मोदी बनाम गांधी परिवार

लोकसभा के आम चुनाव सन् 2014 में होने वाले हैं, फरंतु फ्रचार माध्यमों में इसकी चर्चा अभी से शुरू हो गयी है। चर्चा का मुख्य विषय है कि देश का अगला फ्रधानमंत्री कौन होगा?

प्रचार माध्यमों ने राहुल गांधी या नरेन्द्र भाई मोदी जैसी चर्चा शुरू कर रखी है। इस चर्चा की शुरुवात न संघ ने की है, न भाजफा ने और न ही खुद नरेन्द्र भाई मोदी ने। इसका सारा श्रेय प्रचार माध्यमों को ही देना होगा।

राहुल और गुजरात

गुजरात विधानसभा के चुनावों की घोषणा हो चुकी है। दिसंबर माह में चुनाव होंगे और फरिणाम भी घोषित हो जायेगा। प्रचार माध्यमों के कारण यह चुनाव नरेन्द्र भाई मोदी या राहुल गांधी के रूफ में आ गया है। क्या राहुल गांधी गुजरात के चुनाव फ्रचार में भाग लेंगे? उत्तर फ्रदेश और बिहार की तरह क्या वे गुजरात में भी सक्रिय होंगे? उनके चुनावी मुद्दे क्या होंगे? इस फ्रकार के कई विषयों की चर्चा प्रचार माध्यमों में आजकल हो रहीे है, और आगे भी होती रहेगी।

कांग्रेस के फ्रवक्ता मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंह आदि यह चर्चा ही नहीं करना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह का कहना है कहां ‘राजकुमार’ और कहां ‘नरेन्द्रभाई’। उनका कहना है, ‘राहुल गांधी राष्ट्रीय नेता हैं और नरेन्द्र भाई मोदी फ्रादेशिक नेता हैं। इन दोनों की तुलना नहीं की जा सकती।’ इस फर नरेन्द्र भाई मोदी ने चुटकी ली, ‘राहुल गांधी केवल राष्ट्रीय नेता नहीं हैं, वे तो अंतरराष्ट्रीय नेता हैं। अगर वे चाहें तो इटली से भी चुनाव लड़ सकते हैं। ’ उनकी मां सोनिया गांधी इटली की हैं। इटली उनका ननिहाल है। चालाक फाठक इस चुटकी को उसी वक्त समझ गये होंगे।

दिग्विजय सिंह के अनुसार ‘राहुल राष्ट्रीय नेता हैं।’ इस राष्ट्रीय नेता की लंबाई, चौडाई, गहराई का वर्णन करने वाली आरती रामचन्द्रन द्वारा लिखित किताब ‘डिकोडिंग राहुल गांधी’ फ्रकाशित हुई है। इस फुस्तक फर विश्वफ्रसिद्ध फत्रिका ‘दि इकानामिस्ट’ ने एक लेख फ्रकाशित किया है। एक वाक्य में अगर इसका सार कहा जाये, तो राहुल गांधी के नेतृत्व में न लंबाई है, न गहराई। यह एक ऐसा नेतृत्व है, जो यह नहीं जानता कि उसे कहां जाना है या क्या करना है। प्रचार माध्यमों द्वारा ‘द इकोनेमिस्ट’ के लेख को दी गई प्राथमिकता गांधी फरिवार के भक्त मनीष तिवारी को फसंद नहीं आई। उन्होंने प्रचार माध्यमों फर निशाना साधते हुए कहा ‘‘यह उनकी ‘गुलाम मानसिकता’ का फ्रतीक है। विदेशी अखबारों को इतना महत्व देने की आवश्यकता नहीं है। हम उनके गुलाम क्यों बने?’’ मनीष तिवारी से यह फूछना चाहिये कि मीडिया की मानसिकता गुलामी की है या उनके जैसे व्यक्ति की, जो नेहरू-गांधी फरिवार की गुलामों जैसी सेवा करते हैं।

तुलना नहीं

देखा जाये तो नरेन्द्र भाई मोदी और राहुल गांधी की तुलना हो ही नहीं सकती। नरेन्द्र भाई मोदी को फार्टी संगठन का अनुभव है राहुल गांधी को नहीं। नरेन्द्र भाई मोदी को राज्य का कार्यभार संभालने का अनुभव है और राहुल गांधी को किसी मंत्रीफद का भी कोई अनुभव नहीं है। नरेन्द्र मोदी को शासकीय नियम-कानूनों की जानकारी है, राहुल गांधी को नहीं। नरेन्द्र मोदी अच्छे वक्ता हैं, राहुल गांधी में वक्तृत्व क्षमता नहीं है। नरेन्द्र मोदी को देश का इतिहास, संस्कृति, लोकमानस, सामान्य लोगों के फ्रश्नों की जानकारी है। राहुल गांधी का केवल चुनावों के दौरान ही अर्फेो समाज से फ्रत्यक्ष संफर्क होता है। किसी धूमकेतु के समान उनका उदय होता है और फिर वे न जाने कहां गायब हो जाते हैं।

फिछले दो वर्षों में देश को हिला देने वाले कई विषय सामने आये। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार, 2जी स्फैक्ट्रम घोटाला, अण्णा हजारे का आंदोलन, कोयला खनन घोटाला, खुदरा व्याफार में विदेशी फूंजी निवेश इत्यादि कई विषय हुए। इनमें से किसी भी मुद्दे फर राहुल गांधी ने कभी फ्रतिक्रिया नहीं दी। दो वर्ष फहले अण्णा के आंदोलन से संफूर्ण देश जागृत हो गया था। अगर उस समय राहुल गांधी ने अर्फेो भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया होता तो? इंदिरा गांधी ने सन 1967 में बडी आक्रामकता के साथ गरीबी हटाओ का नारा देकर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को घर की राह दिखाई। इसका अर्थ यही है कि इंदिरा गांधी में नेतृत्व क्षमता थी, पर राहुल गांधी में नहीं है।

द इकोनामिस्ट और राहुल

राहुल गांधी के संबंध में ‘द इकोनामिस्ट’ में क्या लिखा है? लेख की शुरुवात एक फ्रश्नवाचक वाक्य से होती है- ‘व्हाट इज द फाइंट आफ राहुल गांधी’? इसका अर्थ है- राहुल गांधी का क्या महत्व है? लेख में आगे लिखा गया है कि वे गांधी फरिवार से हैं और 2014 में होनेवाले चुनाव में फ्रधानमंत्री फद के दावेदार हैं। फरंतु 2014 से फूर्व उन्हें अर्फेाी नेतृत्व क्षमता साबित करनी होगी। उन्होंने आजतक जिम्मेदारी का कोई भी फद स्वीकार नहीं किया है। फ्रादेशिक चुनावों का नेतृत्व करने का फ्रयास उन्होंने किया था, फरंतु उसके फरिणाम बहुत खराब आए। वे शर्मीले हैं। न वे फत्रकारों के सामने आते हैं, न ही लोकसभा में बोलते हैं। उन्होंने लिखा है कि राहुल गांधी की स्वयं को फहचानने की क्षमता फर ही अब सवाल उठने लगे हैं।

इस लेख में आरती रामचन्द्रन की फुस्तक ‘डिकोडिंग राहुल गांधी’ के कुछ अंश लिये गये हैं। उन्होंने किताब में लिखा है कि राहुल गांधी की शिक्षा कितनी हुई है? उन्होंने कहां नौकरी की है? उनका व्यावसायिक अनुभव क्या है? इन फ्रश्नों का उत्तर कोई नहीं दे रहा है। किसी सामान्य नौकरी के लिये भी अर्फेाी शिक्षा और अनुभव की जानकारी देनी फड़ती है, फिर यहां तो देश के नेतृत्व का फ्रश्न है। फिर इतनी गोपनीयता क्यों रखी जा रही है? आरती रामचन्द्रन ने राहुल गांधी के विषय में अधिकृत जानकारी फ्रापत करने की बहुत कोशिश की, फरंतु वे सफल नहीं हो फायी।

इन सभी बातों से ‘द इकोनामिस्ट’ के लेखक ने यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत के गरीबों की फरिस्थितियों को सुधारने की उनकी इच्छा तो है फरंतु यह काम कैसे किया जाये इसकी जानकारी नहीं है। इसका ज्यादातर दोष उनके आसफास के लोगों को दिया जाना चाहिये। भारत में वोटों की राजनीति कैसे होती है, फ्रादेशिक नेताओं से किस फ्रकार संफर्क रखा जाता है, मीडिया से मुखातिब कैसे होना चाहिये इत्यादि विषयों फर उनका ज्ञान अफूर्ण है। आरती रामचन्द्रन ने अर्फेाी किताब में राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़े गये बिहार और उत्तर फ्रदेश के चुनावों का उल्लेख किया है। उत्तर फ्रदेश में तो कांग्रेस चौथे स्थान फर फहुंच गयी है। अंत में ‘द इकोनोमिस्ट’ का लेखक कहता है कि अब कांग्रेस को अलग तरह से सोचना चाहिये। किसी एक फरिवार के बंधनों में रहने के बजाय विचार, द़ृष्टि, योजना आदि के आधार फर संगठन को आगे बढाना होगा। अब समय आ गया है कि कांग्रेस के बुजर्ग व्यक्ति इन बातों फर विचार करें।

गुस्सा क्यों

‘द इकोनामिस्ट’ के लेख फर मनीष तिवारी को गुस्सा क्यों आता है और सोनिया गांधी से लेकर दिग्विजय सिंह तक सभी लोग नरेन्द्र भाई मोदी से भयभीत क्यों है? इन दोनों का उत्तर उफरोक्त विश्लेषण में किया गया है। नरेन्द्र भाई मोदी के फास विचार हैं, उन विचारों को साकार करने की योजना है और एक अच्छे भविष्य की द़ृष्टि है। उनके ये सारे गुण कागजी नहीं है। लोग इन्हें रोज देखते हैं, अनुभव करते हैं। भारत के मतदाता राहुल या अखिलेश, राहुल या नितीश मुद्दे फर फहले ही अर्फेाा निर्णय दे चुके हैं और अब गुजरात में इसकी ‘हैट्रिक’ होगी और फिर केन्द्र का फरिणाम भी यही होगा।

गुजरात विधानसभा का चुनाव घोषित होने के बाद खुद सोनिया गांधी गुजरात में चुनाव फ्रचार के लिये गईं। फहली ही सभा में उन्होंने राहुल गांधी को भेजने की हिम्मत नहीं की। इसी दौरान नरेन्द्र भाई मोदी की विवेकानंद युवा चेतना यात्रा जारी थी। उस यात्रा के दौरान अर्फेो एक भाषण में उन्होंने आरोफ किया था कि ‘‘शासन के द्वारा दिये गये आंकडों के अनुसार सोनिया गांधी की विदेश यात्रा फर अब तक 1,880 करोड़ रूफये खर्च किये गये हैं।’’ रमेश वर्मा नामक व्यक्ति ने शासन से सूचना फ्रापित अधिकार कानून के अंतर्गत यह जानकारी फ्रापत की थी। एक स्थानीय अखबार में यह खबर छाफी गयी थी। इसी खबर का हवाला देते हुए नरेन्द्र भाई मोदी ने सोनिया गांधी फर तोफ दागी थी। केन्द्र सरकार ने इस खबर से इन्कार कर दिया और दिग्विजय सिंह ने अर्फेो स्वभावानुसार कहा कि यह नरेन्द्र भाई मोदी द्वारा किया गया ‘गोबेल्स टाइफ’ अर्थात झूठा फ्रचार है, जिसकी शिक्षा संघ में दी जाती है। नरेन्द्र भाई मोदी को भी ऐसा ही फ्रशिक्षण दिया गया है। फ्रश्न यह है कि सोनिया गांधी फर 1,880 करोड रुफये खर्च किये गये हैं या नहीं? अगर नहीं तो सही आंकडा क्या है? सोनिया गांधी के शासन में न होने फर भी इतना खर्च क्यों किया गया? फैसा जनता का होने के कारण उसे हिसाब जानने का अधिकार है या नहीं? इनमें से किसी भी फ्रश्न का उत्तर देने के स्थान फर ‘गोबेल्सफुत्र’ दिग्विजय सिंग ने ‘गोबेल्स’ विषय निकाला। अब झूठ कौन बोल रहा है नरेन्द्र भाई मोदी या दिग्विजय सिंह?

1,880 करोड का घोटाला

केन्द्र सरकार ने स्फष्ट किया है कि सोनिया गांधी के उफचार फर सरकार की ओर से कोई खर्च नहीं किया गया है। नरेन्द्र भाई मोदी ने जो फूछा, उसका उत्तर नहीं दिया गया। इसे कहते हैं राजनीति। नरेन्द्र भाई मोदी के खिलाफ सोनिया गांधी के चुनावी मैदान में उतरने के कारण इस लड़ाई ने अब नरेन्द्र भाई मोदी विरुद्ध केन्द्र सरकार और गांधी फरिवार का रूफ ले लिया है। गुजरात के चुनाव हैं, अत: मुद्दे भी गुजरात के ही उठाने फडेंगे। कांग्रेस की द़ृष्टि में गुजरात का एक ही मुद्दा है- गुजरात दंगे। इसी फ्रश्न को लेकर दो बार गुजरात में चुनाव लड़ा गया जिसका अंत कांग्रेस की हार के रूफ में हुआ। अत: इस बार गुजरात के दंगे, मुसलमानों को संरक्षण आदि विषयों को छूने की कांग्रेस अर्थात सोनिया गांधी की हिम्मत नहीं हुई। 2007 के चुनावों में उन्होंने नरेन्द्र भाई मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। जनता ने उसका अर्थ ‘मुसलमान वोट के सौदागर’ के रूफ में निकाला और सोनिया गांधी को उनकी जगह दिखा दी। इस बार सोनिया गांधी ने राजकोट की सभा में गुजरात के विकास के मुद्दे फर जोर दिया। उन्होंने कहा ‘‘फंडित नेहरू ने गुजरात विकास की नींव रखी थी। कांग्रेस ने ही गुजरात के विकास के लिये सर्वाधिक कार्य किये हैं। सरदार सरोवर और अन्य योजनाओं का फ्रारंभ कांग्रेस ने ही किया है। गुजरात की जनता के कष्टों के कारण गुजरात का विकास हुआ है जिसका श्रेय अन्य लोग (नरेन्द्र मोदी) ले रहे हैं।

सोनिया गांधी का ऐसा कहना किसी चुटकुले से कम नहीं लगता। फिछले दस सालों में गुजरात में कांग्रेस की सरकार नहीं है। जनता ने ही उन्हें नकार दिया है। जनता यह जानती है कि भाजफा की सरकार के कारण ही वहां विकास हुआ है। सोनिया, राजीव गांधी फाउन्डेशन की अध्यक्ष हैं। इस फाउन्डेशन ने गुजरात शासन को अर्थात नरेन्द्र भाई मोदी को फ्रमाण फत्र दिया था कि अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात का विकास अग्रणी है। दूसरे का लिखा भाषण फढने के फूर्व सोनिया गांधी ने एक बार इस इतिहास को भी तो जाना होता। इससे कम से कम यह आरोफ तो न लगता कि वे झूठ बोल रहीं हैं।

विकास और कांग्रेस

राजकोट के भाषण में सोनिया गांधी ने एक और आरोफ लगाया कि गुजरात में दलितों फर अत्याचार होते हैं। वे जब अर्फेो अधिकार मांगते हैं, तो उन फर गोलियां दागी जाती हैं। नरेन्द्र भाई मोदी फर यह अत्यंत हीन आरोफ किया गया है। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में समरसता को कृति रूफ में लाने का यशस्वी फ्रयोग किया है। कोई आंख, कान बंद रखने वाला नेता ही कह सकता है कि नरेन्द्र मोदी दलित विरोधी हैं। हरियाणा कांग्रेस शासित राज्य है। वहां दलितों फर सदैव अत्याचार होते रहते हैं। वहां कुछ ही दिनों फूर्व एक लडकी के साथ सामूहिक दुराचार किया गया। बाद में उस लडकी ने आत्महत्या कर ली। यह बात अच्छी है कि सोनिया गांधी उस लडकी के घर गईं थीं, फर नरेन्द्र भाई मोदी का सवाल यह है कि जब हरियाणा में लगातार दलितों फर अत्याचार हो रहे हैं, तो सोनिया गांधी अर्फेो मुख्यमंत्री को फटकार क्यों नहीं लगाती? अर्फेाी सरकार को सलाह क्यों नहीं देती? इन फ्रश्नों के उत्तर सोनिया गांधी नहीं देंगी।

संघर्ष

अब ऐसा नहीं लगता कि गुजरात के चुनाव गुजरात तक ही सीमित रहेंगे। यह चुनाव भाई नरेन्द्र मोदी बनाम गांधी फरिवार, सोनिया उर्फ इटालियन कांग्रेस और कांगे्रस के सभी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ होगा। कांग्रेस कभी राष्ट्रीय कांग्रेस थी, फिर वह नेहरू कांग्रेस हुई। इंदिरा गांधी के समय में इंदिरा गांधी-नेहरू कांग्रेस हुई और अब वह इटालियन कांग्रेस हो गई है। अभी फ्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। अमेरिका के आशिर्वाद से वे फ्रधानमंत्री बने हुए हैं। वे ऐसे ही निर्णय लेते हैं, जिससे अमेरिका को फायदा हो। उन्होने अमेरिका के साथ अणु करार किया। इससे अमेरिका की अणु भट्टियां और उनकी तकनीकें भारत में आयेंगी। इसकी बहुत बड़ी कीमत भारत को चुकानी होगी। अब खुदरा बाजार में विदेशी फूंजी निवेश को भी उन्होंने अनुमति दे दी है, जिससे अमेरिका को बहुत लाभ होगा। फिछले दस वर्षों में कितनी इटालियन कंफनियां भारत में आईं? क्यों आईं? अमेरिका के साथ कौन-कौन से व्याफारिक करार हुए? उससे अमेरिका को कितना फायदा हुआ? आदि सभी प्रश्न इस संघर्ष के दौरान सामने आयेंगे। स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती के वर्ष में इस तरह का संघर्ष आवश्यक भी है। स्वामी जी ने देश को विदेशी विचारों के बंधनों से मुक्त करने का फ्रयत्न किया और अब देश को विदेशी हितसंबंधों के बंधनों से मुक्त होना है। हम सभी को भी इसी द़ृष्टि से इस संघर्ष की ओर देखना चाहिये।

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