मत खाइए गुटखा, यह ले लेगा जान

भारत में ही पूरे विश्व में आर्थिक प्रगति तथा समृद्धि के साथ-साथ लोगों में नशाखोरी की प्रवृत्ति और आदतों में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। शराब, सिगरेट, कोकीन, चरस, गांजा, तंबाकू के साथ अन्य नई-नई प्रकार की नशीली दवाइयाँ (ड्रग) बाजार में आ रही हैं और उनका उपयोग विशेष रूप से युवा पीढ़ी में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हर वर्ष गुटखे के कारण लाखों लोगों की मौत हो रही है, वाबजूद इसके इसका सेवन करने वालों की संख्या कम नहीं हो रही है। अगर स्वस्थ्य तथा दीर्घायु जीवन जीना है, तो मत खाइए गुटखा, यह ले लेगा जान। यह गुटखा शरीर को इतना जर्जर बना देता है कि गुटखा सेवन करने वाले व्यक्ति की मौत के दिन बिल्कुल निकट दिखाई देने लगते हैं।

इन नशीले पदार्थों के सेवन के फलस्वरूप कैंसर, लीवर के रोग तथा अन्य प्रकार की गंभीर जानलेवा बीमारियां जन्म ले रही हैं। पूरे विश्व में इस बढ़ती नशाखोरी, नशीली दवाइयों के सेवन से उत्पन्न परिस्थितियों पर वैश्विक संगठन के लोग नशाखोरी की आदतोंं की रोकथाम के लिए जागरुकता तथा शिक्षा अभियान को निरंतर चलाने की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा है। नशीली दवाइयों तथा इसी प्रकार की नशाखोरी की समस्या विकसित देशों के बजाय विकासशील तथा अल्पविकसित देशों में अधिक गंभीर हैं। हमारा देश भी उन देशों को गिनती में आता है, जहां पिछले वर्षो में नशीली दवाइयों, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट, शराब का सेवन निरंतर बढ़ रहा है।

पिछले दो दशकों के अध्ययन से पता चला है कि पान मसाला, गुटखा तथा तंबाकू के सेवन में कई गुना वृद्धि हुई है, जिसके कारण मुंह के कैंसर, भोजन नली के कैंसर तथा टीबी की बीमारियों में भी चिंताजनक बढ़ोत्तरी हो रही है और सबसे अधिक शोचनीय बात यह है कि इस प्रकार की बीमारियों के शिकार अधिकतर युवा ही हैं।

भारत में तंबाकू तथा गुटखे के सेवन से प्रतिवर्ष हजारों लोगों की अकाल मौत होती है। जानकारी तथा शिक्षा के अभाव के कारण गुटखे तथा तंबाकू का सेवन समाज में प्रतिष्ठा से भी जुड़ता जा रहा है। विवाह समारोहों तथा अन्य भोजन समारोहों में पान-मसाला, गुटखा, तंबाकू का चलन अब एक फैशन या परंपरा का हिस्सा बन गया है। पान मसाला कंपनियों के टी. वी. रेडियो पर दिए प्रसारित विज्ञापनों से इनको और अधिक लोकप्रियता प्राप्त हो रही है और तो और अब यह छोटे बच्चों में भी लोकप्रिय हो रहा है। इसके कारण आंत की बीमारियां, मुंह में छाले आदि के मामलों में काफी वृद्धि हो रही है और स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा पैदा होता जा रहा है।

भारत में तंबाकू का प्रचलन पुर्तगालियों द्वारा 16 वां शताब्दी में किया गया, इससे पहले 15 वीं शताब्दी में मेंक्सिको से आयात पुर्तगालियों द्वारा यूरोप में किया गया था। पुर्तगाली पहले बीजापुर मेें इसे बादशाह अकबर के दरबार मेंं उनके दरबारी असद अली बेग द्वारा इसकी भेंट बादशाह को दी गई। अकबर बादशाह ने उसे अपने सभी नवरत्नों को भेंट दी और इसकी खुशबू तथा हल्के नशे से प्रभावित होकर बादशाह ने अपने राज्य में इसकी खेती को प्रोत्साहन दिया। चूंकि भारत में पान का प्रचलन पहले से ही था अत: तंबाकू को पान में मिलाकर खाने की परंपरा शुरू हो गई और चूंकि पान काफी प्रचलित था अत: तंबाकू को भी उस समय काफी प्रचार मिला।

ज्ञातव्य है कि भारतीय परंपरा में पान को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। छप्पन भोग की सूची में पान का क्रमांक सातवां माना गया है, यह भोजन को पचाने की क्रिया को तेज करता है और मनुष्य के पाचन-तंत्र को सक्रिय बनाकर रखने की इसमें सभी विशेषताएं हैं। अत: भारतीय खान-पान में पान को आवश्यक माना गया है। भोजन के बाद इसके कत्थे, चूने, सुपारी के साथ खाने की परंपरा थी। अकबर के जमाने में पान के साथ तंबाकू खाने के काफी प्रचलित किया गया। भारत में उस समय मुगलों का शासन था और इसे पान में मिलाकर खाने की शुरुआत की गई। बाद मेंं तंबाकू का चबाना, चूने में मिलाकर खाना, दांत में लगाना अथवा हुक्के पीना, इस प्रकार से तंबाकू का सेवन बढ़ता गया। 17वीं शताब्दी तक सारे देश में तंबाकू का सेवन काफी तेजी के साथ फैल गया। फलस्वरूप पान तंबाकू का व्यवसाय तेजी के साथ फला-फूला। आज भी देश में सबसे अधिक दूकानें पान-बीडी-सिगरेट की ही मिलेंगी। आज तंबाकू का सेवन व उपयोग पान-बीडी-सिगरेट, पान मसाला, गुटखा, हुक्का, चिलम, सिगार, चुरट, खैनी, मावा आदि के साथ बड़े परिणाम में किया जा रहा है। हाल ही में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 15 वर्ष तथा उससे ऊपर की आयु के 40 करोड़ लोगों में से 47% लोग तंबाकू का किसी न किसी रूप में प्रयोग करते हैं, इनमें से 72% लोग बीड़ी, 12% लोग सिगरेट तथा 16% लोग गुटखा, पान मसाले आदि में तंबाकू का उपयोग-उपभोग करते हैं, जिनमें से 86% सिगरेट बीड़ी तथा 16% गुटखा आदि में उपयोग में करते हैं और यह आकड़ा निरंतर बढ़ रहा है। तंबाकू के उपभोग से होने वाली बीमारियोंं का आंकड़ा भी बेहद चौंकाने वाला है। भारत के छ: राज्यों के सात जिलों के 2 लाख ग्रामीण लोगों की जांच के बाद यह पाया गया कि उनमें 66,000लोग अनेक प्रकार की मुंह की बीमारियों से ग्रस्त हैं और इनमें लगभग 5000 मुंबई के पुलिस कर्मी भी थे। ये सभी के सभी तंबाकू, गुटखे, पान-मसाले का किसी न किसी रूप में प्रयोग करते हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 7 लाख लोग केवल तंबाकू के सेवन के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में 90 कैंसर के मरीज तंबाकू-गुटखे का सेवन करते हैं। इस प्रकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गुटखे-तंबाकू का सेवन एक गंभीर खतरा बन गया है और सबसे चिंताजनक बात यह है कि पान-मसाला, गुटखे का सेवन किशोरों तथा युवकोंं में अधिक बढ़ रहा है, इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि पान मसाले-गुटखे को सभी सार्वजनिक समारोहों, प्रीति- भोजों तथा अन्य इस प्रकार के कार्यक्रमों में शिष्टाचार स्वरूप परोसा जाता है। साथ ही पान- मसाला, गुटखे की बड़ी कंपनियां बड़े-बड़े समारोहों जैसे-फैशन-शो, फिल्म एवार्ड, टी-वी प्रोग्राम, संगीत तथा नाटक समारोहों, यहां तक कि धार्मिक आयोजनों का भी प्रायोजन करती है।

पान-मसाला, गुटखा तथा तंबाकू के बढ़ते प्रयोग और उससे होने वाली हानियों और जन स्वास्थ्य के खतरे को ध्यान में रखकर वर्ष 1997 में मुंबई महानगरपालिका के सहयोग से गुटखा-तंबाकू विरोधी जनजागरण की शुरुआत की गई थी। इस अभियान में मुंबई महानगरपालिका के सभी सदस्यों, अधिकारियों के सहयोग के साथ-साथ मुंबई की अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाओं, क्लबों ने सक्रीयता दिखाई थी। इस अभियान में गुटखा, मावा के खिलाफ एक वातावरण बनाने में काफी हद तक सफलता प्राप्त हुई, तथापि इस अभियान को और अधिक सक्रिय तथा समाज के हर स्तर तक पहुंचाने की आज भी आवश्यकता है।

यदि हमें तंबाकू विरोधी वातावरण बनाना है और जन स्वास्थ्य के प्रति चेतना पैदा करनी है तो सरकार, सामाजिक संस्थाओं सार्वजनिक उपक्रमों आदि का सहयोग लेना आवश्यक है।

1) तंबाकू-गुटखा-सिगरेट-बीड़ी के खिलाफ सघन जागरुकता अभियान प्रारंभ हो, जिसमें हस्त पत्रक (पत्रक/बुकलेट्स) के माध्यम से गुटखा-तंबाकू के उपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में विस्तार से बताया जाये।
2) इस अभियान में धर्मगुरुओं, संत- महात्माओं, कथाकार, प्रवचनकार मौलवियों-पादरियों को भी शामिल करके उनका सहयोग लिया जाए।
3) स्कूल-कालेजों-विद्यालयों के 250 मी. तक की दूरी में गुटखा-तंबाकू आदि की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए।
4) बच्चों को प्रारंभ से ही तंबाकू-गुटखा से होने वाले नुकसान और बीमारियों के बारे में जानकारी दी जाए।
5) गुटखा-तंबाकू-सिगरेट कंपनियों के विज्ञापनों में उस विज्ञापन के आकार के 25% में उनसे होने वाली हानियों-बीमारियों के बारे में बताना अनिवार्य किया जाए।
6) गुटखा-तंबाकू-सिगरेट कंपनियों को गुटखा-तंबाकू उत्पादन से होने वाले मुनाफे का कुछ प्रतिशत इनके उपयोग से होने वाली बीमारियों के उपचार के लिए सुनिश्चित किया जाए और उसकी अधिमार (सरचार्ज) के रूप में वसूली सरकार को दी जाए।
7) गुटखा-तंबाकू-सिगरेट कंपनियों द्वारा प्रायोजित किए जाने वाले कार्यक्रम-आयोजन पर आंशिक प्रतिबंध लगाए जाए। इस प्रकार के उपायों द्वारा गुटखा-तंबाकू-सिगरेट के उपयोग को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
राज्य सरकार की ओर से गुटखे पर लगाए गए प्रतिबंध की सर्वत्र प्रशंसा की जा रही है। मुंबई महानगरपालिका के सभी अधिकारियों-सदस्यों, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं विशेष रूप से टाटा अस्पताल के डाक्टरों तथा अन्य विशेषज्ञों ने गुटखे पर लगे प्रतिबंध को जन स्वास्थ्य सुधार की कड़ी में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है।
फिर गुटखे पर प्रतिबंध लगते ही मन में अनेक सवाल पैदा होते हैं।
1) क्या यह प्रतिबंध स्थायी रह पाएगा ?
2) प्रतिबंध को कितनी सफलता मिलेगी?
3) क्या लोगों में गुटखा, पान-मसाला लेकर जागृति उत्पन्न होगी?
4) इस प्रतिबंध पर अमल किस तरह से किया जाएगा?

महाराष्ट्र सरकार द्वारा गुटखे पर पहले भी दो बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उक्त प्रतिबंध को हटा दिया गया था। गुटखे पर जब-जब प्रतिबंध लगाया गया, तब-तब गुटखे का व्यापार महाराष्ट्र में जोर-शोर से चल रहा था और इस बार भी जब गुटखे पर प्रतिबंध लगाया तब भी इसका कारोबार बड़ी तेजी से चल रहा था। सवाल यह पैदा होता है कि सरकार प्रतिबंध लगाने के प्रति कितनी ईमानदार है। कौन इस कानून को लागू करेगा? महानगरपालिका, नगर पंचायत और महाराष्ट्र पुलिस को यह अधिकार दिया गया है, इस सवाल के जवाब अभी मिला नहीं है? सच तो यह है कि गुटखा, पान- मसाले को केवल प्रतिबंध लगाकर स्थायी तौर पर बंद नहीं किया जा सकता, इसके लिए जनजागरण अत्यंत जरूरी है। स्कूली पाठ्यक्रम में तंबाकू से होने वाले दुष्परिणामों संबंधी अध्याय रखना जरूरी है। जब इस बारे में स्कूल में ज्ञान दिया जाएगा, तभी विद्यार्थियों के मन में गुटखे के प्रति खौफ पैदा होगा और वे गुटखे जैसे जहर से स्वयं को बचाने के लिए कभी गुटखा न खाने का संकल्प ले लेंगे।

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