भारत-चीन सम्बंधों की तनातनी

चीन के साथ हमारे सम्बंध तनातनी के दौर में हैं। 1962 की सीख को ध्यान में रखते हुए अपनी सैन्य तैयारियों में न कोई कमी आनी चाहिए, न चर्चा का रास्ता बंद होना चाहिए। इतना अवश्य ध्यान में रहे कि चीन कभी भी धोखेबाजी कर सकता है।

इस वर्ष जून माह में गलवान घाटी में भारतीय सैनिक और चीनी सैनिकों के बीच मल्लयुद्ध हुआ, इसके बाद 7 सितम्बर को आमने सामने होने पर दोनों सेनाओं ने चेतावनी के रूप में हवा में फायरिंग की। विगत 45 वर्षों के बाद सीमा पर पहली बार फायरिंग की घटना हुई। तब एक लेखक ने अभिप्राय व्यक्त किया था कि मोदी सरकार, नेहरू सरकार की गलतियों की पुनरावृत्ति कर रहे हैं।         जवाहरलाल ने सर्वप्रथम ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का उद्घोष किया. उस भोलेपन का चीन ने फायदा उठाया, तब जाकर भारत ने सरहद पर 43 पुलिस चौकियां स्थापित करने की पहल की। इसी पहल को आधार बनाकर वर्ष 1962 में चीन ने हमें परास्त किया। नरेंद्र मोदी ने भी वर्ष 2014 में अपने पहले कार्यकाल में चीनी राष्ट्राध्यक्ष से गले मिलकर भोलापन दिखाया। वर्ष 2017 में भूटान की सरहद डोकलाम पर चीनी सेना को भारतीय सैनिकों द्वारा रोकने का दुस्साहस भी नरेन्द्र मोदी ने ही किया, ऐसा कुल मिलाकर लेखक का अभिप्राय है।

यह अभिप्राय कहां तक सही है? जवाहरलाल ने ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया, कारण ‘हम शांतिप्रिय रहेंगे तो कोई भी देश हम पर आक्रमण नहीं करेगा’ ऐसा विचार नेहरू के मन में था। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के अपने पहले ही वर्ष की शुरुआत में शी जिनपिंग को आदर सत्कार के साथ अहमदाबाद के झूले पर बिठाया, कारण चीन से लड़ने के लिए अपनी सैन्य तैयारियां पूरी करनी थीं, सरहद पर सड़कें बनानी थीं, सम्पूर्ण सेना को अधिक समर्थ और आधुनिक बनाने के लिए कुछ समय की जरूरत थी। पं. नेहरू ने 1959 में 43 पुलिस चौकियां निर्माण करना तो प्रारंभ किया; लेकिन दुर्भाग्यवश ना उन्होंने सैन्य तैयारियों पर जोर दिया और ना ही सड़को का निर्माण कराया। नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2017 में डोकलाम में चीनी सेना के बढ़ते कदमों को रोका, कारण उन्होंने अपनी सैन्य तैयारियां पूरी कर ली थीं। ‘युद्ध के पहले पूर्व तैयारी’ यह है नमो की रणनीति। ‘तैयारियों के पूर्व ही घोषणा’ यह है नेहरू नीति।

हमने डोकलाम में तो चीन को रोका ही और इसके अलावा चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ के अश्वमेध यज्ञ को भी रोकने का साहस दिखाया है। अन्य देश इसका विरोध करने के लिए बाद में आगे आए। वर्तमान समय में अफ्रीका के सिएरा लीओन जैसे छोटे से देश से लेकर एशिया के मलेशिया तक के अनेक देशों ने चीन के वैश्विक उपद्रव का विरोध जताने में बड़ी भूमिका निभाई है। चीन ने जिन वियतनाम, फिलिपीन्स, मलेशिया आदि देशों को उनकी समुद्री सीमा से खदेड़ने की चाल चली है, उन सभी देशों की नौसेना को विशाखापत्तनम में आमंत्रित कर भारत ने साहसिक कदम उठाया है।

गलवान घाटी में हमारे सैनिकों ने चीनी सैनिकों के सामने पुरुषार्थ प्रकट किया। इसके बाद हमारे ही सीमा के अंदर आने वाली पैन्गोग झील के दक्षिण हिमालय के ऊंचे शिखर पर कब्जा कर उस भूभाग को सुरक्षित किया और चीन के अतिक्रमण से बचाया। जानकारों का मानना है कि चीनी सेना की गतिविधियों पर दूर से नजर रखने के लिए अत्यंत अनुकूल भूमि पर हमने वर्चस्व स्थापित किया है। इससे भारतीय सेना को बढ़त मिलेगी।

शांतिपूर्वक विचार करने पर ध्यान में आता है कि वर्ष 1959 में हमारी पहल के कारण चिढ़कर चीन ने आक्रमण कर हमें हराया। वर्ष 2017 में डोकलाम में हम चीनी सेना के सामने ताल थोक कर खड़े रहे, उस घटना को 3 साल गुजर जाने के बाद भी चीन के रक्षा मंत्री और उसके पीछे विदेश मंत्री ने मास्को में भारत के मंत्रियों से मुलाकात व संवाद स्थापित कर समझदारी दिखाई है। अर्थात: 1962 के युद्ध के अनुभव से हमने बहुत कुछ सीखा है। चालाक चीन पर भरोसा करना हमारे लिए हितकारी नहीं है बल्कि घातक है इसलिए हमने चीन के खिलाफ बहुआयामी व्यूह रचना रची है। सभी प्रकार से संतुलन स्थापित करना यह है पहला आयाम। इसलिए थल सेना का सामर्थ्य बढ़ाने के साथ ही वायुसेना और नौसेना की ताकत भी बढाई जा रही है। एशियाई देशों से मैत्री सम्बंध मजबूत करने के साथ ही यूरेशिया के साथ भी सौहार्द बढ़ाना, सुन्नी मुस्लिम राष्ट्रों से हाथ मिलाना, उसी तरह शिया पंथ को भी विश्वास में लेना, अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी इन पश्चिमी व यूरोपीय देशों से सम्बंध मजबूत करने के साथ ही रूस से भी बेहतर संबंध बनाए रखना हमारी नीति है। इंडो पैसेफिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्शानी है लेकिन अटलांटिक प्रदेशों के देश हमसे दूर न हो, इसका भी ध्यान रखना है।

मास्को में भारत के विदेश मंत्री एवं चीनी विदेश मंत्री से लम्बी वार्ता चली और पंचसूत्री योजना भी निश्चित की गई। मतभेद को मनभेद में नहीं बदलना है, तनाव और संघर्ष की स्थिति नहीं बने, समाधान के लिए विभिन्न प्रकार की चर्चा, विमर्श कर आपसी विश्वास बढ़ाने हेतु कदम बढ़ाना, नेहरू के काल के पंचशील और वर्तमान काल की पंचसूत्री योजना एकदूसरे से अलग-अलग है, यह कोई भी मान्य करेगा।

अब हम पहले की तरह गाफिल नहीं हैं। हमारी सेना किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। चीन के खिलाफ देश में सभी एकमत है कि इस बार चीन को सबक सिखाया जाना चाहिए। वर्ष 1950 में हमने चीन को तिब्बत के रूप में भूदान कर दिया। आज तिब्बत से जुड़े हुए स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स के जवान चीनी सीनिकों से लड़ने के लिए सिद्ध हैं। लद्दाख प्रांत वर्तमान समय में केन्द्र शासित है। चीन भले ही पीओके में कोरिडोर निर्माण में लगा हुआ है लेकिन भारत ने इसका पुरजोर विरोध किया है और इस मामले में पूरी दुनिया का समर्थन प्राप्त करने में हमें सफलता मिली है। पाकिस्तान से सीधे सऊदी अरेबिया, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन आदि देशों ने कन्नी काटी है। एक समय सोवियत संघ का हिस्सा रहे लेकिन वर्ष 1991 में स्वतंत्र हुए मध्य एशियाई इस्लामिक राष्ट्र एवं अफगानिस्तान भारत से मजबूत मैत्रीपूर्ण सम्बंध बनाने के लिए उत्सुक है। उपरोक्त उल्लेखित देशों में से किसी भी देश ने चीन को कैसा लगेगा? ऐसे प्रश्न का विचार नहीं किया। पूर्व में चेकोस्लावाकिया नामक देश अस्तित्व में था। अब उस देश के दो हिस्से हो गए हैं। उसने भी चीन को चुनौती देकर ताईवान को मान्यता घोषित कर दी है। भविष्य में हांगकांग और शिनजियांग में चीन विरोधी गतिविधियां जोर पकड़ सकती हैं। भारत में मौजूद मोदी सरकार ने भी रीजनल कोम्प्रेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप नामक संस्था से स्वयं को बाहर करने का निर्णय लिया तो इसमें नया क्या है? चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करना और आरसीईपी से बाहर निकलना देशहित में है। इसके अलावा चीन का जहां-जहां पर प्रभाव बढ़ने की संभावना है उनसे जुडी सभी चीजों का बहिष्कार करना ही चाहिए।

चीन से मुकाबला करना आसान नहीं है इसे मोदी सरकार जानती है। चीन के सामर्थ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चीन से पुनः हमारी हार न हो इसलिए सैन्य तैयारियां सतत तेजी के साथ करनी होगी। आंखों में तेल डालकर हमारी सीमा की रक्षा करनी होगी। चीनी सेना हमारी एक इंच भूमि पर भी कब्ज़ा न कर पाए इसकी हमें सतर्कता बरतनी होगी। इसके साथ ही चर्चाओं का दौर भी शुरू रखना चाहिए, बातचीत में भी पूरी मजबूती के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए। पंचसूत्री और पंचशील दोनों में अंतर है यह दिखाने के लिए संतुलन भी बनाया जाना चाहिए। भारत – चीन संबंध नई मोड़ पर पहुंच गए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।

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