लगन व निष्ठा की मिसाल और प्रेरणा है – जयवंती बेन मेहता

गांधीजी ने कहा था-जब कोई स्त्री किसी काम में जीजान से लग जाती है तो उसके लिए कुछ भी नामुमकीन नहीं होता। इसी हकीकत को बया करती है जयवंती बेन मेहता। ये कहना भी बिल्कुल गलत नहीं होगा कि जयवंती बेन मेहता ने जो ठाना वो करके दम लिया और आज भी वे उसी आत्मविश्वास के साथ सफलता के परचम लहराने के लिए आतुर रहती है। सीमित साधनों और सामाजिक बाध्यताओं के बावजूद राजनिति के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई हैं। उन्होंने अपने मजबूत इरादों की बदौलत न सिर्फ अपने जीवन को नई दिशा दी बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बनीं। उन्होंने ये साबित कर दिखाया कि बाहर से नाजुक दिखने वाली महिला के मन की मजबूती और मंसूबों की उड़ान कहां से कहां तक पहुंचा सकती है। एक सामान्य परिवार में जन्म लेने के बावजूद अपनी लगन, दृढ़ निष्ठा और आत्मविश्वास की बदौलत असमान्य कार्य कर दिखाया। राजनीति में परिवारवाद को लेकर बहुत हल्ला मचाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि राजनीति परिवारवाद के बदौलत ही चलती है। लेकिन जयवंती बेन मेहता का राजनीति परिवार से वास्ता न होते हुए भी उन्होंने राजनीति में एक सशक्त भूमिका निभाई है।

जीवन की शुरुआत और संस्कार

मराठवाडा की राजधानी माने जाने वाले औरंगाबाद में 20 डिसेंबर 1938 में जयवंती बेन मेहता का जन्म हुआ और उनकी बुआ ने बडे प्यार से उनका नाम जयवंती रखा। जब जयवंती बेन सिर्फ डेढ़ साल की थी। तब उनके माता का देहांत हो गया। उनका पालन-पोषण उनकी बुआ ने किया। बुआ ने उन्हें माँ को कभी महसूस होने नही दिया और वो सारे संस्कार दिए जो माँ अपने बच्चों को देती है। जयवंती बेन की शिक्षा औरंगाबाद में हुई। अपनी अच्छी पढ़ाई, सुंदर लिखावट के कारण की मुख्याध्यापिका श्रीमती प्रतिभाताई की पसंदीदा विद्यार्थी थी जयवंती बेन मेहता। जिस प्रकार वे स्कूल में हर किसी का दिल जीत लेती थी उसी प्रकार शादी के बाद उन्होंने अपने ससुराल के हर व्यक्ति के मन में अपने लिए खास जगह बना ली। उनका मानना है कि हर स्त्री बाहर से जितनी सुंदर होती है अंदर से उतनी ही दृढ़ निश्चयी होती है और ऐसा कोई कार्य नहीं जो वो सोचे और ना कर सके। मायके के प्रियजनों को छोड़कर पराए लोगों को अपनाकर आगे बढ़ना ही होता है। ईश्वर ने स्त्री को बनाया ही है। इतना सहनशील, दूरदर्शी और संयमी कि वे किसी भी मुश्किल का सामना बिना डरे, निडरता से कर सकती है।
औरंगाबाद जैसे छोटे से शहर में से मुंबई जैसे बड़े शहर में आकर बसना मुंबई की संस्कृती में एक रूप होना आसान बात नहीं थी। लेकिन वक्त के साथ यहाँ के तौर तरीकों में वे रम गई। समय के साथ खुद को बदलना तो सृष्टि का नियम है। इस नियम पर खरी उतरकर जल्द ही मुंबईकर बन गई।

ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन का एक लक्ष्य दिया है और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर मनुष्य को प्रयत्नशील और कार्यशील रहना चाहिए। हर किसी कों उनके इच्छानुसार मिले ये जरूरी नहीं है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं की मनुष्य अपना कर्म और धर्म भूल जाए नियती पर किसका जोर चलता है परंतु किस्मत में जितना लिखा है उसी में खुश रहकर अपने जीवन को सुंदर बनाना हर व्यक्ति के स्वयं के ऊपर निर्भर करता है। आजकल की दुनिया में हर कोई पैसों के पिछे भाग रहा है क्योंकि पैसा ही सबकी नजर में सामाजिक स्तर और कामयाबी मानी जाती है। ऐसा हमें हर उस व्यक्ति में दिखाई देता है जो एक खुशहाल जिंदगी का दिखावा करने के लिए अपने साधनों से कहीं ज्यादा आगे चला जाता है। वे भूल जाते है कि मिट्टी, सिमेंट के चार दिवारी को परिवार का प्यार ही घर बनाता है और अपनों का प्यार सबसे बढ़कर है। जयवंती बेन मेहता संयुक्त परिवार में रहते हुए परिवार के हर व्यक्ति की भावना उनके अलग विचार को साथ लेकर चली है।
जयवंती बेन मेहता का व्यक्तित्व है ही इतना प्रभावशाली कि कोई भी एक ही मुलाकात में उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता उनसे मिलकर बात करते ऐसा अनुभव होता है मानो वे माँ की ममता लुटा रही हो अपने जीवन में उन्होंने इतना कुछ हासिल किया है। लेकिन उस बात का अहंकार नाम मात्र भी नही है। उनके बोलने की शैली सरलता, निर्मलता, विनम्रता से परिपूर्ण है जो एक ही पल में किसी को अपना बनाने के लिए काफी हिन्दी, गुजराती के साथ मराठी भाषा पर उनकी पकड़ सराहनीय है। राष्ट्र भाषा तो हिन्दी है परंतु मराठी और गुजराती उनकी मातृभाषा है। आज भी उनमे कुछ नया सिखने की लालसा रहती है।

साधारण से खास तक का उनका राजनीति का सफर

अपने जीवन के 46 वर्ष उन्होेंने राजनैतिक जीवन में व्यतीत किया है। उनका राजनीति में आने का कारण सत्ता का लालच नहीं था बल्कि वे समाज के लिए कुछ करना चाहती थी। सत्ता का कभी लालच ना होने के कारण वे अपनी बात को स्पष्टरूप से सबके सामने रखती है। उन्हें घुमा फिराकर बेवजह मीठा-मीठा बोलना या किसी की चापलूसी करना उन्हें पसंद नहीं। भले ही समय के साथ उन्होंने खुद मे परिवर्तन लाया हो लेकिन अपने स्वाभिमान को हमेशा बरकरार रखा। स्वाभिमान और अभिमान के फर्क को हमेशा समझा है। हर एक व्यक्ति में अनंत संभावनाएं होती हैं, परंतु जयवंती बेन किसी के भी कल्पनाओं से कहीं आगे हैं। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की एक सीमा होती है पर जयवंती बेन के लिए कोई सीमा नहीं है। सन 1968-78 म्यूनिसपल सदस्य बनी। 1978-85 महाराष्ट्र विधानसभा की मेम्बर बनी। 1880 से भाजपा में राष्ट्रीय कार्यकारी पद संभाला। 1980-85 मेम्बर गवरमेंट एसोरेन्स कमिटी विधानसभा महाराष्ट्र, 1988-92 ऑल इंडिया सेक्रेटरी (भाजपा) 1989-99 लोकसभा मेे चुनी गई। 1989-91 मेम्बर रुल्स कमिटी मेम्बर स्टेन्डींग कमिटी ऑन फंड एड सीविल सप्लाय 1990-95 प्रेसीडेंट महिला मोर्चा (भाजपा), 1993-95 वाइस प्रेसीडेंट (भाजपा) 1996-11 वें लोकसभा में चुनी गई। 1996-97- मेम्बर स्टैंडिंग कमिटी ऑन इन्डस्ट्री मेम्बर कॉन्सलेटिव कमिटी मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर मेम्बर जॉइट कमिटी ऑन द कन्सी टूशन। बिल 1996 रिगाडींग 33 परसेन्ट रिजर्ववेशन फॉर वूमेन। मेम्बर कमिटी ऑन ऑफिसियल लैग्वेज 1999-13 वें लोकसभा में चुनी गई। 13 अक्तूबर 1999-यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट पॉवर राजनीति में इतने सारे पदों पर कार्यरत रहने के बावजूद वे किसी अन्य गुजराती महिला के समान सरल होकर अपने राजनीति सफर में उन्होंने अठारह देशों की यात्रा की है। मेम्बर ऑफ पालियामेंट के तौर पर ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, फ्रान्स, हंगरी, पोलार्ड, यू. ए. एफ और यू. के. इन देशों की यात्रा की है। जीवन में इतना लंबा सफर बिना संकट के तय करना आसान नही है? जयवंती बेन मेहता के जीवन में भी कई संकट आए लेकिन उनके व्यक्तित्व की यही खासियत है कि वे संकट का सामना पूरी धैर्य के साथ करती है। सत्ता के चकाचौंध में नही बहती और किसी भी कार्य के लिए तत्पर्य रहती है। जयवंती बेन मेहता अपने पारिवारिक रिश्तों में तो सफल रही ही साथ ही राजनीती के क्षेत्र में भी सफल रही। घर और काम की जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया। परिवार के लोगों की पसंद-नापसंद का ख्याल रखा अपने हाथों से खाना बनाकर बहुत प्रेम से घरवालों को खिलाया। साथ ही जनता की पीडा को भी समझा। कभी भी विकट स्थिति में पलायन नहीं किया। यही कारण है आज भी लोग उन्हें भुलेश्वर की भवानी नाम से पहचानते है। वे एक सफल बेटी, सफल पत्नी सफल मां के साथ एक सफल व्यक्तित्व है।

जयवंती बेन मेहता से मिलकर उन्हें करीब से समझने और उनकी दिल की बात जानने का मौका मिला। पेश है, उनसे बातचीत के कुछ अंश:

1) आजकल महिलाओं के साथ दुराचार की वारदात बढ़ती जा रही है?

पहले लोग संयुक्त परिवार में साथ रहते थे एक दूसरे के प्रति प्यार और समपर्ण की भावना रहती थी लेकिन अब परिवार टूटता जा रहा है। रिश्ते नाते नहीं रहे। मैं खुद ज्वाइंट फैमिली में रही हूं। ज्वांइट फैमिली में रहकर बडो के छत्र छाया में रहकर बड़े छोटों में फर्क समझते हैं। बडों को सम्मान और छोटों को प्यार देना सिखते है। लेकिन अब सामाजिक बंधन टूटने कारण ऐसी वारदातें बढ़ती जा रही है।

2) देश में भ्रष्टाचार और दहेज की समस्या बढ़ती जा रही है?

पैसों के कारण इंसान ने खुद को गिरा दिया है। दहेज प्रेमी मेहनत ना करके आसान तरीके से पैसे कमाना चाहता है। अपनी इच्छाओं की पूर्ती करने का उसे इससे आसान तरीका नहीं समझ में आता। मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है। क्योंकि ईश्वर ने उसे बुद्धी की शक्ति ही है। जिससे वो सही और गलत में अंतर कर सके अगर व्यक्ति अपनी बुद्धी का सही उपयोग करें तो कुछ भी कर सकता है।

3) एक महिला के लिए शादी करना जरुरी है?

हाँ जरुरी है। शादी एक सामाजिक हिस्सा है। शादी को बंधन ना मानकर निभाना चाहिए मातृत्व को साकार करना चाहिए क्योंकि ये भी ईश्वर की अनमोल देन है। ये हर महिला का धर्म है। और महिला में बहुत शक्ति होती है। वो हर परिस्थिती का सामना कर सकती है।

4) आज के युवाओं को कोई संदेश?

दिल्ली गैगरैप पर जो युवाओ की एकता उभरकर सामने आई है। वो काबिले तारीफ थी। इससे ये बात साबित होती है कि युवाओं को ये सब पसंद नहीं और उन्हें जन जाग्रत होकर ऐसी अप्रिय घटनाओ को होने से रोकना चाहिए। उनके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

5) महिला घर से बाहर कुछ करने के लिए निकलती है। तो शिक्षित लोग भी उनका शोषण करने से पिछे नहीं हटते?

हा लेकिन अगर महिला ना चाहे तो उसके साथ कुछ गलत नहीं हो सकता महिलाओं को काम करना चाहिए। अपने स्वाभिमान को हमेशा बरकरार रखना चाहिए। जितना उनके पास हो उतने में ही खुश रहना चाहिए। अपने मेहनत और निष्ठा केवल पर देर से ही सही लेकिन कामयाबी जरुर मिलेगी। अपने इच्छाओं को सीमित रखकर वे हमेशा खुश रह सकती है। हमारी हिंदू संस्कृती में जो भी निती नियम महिलाओं के लिए बनाए गए थे। वे सारी भावनाएं नष्ट होने लगी है। पुराने रीति रिवाजों का पुनवर्सन होना जरुरी है।

6) राजनीति में महिलाएं कम है? 2014 के चुनाव में महिलाओं का योगदान क्या है?

राजनीति में महिलाओं को अवसर मिलता तो है। लेकिन कभी-कभी परिवार का साथ नही मिलता इसलिए शायद महिलाएं राजनीति में आने से हिचकती है। 2014 चुनाव में महिलाओं को अवसर तो हर पार्टी से मिलेगा। क्या प्रभाव होगा? क्या मानसिकता होगी यह नहीं कह सकती हूं। कितने टिकट मिलेगे या कितना तबज्जों दिया जाएगा कहा नही जा सकता।

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