पी.डी.झा की रेखाओं और रंगो में उतरे कालिदास

भारत के प्राचीन महानतम संस्कृत के महाकवि साहित्यकार कालिदास मध्यप्रदेश की उज्जयनी नगरी से जुड़े और सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचनाओं की सृजित किया, महाकवि कालिदास को अपने अनुपम साहित्य की कई अनोखी विशेषताओं में से एक अर्थात् उपमा के लिये संपूर्ण विश्व में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है। कालिदास के संस्कृत साहित्य का हिन्दी अनुवाद तो कई विद्वानों ने किया है किन्तु समस्त विद्वान मल्लिनाथ की टीका को निर्विवाद रूप से सर्वोत्तम े मानते हैं।
यह उल्लेख करने का तात्पर्य यह है कि महाकवि कालिदास के ग्रंथों के भाषाई अनुवाद के अतिरिक्त चित्रांकन में उनके अनुवाद बात की जब-जब बात उठती है तो मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा जिले को वर्ष 1955 से अपनी कर्मभूमि बना चुके पी. डी. रूद्रकुमार झा, जो अपनी विशिष्ट शैली के कारण देश-विदेश में प्रख्यात है, उनके द्वारा कालिदास के ग्रंथों के प्रसंग विशेषों पर रचित चित्रांकन को रेखाओं और रंगों में कालिदास साहित्य का सर्वश्रेष्ठ अनुवाद स्वीकार किया जाता है। पी. डी. रूद्रकुमार झा का जन्म 1930 मेंं जबलपुर में हुआ, सन 1946 में कला की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये निजाम स्टेट के सेन्ट्रल स्कूल ऑफ आर्टस् एंड क्राफ्टस् में प्रवेश लिया, किन्तु उस समय विभाजन के दौर के जातीय संघर्ष के कारण हैदराबाद छोड़ना पड़ा और उन्होंने सन् 1948 में जयपुर के महाराजा स्कूल ऑफ आर्टस् एंड क्राफ्ट्स में आवेदन किया, उनका पेटिंग कार्य देखकर तत्कालीन प्रचार्य के. के. मुखर्जी ने उन्हें चौथे वर्ष में प्रवेश दिया। इस प्रकार मात्र दो वर्षों में पंचवर्षीय पाठ्यक्रम पूरा कर कला वर्ग में उच्च शिक्षा प्राप्त की।

भारतीय चित्रकला के विभिन्न शैलियों के अध्ययन के उपरांत उन्होंने कालिदास के महान ग्रंथों के प्रसंगों को अपने कैनवास पर जब चित्रण प्रारंभ किया तो कालिदास समारोह उज्जैन में वर्ष 1957 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी द्वारा विशेष रूप से प्रशंसित किया गया। मध्यप्रदेश शासन ने भी वर्ष 1981 मेें कालिदास समारोह उज्जैन में पी. डी. रूद्रकुमार झा के चित्रों की एकल चित्र प्रदर्शनी आयोजित की, जिसका समारोह में आमंत्रित विद्वानों ने भरपूर रस पान किया। रघुवंशम् के अज-इन्दुमति के स्वयंवर प्रसंग पर पॉच सुंदरियों को दूल्हेे देखने का लालयित कौतुहल, अज-इन्दुमति का वन प्रवास, नंदिनी सेवा और सीता परित्याग के प्रसंग अत्यंत चित्ताकर्षक हैं, अभिज्ञान शाकुतंलम, ऋतु सहार के प्रसंगों के चित्रांकन के अलावा विशेष तौर पर मेघदूतम् पर बनाये गये ग्यारह प्रसंगों पर चित्रांकन, भारतीय चित्रकला में धरोहर है। इसी क्रम में यह उल्लेख अत्यंत आवश्यक है कि सम्पूर्ण कुमार-संभवम् के 14 सर्ग पर शिव तपस्या से लेकर शिव पार्वती विवाह का 10 श्लोंकों पर कथानक आधारित चित्रांकन अत्यंत सम्मोहित करता है। यूं तो मैंने कई चित्रकारों के कालिदास के एकाधिक ग्रंथों पर सीमित चित्रांकन मार्डन ऑर्ट में और भारतीय शैली में किये गये प्रयोग भी देखें है, किन्तु शृंगार, काम, प्रकृति का सौंदर्य और वाणी, नारी देह अंगों की उपमा परक कालिदास के वर्णन को जैसा श्री झा ने अपने कैनवासों पर उतारा है, उसकी तुलना अत्यंत कहां देखने को नहीं मिली, उनका समस्त चित्रांकन वाटर कलर एवं मूलत: मिनिएचर शैली में किया गया है।
कला साधना के प्रति अपना सर्वस्व जीवन समर्पित करने वाले ऐसे वरिष्ठ एवं वृद्ध चित्रकार ने अपने जीवन में अपने प्रचार-प्रसार और पुरस्कार के लिए कभी प्रयास नहीं किया, उनका मानना है कि पुरस्कार हेतु निर्णय लेने का कार्य दायित्त्व समाज और सरकार का है, कलाकार को अपने लिए कभी मार्केटिंग नहीं करनी चाहिये। यही कारण रहा है कि श्री झा इस ऐतिहासिक योगदान के पश्चात भी नेपथ्य में बने रहे। श्री झा की कला यात्रा उनके आयु के 83 वें पड़ाव पर भी जारी है, उनकी पेटिंग्स् का संग्रह वर्तमान में उनके छिन्दवाड़ा निवास स्थित रुद्र आर्ट गैलरी में संरक्षित है।

पी. डी. रूद्रकुमार झा ने कला के विकास में अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं का भी निर्वहन किया है, वे छिन्दवाड़ा संस्कार भारती के अध्यक्ष एवं संस्कार भारती महाकौशल प्रांत के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश की आदिम जातियों की संस्कृति एवं जैन धर्म का अध्ययन कर श्री महावीर स्वामी के जीवन पर आधारित चित्रांकन का महान कार्य भी किया है, इतना ही नहीं आधुनिक शैली में भी अनेक भाव विचारों को अभिव्यक्त कर नई रचनाएं सृजित की हैं।

सरकार एवं प्रमुख आर्ट गैलरीज को श्री झा जैसे विशेष कलाकार जिन्होंने राष्ट्र की कला संस्कृति की विरासत को आगे बढ़ाने का महान कार्य किया है, ऐसे कला साधकों के कृतित्त्व को आने वाली पीढ़ी के लिये सुरक्षित रखने हेतु समुचित प्रयास अवश्य करने चाहिये, जिससे उन्हें प्राचीन भारतीय कला और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त हो सके।

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