कोहरे में कोरोना

स्मॉग के रास्ते कोरोनावायरस हमारे सांस और फेफड़ों में पहुंच सकते हैं, जो इनके संक्रमण का असली पड़ाव और आश्रय स्थल है। इसलिए जरूरी है कि वैक्सीन या कारगर दवाई आने तक सभी लोगों द्वारा सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी हिदायतों का सख्ती से पालन किया जाए। मास्क स्मॉग के साथ-साथ कोरोनावायरस के प्रवेश को भी रोकेगा। हाथों को साबुन से धोना और दो गज की दूरी तो है ही जरूरी।

गर्मियां खत्म हुईं और ठंड ने दस्तक दे दी। साथ ही अब दिल्ली और आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के घरों में कैद होने के दिन भी आ गए। कोरोनावायरस ने पहले ही लोगों को घर में बंदी बना रखा था और रही-सही कसर कोहरे में घुला प्रदूषण पूरा करने आ गया। यह शहर बीते कुछ सालों से सर्दी के आते ही गैस चैम्बर में तब्दील हो जाता है। इस बार फिर से प्रदूषण के स्तर में जिस तरह की बढ़ोतरी देखी जा रही है, उससे यह साफ है कि इस बार फिर से दम घोंटने वाली हवा में हमें सांस लेना होगा। हर साल हम अखबार और टीवी पर स्मॉग के बारे में पढ़ते-सुनते आ रहे हैं कि देश के कुछ शहरों में दीवाली के समय या उससे कुछ दिन पहले हवा में प्रदूषण का स्तर बेइंतहा बढ़ जाता है। यह हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती है।

कोहरा है प्राकृतिक और ‘स्मॉग’ मानवजनित

पिछले कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि ठंड की शुरुआत होने से पहले ही हमारे वातावरण में हल्के मटमैले रंग की धुंध नजर आने लगती है। इसकी वजह से अक्सर हमारी आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ भी होती है। जिस धुंध को हम कोहरा समझने की भूल कर देते हैं, दरअसल वह खतरनाक और जहरीला स्मॉग होता है। स्मॉग शब्द का प्रयोग सबसे पहले साल 1900 की शुरुआत में लंदन में किया गया था। ‘स्मॉग’ दो शब्दों से मिलकर बना है ‘स्मोक’ और ‘फॉग’। अर्थात जिस कोहरे में प्रदूषण का धूंआ घुला हो, उसे मौसम विज्ञान की भाषा में ‘स्मॉग’ कहते हैं। यह कोहरा पीला या काला होता है, जो वायु प्रदूषण का एक विशेष प्रकार होता है। आसान शब्दों में यह स्मॉग, धूल और कई प्रकार की जहरीली गैसों जैसे कि नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर से मिलकर बनता है। दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में स्मॉग के लिए मुख्यत: मोटर वाहनों से निकला धूंआ और खेतों में पराली के जलाने को जिम्मेदार माना गया है।

स्मॉग का कारण और विज्ञान

महानगर स्मॉग के लिए बदनाम और सबसे ज्यादा संवेदनशील स्थान होते हैं क्योंकि यहां पर ट्रैफिक जरूरत से ज्यादा होता है और जहां ट्रैफिक है, वहां वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य शहरों की तुलना में ज्यादा होना स्वाभाविक है। महानगरों में वाहनों से निकले धूंए की वजह से यहां वायु प्रदूषण तो हमेशा रहता है, लेकिन प्रश्न यह है कि मटमैला धुंध या स्मॉग केवल सर्दी आने से पहले और दीवाली के आसपास के दिनों में ही क्यों आसमान में दिखाई देता है। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि सर्दी की शुरुआत में सुबह और शाम के समय वायुमंडल में पानी की नन्ही बूंदें लटकती रहती हैं। ट्रैफिक और पराली से उठा धूंआ जब आसमान में ऊपर उठता है तो इन ओस की बूंदों में उलझ जाता है। हवा की गति कम होने से यह धूंआ वायुमंडल से बाहर नहीं निकल पाता और इस वजह से हमें आसमान में स्मॉग या काले रंग की धुंध नजर आने लगती है। जब दीवाली आती है तो उस दौरान होने वाली आतिशबाजी से जो धूंआ निकलता है, वह भी ओस की बूंदों में उलझकर स्मॉग उत्पन्न करता है। यह केवल भारत की समस्या नहीं है, दुनिया के कई बड़े शहर सर्दी के मौसम में स्मॉग की चपेट में आ जाते हैं। भारत के कई महानगरों और खासतौर पर दिल्ली में स्मॉग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इसकी वजह से पिछले करीब 15 सालों में एक खतरनाक स्थिति पैदा हो गयी है।

वायु प्रदूषण को मापने के लिए पीएम 2.5 माइक्रॉन के कण को आधार बनाया गया है। पीएम 2.5 के लिए सामान्य वायु प्रदूषण का स्तर 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर होता है। यह स्तर सामान्य वायुमंडल का स्तर है जो मनुष्य और पर्यावरण के लिए अनुकूल समझा जाता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि दिल्ली एनसीआर में वायुमंडल में प्रदूषण का यह स्तर 300 से लेकर 700 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर पाया जाता है। यही नहीं, दिल्ली के कुछ इलाकों में तो यह स्तर 900 तक पाया गया है। यह बेहद घातक स्थिति है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वायु प्रदूषण के स्तर को समय-समय पर मापता रहता है और जरूरी दिशा निर्देश भी जारी करता है ताकि आम जन वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति को लेकर जागरूक रहें। वायु प्रदूषण में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर हमारी सांस के रास्ते फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और दमा, लंग कैंसर जैसी अनेक गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं।

स्मॉग की इस डरावनी स्थिति के पीछे मुख्य जिम्मेदार दिल्ली-एनसीआर में दौड़ रहे वाहन हैं जो हर दिन पिछले दिन से ज्यादा बढ़ते ही जा रहे हैं। इसके अलावा दूसरे राज्यों से आने वाले लाखों वाहन भी दिल्ली के वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं और यहां रहने वालों की सेहत को खतरे में डालते हैं। एक आंकड़े के अनुसार दिल्ली की सड़कों पर एक करोड़ से भी ज्यादा वाहन दौड़ते हैं। इसमें देश के दूसरे राज्यों के वाहनों का योगदान भी कम नहीं है। कुछ साल पहले तक दिल्ली में वाहन से होने वाला वायु प्रदूषण 30 प्रतिशत हुआ करता था जो अब बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया है। इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर की सीमाएं हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से लगती हैं, जहां बड़ी मात्रा में खेती की जाती है। किसान भाई बरसों से फसल की कटाई के बाद फसल अवशेष जिन्हें पराली कहते हैं, उन्हें खेत में ही जला देते हैं। इसमें बहुत ज्यादा मात्रा में धूंआ उत्पन्न होता है। यही नहीं, खेतों में यूरिया और दूसरे कृषि रसायनों, कीटनाशकों के अनुचित प्रयोग के कारण हमारे वायुमंडल में मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों की मात्रा भी बढ़ जाती है। ये गैसें ‘स्मॉग’ के साथ घुलकर और भी खतरनाक हो जाती हैं।

हर साल हम देखते हैं कि दीवाली के बाद स्मॉग बहुत ज्यादा खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। यह वातावरण से होता हुआ हमारे घरों में पहुंचने लगता है। यह एक भयानक स्थिति है क्योंकि स्मॉग के वातावरण में सांस लेना मुश्किल होता है और लोगों का दम घुटता है। दीवाली के समय अत्यधिक आतिशबाजी से उठने वाला धूंआ भी स्मॉग की एक मुख्य वजह बनता है।

भारत ही नहीं, दुनिया के कई देश और उनके शहर ‘स्मॉग’ की मार झेल रहे हैं। अमेरीका, चीन जैसे अनेक देश और लॉस एंजिल्स, बीजिंग, तेहरान जैसे उनके कई शहर स्मॉग से प्रभावित होते हैं। कई देशों ने स्मॉग से बचाव के लिए अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण इकोफ्रेंडली कदम भी उठाए हैं। जैसे कि चीन ने कोयले के इस्तेमाल में 70 प्रतिशत तक कमी लाने और साल 2020 तक कोयलामुक्त होने का लक्ष्य तय किया है। चीन ने कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग पर जोर दिया है। इसमें सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों से भरे गोले हवा में दागे जाते हैं जो आसमान के बादलों को बरसाते हैं। इसके द्वारा वायुमंडल के निचले हिस्से में मौजूद स्मॉग के छंटने में सहायता मिलती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन एक अरसे से दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देशों को प्रदूषण पर काबू करने के लिए आगाह करता रहा है। खासतौर पर वायु प्रदूषण और स्मॉग को लेकर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के सभी प्रदूषण से प्रभावित देशों को जरूरी दिशा निर्देश जारी किए हैं।

स्मॉग हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। इसलिए इसे आपात स्वास्थ्य स्थिति के रूप में भी जाना जाता है। बुजुर्ग, छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बीमार लोग स्मॉग को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। यही नहीं, स्मॉग हमारे शरीर में विटामिन डी के निर्माण में बाधा डालता है, इसलिए ज्यादा समय तक स्मॉग के माहौल में रहने से रिकेट्स बीमारी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। स्मॉग में दरअसल वाहनों के धूंए से निकले सूक्ष्म पार्टिकुलेट कण के अलावा, नाइट्रोजन मोनोआक्साइड और सल्फर डाइआक्साइड जैसी जहरीली गैसें मिल जाती हैं और ये सभी हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। स्मॉग हमारी त्वचा के लिए भी नुकसानदायक होता है। खासतौर पर जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, उनको स्मॉग और भी अधिक नुकसान पहुंचाता है। स्मॉग का बुरा असर हमारे श्वसन तंत्र पर सबसे ज्यादा होता है। सीने और आंखों में जलन और खांसी तो स्मॉग से जुड़ी सबसे सामान्य समस्याएं होती हैं। इनके अलावा, छोटे बच्चों में निमोनिया की यह मुख्य वजह बनती जा रही है। स्मॉग के बढ़ते प्रकोप से गले और फेफड़े के कैंसर की समस्या लोगों में तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह से दमा की बीमारी और गंभीर हो जाती है। दूसरी तरफ दमा के अटैक और फेफड़े के संक्रमण के कारण अब मरने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। फेफड़े के संक्रमण के अलावा, सांस लेने में मुश्किल, सांस लेते समय सीने में दर्द, थकान, सिर में दर्द, दम घुटने की वजह से उल्टी होना जैसी स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से अपने पांव पसार रही हैं।

कोहरे में कोरोना का भय

दिसंबर 2019 से दुनिया कोरोनावायरस की महामारी से जूझ रही है। अभी इस कोविड-19 नामक संक्रामक बीमारी की कारगर दवा और वैक्सीन नहीं आई है, उसके पहले सर्दी का मौसम और कोहरा आ गया। महामारी विज्ञानियों ने पहले ही इस बात का पूर्वानुमान व्यक्त किया था कि सर्दी में कोरोना की दूसरी लहर (सेकंड वेव) आयेगी। यह बात भले कड़वी लगती हो, लेकिन इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि कम तापमान वायरस और बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों के लिए अनुकूल होती है इसलिए सर्दी के मौसम में इनकी आबादी बढ़ती है और साथ में बढ़ता है संक्रमण। ऐसे में कोरोनावायरस के दोबारा बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

स्मॉग के रास्ते कोरोनावायरस हमारे सांस और फेफड़ों में पहुंच सकते हैं जो इनके संक्रमण का असली पड़ाव और आश्रय स्थल है। इसलिए जरूरी है कि वैक्सीन या कारगर दवाई आने तक सभी लोगों द्वारा सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी हिदायतों का सख्ती से पालन किया जाए। मास्क स्मॉग के साथ-साथ कोरोनावायरस के प्रवेश को भी रोकेगा। हाथों को साबुन से धोना और दो गज की दूरी तो है ही जरूरी।
वायु प्रदूषण से जुड़ी इस समस्या का तत्काल समाधान कर पाना तो संभव नहीं है मगर हम अपने व्यवहार, आदत और दिनचर्या में मामूली परिवर्तन लाकर इस समस्या को काफी हद तक कम कर सकते हैं। अभी हाल के समय में इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इससे जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता में कमी लाई जा सकती है। ‘एक वाहन, अकेले सफर’ की आदत में हमें बदलाव लाना होगा और इसके स्थान पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेना होगा।

ट्रैफिक और वाहनों के प्रदूषण के अलावा हमें दीवाली जैसे त्यौहार में पटाखों और आतिशबाजी को कम करते हुए ग्रीन दीवाली की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। दीवाली के आसपास पराली जलाने की किसानों की मजबूरी को सरकार ने विशेष ध्यान दिया है। अनेक सब्सिडी और योजनाएं चलाई जा रही हैं। लोगों में जागरुकता लाकर पराली की समस्या भी खत्म हो सकती है। पराली का सड़क निर्माण में प्रयोग जैसे सकारात्मक और नवाचारी उपाय समय की जरूरत है। कई देशों में इस तरह के प्रयोग चल रहे हैं। भारत में भी इस तरह के प्रयास आवश्यक हैं।

Leave a Reply