शिव आराधना में पीछे नहीं है मुंबई

हिंदू देवमंडल में भगवान शिव का विशेष महत्त्व है। ब्रम्हा, विष्णु, महेश इन त्रिदेवों में महेश ही भगवान शंकर हैं। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि ये ‘क्षणे रुष्ठा, क्षणे तुष्टा’ प्रवृत्ति के देवता हैं। मनुष्य को क्या भगवान को भी शंकर की आराधना करनी पड़ी थी। सावन मास भगवान शिव की आराधना का शुभ मुर्हुत माना जाता है। शिवरात्रि के मौके पर भगवान शिव के मंदिर में भक्तों की ऐसी कतार लगती हैं कि पूरा देश शिव आराधना करता हुआ दिखाई पड़ता है।

सर्वधर्मसम्भाव के वाहक देश कहे जाने वाले भारत देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी शिवरात्रि के मौके पर भक्तों की इतनी भीड़ उमड़ती है कि उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। जिस तरह नवरात्र के मौके पर आदिशक्ति मां जगदंबे के मंदिरों में देवी भक्तों की भीड़ एकत्र होती है, ठीक ऐसी ही स्थिति मुंबई में शिवरात्रि के दौरान शिवमंदिरों में उमड़ती है। वैसे तो शिवरात्रि में मुंबई में यत्र-तत्र-सर्वत्र भगवान शंकर की जयजयकार गूंजती है। लोग अपने घर के आसपास के मंदिरों में तड़के ही पहुंच कर भगवान शिव की पूजा करते हैं, इस लिए छोटे मंदिरों में भी आस्था का जनसागर उमड़ पड़ता है। मुंबई के प्रमुख शिवमंदिर की बात करें तो बाबुलनाथ, वालकेश्वर तथा भुलेश्वर यहां के प्रमुख शिव मंदिर है। शिवरात्रि के मौके पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। सुबह से ही भक्त भगवान शिव की पूजा करने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर में पहुंचने लगते हैं, कुछ वैसी ही स्थिति मुंबई के बाबुलनाथ मंदिर में रहती है। यह मुंबई के प्राचीन शिवमंदिरों में से एक है। मलबार हिल क्षेत्र में स्थित यह मंदिर कुछ ऊँचाई पर स्थित है। पत्थर से निर्मित इस मंदिर में जाने के लिए कुछ सिढ़िया च़ढ़नी पड़ती हैं।

बताया जाता है कि सन् 1780 में इस मंदिर की निर्माण की प्रक्रिया पूरी गई थी। इस मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित किया गया है, वह वरली क्षेत्र से मिला था। वर्तमान में जो मंदिर शिव भक्त यहां देख रहे हैं, उसका जिर्णोद्धार सन् 1900 में किया गया था। 233 साल पुराने मंदिर का पत्थर काफी मजबूत बताया जाता है। 1900 में मंदिर का जिर्णोद्धार किया गया, पर मंदिर की आरंभिक स्थिति को पूर्ववत ही रखा गया है। मंदिर के गर्भगृह के बाहर नंदी की प्रतिमा है। सभा मंडप के बाहर, दीपमाला स्थापित की गई है। गर्भगृह के शिवलिंग में पांच फनों वाले नाग की आकृति भी बनाई गई है जिसमें सोने चांदी की निम्नाशी की गई है। शिवरात्रि के मौके पर भक्तगण शिवलिंग की पूजा करके भगवान को प्रसन्न करते हैं।

गुजराती ब्राह्मण समाज के एक व्यक्ति पर मंदिर के रख-रखाव की व्यवस्था सौंपी गई है। हर सोमवार को मंदिर भक्तों के आने का जो सिलसिला सुबह से शुरु होता है, वो देर रात तक जारी रहता है। सावन माह के सोमवार तथा पिठोरी अमावस्या पर मंदिर में इतनी भीड़ उमड़ती है कि मंदिर परिसर के आस-पास के क्षेत्रों में चलना मुश्किल हो जाता है।

कलाकृति के लिहाज से यह मंदिर बहुत उत्कृष्ट है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में शिवरात्रि पर शिव आराधना करने से मानव मात्र की समस्याओं का समाधान होता है। मुंबई के बाबुलनाथ मंदिर के बारे में तो इतना ही कहा जाता हैं कि यह मंदिर वास्तुशास्त्र की दृष्टि से यह मंदिर एक उत्कृष्ट उदाहरण है। शिवरात्रि के मौके पर बाबुलनाथ मंदिर अनेक धार्मिक आयोजन किये जाते हैं। बाबुलनाथ की तरह ही मुंबई शहर में बालकेश्वर मंदिर हैं। यह मंदिर भी मालबार हिल क्षेत्र में ही स्थित है। 18 वीं शताब्दी में बताया गया यह मंदिर वास्तुशास्त्र की दृष्टि से उत्कृष्ट कलाकृति है। इस मंदिर के सामने ही एक विस्तीर्ण जलाशय है। इस जलाशय को बाणगंगा कहा जाता है। एक आख्यिका के अनुसार बाणगंगा को भगवान राम ने बनाया है। एक बार सीता का पता लगाने मुंबई के इसी स्थल पर भगवान राम आए थे। भगवान राम ने भगवान शंकर की आराधना के लिए यहां बालु का शिवलिंग बनाया, इसलिए इस मंदिर को बालकेश्वर नाम दिया गया। इस लिंग का अभिषेक करने के लिए राम ने बाण चलाकर गंगा अवतरित की थी, इसलिए मंदिर के पास स्थित जलाशय को ‘बाणगंगा’ नाम दिया गया। राम जी कामत नामक व्यक्ति ने 18 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया था। 50 फुट लंबे और 25 फुट चौड़े सभामंडप वाले इस मंदिर में शिवलिंग है। मंदिर का गर्भगृह केवल 24 फुट चौरस है। मंदिर के बाहर नंदी की प्रस्तर की भूमि है। पीतल की अति प्राचीन घंटी बजाने के लिए यहाँ आने वाले भक्त लालायित रहते हैं। भगवान श्री राम ने जिस बालू के शिवलिंग के शिवलिंग का निर्माण किया, वह आज भी कायम है। बालकेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य जिस समय जारी था, उस समय जमीन में खुदाई के वक्त शिवलिंग मिला। भगवान राम द्वारा निर्मित शिवलिंग राजभवन में स्थित है। शेवणी तथा गुजराती ब्राह्मण परिवार पर मंदिर की देख-रेख का दायित्व सौंपा गया है। हर साल शिवरात्रि पर इस मंदिर में विशाल जनसागर एकत्र होता है। शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा-अर्चना का खास महत्त्व होता है।

मुंबई के प्राचीन मंदिरों में से एक भुलेश्वर मंदिर भी मुंबई के प्रमुख मंदिरों में शामिल हैं। सी पी टैंक और मुंबादेवी क्षेत्र में स्थित भुलेश्वर मंदिर लगभग 250 वर्ष पुरा बताया जाता है। मंदिर का नाम क्षेत्र के आधार पर भुलेश्वर कहा गया था। 1830 में मंदिर का जिर्णोद्धार कराया गया। लोगों ने चंदा एकत्र कर मंदिर का जिर्णोद्धार कराया था। 60 वर्ष के इतंजार के बाद 1889 मंदिर का सभामंडप का निर्माण किया गया था। मंदिर का गर्भगृह में एक स्वयंभू शिवलिंग भी है। जैसे-जैसे वक्त बीता और मंदिर में यहाँ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने का सलसिला जारी है। अगर पूरे महाराष्ट्र में शिव उपासना की बात करें तो शिवमंदिरों की संख्या बहुत ज्यादा है। नासिक, पुणे, ठाणे में भगवान शिव के मंदिरों की संख्या बहुत अच्छी है। यहां शिवरात्रि पर ओ नम: शिवाय की गूंज होती रहती है। सतारा में यवतेश्वर, शिंगणापुर का श्री शंभू महाराज मंदिर, पुणे फलटन का जबरेश्वर मंदिर, सांगली का श्री सागरेश्वर मंदिर, हरिपुर का संगमेश्वर मंदिर, खेड़ का श्री क्षेत्र भीमाशंकर संस्थान, कर्णेश्वर मंदिर (संगमेश्वर), आमनायेश्वर (कुरवाड), घूतपातेश्वर मंदिर (राजापुर), अंजनेश्वर मंदिर (मिठगवाणे), कुणकेश्वर मंदिर (सिंधुदुर्ग), श्री कौपिनेश्वर मंदिर (ठाणे), अंबरनाथ का शिवमंदिर, कुंडेश्वर मंदिर (बदलापुर), नागेश्वर मंदिर (अलिबाग), कनकेश्वर मंदिर (अलिबाग) सोमेश्वर मंदिर (नासिक), त्र्यंबकेश्वर (नासिक), श्री क्षेत्र कोंडेश्वर (अमरावती), श्री राजराजेश्वर मंदिर (अकोला), संगमेश्वर मंदिर (पुरंदर), भुलेश्वर मंदिर (मौजे मालशिसरस), कपदिकेश्वर मंदिर (ओतूर), नागेश्वर मंदिर (आंबवडे) श्री घुलेश्वर मंदिर (देऊल), रामेश्वर मंदिर (सातारा) सिद्धेश्वर महादेव मंदिर (नगर-औरंगाबाद) श्री क्षेत्र वृद्धेश्वर मंदिर (पाथर्डी), सिद्धश्वेर मंदिर (मांडवगण), बुबुलेश्वर मंदिर (कणगर) खांडेश्वर मंदिर (संगमनेर), पिंपलेश्वर मंदिर (विरोली), सिद्धेश्वर महादेव मंदिर (पारनेर), तिलकंठेश्वर मंदिर (तिलंगा), कंकालेश्वर मंदिर (बीड़), पिंपलवंडी का अश्वलिंग, औंढ़ा जगन्नाथ (हिंगोली)।

महाशिवरात्रि के मौके पर महाराष्ट्र के इन सभी मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मुंबई से कुछ भक्त महाराष्ट्र के अलग-अलग

क्षेत्रों में स्थित शिवमंदिर में जाते हैं, तो महाराष्ट्र के अन्य जिलों के लोग मुंबई के प्रसिद्ध महादेव मंदिर में भक्त भगवान शंकर की आराधना पूजा के लिए आते हैं। इस तरह महाशिवरात्रि पर न सिर्फ मुंबई अपितु समुचे महाराष्ट्र में हर-हर महादेव की गूँज होती है।
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