गंगा फिर पवित्र होगी ?

जब भी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की बात होती है, स्वाभाविक रूप से हमारे सामने गंगा नदी का चित्र उभरता
है। गंगा भारतीय जनमानस की पीढ़ियों से चली आ रही श्रद्धा है। हमारी भारतीय संस्कृति के कुछ प्रतीक, कुछ श्रद्धास्थान सदियों बाद भी वैसे के वैसे ही हैं। इसका सर्वोत्तम उदाहरण है गंगा। भगवान शंकर की जटाओं से उत्पन्न होने की मान्यता के कारण गंगा को पवित्र माना जाता है। युगों-युगों से लोग गंगा को मातृरूप में पूजते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला भारतीय समाज गंगा में स्नान करना अपने जीवन का लक्ष्य मानता हैं। जीवन चाहे जितना भी आधुनिक क्यों न बन जाए, परंतु गंगा की पवित्रता के मापदंडों में जरा भी परिवर्तन नहीं आया है। आज भी हर व्यक्ति के मन में गंगा का अलग स्थान है। व्यक्ति आस्तिक हो या नास्तिक गंगा का नाम सुनते ही उसके मन में अनेक लहरें उत्पन्न होती हैं। हमारी भारतीय परंपरा में गंगा का स्थान इतना अटल है कि केवल धार्मिक संदर्भों में ही नहीं बल्कि दैनंदिन दिनचर्या में भी उसका उल्लेख दिखाई देता है। अब लोग भले आधुनिक हो गए हों, परंतु गंगा के प्रति उनका आकर्षण कम नहीं हुआ है। गंगा केवल नदी नहीं वरन भारतीयों का जीवनदर्शन है। इसीलिए जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले विविध संस्कारों में गंगा का महत्व है।
जब-जब गंगा नदी का वर्णन किया जाता है तब-तब वह कितनी प्राचीन है, कितनी पवित्र है, किन-किन वेदों में गंगा का वर्णन आया है इत्यादि बातें बताने की जैसे परंपरा ही बन गई है। ये सब भले ही सही हो परंतु इन बातों से यह सत्यनहीं बदल जाता कि आज गंगा दुनिया की दस प्रदूषित नदियों में से एक है। भारत एक विकासशील देश तो है, साथ ही वह प्रदूषित शहरों का भी देश है। जहां जनसंख्या अधिक, जहां कारखाने अधिक, वहां प्रदूषण अधिक। गंगा की निर्मलता उसके प्रवाह के कारण है। युगों-युगों से बह रही गंगा को व्यावसायिक लाभ के लिए रोका जा रहा है। उसके प्रवाह में रासायनिक कचरे से लेकर मानवीय शवों तक को बहाया जा रहा है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला और अनुसंधान केन्द्रों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार गंगा पर बनाए गए छोटे और बड़े बांधों की शृंखला के कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो गया है। गंगा के प्रवाह में बहाए जाने वाले जहरीले प्रदूषणकारी घटकों के कारण नदी के पानी की गुणवत्ता खराब हो गई है। अत्यधिक कचरा, गंदा पानी, मलमूत्र विसर्जन और सैकडों औद्योगिक कारखानों से बिना किसी चिंता के छोड़े जाने वाले जहरीले और प्रदूषित घटकों के कारण पुरातन काल से पवित्र माने जाने वाली गंगा किसी गंदे नाले के समान हो गई है। यह सब कुछ गंगा नदी के नैसर्गिक रूप को बिगाड़ने का प्रयास है, साथ ही जनभावना और श्रद्धा के साथ किया जानेवाला खिलवाड़ भी है।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधान मंत्री बनने के पूर्व ही बता दिया था कि गंगा हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है। उन्होंने प्रधान मंत्री पद की शपथ लेने के पूर्व ही अपने सार्वजनिक जीवन का शुभारंभ गंगा आरती से किया था। वाराणसी के घाट पर जब नरेन्द्र मोदी गंगा माता की आरती कर रहे थे तब देशभर के प्रत्येक घर में टीवी के सामने बैठा हर श्रद्धावान व्यक्ति हाथ जोड़ कर उस आरती में सहभागी हो रहा था। इस प्रकार से अपने कार्य का प्रारंभ करने वाले और उस कार्य में देश की जनता को भी सहभागी करने वाले नरेन्द्र मोदी पहले प्रधान मंत्री हैं। नरेन्द्र मोदी ने पहले ही बजट में ‘नमामि गंगा’ नामक गंगा शुद्धिकरण की योजना की घोषणा की। देश का प्रधान मंत्री पद सम्भालने वाले नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता में गंगा परिवर्तन की आस जगाई है तथा गंगा के पुनरुज्जीवन व स्वच्छता को प्रधानता देने का विश्वास भी दिलाया है। उमा भारती, प्रकाश जावडेकर, नितिन गडकरी जैसे कार्यतत्पर नेताओं पर गंगा शुद्धिकरण की जिम्मेदारी सौंपी गई है। गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा के २५००किमी विस्तारित क्षेत्र का विकास, गंगा को प्रदूषणमुक्त करना, गंगा के निरंतर प्रवाह को बनाए रखना, इससे कुछ आय प्राप्त करने के लिए जल यातायात शुरू करना, बनारस जैसे शहरों को ‘पूर्व का वेनिस’ बनाने जैसी कई घोषणाएं की जा चुकी हैं। वाराणासी निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन भरते समय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था ‘न तो मैं यहां आया हूं, न ही मुझे किसी ने भेजा है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है।’ इस प्रकार अपने कार्य का शुभारंभ करने वाली मोदी सरकार के सामने ‘गंगा शुद्धिकरण’ की बड़ी चुनौती है। नरेन्द्र मोदी ने साबरमती नदी के शुद्धिकरण की योजना को उत्तम रीति से क्रियान्वित कर दिखाया है। अब लोगों को यह उत्सुकता है कि मोदी गंगा स्वच्छता अभियान की नाव किस तरह पार लगाते हैं।

देश को यह विश्वास है कि गंगा स्वच्छ हो जाएगी, परंतु भविष्य में वह फिर से प्रदूषित न हो इसका ध्यान रखना भी आवश्यक है। औद्योगिक प्रदूषण के साथ ही धार्मिक कर्मकाण्डों के कारण भी अगर प्रदूषण बढ़ रहा है तो उन्हें रोकने का साहस दिखाना होगा। सबसे पहले हमारे समाज को इस प्रकार के परिवर्तनों को स्वीकार करने के लिए शिक्षित करने की आवश्यकता है। एक ओर हम विलुप्त सरस्वती को खोजने के लिए प्रयासरत हैं और दूसरी ओर हम गंगा के अस्तित्व को मिटाने में लगे हुए हैं। भारतीय संस्कृति की प्राणरेखा गंगोत्री के गोमुख से निकल कर गंगासागर तक अविरत बहती रहे इस हेतु हमें भी प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करने का संकल्प लेना होगा। गंगा का प्रवाह तभी निर्मल रह सकेगा जब हम औद्योगिक, धार्मिक कर्मकाण्डों से निर्मित और अन्य तरह के कचरे से होने वाले प्रदूषण से उसकी रक्षा करेंगे। उदात्त और अमूल्य परंपरा का निर्मल प्रवाह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोना तभी सम्भव हो सकेगा। मोदी सरकार गंगा स्वच्छता की महत्वाकांक्षी योजना को लागू कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी ‘गंगा स्वच्छता अभियान’ को गति प्रदान करने के निर्देश दिए हैं। तो क्या अब गंगा को उसका प्राचीन वैभव पुन: प्राप्त होगा? क्या भारतवासियों को गंगा की पवित्रता का अनुभव फिर से होगा? इन सारे प्रश्नों के जवाब आने वाला समय ही दे सकता है।

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