भगवान महावीर ने दी थी ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी

जैन धर्म के सिद्धांत के अनुसार छठे आरा (काल) में सूर्य की किरणें अत्यंत उग्र हो जाने से अनाज की तंगी उत्पन्न होगी और जीने के लिए प्रजा को मांसाहार पर निर्भर रहना पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा आजकल जीवन के हर क्षेत्र में हो रही है। ऐसा माना जा रहा है कि आधुनिक काल में मंहगाई और अनाज की जो समस्या उत्पन्न हुई है, वह भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण ही है।

धरती की उष्णता बढ़ रही है, जिससे अनाज के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। महानगरों में ध्रुव प्रदेश की बर्फ पिघलने के कारण बेमौसम की बारिश होती है, इसी वजह से अनाज की फसल को भारी नुकसान होता है।

आजकल के पर्यावरणविदों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग का कारण ग्रीन हाऊस गैस है, लेकिन धर्मशास्त्रों के अनुसार काल के प्रभाव से सूर्य एवं चंद्र की ऊर्जा में परिवर्तन होता है और इनके कारण अत्यधिक ठंडी तथा अत्यधिक गरमी की स्थिति उत्पन्न होती है। आज के वैज्ञानिक जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं, वह परिस्थिति पैदा होने का क्या कारण हो सकता है, उसका हूबहू वर्णन जैन धर्म के त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र नामक ग्रंथ में किया गया है।

कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यश्री हेमचंद्राचार्य लिखित त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र ग्रंथ में जैनधर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के जीवन का वर्णन किया गया है। इसमें सर्वप्रथम स्वामी द्वारा परमात्मा से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में प्रभु महावीर ने पाचवें और छठें आरा का वर्णन किया है। इस वर्णन को पढ़ते ही ख्याल आता है कि भगवान महावीर ने जिस परिस्थिति का वर्णन किया है, वह आज की ग्लोबल वार्मिंग की परिस्थिति के संदर्भ में ही है। भगवान महावीर का निर्वाण आज से करीब 2534 साल पहले हुआ था। इस समय उन्होंने अपने शिष्य गणधर गौतम स्वामी से कहा था कि,‘‘ हे गौतम, हमारे निर्वाण के पश्चात तीन वर्ष साढ़े सात माह में ही पांचवा आरा शुरु होगा, जिसका कार्यकाल 21000 साल होगा। इस काल में गांव श्मशान की भांति, शहर प्रेत लोक की भांति , परिवार नौकरों की भांति और राजा यमदंड की भांति हो जाएगा। चोर चोरी करके, राजा कर से और अधिकारी वर्ग रिश्वत लेकर सारी प्रजा को पीड़ित करेंगे।’’ वर्तमान में पांचवां आरा चल रहा है और इसका कार्यकाल 21000 साल तक का है। यह पांचवां आरा समाप्त होने में लगभग साढ़े अठारह हजार वर्ष शेष बचे हैं। पांचवां आरा समाप्त होने के तत्पश्चात छठा आरा शुरु होगा, जिसका कार्यकाल 21000 वर्ष होगा। भगवान महावीर ने काफी पहले ही कहा था कि तब पृथ्वी के पर्यावरण में भयानक उथल-पुथल मचेगी।

‘त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र’ ग्रंथ में छठे आरा के विषय में किए गए वर्णन के अनुसार रात-दिन धूल भरी गर्म हवा चलेगी। सूर्य की धूप बहुत तेज हो जाएगी और चंद्रमा की किरणें अत्यधिक शीतल हो जाएंगी। इस तरह अत्यधिक शीतलता एवं कड़ी धूप से जनता त्रस्त हो जाएगी। आकाश से बारिश के साथ क्षार, अमल (एसिड), विष (जहर), अग्नि और बज्र की वृष्टि होगी, जिसके कारण प्रजा सर्दी, श्वास (सांस), शूलइस काल में वन, लता, वृक्ष और घास का विनाश होगा।

आग की भट्टी की तरह धरती भस्म हो जाएगी। इन शब्दों से ख्याल आता है कि सूर्य की किरणों के कारण उत्पन्न होने वाली धूप जैसे-जैसे बढ़ती जाएगी, वेैसे-वैसे धरती पर जंगल ही नहीं, पेड़, पौधे घास भी नष्ट हो जाएगी।

जैनशास्त्रों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव जैसे-जैसे बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे विश्व की गंगा और सिंधु के अतिरिक्त सभी नदियां सूख जाएंगी। त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र में लिखा है कि इस काल में दिन में इतनी कड़ी धूप होगी कि प्रजा खुली जमीन पर नहीं रह पाएगी। विश्व की पूरी मानव बस्ती इस काल में गंगा और सिंधु नदियों के दोनों तटों पर तैयार की गई 72 गुफाओं में रहेगी। प्रजा को खाने के लिए धरती पर एक भी पशु या कोई भी वनस्पति उपलब्ध नहीं होगी। इसकी वजह से समूची प्रजा मांसाहारी हो जाएगी। रात में प्रजा अपनी गुफाओं से बाहर आएगी और नदियों से मछलियां पकड़ कर इन्हें सुखाने के लिए खुले में रख देगी।

पूरे दिन सूर्य की कड़ी धूप से ये मछलियां सूख जाएंगी। बाद में रात्रि भोजन में ये सूखी मछलियां खाकर प्रजा अपना निर्वाह करेगी। इस काल में स्त्रियों और पुरुषों की वाणी में कठोरता होगी और वे सब रोगी होंगे। वे क्रोधी, रोगी, चपटी नाकवाले, निर्लज्ज और वस्त्रहीन अवस्था में होंगे। इस काल के पुरूषों की आयु ज्यादा से ज्यादा 20 साल और स्त्रियों की आयु 16 साल की होगी। छह साल की कन्या गर्भधारण करके माता बनेगी। 16 साल की स्त्री वृद्धा मानी जाएगी। धर्म का अस्तित्व नहीं होगा, पशु की भांति मनुष्य में भी माता-पिता की मर्यादा नहीं रहेगी।

जैन-धर्म के सिद्धांत के अनुसार काल का चक्र सतत घूमता रहता है। अच्छे समय के पश्चात बुरा समय आता है। ठीक इस तरह बुरे समय के बाद अच्छा समय भी अवश्य आता है। त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र ग्रंथ में कालचक्र के उत्सर्पिणी काल के पांचवें और छठें आरा का वर्णन भी किया है। इस तरह कालचक्र के उत्सर्पिणी काल को पहले और दूसरे आरा का भी वर्णन भी विस्तार से किया है। इन दो धाराओं में काल उत्तरोत्तर सुधरता जाएगा और पर्यावरण भी उपकारक रहेगा। उत्सर्पिणी काल से पहले आरा की गरमी, जलवायु वर्तमान अवसर्पिणी काल के छठें आरा जैसी रहेगी, किंतु पहले आरा के अंत में परिस्थिति में बदलाव दिखाई देता है। त्रिषिष्ट शलाका पुरुष चरित्र ग्रंथ में एक उल्लेख यह भी है कि उत्सर्पिणी काल के प्रथम आरा के अंत में अलग-अलग पांच प्रकार की बारिश (मेघ) सात-सात दिन तक होती रहेगी। इसमें से पहली पुष्कर नाम की बारिश धरती को तृप्त कर देगी। दूसरी क्षीर नामक की बारिश धान उत्पन्न करेगी। तीसरी घृत नामक बारिश चिकनापन पैदा करेगी। चौथी अमृत नाम की बारिश औषधियां उत्पन्न करेगी। पाचवीं रस नाम की बारिश धरती को रसमय बना देती है। इस तरह 35 दिनों तक यह सात प्रकार की बारिश क्रमशः होती रहेगी। इनके कारण धरती पर वृक्षों, लताओं, हरियाली इत्यादि का निर्माण होगा। यह देखकर गुफाओं में बसी हुई प्रजा बाहर निकलेगी। प्रजा हर्षोन्मत्त होकर वनस्पति का आहार करेगी और मांसाहार छोड़ देगी। तत्पश्चात जैसे-जैसे काल आगे बढ़ता जाएगा,

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  1. Anonymous

    Aapne dikhaya huaa bhagvan mahavir shami ka photo darasal Gautam buddha ka he. trishashti shalaka purush ke konse Khanda me 5 & 6 aara ke bareme he. yo khand bataiye

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