोटी बेर के बराबर गोलियां बना लें। 1-1 गोली लेकर मधु के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से मूत्रशर्करा नियंत्रित हो जाती है तथा मधुमेह रोग में होनेवाली फोड़े-फुंसियां भी ठीक हो जाती हैं।

* जामुन की गुठली और आम की गुठली समभाग लेकर कपड़छान चूर्ण बना लें। इसे 2-3 ग्राम की मात्रा में जल के साथ भोजन से पहले दिन में दो बार सेवन करने से कुछ दिनों में पेशाब के साथ जाने वाली शर्करा कम हो जाती है।

पेट के रोग

यदि खाना ठीक से नहीं पचता है या अपच की शिकायत रहती है तो 50 से 100 ग्राम अच्छे पके जामुन प्रतिदिन खाली पेट सुबह खाएं। इससे निश्चित लाभ होता है। बरसात के मौसम में जब जामुन उपलब्ध होते हैं, इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। इससे भूख खुलती है और रक्त भी शुद्ध होता है। आयुर्वेद के अनुसार, जामुन यकृत एवं प्लीहा के लिए अत्यंत गुणकारी है। इसका सेवन प्लीहा व यकृत को स्वस्थ एवं क्रियाशील बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पेट रोगों से छुटकारा पाने के लिए जामुन के निम्न नुस्खों का प्रयोग करना चाहिए।

* पेचिश की स्थिति में 25 से 50 ग्राम जामुन के फलों का रस समभाग गुलाब जल में मिलाकर थोड़ी-सी खांड के साथ सेवन करने पर लाभ होता है।

* यदि दस्त में आंव आती हो या आंव रुक गई हो तो जामुन व आम की गुठलियों का समभाग चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में ठंडे जल के साथ सेवन करें। 4-4 घंटे के अंतराल पर इस नुस्खे का सेवन करने से, कैसी भी आंव की समस्या हो, ठीक हो जाती है।

* जामुन के तीन-चार कोमल पत्ते सेंधा नमक के साथ पीसकर सेवन करने से पतली दस्त की शिकायत दूर हो जाती है। पत्तियों का रस गाय के दूध के साथ मिलाकर पीने से कुछ ही दिनों में प्लीहावृद्धि में आराम मिल जाता है।

* जामुन का रस निकाल कर एक बोतल में रख लें, लेकिन बोतल थोड़ी खाली रखें। फिर इसमें पांचों नमक 2-2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर एक महीने तक रख दें। पीलिया रोग होने पर आधा‡आधा चम्मच सुबह-शाम सेवन करें। इससे पीलिया, जिगर, तिल्ली के रोग तथा अन्य उदर व्याधियां दूर हो जाती हैं।

* हरड़, आम तथा जामुन की गुठली की गिरी समभाग लेकर धीमी आग में सेंक लें। फिर इसका चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार ताजे जल के साथ सेवन करें। इससे संग्रहणी और पुराने दस्त ठीक हो जाते हैं। पथ्य में अनार तथा साबूदाना का सेवन करना चाहिए।

अन्य घरेलू नुस्ख़े

मुंहासे– जामुन की गुठलियों को पत्थर पर घिसकर उसे दूध में मिलाकर लेप बना लें। इसका रात में सोते समय चेहरे पर लेप करें। सुबह उठकर चेहरे को ताजे जल से मुंह धो लें। ऐसा कुछ दिन तक करने से मुंहासे ठीक हो जाते हैं।

बवासीर– जामुन की ताजी कोपलों का 25 ग्राम रस शक्कर मिलाकर पीने से खूनी बवासीर से छुटकारा मिलता है अथवा 10 ग्राम जामुन के ताजे पत्ते को पीसकर उसे 250 ग्राम दूध में मिलाकर एक हफ्ते तक पीने से भी लाभ होता है। लेकिन गरिष्ठ खाद्य पदार्थ, तीखे मिर्च-मसाले तथा कब्जकारक आहार से परहेज करना जरूरी है।

रक्तस्राव– शरीर के किसी भी अंग में अगर बार-बार रक्तस्राव होने की शिकायत हो तो जामुन एवं आम के पत्तों का स्वरस कुछ दिन सेवन करने से खून बहने की शिकायत दूर होती है।

विष- जामुन की गुठली में विष निवारक गुण भी है। कुचले के विष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए गुठली की गिरी का चूर्ण 5-7 ग्राम की मात्रा में 15 ग्राम गाय के दूध के साथ मिलाकर 2-2 घंटे पर रोगी को दें। इससे विष का प्रभाव खत्म हो जाता है।
कान बहना- जामुन की गुठली से सिद्ध तेल कान में डालने से कान का बहना ठीक हो जाता है। नियमित रूप से सुबह-शाम इस तेल की 2-2 बूंदे कान में डालनी चाहिए।

प्रदररोग– स्त्रियों के प्रदर रोग में जामुन के वृक्ष की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से दो हफ्ते में प्रदररोग से छुटकारा मिल जाता है।

दांतदर्द- जामुन की छाल का काढा बनाकर उससे कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है। इससे हिलते दांत भी मजबूत होते हैं तथा मसूड़ों की सूजन खत्म होती है।

पित्तविकार– जामुन अपने शीत गुण के कारण पित्तज रोगों में लाभकारी है। इसके लिए 10 ग्राम जामुन की पत्तियों के रस में 10 ग्राम गुड़ मिलाकर उसे थोड़ा गर्म करके पीने से शरीर के जलन तथा पित्तवृद्धि का शमन होता है।

गला बैठना- यदि गला बैठ गया हो, आवाज साफ न आती हो तो 500 मि. ग्रा. जामुन की गुठली का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटें, लाभ होगा। गले में सूजन हो तो जामुन की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से सूजन दूर होती है।

स्वप्नदोष- स्वप्नदोष की स्थिति में जामुन की गुठली का चूर्ण 4-4 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी से सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है। इस चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से शीघ्रपतन की शिकायत भी दूर होती है।

निषेध- लंबे समय तक उपवास करने वाले, वमन रोगी तथा जिनके शरीर में सूजन हो, ऐसे लोगों को जामुन का सेवन नहीं करना चाहिए। वातरोग से पीड़ित व्यक्तियों तथा प्रसूता स्त्रियों को भी जामुन नहीं खाना चाहिए। जामुन का पका फल सदैव नमक मिलाकर भोजन के बाद एक सीमित मात्रा में ही खाना चाहिए।
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