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दामाद बनाम दामाद

दामाद बनाम दामाद

by उमेश सिंह
in दिसंबर २०१२, सामाजिक
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भारतीय पारिवारिक व्यवस्था में दामाद को काफी सम्मान दिया जाता है। ससुराल में सास से लेकर साले तक सभी उसकी मिजाजपुर्शी में लगे रहते हैं। वैसे इन दिनों जिस दामाद की देश-विदेश में बड़ी चर्चा है, वे हैं कांग्रेस के दामाद अर्थात यूपीए की राजमाता सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा। उनके विकास के ऐतिहासिक कारनामों से देश का हरेक नागरिक अचंभित है। उनकी दिन दूनी, रात चौगुनी प्रगति से चीन, जापान और सिंगापुर के बड़े-बड़े औद्योगिक घराने भी मात खा रहे हैं।

राबर्ट्र वाड्रा कांग्रेस के पहले दामाद नहीं है। इनसे लगभग आधी शताब्दी पूर्व पं. नेहरू की पुत्री इन्दिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस के दामाद थे। यद्यपि दोनों ही कांग्रेस के दामाद बने जरूर, किन्तु उनमें अन्य कोई साम्यता नहीं थी। फिरोज गांधी एक ईमानदार और निष्ठावान राजनेता थे। वे पं. नेहरू के दामाद ही नहीं, उनकी ही पार्टी के सांसद थे। उन्होंने अच्छी छवि वाले तत्कालीन कांग्रेस सरकार के वित्तमंत्री टी. टी. कृष्णमाचारी और वित्त सचिव एच. एम. पटेल की सहमति से सरकारी खजाने से केवल 1 करोड़ 26 लाख रुपये देकर हरिदास मूंधड़ा की कम्पनी के शेयर खरीदे जाने पर संसद और सरकार को हिलाकर रख दिया था

आज से 55 साल पहले सन् 1957 में संसद में मूंधड़ा काण्ड की गूंज हुयी थी। हुआ यह था कि जीवन बीमा निगम ने हरिदास मूंधड़ा की कम्पनियों को डूबने से बचाने के लिए सरकार के इशारे पर निगम की पूंजी नियोजन समिति की राय लिए बिना करीब सवा करोड़ रुपये लगा दिए। इस प्रक्रिया में किसी मंत्री या अधिकारी पर रिश्वत या कमीशन लेने का आरोप भी नहीं था, किन्तु सरकारी खजाने से अनियमित खर्च से देश और जनता को होने वाले घाटे को नैतिक रूप से अनुचित ठहराया गया था। प्रभावशाली कांग्रेसी फिरोज गांधी के सामने होने से विपक्ष को भी ताकत मिली। फिरोज गांधी के अभियान से पं. नेहरू और इन्दिरा गांधी बहुत विचलित थे, किन्तु उन्होंने सार्वजनिक रूप से मुंधड़ा काण्ड के विरुद्ध अभियान जारी रखा। परिणामस्वरूप नियमानुसार एम. सी. छागला जांच आयोग बैठा और सरकार के कदम को गलत ठहराया गया। टी. टी. कृष्णमाचारी और एच. एम. पटेल को पद से त्यागपत्र देना पड़ा। फिरोज गांधी द्वारा विरोध इतना तीव्र था, कि पं. नेहरू किसी का बचाव नहीं कर सके। हरिदास मुंधड़ा को गिरफ्तार करके सजा दी गयी। भारतीय राजनीति में ऐसी मिसाल कम ही मिलती है

इसके विपरीत कांग्रेस के वर्तमान दामाद राबर्ट वाड्रा हैं, जिनके भ्रष्टाचार के नित नये समाचार सामने आ रहे हैं, और उल्लेखनीय यह है कि केन्द्र सरकार से लेकर पूरी कांग्रेस पार्टी उन्हें बचाने और उनके कारनामों पर पर्दा डालने में जी-जान से जुटी है। राबर्ट वाड्रा पर लग रहे आरोपों की जांच से कांग्रेस पार्टी कन्नी काट रही है। वाड्रा पर आरोप है कि वर्ष 2007 में उन्होंने स्काईलाइट हास्पिटलेलिटी प्रा. लि. (एस एच एल) और बारह अन्य कम्पनियां बनायीं। इनकी एक और महत्वपूर्ण कम्पनी है स्काईलाइट रियलिटी प्रा. लि. (एस आर एल) । बनने के समय एस एच एल में लगायी गयी कुल पूंजी एक लाख रुपये थी। सन् 2007-08 में इस कम्पनी ने गुडगांव के मानेसर में 15.38 करोड़ रुपये कीमत की एक जमीन खरीदने का मन बनाया। तुरन्त ही इसके लिए जरूरी पहली किस्त का पैसा (7.95 करोड़ रुपये) उसे सरकारी बैंक- कार्पोरेशन बैंक से मिल गये। इस जमीन को व्यावसायिक उपयोग में लाने के लिए जरूरी अनुमतियां भी कुछ दिनों के भीतर मिल गयी। इसके तुरन्त बाद वाड्रा की कम्पनी ने देश की सबसे बड़ी भवन निर्माता कम्पनी डी एल एफ के साथ इस 15.38 करोड़ की जमीन का सौदा 58 करोड़ रुपये में कर लिया। डी एल एफ ने सौदा पक्का करके पेशगी के रूप में 50 करोड़ रुपये वाड्रा की कम्पनी को दे दिया। इतना ही नहीं तो डी एल एफ में अलग से 10 करोड़ ब्याजमुक्त रुपये दो वर्ष तक इस्तेमाल करने के लिए वाड्रा की कम्पनी को दिया। इसके अलावा एक अनहुए सौदे में डी एल एफ ने वाड्रा की कम्पनी एस एच एल को 15 करोड़ रुपये दिये, जिसे उसने एक साल तक उपयोग तरह-तरह की सम्पत्तियों को खरीदने में किया अथवा उसका ब्याज खाया। एक मजे की बात यह है कि जिस डी एफ एल ने वाड्रा की कम्पनी को बिन ब्याज का कर्ज दिया था, वाड्रा ने उस धन का उपयोग उसी डी एफ एल की सम्पत्तियों को खरीदने में किया। उदाहरण के लिए डी एफ एल के अरालिया नाम के प्रोजेक्ट में 2008 में 10,000 वर्ग फीट के दो विशालकाय अपार्टमेन्ट खरीदे, जिनका मूल्य 2010-11 में 10.4 करोड बताया गया है। इसके अलावा मैग्नोलिया नाम के प्रोजेक्ट में 2008 में लगभग 6,000 वर्ग फीट क्षेत्रफल वाले सात फ्लैटस खरीदे, जिसके लिए केवल 5.23 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जबकि डी एफ एल की दर पर इनका कुल मूल्य कम से कम 42करोड़ (प्रत्येक 6 करोड़) होता है। इन तथ्यों के आधार पर राबर्ट वाड्रा और उनकी कम्पनियों पर आरोप लग रहे हैं कि केवल 50 लाख शेयर पूंजी वाली सम्पत्ति मात्र पांच वर्षों में ही बढ़कर 500 करोड़ तक पहुंच गयी। पूरे भारत वर्ष में किसी भी कम्पनी की इतनी ऊंची प्रगति की कोई दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है।

स्व. फिरोज गांधी कांग्रेस कें सांसद थे। उनके ससुर पं. नेहरू देश के शक्तिशाली प्रधानमंत्री थे। फिर भी फिरोज गांधी ने सरकार के भ्रष्ट आचरण का जमकर विरोध किया और उसे झुकने पर विवश किया। इसके उलटे आज केन्द्र की डा. मनमोहन सिंह की सरकार, हरियाणा सरकार, राज्यपाल और कांग्रेस पार्टी राबर्ट वाड्रा का बचाव कर रहे हैं। बिना किसी जांच के उन्हें पाक साफ घोषित कर रहे हैं, यहां तक कि इस मामले में वे जांच की जरूरत से भी इंकार कर रहे हैं। इससे भी मजे की बात यह कि इतने सारे सवालों से घिरे होने और तमाम आरोप लगाये जाने पर भी राबर्ट वाड्रा, उनकी सास सोनिया गांधी और उनके साले राहुल गांधी इनका जवाब देना जरूरी नहीं समझते। इसके उलट वे फेसबुक पर फुलझड़ियां छोड़कर भारत देश और यहां की जनता की खिल्ली उड़ा रहे हैं। यह तो कुछ ऐसा है कि-
खुला भेद दामाद का, निकला रंगा सियार ।
फिर भी गुर्राता फिरे, संग कांग्रेसी यार ॥

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