हिंदुत्व किसी की बपौती नहीं – मोहनजी भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने भाषण में केंद्र की मोदी सरकार की की नीतियों की सराहना की और कहा कि चीन को भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया है जबकि इससे पहले ऐसा संभव नहीं होता था। चीन हर बार भारत को आंख दिखा जमीन हड़प लेता था और भारत की पूर्ववर्ती सरकारें अपना कदम पीछे कर लेती थी। मोहन जी भागवत ने कहा कि भारत ने सीमा पर जिस तरह से चीन को जवाब दिया वह काबिलेतारीफ है और देश की जनता सरकार के फैसले का सम्मान करती है। भारत ने ना सिर्फ सीमा पर बल्कि आर्थिक रुप से भी चीन को बड़ी चोट पहुंचायी है जिससे चीन को बड़ा आर्थिक झटका लगा है।

संघ प्रमुख मोहन जी भागवत ने कहा कि चीन बहुत पहले से पड़ोसी देशों की जमीन हड़प रहा है और वह अपने अभिमान में खुद को सबसे ज्यादा शक्तिशाली समझता है लेकिन इस बार भारत ने जो जवाब दिया उससे चीन पूरी तरह से सहम चुका है। चीन को ऐसी उम्मीद शायद नहीं रही होगी कि भारत की तरफ से ऐसा जवाब मिलने वाला है। मोहन जी भागवत ने भारत सरकार को आगाह करते हुए हमें तैयार रहना चाहिए क्योंकि चीन कभी भी जवाबी तौर पर हमला कर सकता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हमें स्वदेशी सामानों का ही उपयोग करना चाहिए इससे ना सिर्फ हमारा देश समृद्ध होगा बल्कि दुश्मन भी कमजोर होंगे।

मोहन जी भागवत ने अपने भाषण में हिंदुत्व को लेकर भी भाषण दिया और कुछ लोग हिंदुत्व को लेकर गलत धारणा फैला रहे है और हिंदुत्व को सिर्फ पूजा से जोड़ कर देख रहे है। हिंदुत्व शब्द देश की पहचान है। हिंदू केवल किसी पंथ या संप्रदाय तक ही सीमित नही है किसी एक प्रांत द्वारा उपजाया हुआ शब्द नहीं है। यह किसी एक जाति की बपौती नहीं है या फिर किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है। मोहनजी भागवत ने सभी से अपील करते हुए कहा कि सभी लोग परिवार के साथ समय जरुर बिताए और सप्ताह में एक दिन साथ में घर में भोजन करें। इसके साथ ही पर्यावरण को लेकर भी सभी को जागरुक किया और कहा कि सभी को वृक्षारोपण करना चाहिए जहां तक संभव हो घर के आस पास में सब्जी भी उगाएं।

जब हम कहते है कि हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है इसका मतलब यह नहीं है कि यहां सिर्फ हिंदू ही रहेंगे या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण है। हिंदू राष्ट्र कहने का अर्थ यह है कि यहां सभी लोग रहेंगे। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू शब्द की भावना की परिधि में आने व रहने के लिए किसी को भी अपनी पूजा, भाषा व प्रांत को छोड़ने की जरुरत नहीं होगी बल्कि मन से खुद का वर्चस्व ही हो ऐसी भावना को निकालना पड़ता है। इसके साथ ही स्वंय के मन से अलगाववाद की भावना को निकालना पड़ता है।

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