दिल्ली व बेंगालूरु दंगे में दिखा कांग्रेस-पीएफआई कनेक्शन!

कांग्रेस और पीएफआई का आपस में वैसे तो कोई कनेक्शन नही है और यह दावा भी कांग्रेस की तरफ से भी बार बार किया जाता है लेकिन फिर भी कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि जब भी किसी राष्ट्रविरोधी घटना में पीएफआई का हाथ होता है तो वहां कांग्रेस का भी कनेक्शन खुद ब खुद बाहर आने लगता है अब यह मात्र एक संयोग है या फिर सच में कांग्रेस और पीएफआई का आपस में कोई कनेक्शन है? आखिर दोनों के बीच सच में कोई खिचड़ी पक रही है? वैसे देखा जाए तो दोनों में कोई संबंध नहीं हो सकता है क्योंकि एक देश की राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी है जबकि दूसरा राष्ट्र विरोधी इस्लामिक संगठन है और इसके बाद भी कोई संबंध होता है तो फिर यह देश के लिए खतरा है।

11 दिसंबर 2020 को बेंगालूरु में मज़हबी दंगे को अंजाम दिया गया और इसमें भी कांग्रेस के एक नेता का नाम सामने आ रहा है। दरअसल मोहम्मद पैगंबर को लेकर कांग्रेस के एक रिश्तेदार ने फेसबुक पर टिप्पणी कर दी थी जिसके बाद कांग्रेस के दलित नेता अखंड श्रीनिवास के घर पर करीब 200 मुस्लिम उन्मादी पहुंच गये और उनके घर को आग लगा दी। उन्मादी यहीं पर नहीं रुके उन्होने पास के डीजेहल्ली पुलिस स्टेशन को भी आग के हवाले कर दिया और वहां खड़ी गाड़ियों में भी आग लगा दी। इस दंगे में 4 लोगों की मौत हो गयी थी और करीब 90 पुलिसकर्मी घायल हुए थे। वैसे कहने के लिए यह मुस्लिम उन्मादियों का विरोध था लेकिन इनके विरोध में 4 लोगों की मौत हो गयी, 200 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया और करीब 90 पुलिसकर्मी घायल हो गये। अब सवाल यह है कि यह विरोध था या फिर साज़िश?

इस दंगे की शुरुआती जांच में पुलिस ने यह साक्ष्य पेश किया है कि यह घटना पहले से ही सुनिश्चित थी और पूरी तैयारी के साथ इसको अंजाम दिया गया है। पुलिस ने यह भी दावा किया है कि कांग्रेस की आपसी रंजिश की वजह से ही इस घटना को अंजाम दिया गया है क्योंकि इस दंगे में कांग्रेस के दलित नेता के घर को आग लगा दिया गया और कांग्रेस नेता बड़े नेता डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने इस दंगे को मात्र एक विरोध बताया और कहा कि फेसबुक पर पैगम्बर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद यह एक समुदाय द्वारा विरोध दर्ज कराया गया था। शुरुआती जांच में यह पता चला है कि कांग्रेस नेता श्रीनिवास मूर्ति के राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने इस दंगे की साज़िश रची थी और पीएफआई और एसडीपीआई के लोगों को भी शामिल किया गया था।

इस घटना के बाद कर्नाटक पुलिस की अपराध शाखा ने जो फाइल तैयार की है उसमें कांग्रेस के दो स्थानीय नेताओं को आरोपी बनाया गया है। पूर्व महापौर संपत राज और अब्दुल रकीब जाकिर को पुलिस ने आरोपी बनाया है। वहीं दंगा भड़काने के आरोप में एसडीपीआई नेता मुजम्मिल पाशा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने बताया कि मुजम्मिल पाशा ने ही फेसबुक पोस्ट को आधार बनाकर भीड़ इकट्टठा की और भी लोगों को भड़का कर दंगे करवाये।

आप को बता दें कि इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का राजनीतिक संगठन है जो पीएफआई के साथ खड़ा रहता है। इससे पहले सीएए के विरोध में भी दिल्ली दंगे में पीएफआई और एसडीपीआई का हाथ सामने आ चुका है। दिल्ली दंगे में भी आम आदमी पार्टी के नेता ताहिर हुसैन और पीएफआई की नाम सामने आया था।

कांग्रेस पार्टी और पीएफआई का कनेक्शन अब धीरे धीरे बाहर आने लगा है। 2019 में राहुल गांधी ने दो संसदीय सीटों से चुनाव लड़ा था जिसमें एक उत्तर प्रदेश की परंपरागत सीट अमेठी थी लेकिन उन्हे पहले से ही आभास था कि वह यहां हारने वाले है इसलिए उन्होने केरल के वायनाड से भी नामांकन दाखिल कर दिया था। राहुल के वायनाड से नामांकन के बाद यह आरोप लगे थे कि राहुल ने अपनी राजनीतिक साख बचाने के लिए मुस्लिम सांप्रदायिक ताकतों का सहयोग ले रहे है। केरल माकपा के सचिव कोडियरी बालाकृष्णन ने कहा था कि, मुस्लिम लीग ने जमाते इस्लामी और एसडीपीआई से गठबंधन कर लिया है क्योंकि इनका कांग्रेस और अन्य के मुकाबले वायनाड में खासा असर है। इससे पहले 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान एसडीपीआई ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए अपने सभी उम्मीदवारों को हटा दिया था।

कांग्रेस पार्टी और एसडीपीआई का गठबंधन तो हो सकता है क्योंकि दोनों ही राजनीतिक पार्टियां है और इसमें कुछ गलत भी नही है लेकिन जिस तरह से दिल्ली और बेंगालूरु दंगे में कांग्रेस और पीएफआई का संबंध नजर आ रहा है वह गलत है और इसके खिलाफ आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की जरुरत है।

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