ये बैनर, ये पोस्टर, ये कटआउट्स की दुनिया…

मैं और मेरा माली अक्सर ये बातें करते हैं, ये बैनर न होते तो कैसा होता, ये पोस्टर न होते तो कैसा होता…। अरे,अरे! कहीं आप यह तो नहीं सोच रहे हैं कि मैं जावेद साहब की रचना को तोड़ने‡मरोड़ने की कोशिश कर रहा हूं। नहीं जी ! मेरी इतनी हिम्मत कहां। मैं तो बस मेरे और मेरे माली के बीच हुई बातचीत को याद कर रहा था कि ये पंक्तियां सुनायी दी और मेरे विचार की धारा में बह गयीं।

दरअसल, मैं सुबह बगीचे में बैठकर चाय पीते‡पीते अखबार पढ़ने का आनन्द ले रहा था कि वहीं काम कर रहे मेरे माली ने मुझसे पूछा, ‘‘साहब जी! क्या ये पॉलिटीसियन लोग हीरोज बनना चाहते हैं?’’ उसके अंग्रेजी बोलने के शौक से तो मैं परिचित था, परन्तु इस धमाकेदार सवाल के लिए तैयार नहीं था। मैंने पूछा, ‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?’’

वह बोला, ‘‘अब देखिये ना, ये नेता हर पोस्टर में अलग‡अलग पोज में दिखायी देते हैं। कभी हाथ हिलाते हुए तो कभी हाथ जोड़े हुए। हमारे यहां जब कोई नयी‡ नयी फिलिम लगती थी, तो हीरोज और हीरोइनियों के जे बड़े‡बड़े पोस्टर लगाये जाते थे और एक रिक्सा वाला बड़ा सा भोंपू लिये उस फिलिम की एडबरटाइजमेन्ट करता था।’’

मैंने उसे समझाया, ‘‘अरे भाई! आजकल विज्ञापन का जमाना है। जिस तरह बिना विज्ञापन दिये यह पता नहीं चलता कि बाजार में क्या बिक रहा है, वैसे ही बिना पोस्टर लगाये यह पता नहीं चलता कि कौन से नेता मार्केट में हैं, क्योंकि काम तो ये लोग करते नहीं कि लोगों को दिखायी दें।’’

‘‘अच्छा जे बात है। वही तो मैं सोचूं कि इन्हें ये सब तामझाम करने की क्या जरूरत आ पड़ी। पर साहब जी! इनके पोस्टरों ने मेरी भी नींद उड़ा रखी है।’’ वह बोला।

मैंने पूछा, ‘‘उनके पोस्टर से तुम्हारी नींद का क्या सम्बन्ध?’’
फिर वह अपनी अंग्रेजी झाड़ते हुए बोला, ‘‘अरे साहब जी! वेरी बिग रिलेसन है। इन पोस्टरों को देखकर मेरा बेटा भी जिद पकड़े बैठा है कि या तो मैं उसे उसके बर्थ डे पर साइकल दिलवाऊं या उसके स्कूल के रास्ते पर पड़ने वाले हर उन नाकों पर वैसे ही पोस्टर लगवाऊं, जैसे इन नेताओं के जनमदिन पर लगते हैं। उसने तो अपने फ्रेंड के केमरे से अलग‡अलग पोज में फोटुएं भी खिंचा ली हैं। अब बताइए, पहले हम लोग अपने फोबरेट हीरो की तरह हेयर इस्टाइल बनाते थे, जिससे चार लोग हमें देखें और आजकल के बच्चे तो फेमस होने के लिए सीधे पोस्टर की बात कर रहे हैं।’’

मन तो कर रहा था कि उसे कहूं कि अपने बेटे को नेता बनने के लिए प्रोत्साहित करे। बिना काम किये सबसे ज्यादा पैसा कमाने का यही जरिया है। फिर यह सोच कर चुप हो गया कि नैतिकता भी किसी चिड़िया का नाम है।

और फिर एक बार मेरा मन साहिर लुधियानवी साहब की पंक्तियों की ओर गया , ये बैनर, ये पोस्टर, ये कटआउट्स की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है…

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