खबरिया टी. वी. चैनलों की भूमिका

दिन-रात चौबीसों घण्टे चल रहे टी. वी. के खबरिया चैनलों के पास दर्शकों के लिए लगता है कोई महत्वपूर्ण विषय नहीं है। सुबह से शाम तक किसी निरर्थक समाचार को बार-बार दिखा करके वे अपने बौद्धिक दिवालिएपन का ही प्रदर्शन करते हैं। चाहे किसी सुनियोजित योजना के अन्तर्गत हो, अथवा दूरदृष्टि और रचनात्मक सोच के अभाव के कारण हो, उनके पास समाज के लिए अनुकरणीय मुद्दे नहीं दिखाई देते। कभी-कभी तो कई-कई दिन तक एक ही घटना को नाट्य रूपान्तर करके ऐसे प्रस्तुत किया जाता है, जैसे कि वह घटना देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण मामला है। कुछ वर्ष पहले गडढ़े में गिरे प्रिन्स नामक बच्चे की घटना को सभी चैनलों ने कई दिन तक दिखाया। अभी हाल ही में मुंबई में आई. पी. एल. मैच के समय फिल्म अभिनेता शाहरूख खान द्वारा सुरक्षा कर्मियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार को पूरे दो दिन दिखाकर ये चैनल न जाने कौन सा सन्देश देना चाहते थे।
देश भर में व्यक्ति और समाज को प्रेरणा देने वाले हजारों सेवा कार्य चल रहे हैं। व्यक्तिगत और संस्थागत रूप में चल रहे सेवा कार्य प्रचार माध्यमों से प्राय: दूर ही हैं। अनाश्रित लोगों के आश्रम, रोगियों के अस्पताल, गरीबों की सहायता के लिए प्रकल्प, गोरक्षा व गोसेवा के केन्द्र, पर्यावरण रक्षा के उपक्रम, देश के उपेक्षित और पहुंच से बाहर क्षेत्रों में लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, पीने के पानी इत्यादि के लिए किए जा रहे कार्य और जनकल्याण समितियों के माध्यम से देश भर में अनगिनत कार्य किए जा रहे हैं। ये सब कार्य इन खबरिया चैनलों के विषय नहीं बनते। समाज का रचनात्मक स्वरूप उनके लिए समाचार बनने लायक नहीं होते।

दूसरी तरफ देश भर में व्याप्त अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण, निर्बलों के प्रति हो रहे अन्याय व शोषण भी देश को बताने के काबिल टी.वी. चैनल नहीं मानते हैं। दूर दराज के क्षेत्रों, पूर्वोत्तर राज्यों के दुर्गम स्थलों और वनों के भीतर रह रहे समाज की ओर भी इनका ध्यान नहीं जाता। उपेक्षित और वंचितों के हक की लड़ाई में ये खबरिया चैनल कहीं नहीं दिखाई देते। राष्ट्रीय महत्व के वे विषय जिनसे दर्शकों के मन में राष्ट्रभावना जगे, किसी भी चैनल पर नही दिखाई पड़ते। स्टार जैसे विदेशी एजेन्डे को भारत में प्रसारित करने और विदेशी पूंजी से चलने वाले चैनेल देश के लिए घातक बनते जा रहे हैं। वे भारतीयता और भारतीय संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हैं।

इन दिनों देश के एक बड़े वर्ग के सिर पर आई.पी.एल. का नशा सवार था। धन और दिखावे से सराबोर महीने भर से अधिक समय तक चलने वाले इस क्रिकेट टूर्नामेन्ट को टी.वी.न्यूज चैनलों ने कमाई का बड़ा जरिया बना लिया। मुंबई में शाहरूख खान के दुर्व्यवहार को इनी बार दिखाया गया कि आई.पी.एल. के मैच पीछे छूट गये। यही नहीं किसी स्टिंग ऑपरेशन में फंसे और निलंबित किए गए आई.पी.एल. मैच खेल रहे खिलाड़ियों को भी कई दिन तक चर्चा का विषय बनाया गया। उस दौरान देश में घटी सभी प्रमुख घटनाओं को दर किनार कर दिया गया। इन चैनलों की यह प्रवृत्ति समाज व देश में गलत सन्देश देती है।
मन में आत्म विश्वास और स्वयं तथा देश के प्रति गौरव का एहसास करने वाले समाचारों की उपेक्षा करके नकारात्मक संदेश देने वाले चोरी, हत्या, ठगी, दुराचार, घोटाला इत्यादि के विषय बार-बार दिखाना राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगी नयी पीढ़ी के मन में देश के प्रति नकारात्मक छवि का निर्माण करता है इससे बचना चाहिए।

कई बार यह मांग उठती है कि टी.वी. चैनलों पर दिखास जाने वाले कार्यक्रमों के बारे में भी स्पष्ट दिशा निर्देश तय होने चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर सही-गलत कुछ भी दिखाने की छूट नहीं होनी चाहिए। यही नहीं ऐसी भी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें दर्शक भी अपनी राय बता सकें कि वे क्या देखना चाहते है। दर्शकों की पसन्द को भी कानूनी दायरे में जगह मिलनी चाहिए।

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