निक्षेप बीमा क्यों सिर्फ सहकारी बैंकों की आवश्यकता है?

पलाई सेन्ट्रल बैंक लि. तथा लक्ष्मी बैंक लि. के विफल होने से जमा राशियों पर बीमा देने के सम्बन्ध में गम्भीर विचार हुआ और उसके उपरान्त 21 अगस्त 1961 को संसद में ‘निपेक्ष बीमा निगम’ (डी.आई.सी.) बिल लाया गया। संसद में बिल के मंजूर होने के बाद 7 दिसम्बर 1961 को सम्पत्ति अधिनियम 1961 के अनुसार 1 जनवरी 1962 से प्रभावी हुआ।

प्रारम्भ में यह सुरक्षा कवच वाणिज्यिक बैंकों को प्रदान किया जिसमें वाणिज्यिक बैंकों के साथ स्टेट बैंक और उसकी सहायक संस्थाएं और देश में परिचालित विदेशी बैंकों की शाखाएं शामिल की गयीं।

1968 में निक्षेप बीमा निगम के अधिनियमों में संशोधन करने के बाद बीमा कवच सहकारी बैंकों को भी दिया गया।

14 जनवरी 1971 को रिजर्व बैंक ने एक कम्पनी श्ाुरू की जिसका नाम क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड रखा गया।

15 जुलाई 1978 को निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी अस्तित्व में आये।

अप्रैल 1981 से निगम ने छोटे एवं लघु उद्योगों के स्वीकृत ॠ ण के लिए भी गारंटी सपोर्ट प्रदान करना प्रारम्भ किया और अप्रैल 1989 से प्ाूरी प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के अग्रिमों तक गारंटी कवर का विस्तार किया गया।

बीमा कवरेज धारा16 (1) से प्ाूर्व प्रावधानों के अन्तर्गत बीमा सुरक्षा के प्रति जमाकर्ता, उसके द्वारा बैकों की सभी शाखाओं में रखी गयी जमा राशि को मिलाकर समान क्षमता और समान अधिकार में मूलत: रु.1500/- तक सीमित रखी गयी, लेकिन केन्द्र सरकार के प्ाूर्वानुमोदन से बीमा सीमा समय-समय पर निम्नानुसार बढ़ाया गया-

प्रभावी तिथि  बीमा राशि
1 जनवरी 1968 
1 अप्रैल 1970 
1 जनवरी 1968 
1 जुलाई 1980 
1 मई 1993 
 5000.00
 10,000.00
 20,000.00
 30,000.00
1,00,000.00

 

मई 1993 से लेकर आज तक याने 2012 खत्म हो जाने तक गत 20 सालों में इतनी महंगाई बढ़ जाने के बावजूद केन्द्र सरकार ने इस राशि को बदलने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है।1993 से आज 2013 के चालू सत्र को लेंतो उस समय के एक लाख रुपये की कीमत आज दस से पन्द्रह लाख हुई है। उसको ध्यान मे रखकर जमा राशि की बीमा सीमा आज कम से कम दस लाख होनी चाहिए।
8. इस पर जो प्रिमियम लगाया जाता है, उसमें जो बढ़ोतरी की गयी है उसका विवरण नीचे दिया गया है।

रु.100 की प्रत्येक जमा राशि दर  प्रिमियम की दर
तारीख से  प्रिमियम
01-01-1962 

01-01-1971 
01-07-1973 
01-04-2004 
01-04-2005 

 0.05

 0.04
 0.05
 0.08
 0.10

 

यह जो प्रिमियम भरा जाता है, वह बैंक की प्ाूरी जमा राशि को ध्यान में रखकर लगाया जाता है, लेकिन बीमा सुरक्षा की सीमा केवल एक लाख तक की जमा राशि की ही जिम्मेदारी यह स्कीम लेती है। उससे अधिक जमा राशि पर यह स्कीम लाग्ाू नहीं होती है।

यहां दावों का निपटारा करने के लिए कुछ अधिनियम जारी किये हैं और इन अधिनियमों का पालन होता है की नहीं, यह देखा जाता है। उसमें से जो जमा राशि अधिनियमों के पालन कक्ष में आती है, उसका जमाधारक को निर्धारित बीमा कवर की सीमा के अधीन किया जाता है। यह देय राशि अधिनियम की धारा 16 (1) के साथ संलग्न 16(3) भुगतान हेतु पात्र होती है। कोई बैंक का पंजीकरण रद्द होने के बाद निगम रिजर्व बैंक को अनुरोध करके बीमाकृत बैंक का निरीक्षण / जांच पड़ताल करने के बाद उस बैंक का अभिलेख और इसकी प्रतिलिपियां मांग सकते हैं। उसके बाद सनदी लेखाकार दावा सूची सम्बन्धी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं और उस दावा सूची के आधार पर भुगतान सूची तैयार की जाती है और उस दावा सूची को ध्यान में रखते हुए जमाकर्ताओं को भुगतान राशि दी जाती है। यह भुगतान राशि की वसूली धारा 21(2) के अनुसार निगम विफल बैंकों की अस्तियों से वसूल की गयी राशि के माध्यम से दी गयी रकम से वसूली करने का प्रयास करती है। इस प्ाूरी योजना को हम गौर से देखेंगे तो इसमें जो त्र्ाुटियां सामने आती हैं, उसे ध्यान में रखकर इस प्ाूरी योजना में कुछ सुधार लाने की बहुत जरूरत है।

1. सन 1993 मे बीमा राशि रु.1,00,000/- तक बढ़ायी गई उसके बाद में आज ईसवी 2013 तक उसमें कुछ भी बढ़ोतरी नहीं की गयी, लेकिन निगम ने प्रिमियम मे 0.05 से 2004 में प्रिमियम 0.08 कर दिया और अगले साल ही याने की 2005 में प्रिमियम 0.010 किया, लेकिन यह बढ़ोतरी करते समय जमा राशि में एक भी रुपये की बढ़ोतरी नहीं की।

2. जो प्रिमियम लिया जाता है, वह हरेक बैंक के प्ाूर्ण जमा राशि पर लिया जाता है, लेकिन जमा राशि वापस करने पर जो नियंत्रण रखा गया है, उसमें 1993 से 2013 तक कोई भी बदलाव नहीं किया है। 1993 में रुपये एक लाख का विश्व बजार में जो मूल्य था, वह आज डॉलर या अन्य विदेशी चलन के साथ कमजोर करके उसमें हुई बढ़त कम से कम दस ग्ाुना हो गयी है और इस वास्तविकता को ध्यान में लेकर आज निगम को कम से कम रुपये पांच लाख की जमा राशि को बीमा कवर देने की आवश्यकता है।

3. जब भी यह मामला रिजर्व बैंक के सामने उठाया जाता है तो रिजर्व बैंक का एक ही जवाब तैयार रहता है कि इसकी जरू रत सिर्फ विफल सहकारी बैंकों को लगती है, बाकी बैंकिंग क्षेत्रों कों नहीं, इसलिए क्या सहकारी बैंक अधिक प्रिमियम देने के लिए तैयार हैं। इस मुद्दे पर मेरा सवाल है कि सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों की आर्थिक स्थिति मजबूत रखने के लिए केन्द्र सरकार हर साल करोड़ों रुपये इन बैंकों को देती है, अगर केन्द्र सरकार यह पैसा नहीं देती तो बहुत सी सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाली बैंकों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती और सरकार को ऐसी बैंकों को ताला लगाना पड़ता। सरकार जो मदद हर साल इन बैंकों को करती है, वह आम आदमी के जेब से ही जाता है। इस प्रकार की कोई भी मदद सरकार सहकारी बैंक को नहीं करती है और इसलिए सहकारी क्षेत्रों की बैंकों को ऐसी निक्षेप बीमा की जरूरत पड़ती है, क्योंकि उनकी ऐसे किसी भी क्षेत्र से मदद मिलने की सम्भावना नहीं है।

4. जब यह योजना श्ाुरू हुई उस समय भी दो बड़ी निजी क्षेत्र की बैंक विफल हो गयी थीं। आज भी बैंकिंग क्षेत्र में अनेक निजी क्षेत्र के बैंकों की आर्थिक स्थिति विकट हुई तो रिजर्व बैंक ने इन बैंकों को एक ही दिन में दूसरी बैंकों में विलय किया। उदाहरण के तौर पर ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक में और यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का आई. डी. बी. आई. बैंक में, इतना होने के बावजूद रिजर्व बैंक आने वाले दिनों में निजी क्षेत्र की नयी बैंक खोलने के लिए लाइसेंस देना जारी रखे है, इसके पीछे रिजर्व बैंक का निश्चित रवैया क्या है, वह मालूम नहीं पड़ रहा है। ऐसी कोई भी सुविधा सहकारी बैंकों में नहीं है और राज्य और केन्द्र सरकार की ओर से सहकारी क्षेत्र को सक्षम बनाने के लिए कोई भी योजना नहीं है।

5. इससे यह बात साफ हो रही है कि सहकारी बैंकों को अपने ही प्रयत्नों से सक्षम होना पड़ेगा। इन सारी बातों पर सकारात्मक विचार होने की आज आवश्यकता है और इसलिए सहकार क्षेत्र में काम करने वाले हर एक कार्यकर्ता को रिजर्व बैंक के प्रति निक्षेप बीमा योजना सहकारी बैंकों को कड़ी शर्तें न डालने और उसकी उपलब्धियों का अच्छी तरह से फायदा हो, ऐसा सकारात्मक द़ृष्टिकोण रखना चाहिए, जिससे सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को सक्षम होने में मदद मिले और इस बात का अहसास अपने सभासदों को देना पड़ेगा। बीमा योजना में बीमा क्षेत्र के नियम लगाकर इसका फायदा सहकारी बैंकों में जमा राशि रखने वाले जमाकर्ताओं को ही मिले, ऐसी सकारात्मक भूमिका रिजर्व बैंक को निभानी चाहिए।

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