संत समाज: आस्था और विश्वास!

कार्तिक माह के शुरुआत के साथ ही शरद ऋतु का भी आरंभ हो जाता है। यह महीना पूजा, आराधना व भक्ति भाव से परिपूर्ण होता है और यह सिलसिला दीपावली तक चलता है। सूर्य देव के उत्तरायण होने के साथ मकर संक्रांति व वसंत पंचमी जैसे पर्व का बंदोबस्त भी हमारे पुरखे कर गए हैं। कोई भी बाधाएं आए लेकिन इस सिलसिला रुकता नहीं बल्कि हमारे आस्था व विश्वास को और भी मजबूत बनाता है। हर त्यौहार मनुष्य की जिजीविषा बढ़ा देता है। अगर यह त्यौहार ना होते तो सचमुच जिंदगी कितनी नीरस होती लेकिन अब इन त्योहारों के पीछे छिपे अर्थ को बताने वाले लोग काफी कम है। त्यौहार लोग मनाते तो है लेकिन अब किसी के मन में भी यह सवाल कम उठता है कि आखिर इस त्यौहार के पीछे की असली वजह क्या है?

स्वामी विवेकानंद जी से यह सीखना चाहिए कि हमें किसी भी चीज पर आँख बंद कर के विश्वास नहीं करना चाहिए भले ही उसे कोई कितना अभीष्ट बताएं। आंख बंद करके विश्वास करना भी अंधविश्वास के समान होता है। जितने भी साधु, संत, महंत नाना प्रकार के कर्मों में पकड़े जाते हैं वह सब के सब अंधविश्वास के खाते की कमाई से ही पल रहे होते हैं। यह लोग अंधविश्वासी जनता को जीते जी स्वर्ग का रास्ता बता कर मूर्ख बनाते है। 20वीं सदी में भी लोग पुत्र प्राप्ति के लिए डाक्टर के पास ना जाकर बाबा लोगों की शरण में जाते है और अंत में धन व धर्म दोनों लूटा बैठते हैं। एक दो नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में लोग ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसे हुए हैं।

अब जब हनुमान जी जैसे परम ज्ञानी कालनेमि के झांसे में आ गए तो साधारण व्यक्ति की बिसात क्या है। हनुमान जी भगवान के नाम पर कालनेमि के झांसे में फंस गए पर उनके विवेक ने जल्दी ही उन्हें उतार लिया उन्हें एक मगरी ने टोक दिया, क्यों बिना जाने उस साधु के चक्कर में फंसे हो? अरे आपका तो सीधा प्रभु से कनेक्शन है यह आप से बड़ा साधु थोड़ी ना है। हनुमान जी ने उस मगरी की बात को सुना और विश्वास किया कि वाकई हमसे बड़ा भक्त कौन हो सकता है और फिर कालनेमि का मायाजाल तोड़ दिया। हम किसी के झांसे में तभी फंसते हैं जब हमारा आत्मविश्वास लड़खड़ा जाता है। विखंडित आत्मविश्वास के लोग ढोंगियों के चक्कर में वैसे ही फंसते हैं जैसे फ्लाई कैचर में मक्खी।

हमारे देश में वर्षों से साधुओं और धर्मो की इज्जत लोग करते आ रहे है लेकिन अब इसका दुरुपयोग भी तेजी से हो रहा है। साधु के वेश में अपराधी और गलत मंशा के लोग अब विराजमान हो रहे है जिससे धर्म का नाम भी खराब हो रहा है। वर्तमान में साधु और संत एक तरह का व्यापार हो चुका है। ऐसे संतों की राजनीति में बहुत पहुंच होती है जिससे वह अधर्मी कामों को आसानी से अंजाम दे सकते है और समाज के वह लोग इनका शिकार होते है जो धर्म और साधु के नाम पर आंख मूंद कर इन पर विश्वास कर लेते है।

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