कहीं कश्मीर घाटी न बन जाए ब्रम्हपुत्र घाटा

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में विगत 11 अगस्त 2012 को घटना वह विश्व की सबसे शर्मनाक घटना है। देशवासियों को शर्मसार करने वाली इस घटना तथा इस दिन हुए कुकृत्यों से प्रत्येक भारतीय को ग्लानि हुई है। भारत की स्वतंत्रता के उपरांत भारत माता इतनी अपमानित कभी नहां हुई थी, उन वीर शहीदों की आत्मा कराह रही होगी, जिन पर देशद्रोहियों ने डंडे व लातों से प्रहार किया और वह ‘अमर ज्योति’ बुझा दिया, जो अपने प्रकाश से इन ‘वीर शहीदों’ की आत्मा को अमरता प्रदान करती थी। 11 अगस्त, 2012 को म्यांमार एवं असम हुई घटना के विरोध में मुंबई के आजाद मैदान में धरना एवं प्रार्थना की अनुमति ‘‘रजा-अकादमी’’, ‘‘मदिना तुल इल्म फाउंडेशन एवं अन्य मुस्लिम संगठनों ने ली। ‘रजा अकादमी’ सुन्नी समुदाय के मुस्लिमों का संगठन है।

अकादमी मुस्लिम समुदाय के बरेलवी विचारधारा की समर्थक है, जिसकी स्थापना मुंबई में वर्ष 1978 में ‘मोहम्मद सईद नूरीं’ द्वारा की गई थी, जो अकादमी के प्रवक्ता व सचिव भी हैं, इस अकादमी के गठन का उद्देश्य ‘‘अहमद रजा खान-बरेलवी’’ द्वारा लिखित साहित्य का प्रचार-प्रसार करना है। 1988 में विवादास्पद पुस्तक ‘सैटेनिक वर्सेस’ के लेखक ‘सलमान रश्दी’ के विरोध में ‘फतवा’ जारी कर ‘रजा अकादमी’ सुर्खियों में आया, उसके बाद ‘लज्जा’ की लेखिका तस्लिमा नसरीन’ का जोरदार विरोध किया, इतना ही नहीं इस अकादमी ने भारत सरकार के नितिगत निर्णयों पर भी अपनी तीखी प्रतिक्रिया जारी करना शुरू कर दी, जब 1992 में भारत और इजराइल के मध्य राजनैतिक समझौता हुआ, उसके विरोध में ‘रजा अकादमी’ ने उसके विरोध में मोर्चा निकाला और तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ‘सुधाकर नाईक’ को इजराइल से हुए सभी समझौते तोड़ने की मांग की, उसके बाद डेनमार्क में मोहम्मद साहब’ के छपे कार्टून के विरोध में अति विशाल मोर्चा आजाद मैदान मुंबई में निकाला भिवंडी (महाराष्ट्र) पुलिस स्टेशन बनने के विरोध में जबर्दस्त आंदोलन किया, जिसमें दो पुलिस कर्मी जिंदा जला दिये गये और अब 11 अगस्त आजाद मैदान के कुकृत्यों ने एक बार फिर इसे सुर्खियों में ला दिया। रजा अकादमी ‘अहमद रजा खान बरेलवी के साहित्य के प्रचार-प्रसार के स्थान पर देश के कानून व व्यवस्था के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया है।

9 अगस्त 1942 ‘अगस्त क्रांति’ भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में मनाया जाता है, 15 अगस्त 1947 ‘स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है, अब अगस्त महिने में एक और दिवस जुड़ गया है, 11 अगस्त, 2012 जो ‘धिक्कार दिवस’ के रूप में मनाया जायेगा।

म्यांमार एक सार्वभौमिक नियंत्रित लोकतांत्रिक देश है। भारत की तरह बांग्लादेशी मुसलमान वहां भी जाकर बसने लगे और वहां के मूल निवासियों पर अत्याचार, अनाचार करने लगे तथा उनकी चल-अचल संपत्तियों पर कब्जा करने लगे तो वहाँ के मूलनिवासियों एवं बांग्लादेशियों में संघर्ष खड़ा हो गया, मुसलमान वहाँ के नागरिकों की हत्या करने लगे, युवतियों का अपहरण करके उन्हें बलात मुस्लिम बनाने लगे, वहां के मूल निवासियों पर हो रहे अत्याचार के कारण सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा, वहाँ की सेना बांग्लादेशी मुसलमानों को वापस भेजने लगी, परंतु बांग्लादेशी मुसलमान संघर्ष पर उतारू हो गये, जिसके कारण भयंकर रक्तपात हुआ। गाोपीनाथ बारदोलोई के प्रयास से असम एवं डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी के प्रयास से पश्चिम बंगाल पाकिस्तान मेंं जाने से बच गया। असम के सत्ताईस जिला में से 11 जिलों में मुस्लिमों की जनसंख्या बहुत बढ़ गयी है। कोकराझार, चिराग, बोगांव, घुबरी, शोणितपुर, उदालगुडी, बरपेटा, करीमगंज, हाईलाकडी जहां पहले बोडो, दिमासा, कार्वी, आगलोग, कछारी-खासी, दिमांसा, जैतिया, चोगलोई, हाओलाई, ये सभी ‘किरात’ हिंदु की उपजातियां हैं, जिनका वर्णन महाभारत में भी है।

असम के दर्द का ‘राष्ट्रनायक श्री अटल बिहारी वाजपेयी को अनुभूति थी, जब वे प्रधानमंत्री बने तो असम की जनता एवं बोडो जनजातियों को उनका अधिकार दिलाने तथा असम को बांग्लादेशी घुसपैठियों से मुक्त कराने का संकल्प लिया, इसलिए 2003 में उन्होंनेे ‘‘बोडो टेटोरियल डिस्टिक कौंसिल’’ की स्थापना करके, बोडो जनजाति को स्वायत्ता प्रदान की, वहां के क्षेत्रीय दल, असम गण परिषद एवं अन्य दलों से सहमति बनीं कि ‘‘1971 के बाद आये सभी बांग्लादेशियों को मतदान से वंचित
किया जाये और उन्हें वापस बांग्लादेश भेज दिया जाये।’’ इसका सर्वेक्षण चल रहा था, सोनिया कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया व चुनाव में इसे मुद्दा बनाया।

समाचार माध्यमों ने म्यांमार व असम की घटनाओं को उतना महत्व नहींं दिया, जितना उसे देना चाहिये, कुछ असामजिक संगठनों ने सोशल नेटवर्किग साईड, फेसबुक, ई-मेल, एस.एम.एस के माध्यम से बढ़ा-चढ़ा कर प्रसारित एवं प्रचारित किया, विशेष कर म्यांमार की घटना बताकर उसमें चित्र दूसरी घटनाओं की जोड़ कर प्रसारित करने लगे, जिससे लोगों की भावना आहत हुई। असम व म्यांमार की हिंसात्मक गतिविधियों के विरोध में मुंबई भारतीय जनता पार्टी ‘मानवाधिकार प्रकोष्ठ के अंतर्गत दिनांक 7 अगस्त 2012 को आजाद मैदान में ‘धरना’ का आयोजन किया, जिसमें अनेक वक्ताओं ने म्यांमार की ‘घटना’ उसका कारण वहां की राजनैतिक स्थिति तथा असम की हिंसा पूर्वोत्तर में बढ़ रही अराजकता, एवं देशद्रोही गतिविधियों पर प्रकाश डाला।

मुंबई पुलिस को गुप्तचर माध्यम से पहले आगाह किया जा रहा था कि 11 अगस्त को आजाद मैदान में ‘धरने’ के माध्यम से कोई बड़ी घटना की परिणति हो सकती है। 11 अगस्त को आजाद मैदान जब मुस्लिम मौलाओं का उत्तेजक भाषण चल रहा था, जिसके प्रभावित होकर, अतातायी मुस्लिम युवकों ने इस्लामिक नारों का उद्घोष करते हुए, दहशत का माहौल बनाया। सड़क पर खड़ी समाचार चैनलों के ओ. बी. वैन जलाने लगे व पत्रकारों को बुरी तरह पीटने लगे, पुलिस उन्हें रोकने लगी तो पुलिस को भी मारने लगे। साथ ही पुलिस की गाड़ी भी आग के हवाले कर दी। आजाद मैदान के सामने सड़क पर हाहाकार मच गया। मुंबई पुलिस ने कायरता की हद पार कर दी। अति तो तब हो गयी, जब इन अतातायियों ने राष्ट्र के गौरव पर आक्रमण कर दिया, देश के सम्मान को पैरों तले रौंद दिया। अमर शहीद जवान स्मारक का अपमान किया। अखंड ज्योति बुझा दी गई, परंतु मुंबई पुलिस किंकर्तव्यविमूड़ देखती रही, आतंक मचाने वाले किसी आतंकवादी को घटना स्थल से गिरफ्तार नहीं किया। अताताइयों के आकाओं ने यह सोचा था कि इसके प्रतिक्रिया स्वरूप मुंबई में दंगा फैल जायेगा, परंतु हुआ कुछ भी नहीं, क्योंकि पुलिस एवं मीडियाकर्मियों से जनता को कोई सहानुभूति नहीं है, परंतु आश्चर्य तब हुआ, जब अमर जवान स्मारक का अपमान किया गया, वाबजूद इसके किसी को आक्रोश नहीं हुआ, ये सब कुछ जनता मेंं देशभक्ति के अभाव के कारण हुआ।

मुंबई के बाद यह आतंक पूरे भारत में विस्तारित करने की योजना थी, कुछ स्थानों पर यह आग के सुलग कर रह गयी, लेकिन कुछ शहरों में धधक कर जल उठी। इसमें उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ तथा साहित्यिक नगरी इलाहाबाद प्रमुख रहे। 17 अगस्त की अलबिदा नमाज के बाद पुराने लखनऊ चौक में टीले वाली मस्जिद और आसफी इमामबाड़े से नमाजी बाहर आये, तो कुछ युवकों ने नारेबाजी शुरू कर दी, देखते ही देखते बड़ी संख्या में एकत्रित हो गये, वे तलवारें, भाले फरसे लाठियाँ लेकर आए थे, यहां से लगभग पांच हजार से अधिक युवकों ने भड़काऊ नारे लगाते हुए विधानसभा की ओर कूच किया।
इलाहाबाद में भी अलविदा की नमाज के बाद ‘करैली’ में कुछ मुस्लिमो ने असम व म्यांमार के हिंसा के विरोध में प्रदर्शन किये, चौक कोतवाली, जोनसनगंज, लीडर रोड और खुल्दाबाद, इलाके में तोड़फोड़ किया। इन अतातायी को पुलिस रोकना चाही तो, ये पुलिस को मार-मार कर लहू लुहान कर दिया। अनेक पुलिस वाले घायल हो गये, इलाहाबाद प्रशासन ने चौक कोतवाली और शाहगंज में कर्फ्यू लगा दिया।

पूर्व पुलिस महानिर्देशक, आई, सी. द्विवेदी के अनुसार ‘‘इस समय उत्तर प्रदेश पुलिस भ्रमित है एक तरफ कानून है तो दूसरी तरफ सरकार के राजनैतिक हित, पुलिस को समझ में नहीं आ रहा कि वह कानून व सरकार के राजनैतिक हितों को एक साथ कैसे समन्वय करे, यह स्थिति तब तक रहेगी, जब तक पुलिस और प्रशासन में राजनैतिक हस्तक्षेप बंद नही होता’’।
इन्टरनेंट पर निगरानी, और साइबर युद्ध में पांच गुप्तचर संस्थाएं पुर्णत रूप से विफल रही है। 14 अगस्त को भेजा गया एक एस. एम. एस. जंगल में आग की तरह फैल गया, इसमें चेतावनी दी गई थी, कि 20 अगस्त को ईद के उपरांत, पूर्वोत्तर के गैर-मुसलमानों पर हमले किये जायेंगे, विशेषकर असमियां हिन्दुओं पर, यह अफवाह असम में तेज हवा की गति से फैली, असम के जो लोग बाहर रहते थे, उनके घर से धड़ाधड़ फोन आने लगे कि ‘‘जैसे हो जहां हो तुरंत असम की ट्रेन पकड़कर वापस आ जाओ, नहीं तो मुसलमान मार डालेंगें, मां तो अपने बेटों से बात करते-करते रोने लगती थीं, ‘बेटा जान बचाकर भाग आओ’ जान है तो जहान है’ इसके बाद जिस शहर में असमिया हिन्दू रहते थे, सभी स्टेशन की तरफ भागे, अफरा-तफरी मच गयी, स्टेशन भर गये, गाड़ियों में जगह नहीं थी, रेल्वे प्रशासन को असम के लिए विशेष ट्रेनें चलानी पड़ां। 15 व 16 अगस्त की बंगलूरू में रहने वाली पूर्वोत्तर के 2,00,000 जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत असम की ओर पलायन कर गया, पुणे में असम के छात्र-‘धोतरिन हुगों, थागरवापोसिगसोन, रोकोजेटिव लुट को मुस्लिम युवकों ने मार-माार कर घायल कर दिया एवं धमकाया । मुंबई, नई मुंबई,गोवा, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद, लखनऊ, कानपुर, चेन्नई, त्रिवेन्द्रम आदि शहरों से लाखों की संख्या में पूर्वोत्तर के हिन्दू शहर छोड़ कर असम की ओर प्रस्थान किया।

मुंबई में अगर जवान स्तम्भ तोड़ने शहीदों का अपमान व अखंड ज्योति बुझाने से जनता आक्रोशित है। इससे राजनैतिक पार्टियों ने जो शांति मार्च किया, उसमें मुख्य मुद्दा अमर जवान शहीद स्मारक एवं अखंड ज्योति ही थी। सर्वप्रथम 18 अगस्त, 2012 को मुंबई भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष, राज पुरोहित के नेतृत्व में हजारों की संख्या मे मेट्रो सिनेमा से अमर जवान शहीद स्मारक तक शांति मार्च किया। इस शांति यात्रा संपूर्ण संघ परिवार समाहित था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारती विद्यार्थी परिषद बजरंग दल, दुर्गावाहिनी , भारतीय जनता टी. वी. एंड सिने कामगार संघ के कार्यकर्ता उपस्थित थे। इसमें वक्ताओं ने ‘‘भारत माता की अस्मिता, देश की अंखडता, एवं शहीदों के कार्यो एवं उनके बलिदान की गौरव गाथा का बखान किया’ विशेषकर श्रीमती कांताताई नलावडे, विधायक मंगत प्रभात लोढा, विधायक गोपाल शेट्टी मुंबई महिला मोर्चा अध्यक्षा श्रीमती वृंदा कीर्तिकर, मुंबई भाजपा उपाध्यक्ष श्री आर. यू. सिंह का वक्तव्य ज्ञानवर्धक था। शांति यात्रा इतनी विशाल थी कि मैट्रो सिनेमा से शहीद स्मारक तक जन सैलाब ही नजर आ रहा था। ‘‘अमर जवान स्मारक’’ पहुंचकर, मुंबई भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों ने श्रद्धा-सुमन अर्पित किये और शपथ ली कि ‘‘भारत माता के स्वाभिमान एवं शहीदों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए वे सदैव तत्पर रहेंगे।

20 अगस्त, 2012 भारतीय जनता पार्टी से प्रेरणा लेकर शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में विशाल शांति मोर्चा निकला एवं अमर जवान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित किये। 21 अगस्त 2012 को अति विशाल ऐतिहासिक रैली 11 अगस्त आजाद मैदान की घटना के विरोध में, गिरगांव चौपटी से शहीद स्मारक तक ‘महाराष्ट्र नव निर्माण सेना’ के अध्यक्ष राज ठाकरे के नेतृत्व में निकाली, जिसमें समूचे महाराष्ट्र के मनसे कार्यकर्ता लाखों की संख्या में उपस्थित थे। राज ठाकरे अपनी शैली में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, जिसमें राज ठाकरे का मुख्य लक्ष्य, बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये थे, परन्तु उनका कहना था कि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये उत्तर प्रदेश व बिहार से आते हैं, कितना हास्यप्रद लगता है, उन्होंने एक बांग्लादेशी का पासपोर्ट भी दिखाया, जो आजाद मैदान के बाहर सड़क पर 11 अगस्त को मिला था, उन्होंने प्रमाणित करने का प्रयास किया कि 11 अगस्त घटना में मुख्य हाथ बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का ही है।

राज ठाकरे ने बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को वापस बांग्लादेश

भेजने की मांग की, जबकि उनकी पार्टी में अनेक कार्यकर्ता एवं कई पदाधिकारी बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये हैं। इस बात के बारे जब राज ठाकरे को जानकारी मिली तो उन्होंने अपना बयान बदल दिया, अब वे बिहारियोें पर यह आरोप लगा रहें हैै कि बिहार के लोग घुसपैठिये हैं।

जिस प्रकार ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ नेें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बनाया, उसी प्रकार सोनिया कांग्रेस असम के कुछ भाग को बांग्लादेशी अधिकृत असम बना देगी, जिस प्रकार कश्मीर की घाटी से हिन्दुओं को  मारकर भगा दिया और हिन्दू विहीन कश्मीर घाटी बना दी, उसी प्रकार असम के ब्रह्मपुत्र घाटी से हिन्दुओं को मारकर, हिन्दू विहिन ब्रह्मपुत्र घाटी बनाने की योजना है।

मिजोरम तो पूर्ण रूप से ईसाई प्रदेश बन गया है। नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय भी ईसाई बहुल राज्य बनते जा रहे हैं। असम के हिन्दुओं पर इस्लामिक एवं ईसाई शक्तियां प्रहार कर उन्हें अस्तित्व विहीन करना चाहती हैं।

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