समाज के संगठनों को बेहतर बनाना है

माहेश्वरी समाज पहले भी बेहतर था, आज भी है और आगे भी रहेगा ऐसा विश्वास है फिर भी प्रश्चचिह्न है इसका कारण आज समाज में एकता कम विखंडन अधिक दिखाई देता है। इसका मुख्य कारण समाज को एकजुट रखने वाली समाज की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा स्वयं एकजुट नहीं है, पदाधिकारी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं अपने-अपने मुद्दों पर अड़े हुए हैं। समाज की गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं इसका ठिकरा समाज के नेता एक दूसरे पर फोड़ रहे हैं, एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। आपसी सामंजस्य से कार्य न करने की कसमेें खा रखी हैं आपसी विवादों व स्वागत सत्कार में ही अपने कार्यकाल का आधा समय बरबाद कर समाज के लिए कोई उपयोगी योजना बयां नहीं कर पाए हैं। मखौल के पात्र बन गए हैं। कभी समाज की एकता का प्रतीक कहीं जाने वाली महासभा आज टूट रही है, बिखर रही है तो इसके जिम्मेदार हैं इस संस्था के पदाधिकारी जो इस संस्था को नष्ट करने की, उसे पंगु बनाने की, उसे डुबाने की जैसे पूरी तैयारी कर ली है।

लेकिन ऐसा नहीं होने देंगे। ये समाज हमारा है, हम इस समाज के नागरिक हैं, परंतु बिना राजा के समाज नहीं हो सकता है और कोई राजा बिना समाज के पूरा नहीं हो सकता है। समाज की सर्वोच्च संस्था बिगर जाएगी तो समाज की योजनाओं की खैर-खबर लेने वाला नहीं होगा तो समाज बिखर जाएगा। महासभा समाज का शीर्ष व केन्द्रीय संगठन है। उस पर सभी अधिनस्थ संगठनों की सक्रियता निर्भर है। जिन योजनाओं और गतिविधियों के निर्देश महासभा देती है उनके अनुसार कार्य होते हैं। महासभा की निष्क्रियता का असर प्रादेशिक संस्थाओं पर भी पड़ेगा। महासभा से कोई जिम्मेदारी नहीं मिलने का नतीजा है प्रांतीय, जिला व अन्य इकाइयों के पास कोई कार्य नहीं रहेगा। समाज की छोटी-छोटी संस्थाएं अपने मन मुताबिक कार्य करेगी, उन पर कोई नियंत्रण नहीं रहेगा तो समाज में टकराव व बिखराव आने में देर नहीं लगेगी।

समाज ने विश्वास के साथ जिम्मेदारी सौंपी उसी समाज के साथ विश्वासघात, खिलवाड़ कहां तक उचित है, समाज पदों पर आसीन लोगोंं की जागीर नहीं है जो वे समाज को नीचा दिखाने, समाज में गुटबाजी बढ़ाने, वैमस्य बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते रहे और समाज चुपचाप आंख मूंदकर देखता रहे। कठिन दौर से गुजर रहे और गुटबाजी से जूझ रहे महासभा के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचने का समय आ गया है। समाज की व्यवस्था के भीतर रहकर उसकी तीखी आलोचना करना कठिन है लेकिन आज जरूरत आ पड़ी है। गलतियों की आलोचना करना और सुधार के लिए किया गया विरोध समाज के लिए ठीक होता है। अगर हम अभी नहीं चेते तो आने वाला समय बहुत दु:खदायी होगा। यह संगठन दुबारा खडा ही न हो पाए। चालाक चतुर और समाज में ओछी राजनीति करने वाले, डींगे मारने वाले पदाधिकारियों को करारा जवाब देना होगा। हमारे जमीर को क्या हो गया है? स्पष्ट विचारधारा रखने में हम क्यों घबराते हैं? महासभा की गतिविधियों का तमाशा न देखकर चुप्पी तोड़ने की जरूरत हैं महासभा को दिशा देेने की जरूरत है। खुशामद व चापलूसी की परम्परा को छोड़कर समाजके वरिष्ठजन समाज के चिंतक, समाज की संस्थाएं, समाज के सक्रिय कार्यकर्ताओं को स्पष्ट विचारधारा रखने नेतृत्व को मजबूत व महासभा को पुनर्जीवित करने के लिए चिंतन करना होगा। महासभा के पदों पर आसीन लोगों से जवाब मांगे कि उन्होंने इतने समय में समाज के लिए क्या किया? आज हमारे राजा की क्या हालत है, किसी से छुपी हुई नहीं है। लोग कन्फ्यूज भी हैं। हमारे अध्यक्ष महोदय वास्तव में बीमार हैं या समाज की ओछी राजनीति के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। अगर वास्तव में अस्वस्थ हैं तो अपनी जवाबदारी से स्वयं मुक्त होना चाहिए और अगर अपनी ही बनाई टीम व पदाधिकारियों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं तो इस बात की भी सफाई समाज के समाने रखे। समाज को जानना बहुत जरूरी है कि सभापति अपनी टीम के आगे लाचार है या टीम सभापति के आगे लाचार है। कुछ समझ में नहीं आता है कि, सभापति को क्या परेशानी है। अगर टीम से परेशानी है तो उसका खुलासा करें ताकि भविष्य में समाज के लोग ऐसे गलत लोगों को पद पर बिठाने की गलती नहीं करेंगे। सभापति की अस्वस्थता की आड़ में अन्य पदाधिकारी भी समाज सेवा में समय न देकर बहाना बना रहे हैं।

टीम लीडर भी एक इंसान हैं। उसको अपनी टीम का सहयोग बहुत जरूरी है। अगर टीम लीडर की भी कोई गलती हो तो अपने टीम लीडर की गलतियों को ज्यादा उछालने की बजाय आपको उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। टीम लीडर को नीचा दिखाने का सबसे आसान तरीका उसे सहयोग न देना माना जाता है। ऐसा करने वाले अपनी टीम ही नहीं बल्कि अपने काबलियत के साथ भी धोखा करते हैं। आप चाहें तो अपनेे काम को पूूरी मेहनत से करके स्थिति में सुधार ला सकते थे। आपको टीम को लीड करने की कोशिक करनी चाहिए थी। यह आपके लिए खुद को साबित करने का सही समय होता है लेकिन…

समाज के कुछ पदाधिकारियों के व्यवहार के कारण समाज पर अंगुली उठ रही है। महासभा के कुछ पदाधिकारियों कि विश्वसनीयता कठघरे में है। महासभा को बेहतर करने के लिए चिंतन शिविर आयोजित करें। समाज में इस विषय पर विचार-विमर्श हो, समाज से ही नई सोच बाहर आए तभी समाज मजबूत हो पाएगा। अगर महासभा में नई उर्जा का संचार असंभव लगे तो मौजूदा हालात से निपटने के लिए समाज व अध्यक्ष के पास क्या विकल्प है इसका खुलासा करें एवं भविष्य में ऐसी परिस्थितियां बने इसके लिए ठोस उपाय करें।

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