बड़बोले नेता और फिसलती जुबान

बहुत दिनों से समाचार पढ़ते और टी.वी. देखते हुए यह ध्यान में आया कि भारत में एक नयी तरह की बीमारी अपना पैर पसार रही है। यह बीमारी है नेताओं की जुबान फिसलने की। जब भी देखिये कभी न कभी, कहीं न कहीं किसी मन्त्री या नेता की जीभ बोलते समय फिसल ही जाती है। आखिर ऐसा क्यों होता है? मन्त्रियों की जीभ हमेशा फिसल क्यों जाती है? यह एक शोध का विषय हो सकता है। महाराष्ट्र के उप मुख्यमन्त्री अजीत पवार ने अपने वक्तव्य से राज्य और देश को बेआबरू किया है। महाराष्ट्र के भयंकर सूखे पर इंदापुर में बोलते हुए उन्होंने किसानों की सभा में पेशाब वाली बात कही। महाराष्ट्र राज्य में 1972 के पश्चात अब तक का सबसे भयंकर सूखा पड़ा है । इंसानों और पशुओं को पीने का पानी नहीं है। अनेक तहसीलें एकदम सूखी पड़ी हैं। उद्योग धंधे भी पानी के अभाव में ठप पड़ते जा रहे हैं। भयंकर सूखे से लोगों को अपना घर‡बार छोड़ना पड़ रहा है। पशुओं के लिए चारा शिविर बनाये गए हैं, जहां पर टैंकर द्वारा पानी पहुंचाया जा रहा है। पानी की तरह पैसा खर्च करने पर भी लोगों के सामने ‘पानी‡पानी’ चिल्लाने की नौबत आ गयी है। ऐसी भयंकर परिस्थिति में भी महाराष्ट्र की सरकार और उसके उप मुख्यमन्त्री गम्भीर नहीं दिखायी पड़ रहे हैं। इंदापुर में सूखा पीड़ितों की सभा में अजीत पवार ने कहा, ‘बांध में पानी नहीं है तो क्या छोड़ा जाय? क्या पेशाब करने से पानी आएगा? पीने के लिए पानी नहीं है तो पेशाब भी नहीं हो सकती।’ महाराष्ट्र के उप मुख्यमन्त्री ने विशेष भाव भंगिमा के साथ यह वक्तव्य दिया। उन्होंने सूखा पीड़ितों से अपरोक्ष रूप से कहा कि पानी नहीं है तो पेशाब पियो। सूखा पीड़ितों की गम्भीर अवस्था पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने के बजाय अजीत पवार ने उनका उपहास किया है। उन्होंने आग में घी डालने का कार्य किया है। सुसंस्कृत महाराष्ट्र के नादान उप मुख्यमन्त्री ने अपने गैर जिम्मेदार भाषण से अपने भीतर पल रहे पशु समान विचारों का दर्शन पूरे भारत वर्ष को कराया है।

यही नहीं, इसके साथ ही उन्होंने किसानों की स्त्रियों पर भी अशोभनीय टिप्पणी की है। अजीत पवार ने कहा, ‘बिजली अधिक जाने लगी, इसलिए बच्चों का जन्म दर भी बढ़ गया। कारण कि बिजली न होने पर वे और अन्य कार्य क्या कर सकते हैं?’ सत्ता के मद में डूबा हुआ व्यक्ति किस प्रकार से बात करता है, इसका सबसे वीभत्स उदाहरण अजीत पवार का यह भाषण है। अजीत पवार ने जिस समय यह भाषण दिया, उस समय सभा मेंसामने बैठी महिलाएं शर्म से पानी‡पानी हो गयीं। महाराष्ट्र में पड़े भयंकर सूखे पर भाषण देते हुए उन्हें स्त्रियों पर टिप्पणी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अजीत पवार के घर की बहन‡बेटियां समाजिक कार्य, राजनीतिक कार्य में हैं, उन्हें स्त्रियों का आदर करने की शिक्षा देनी चाहिए। संकट से जूझ रहे किसानों और उनके घर की स्त्रियों को अपमानित करने का अधिकार आखिर अजीत पवार को किसने दिया है?

कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं द्वारा समाज के लोगों, महिलाओं और हिंदुओं का अपमान करने की अनेक घटनाएं इन दिनों हो रही हैं। सार्वजनिक स्थलों पर स्त्रियों और हिंदू समाज का उपहास करते हुए ये कांग्रेसी नेता अपनी कुसंस्कृतिका परिचय देते हैं। केन्द्रीय मन्त्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कुछ दिन पहले कहा था कि स्त्रियां पुरानी हो जाती हैंतो वे बेमजा हो जाती हैं। उनके इस वक्तव्य से सुनने वालों को आघात लगा था।

दिल्ली की उस भयंकर और घिनौनी घटना के बाद कोई भी नेता अपने मगरमच्छ के आंसू बहाने और महिलाओं को ही उपदेश देने में पीछे नहीं रहा। बलात्कार के सन्दर्भ में कानून, पुलिस की जिम्मेदारी, महिलाओं की सुरक्षा के लिए उपाय योजना इत्यादि विषयों पर पूरे देश में जब चर्चा हो रही थी, तब भी नेतागण दस प्रकार की बातें बना रहे थे। इस घटना के बाद सभी ने मुंह खोल के चर्चा की। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी जो जैसे‡तैसे जीतकर सांसद बने थे, ने दिल्ली की घटना के विरोध में आयी महिलाओं को ‘सज-धजकर आयी फैशनेबल’ महिलाओं के रूप में सम्बोधित किया। इस पूरे मामले में एक बात समझ में नहीं आती कि इन सभी मजाकों, उपहासों का केन्द्र बिन्दु महिलाएं ही क्यों होती हैं? इस तरह की टीका-टिप्पणी से ये नेता लोग न सिर्फ महिलाओं और समाज को गरिमाहीन कर रहे हैं, बल्कि स्वत: को भी गरिमाहीन कर रहे हैं। अजीत पवार, श्रीप्रकाश जायसवाल, अभिजीत मुखर्जी इत्यादि नेताओं की मानसिकता कितनी गिरी हुई है, यह साफ जाहिर होता है। नेतृत्व करने वाला नेता कभी भी इस तरह की विकृत मानसिकता लेकर नहीं चलता। उसके दिल‡दिमाग में नये विचारों का प्रकाश होता है, जो कि इन जैसे नेताओं में नहीं है।

आजकल कई नेता पैसों के दम पर चुनाव जीत जाते हैं। उन्हें आधुनिक समाज की धारणाओं का ज्ञान ही नहीं होता। उन्हें इससे कोई लेना‡देना भी नहीं होता, न उनके पास विवेक है न विचार। केवल टी.वी. पर प्रसिद्ध हो जाने से कोई नेता नहीं बन जाता। नेता की स्वयं की विचारधारा होती है। जिस नेता में विचारों का अभाव होता है, वे ही इस प्रकार के शर्मिन्दा करने वाले प्रसंग लोगों के सामने रखते हैं। हमारे यहां डॉ. आंबेडकर, महात्मा फुले, राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे अनेक सुसंस्कृत नेताओं की परम्परा रही है। इस बात को अजीत पवार जैसे नेतागण शायद भूल गये हैं।

नेता केवल बक‡बक करने वाली मशीन बनते जा रहे हैं। समाज की समस्याओं को सुलझाने के बजाय पर प्रसिद्ध होने के लिए ये कुछ भी बकवास करते रहे हैं। कभी‡कभी तो प्रत्यक्ष हिंसा से अधिक इनकी यह बकवास ही हिंसक लगती है। शाही इमाम से लेकर अबू आसिम आजमी तक; सभी लोग भड़काऊ भाषण देने के लिए प्रसिद्ध हैं।

ग्रमीण विकास मन्त्री जयराम रमेश ने कुछ समय पहले कहा था कि हमारे देश में शौचालयों से ज्यादा संख्या मन्दिरों की है। इस बात से उन्होंने देश के 85 प्रतिशत हिंदुओं का अपमान किया था। मन्दिर और शौचालय का क्या सम्बन्ध है? तुलना करने के लिए इन्हें हिंदुओं के मन्दिर ही क्यों दिखायी देते हैं? केन्द्रीय गृहमन्त्री सुशील कुमार शिंदे ने हिंदुओं के सबसे बड़े सेवाभावी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर और विरोधी पक्ष भारतीय जनता पार्टी पर देश में आतंकवादी तैयार करने का और आतंकवाद फैलने वाले शिविर चलाने का आरोप लगाया था। इस बेतुके और गैर जिम्मेदाराना आरोपों से पूरा हिंदू समाज चिढ़ गया है। जिस हिंदू समाज ने एक हजार साल तक मुस्लिम आक्रमणकारियों के अमानुषिक अत्याचार का सामना किया, उस िंंहंदू समाज के किन गुण-दोषों को देखकर सुशील कुमार शिंदे ने उसे आतंकवादी शब्द से जोड़ने का प्रयास किया?

‘मुंहफटे बोल मत’ कहते हुए भी सुशील कुमार शिंदे, अजीत पवार, श्रीप्रकाश जायसवाल, जयराम रमेश, अभिजीत मुखर्जी, दिग्विजय सिंह जैसे मानसिक सन्तुलन खोये हुए नेता कुछ ऐसा कहते हैं, जिसका उन्हें और उनकी पार्टी (कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस) दोनों को खामियाजा भुगतना पड़ता है। इन लोगों के द्वारा किये गए बकवास भाषणोंके कारण इनके ‘आइ.क्यू. लेवल’ पर भी शंका उत्पन्न होने लगती है।

इन्हे समझ में नहीं आता कि क्या कहना है। भाषण देते समय उनकी जुबान पर उनका नियन्त्रण नहीं रहता; पहले भाषण देते हैं फिर अपने वाक्यों को वापस लेते हैं। ‘मेरे कहने का वह मतलब नहीं था’ यह कहते हुए उसके लिए क्षमा मांगते हैं। ‘मेरे भाषण का गलत मतलब निकाला गया है’ जैसे नेतागिरी वाले बयान समाज के मुंह पर मारते हैं। राजनीति में टीका‡टिप्पणी करना और फिर उससे पलटना एक परम्परा बन गयी है । परन्तु अब तो इस परम्परा ने कलाबाजी का स्वरूप ले लिया है। कुछ नेता अनजाने में ऐसे वाक्य बोल जाते हैं, परन्तु कुछ तो जानबूझकर विवादित भाषण देते हैं। नेता नामक प्राणी अच्छी तरह से जानता है कि उसे किस विषय पर क्या बोलना है, किसके सामने बोलना है। उनकी किस टिप्पणी पर कितनी चर्चा होगी। राजनीति के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के लोगों का उदय हो रहा है। इन लोगों को इस तरह की बातों का उत्तम अभ्यास और अभिमान भी होता है।

पहले टिप्पणी करना और उससे पलटी मारने की परम्परा रास्ते से लेकर संसद तक आम हो गयी है। टिप्पणी संसद से लेकर कहीं पर भी की जा सकती है। टिप्पणी करने से दोहरा लाभ होता है। कहने वाला अपनी बात कह जाता है और जिसे सुनानी होती है, उस तक वह पहुंच भी जाती है। अगर उसकी टिप्पणी पर कुछ ज्यादा ही बवाल हुआ, तो वह पलटी मारकर बच भी जाता है।

फिलहाल ऐसा दिख रहा है कि नेताओं की जीभ पर कुछ ज्यादा ही धार चढ़ गयी है। किसे पता कौन सी बेशरम विषाणु इनकी जीभ पर चिपक गयी है, जिसके कारण इनकी जीभ फिसलती ही जाती है। परिणाम यह होता है कि इन नेताओं को धर्म-संस्कृति, महिलाओं का चरित्र, समाज के दुख‡दर्द कुछ भी दिखायी नहीं देते। हमारे यहां प्राचीन काल में भी गलत बयानबाजी के कारण संघर्ष हुआ है। महाभारत युद्ध भी द्रौपदी द्वारा दुर्योधन पर की गयी गलत टिप्पणी के कारण ही हुआ था। अपने देश का व्यक्ति, समाज और राष्ट्र‡जीवन अनेक उतार‡चढ़ाव से बना इतिहास इन्हीं गलत बयानों के कारण बना है।

कांग्रेस और अन्य पार्टियों के अजीत पवार, सुशील कुमार शिंदे, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश ने तो गैर जिम्मेदाराना और बेतुकी बयानबाजी की श्रंखला ही शुरू कर दी है। वे तो अब पीड़ित समाज को पानी की जगह मूत्र पीने की नसीहत देने तक गिर चुके हैं। इनके वाक्य न केवल गैर जिम्मेदाराना हैं, वरन आक्षेपार्य हैं। जिसका दिमाग सही कार्य कर रहा है, वह कोई भी व्यक्ति ऐसा गैर जिम्मेदाराना बयान नहीं देगा। ‘जैसी प्रजा वैसा राजा’ होने के कारण इसका दोष केवल नेताओं के सिर पर मढ़ना ठीक नहीं है। अगर जनता उनके गलत भाषणों पर ताली बजा रही है, तो यह जनता का दोष है। जब इस तरह के भाषणों के उत्तर में नेताओं के मुंह काले किये जाएंगे, तो शायद यह नजारा बदलेगा। इन सफेदपोश बदमाशों के बारे में इतना ही कहना चाहूंगा कि‡
बुलबुल‡ए‡नादां जरा रंग‡ए‡चमन से होशियार।
फूल की सूरत बनाये सैकड़ों सैयाद हैं॥

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