सुरों की साधना

प्रश्न- अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमी और संगीत में अपने पदार्पण के विषय में बतायें।

उत्तर- संगीत में मेरा पदार्पण मेरी मां श्रीमती नीला घाणेकर की वजह से हुआ। वे स्वयं शास्त्रीय गायिका थीं। उन्होंने पुणे में दत्ता मारूलकर जी से संगीत की शिक्षा ग्रहण की और संगीत में विविद किया। शास्त्रीय संगीत के अलावा भक्तिसंगीत, लाइट म्यूजिक में भी उनकी रूचि थी। वे घर में संगीत की शिक्षा दिया करती थीं। कई विद्यार्थी उनके पास संगीत की सिखने आते थे अत: घर में हमेशा संगीतमय वातावरण रहता था।

बचपन से ही इसी वातावरण में रहने के कारण नैसर्गिक रूप से ही संगीत मेरी रूचि का विषय बन गया। मैं बचपन में अपनी मां से संगीत सीखने की जिद किया करती थी। मेरी इस जिद के कारण एक दिन मां ने तानपुरा लेकर मुझे सिखाना शुरू किया और यहीं से संगीत का सफर शुरू हो गया।

प्रश्न- संगीत के अलावा अन्य किन विषयों में आपकी रूचि रही? क्या कभी संगीत के अलावा और कुछ करने की इच्छा हुई?

उत्तर- बचपन से ही मेरी मां ने संगीत, पढ़ाई, खेलकूद सभी में उचित तालमेल रखने का प्रयत्न किया। संगीत के कारण पढ़ाई की ओर कम ध्यान दिया गया ऐसा कभी नहीं हुआ। संगीत के अलावा मैने अन्य विषयों के बारे में कभी नहीं सोचा। बचपन में रियाज करवाने के लिये मां को जरूर बहुत परेशान किया था। वे हमेशा कहती थी कि तानपुरा लेकर बैठो और रियाज करो परंतु बचपन में जैसे सभी को लगता है कि हमें तो सब आता है मुझे भी ऐसा ही लगता था।

प्रश्न- क्या संगीत की पूरी तालीम आपने अपनी मां से ही ली?

उत्तर- मां ने मेरी तालीम की शुरूवात कर दी थी। बाद में मुझे केन्द्र शासन की ओर से की शास्त्रीय संगीत की शिक्षावृत्ति प्राप्त हुई। इस शिक्षावृत्ती की परीक्षा में जज के रूप में पद्मविभूषण पं. जसराज जी आये थे। मेरी मां को यह एक सुनहरा अवसर लगा और उन्होंने कोशिश शुरू की कि अगर मुझे पंड़ित जी से तालीम मिले तो बहुत अच्छा होगा। पंड़ित जसराज जी की ओर से तालिम देने के लिये हां करने की घटना मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मो़ड़ है। उन्होंने शास्त्रीय संगीत में मेंरी नींव मजबूत करवायी। अभी तक शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत की जो इमारत खड़ी है उसका श्रेय इसी मजबूत नींव को जाता है। मेरी मां और गुरू का जो ऋण मेरे ऊपर है मैं उसे पूरी जिंदगी कोशिश करके भी नहीं चुका सकती।

प्रश्न- आपका नाम साधना घाणेकर से साधना सरगम कैसे हुआ?

उत्तर- शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के सफर के दौरान ही एक मो़ड़ ऐसा आया जब मैं फिल्मी संगीत की ओर मु़ड़ी। उस समय पार्श्वसंगीत के लिहाज से आवश्यक बातों का ज्ञान मुझे कल्याण जी भाई और आनंदजी भाई ने दिया। उन्होंने मुझमें यह विश्वास उत्पन्न किया कि मैं पार्श्वसंगीत में भी अच्छा कार्य कर सकती हूं और शास्त्रीय संगीत की अपनी मजबूत नींव का उपयोग मैं इस क्षेत्र में भी कर सकती हूं।
उन्होंने ही मुझे यह सुझाव दिया कि साधना घाणेकर नाम तो है ही परंतु अगर नाम संगीत से जुड़ा हो तो और भी अच्छा रहेगा। उन्होंने ही साधना सरगम नाम रखा जिसे मेरे परिवार ने भी स्वीकार किया।

प्रश्न- शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत में क्या अंतर है और आप किसे प्रधानता देना चाहेंगी।

उत्तर- मेरे खयाल से अपनी-अपनी जगह दोनों ही महत्वपूर्ण है। शास्त्रीय संगीत, रागदारी संगीत हमारे देश की शान है, जो कि दुनिया में और किसी के पास नहीं है। हर गायक या गायिका को शास्त्रीय संगीत जरूर सीखना चाहिये। इससे उनके सुर पक्के होते हैं। सुरों की समझ बढ़ती है। आवाज का आरोह-अवरोह पता चलता है।

फिल्म संगीत का भी महत्व कम नहीं है। वह भी उतना ही मुश्किल है। दोनों ही प्रकारों के अपने-अपने ढंग है, अपना अपना तरीका है, अपनी-अपनी तकनीक है। शास्त्रीय संगीत ज्यादातर महफिलों में पेश किया जाता है। हालांकि आजकल इनके रेकॉर्ड़ भी बनने लगे हैं। फिल्मी संगीत को एक बार स्टूड़ियों में हेड़फोन लगाकर रेकार्ड़ कर लिया जाता है। जिसे बााद में लोग कई बार सुन सकते हैं। यह तकनीक बिलकुल अलग है।

प्रश्न- क्या शास्त्रीय गायकों या गायिकाओं को फिल्मों में गाकर तसल्ली मिलती है? क्या शास्त्रीय संगीत का इनमें पूर्ण उपयोग होता है?

उत्तर- किसी भी एक गाने में पूरा शास्त्रीय संगीत समाहित नहीं होता। जितनी भी तान, सरगम का मैंने अभ्यास किया है वे पूरी एक गाने में नहीं आ सकती। परंतु शास्त्रीय संगीत में जो भी सीखा है थोड़े-थोड़े पैमाने पर निश्चित रूप से उपयोग होता है। आजकल जो गाने बन रहे हैं उस तरह के ‘टेक्नो बेस्ड़’ और ‘वेस्टर्न म्यूजिक’ वाले गानों को गाने का तरीका अलग होता है। मैंने हालांकि वेस्टर्न म्यूजिक नहीं सीखा हैं। परंतु अगर फिल्म की वैसी मांग है तो मैं भी उस गाने को वैसे ही गाने की कोशिश करती हूं। अगर फिल्म में शास्त्रीय संगीत की मांग है तो वैसा गाना गाया जाता है। इसके कारण विभिन्न तरह के गीत गाने का मौका मिलता है जो मुझे अच्छा लगता है। एक ही प्रकार का संगीत अगर चलता रहा तो सभी ऊब जाते है। अत: इस तरह की विभिन्नता होना आवश्यक है

प्रश्न- आप कई प्रकार के गीत अच्छी तरह गा सकती है। इसका श्रेय किसे देना चाहेंगी?

उत्तर- निश्चित रूप से इसका श्रेय शास्त्रीय संगीत को जाता है। इसके कारण मेरे गायन की नींव परिपक्व हुई और मैं विभिन्न तरह के गीत गा सकी। मेरे खयाल से शास्त्रीय संगीत बहुत महत्वपूर्ण हैं। कुछ ऐसे गायक हो सकते है जो कहते हैं कि इतना ज्यादा सीखने की आवश्यकता नहीं है। थोड़ी बहुत संगीत की जानकारी है तो भी आगे बढ़ा जा सकता है। परंतु जहां तक मेरा अध्ययन है और मेरी रूचि शास्त्रीय संगीत में होने कारण मेरा अनुभव है कि इसके कारण किसी भी प्रकार के गानों को गाने में आसानी होती है।

प्रश्न- आजकल भारतीय फिल्म संगीत पर अरबी संगीत का प्रभाव दिख रहा है। बाहर से आये ऐसे संगीत का भारतीय संगीत पर क्या प्रभाव प़ड़ता है?

उत्तर- भारतीय संगीत खासकर फिल्मी संगीत पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा है। भारतीय सिनेमा अपने सौ साल पूरे कर चुका है। सत्तर, अस्सी नब्बे से लेकर अभी तक तो फिल्मी संगीत का रंग ही बदल चुका है। इसका एक कारण यह भी है कि हमारी जीवन शैली धीरे-धीरे पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रही है। इसका असर फिल्मों पर होता है। फिल्मों की कहानी, फिल्मों का प्रदर्शन, उसका प्रारूप सब कुछ बदलता जा रहा है। जिस तरह की कहानी होगी उसी तरह से उसका संगीत होगा। अगर देवदास जैसी फिल्म है तो उसमें ‘मेलोड़ियस’ गाने होंगे परंतु वैसे ही गाने रेस-2 में नहीं हो सकते। अत: कहानी की मांग के अनुसार संगीत को भी परिवर्तित होना पड़ेगा।

प्रश्न- आजकल फ्यूजन म्यूजिक को बहुत पसंद किया जा रहा है। यह क्या होता है?

उत्तर- मैंने फ्यूजन कभी नहीं गाया है परंतु जितना सुना वह अच्छा लगा। मेरे हिसाब से अन्य बातों की तरह संगीत में भी प्रयोग होते रहना आवश्यक है। एक ही प्रकार के संगीत को गाकर गायक भी ऊब जाते हैं। लोगों को भी ऐसे प्रयोग पसंद आते हैं। जो गीत श्रोताओं को पसंद आते हैं उनकी उम्र लंबी होती है और जो नहीं आते उन्हें लोग जल्दी भूल जाते हैं। फ्यूजन को जितना मैंने सुना है उसके हिसाब से वह कभी-कभी सुनने में अच्छा लगाता है हमेशा नहीं।

प्रश्न- किसी भी तरह के संगीत या गानों की लोकप्रियता का कारण क्या है? जैसे पुराने फिल्मी संगीत आज भी लोकप्रिय हैं।

उत्तर- गीतों की लोकप्रियता का कोई फार्मूला मुझे पता नहीं है परंतु मुझे ऐसा लगता है कि अच्छे शब्द और अच्छी धुनों का संगम जिन गीतों में होता है वे अधिक लोकप्रिय होते हैं, उनकी आयु अधिक होती है। ऐसे गाने लोगों के दिलो दिमाग पर लंबे समय तक छाये रहते हैं। इसके विपरीत जिन गानों में केवल रिदम है, आवाज है, जिनका केवल चित्रिकरण अच्छा है ऐसे गाने थोड़े समय के लिये होते है। इसी तरह का दूसरा आने पर लोग इसे भूल जाते हैं।

प्रश्न- आपने कहा केवल रिदम वाले गाने ज्यादा दिन नहीं चलते। इसका मतलब है गीतों में शब्दों का भी बहुत महत्व है?

उत्तर- बिल्कुल, आज के गीतों में शब्दों को महत्व कम ही दिया जाता है। कोई एक शब्द या लाइन जिसे ‘हुक लाइन’ कहते हैं वही याद रहती है। कभी-कभी तो पूरा मुखड़ा भी याद नहीं होता अंतरे की तो बात ही अलग है। मुखड़े की भी दूसरी तीसरी लाइन याद न रहे ऐसे गीत आजकल बन रहे हैं और पुराने गाने दो-तीन अंतरों तक लोगों को याद रहते हैं। यह इसलिये ही होता है क्योंकि पुराने गानों के शब्द बहुत अच्छे होते थे और उनका सही उपयोग किया जाता था।

प्रश्न- शास्त्रीय संगीत की महफिल और आज के कांन्स्टर्स में क्या अंतर है?

उत्तर- यहां अंतर की जगह यह कहा जाये कि यह श्रोताओं पर निर्भर करता है कि वे क्या सुनना पसंद करते हैं। शास्त्रीय संगीत को समझने वाले, पसंद करने वाले इन महफिलों में जाते हैं। जिन्हे रागदारी संगीत, तान, राग, बंदिश, खयाल नहीं सुनना है वे लोग भक्ति संगीत या लाइट म्यूझिक पसंद करते हैं, आज के युवा ‘फास्ट म्यूजिक’ पसंद करते हैं। अत: यह श्रोताओं की पसंद पर निर्भर करता है।

प्रश्न- तो क्या गायक या गायिका पूरी तरह से श्रोताओं पर निर्भर होते है?

उत्तर- पूरी तरह भी नहीं कहा जा सकता। परंतु श्रोता भी यह जानते हैं कि किस गायक या गायिका से क्या सुनने मिलेगा और वही सुनने की उनकी मानसिकता भी होती है। जैसे अगर लोग मुझे सुनने आये हैं तो उन्हें पता होगा कि साधना सरगम फिल्मों के गीत गाती है तो वे उसी तैयारी से आयेंगे और अगर किसी खां साहब की महफिल में जायेंगे तो उन्हे वहां रागदारी शास्त्रीय संगीत ही सुनने मिलेगा।

प्रश्न- आप स्वयं किस तरह के गीत पसंद करती हैं?

उत्तर- सभी लोगों की तरह मुझे भी पुरानी फिल्मों के गीत बहुत पसंद हैं और अपने गाये हुए भी कुछ गीत पसंद हैं।

प्रश्न- आजकल रीमिक्स गानों का चलन बढ़ गया है। इन गानों को सुनकर कैसा लगता है।

उत्तर- शुरू-शुरू में रीमिक्स सुनकर बहुत अजीब लगता था। मेरी उम्र में सोचती हूं कि जो गाने इतने अच्छे बने हैं इतना अच्छा उनका संगीत है उसे क्यों बदला जा रहा है। परंतु जब-जब मैं यह देखती हूं कि रीमिक्स किये हुए गाने बच्चे भी गुनगुना रहे है तो अच्छा लगता है। उनके लिये गानों का वास्तविक रूप शायद पुराना है पर रीमिक्स की रिदम को वे भी पसंद करते हैं सइलिये सकारात्मक एक बात है कि गाने नये पीढ़ी तक पहुंच रहे हैं।

प्रश्न- आप अपनी जीवन शैली में कितना रियाज कर पाती है?

उत्तर- 3-4 घंटे बैठकर गाने का अभ्यास करना आज की जीवन शैली में संभव नहीं हो पाता पर एक घंटे का रियाज जरूर करती हूं। मेरे लिये रियाज का एक मतलब और है इस क्षेत्र की नयी बातों को जानना। आजकल अलग-अलग तरह के गायक-गायिकाएं पूरी दुनिया में क्या गा रहे हैं यह इंटरनेट के कारण पता चलता रहता है। ट्रेंड़ पता करने के लिये नयी फिल्म के गीत भी मैं सुनती हूं। इससे यह भी पता चलता रहता है कि लोग क्या पसंद कर रहे हैं, कैसे स्टुड़ियों में आवाज को बदला जा रहा है।

प्रश्न- क्या कारण है कि नये आनेवाले गायक-गायिकाएं चाहे वो रियालिटी शो से हों एक-दो गाने गाते हैं और बाद में उनका नाम भी सुनाई नहीं देता?

उत्तर- इसका ठीक-ठीक जवाब दे पाना तो मुश्किल है पर एक बात कही जा सकती है कि आजकल गाने भी इतने ही चल रहे है। एक साल के लिये कोई गाना चला उसे एवार्ड़ मिला फिर दुसरी फिल्म आई दूसरा गाना लोकप्रिय हुआ। एक ही फिल्म में 2-3 संगीतकार होते हैं। आज सभी के पास सबकुछ थो़ड़ा-थो़ड़ा बंटा हुआ है। सब बिखर गया है।
रियालिटी शो से जो लोग आ रहे हैं वे लोग ज्यादातर लाइव शो कर रहे हैं। जब उन्हें फिल्म का गाना मिलता है और हिट होता है तो एक दो गाने और मिलते हैं।

प्रश्न- आपको हिन्दी के अलावा अन्य भाषाओं में गाने में क्या मुश्किलें आती हैं?

उत्तर- मराठी मेरी मातृभाषा है इसलिये उसमें ज्यादा दिक्कत नहीं है। मैने उर्दू लिखना और बोलना सीखा जिससे उच्चारण स्पष्ट हो सके। दक्षिण भारतीय भाषाओं के गीतों का श्रेय, जिसके लिये मुझे नेशनल अवार्ड़ मिला, मैं वहां के संगीतकार और भाषाओं के जानकारों को देना चाहूंगी। मलयालम भाषा मेरे लिये सबसे कठिन है।

प्रश्न- महिला होने के कारण इस इंड़स्ट्री में क्या आपको कभी कुछ अलग महसूस हुआ? कभी कोई अवसर नहीं मिला या कभी कोई खास तबज्जो दी गई?

उत्तर- मेरा अनुभव कुछ ऐसा नहीं था कि मुझे यहां से कुछ अलग मिला हो । मैं अपने लक्ष्य के साथ आगे बढ़ती गई। हमारे यहां अधिकतर फिल्में नायकों के इर्द गिर्द घूमती हैं। इन में नायिकाओं के जो गीत होते हैं वे हमारे हिस्से होते हैं। गानों के बटवारें नायक-नायिकाओं के हिसाब से कम ज्यादा होते रहते हैं बाकी व्यवहार में कोई अंतर नहीं होता।

यह बात हमारे व्यवहार पर भी निर्भर होती है कि हमारा व्यवहार कैसा है। हमारे व्यक्तित्व के आधार पर ही लोग अपना व्यवहार निर्धारित करते हैं। यह केवल इस इंड़स्ट्री में ही होता है ऐसा नहीं है हर इंटस्ट्री में ऐसा ही होता है। मेरे साथ अभी तक कुछ भी गलत नहीं हुआ।

प्रश्न- अभी तक के सफर में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धी किसे मानती हैं।

उत्तर- मुझे ऐसा लगता है कि मेरे गाये हुए गाने लोग आज भी सुनते हैं चाहे वो पहला नशा हो, चुपके से हो, जब कोई बाात बिगड जाये हो या अन्य तो मुझे अच्छा लगता है। सबसे ज्यादा खुशी होती है यह देखकर कि आज की युवा पीढ़ी भी उन गानों को पसंद कर रही है और नई पीढ़ी तक वह गीत चल रहा है।

पूरे सफर में मेरे परिवार का मुझे पूरा सहयोग मिला। मेरे पिताजी हालांकि गाते नहीं थे, परंतु उन्होंने भी मुझे हमेशा प्रोत्साहना दिया।

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