युवा गीतकारों का एक सुन्दर आदर्श – ‘अभिलाष’

“इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना।

हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना।।”

जैसे कालजयी गीत के रचयिता श्री अभिलाष जी का एक और बड़ा ही प्रसिद्ध ग़ैर फ़िल्मी गीत है  “ओ यारा वे…”।    ये एक ऐसा गीत है – जिसकी प्रस्तुति ने मुझे एक प्रोफेशनल गायिका  बना दिया। “अपने हर शो यानी ‘मेघा भारती नाईट’ में मुझे ये सांग पब्लिक डिमांड पर गाना ही होता है। आई टू लव दिस सांग सर्। बहुत ही सुन्दर गीत है।” – जब अभिलाष सर् को ये बात बताई तो बेहद ख़ुश हुए।और आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा – “ये तो बस शुरुआत है। ख़ूब बढ़ो।”

दादा साहेब फाल्के अकादमी अवार्ड प्राप्त , गीतकार अभिलाष जी के साथ अनेक मंचों पर प्रस्तुति देने का अवसर प्राप्त हुआ ये इत्तेफाक़ हो सकता है लेकिन, उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानना और अपनी प्रस्तुतियों पर उनकी प्रशंसा और आशीर्वाद का पात्र बनना केवल मेरा  परम सौभाग्य ही है।

वे मुझसे अक्सर कहते थे – “गाती भी बहुत अच्छा हो, लिखती भी बहुत अच्छा हो – डेप्थ {गहराई } है आपके काम में  – बहुत अच्छी आर्टिस्ट हो। मल्टी टैलेंटेड। गॉड ब्लेस यू। ख़ूब बढ़ो।”

तेरह मार्च उन्नीस सौ छियालीस को दिल्ली में जन्में, गीतकार अभिलाष जी का असल नाम ओमप्रकाश कटारिया था। जब लेखन का शौक़ बढ़ा तो उन्होंने अपना  तख़ल्लुस ‘अज़ीज़’ रख लिया। ‘ओमप्रकाश’ अज़ीज़’ – उनकी बहुत सी कहानियाँ, नज़्में और ग़ज़लें इसी नाम से प्रकाशित हुईं। लेकिन जब फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर गीतकार क़दम रखा तो उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘अभिलाष’ रख लिया। और फिर ये नाम सिनेमा जगत पर अपनी एक अलग ही पहचान बना गया।

पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह द्वारा कलाश्री अवार्ड भी अभिलाष जी को प्राप्त था। वे एक ऐसे  सम्मानित सिने गीतकार थे जिनके प्रसिद्ध गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ को आज भी भारत के लगभग छः सौ विद्यालयों में प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। यही नहीं, आठ अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में इस गीत का अनुवाद भी किया गया है।

संगीत निर्देशक कुलदीप सिंह  द्वारा संगीतबद्ध यह गीत  फ़िल्म ‘अंकुश’ {1985} के लिए अभिलाष जी ने  लिखा था। निर्देशक एन.चन्द्रा के लिए अभिलाष जी ने बिना किसी पारिश्रमिक के इस फ़िल्म के गीत लिखे जो काफी हिट हुए। जिससे एन.चन्द्रा भी बॉलीवुड के जाने माने फ़िल्मकार बन गए।

उनके हर गीत में कुछ अलग ही बात है, ऐसी कि अभिलाष जी के लिखे कई गीत आज भी संगीतप्रेमियों के ज़बान पर हैं फिर चाहे ‘संसार है इक नदिया’ हो, या ‘साँझ भई घर आजा’, या फिर ‘वो जो ख़त मुहब्बत में’, या ‘तुम्हारी याद के सागर में’ हो, या ‘आज की रात न जा’  या फिर ‘तेरे बिन सूना मेरे मन का मंदिर’ हो। उनका हर गीत सदाबहार है।

एक सिद्धहस्त गीतकार होने के साथ ही अभिलाष जी, एक बेहतरीन स्क्रिप्ट राईटर भी थे। कई फ़िल्मों में उन्होंने पटकथा-संवाद लेखन किया और बहुत से धारावाहिको़ं की स्क्रिप्ट भी लिखीं। जिसके लिए उन्हें अनगिनत अवार्ड्स से नवाज़ा गया।

जिन धारावाहिकों के लिए उन्होंने लिखा वे भी काफी हिट हुए। अदालत, दुनिया रंग रंगीली, अनुभव,धूप छाँव, रंगोली, संसार, चित्रहार  और ॐ नमो शिवाय इत्यादि जैसे धारावाहिकों से उन्होंने टेलेविज़िन की दुनिया में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी।

बॉलीवुड के कई महत्वपूर्ण संस्थानों में वे प्रशासनिक पदों पर भी कार्यरत्त रहे। स्वयं के प्रोडक्शन हॉउस से उन्होंने कई बेहतरीन धारावाहिकों का निर्माण भी किया। लगभग चालीस वर्षों  तक उन्होंने हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री और टेलेविज़िन इंडस्ट्री में अपना योगदान दिया।

अभिलाष जी बेहद कर्मठ और हँसमुख थे। जब भी उनसे मुलाक़ात होती कुछ नया सीखने को मिलता। एक बहुत ही सुलझे हुए और सकारात्मक सोच के व्यक्ति थे वे। उनके विनम्र स्वभाव के भी वैसे तो बहुत से उदाहरण हैं लेकिन एक किस्सा मुझे विशेष रूप से याद आता है।

एक कार्यक्रम के सिलसिले में अभिलाष जी के साथ चर्चा चल रही थी। तो मैंने चर्चा के बीच में ही उनसे कहा कि  – “सर् मैं बचपन से सोचती थी कि आपसे कभी ज़रूर मिलूँगी, लेकिन ये नहीं सोचा था कि आपके साथ एक मंच साझा कर सकूँगी” । मेरी इस बात पर मुस्कुराते हुए उन्होंने अपनी कॉफी का कप उठाकर मेरी ओर देखते हुए कहा – “नहीं इतनी बड़ी बात भी नहीं मुझसे मिलना, आपके क़द के इंसान के लिए। आप योग्य हैं इसलिए यहाँ हैं । ठीक है। गॉड ब्लेस यू ऑलवेज़।”

सत्ताईस सितंबर दो हज़ार बीस की रात अभिलाष जी ने मुम्बई में अंतिम साँस ली। कुछ समय से वे बीमार चल रहे थे। लेकिन बीमारी के दौरान भी, जीवन के प्रति उनका नज़रिया जोश से भरा हुआ था।

पिछले माह जब उनसे एक नए प्रोजेक्ट पर बात हुई तो  स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण अधिक चर्चा नहीं कर पा रहे थे – तो बोले, “आजकल, थोड़ा तबियत ठीक नहीं है,लेकिन ठीक होते ही इसपर डिटेल में बात करते हैं, पक्का “।

मुम्बई के किसी भी मंच पर अब जब भी मेरी कोई प्रस्तुति  होगी तो निश्चित ही अभिलाष सर के उत्साहवर्धक शब्द सुनने को मन तरसेगा , हाँ, लेकिन उनके उन शब्दों की गूँज हृदय में सदा रहेगी। उनका आशीर्वाद और हौसला बढ़ाते शब्द हमेशा साथ रहेंगे।

अभिलाष जी के निधन के साथ युवा गीतकारों का एक सुन्दर आदर्श भले ही अपना शरीर छोड़ गया हो लेकिन, उनकी जगाई एक सुंदर सोच की अलख किसी भी संघर्षशील व्यक्ति के ‘मन का विश्वास’ कमज़ोर नहीं होने देगी।

 

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