राजनीति और समाज सेवा

नमस्कार, हम विधायक प्रमोद जठार के यहां से आये हैं। क्या राजश्री दीदी आप ही हैं?
परेल‡मुंबई के टाटा मेमोरियल कैन्सर रिसर्च सेण्टर की इमारत की सीढ़ियों पर बैठी स्त्री के कानों में जैसे ही ये शब्द पड़े, वह चौंक उठी।पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएं घटीं वे सारी उसके सामने किसी भयानक फिल्म की भांति घूम गयीं।

जब श्रेया की गम्भीर बीमारी के बारे में गांव के डॉक्टरों ने बताया तो वह अन्दर तक दहल गयी। श्रेया के पिता की सात वर्ष पूर्व मृत्यू हो गयी थी। इसके बाद उसका संसार पूजा और उसके बीच सिमट गया था। श्रेया के पिता के निधन के दुख को सहन कर अभी कुछ ही समय हुआ था कि श्रेया की बीमारी का पता चला।उस नन्हीं बच्ची को अपने सीने से लगाकर रोते हुए ही उसने सारा दिन बिताया। आंसुओं के लिए मार्ग खोजना आसान है पर प्रश्नों के उत्तर खोजना बहुत मुश्किल है। डॉक्टरों के कहेे अनुसार उसने मुंबई जाने का निश्चय किया। निश्चय करने के बाद पहला प्रश्न सामने आया रहने का। एक रिश्तेदार के यहां उसके रहने का बंदोबस्त हो गया। फिर जब वह टाटा हॉस्पिटल के दरवाजे पर पहुंची तो यह सोचकर वह सहम गयी कि यहां उसका निभाव कैसे होगा। श्रेया के उपचार पर होने वाले खर्च को लेकर तो वह पहले से ही चिन्तित थी। इन सारी चिन्ताओं ने उसे झकझोर दिया। किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह अस्पताल की सीढ़ियों पर बैठी थी और फिर एक बार उसकी आंखों से अश्रुओं क ी धारा बह निकली। उसने मोबाइल पर कुडाल शहर एक व्यक्ति का नम्बर डायल किया। रूंधे गले से ही उस व्यक्ति को आपबीती सुनायी कि ‘‘ मैं यहां संकट में हूं । मुंबई में मेरा कोई नहीं है। इतने बड़े अस्पताल में मेरा काम नहीं होगा। मैं पैसों का आडम्बर नहीं कर सकती।’’ उस व्यक्ति ने कहा कि ‘‘ मैं तुम्हें दो मिनट बाद फोन करता हूं।’’ थोड़े ही देर में उसका फोन आया। उसकी आवाज में उत्साह था। उसने कहा ‘‘ चिन्ता मत करो। कणकवली के विधायक प्रमोद जठार के कणकवली कार्यालय में मेरी बात हो गयी है। उनकी मुंबई में रुग्ण सेवा समिति है। यह हमारे जैसे लोगों की जो चिकित्सा के लिए मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, मदद करते हैं। उस समिति का कोई व्यक्ति अवश्य तुम्हें फोन करेगा। तब तक तुम वहीं बैठो। अगर कुछ परेशानी हो तो तुम मुझे फोन करना। मैं जरूर तुम्हारी मदद करूंगा।’’ एक घण्टे के अन्दर ही विधायक जठार की रुग्ण सेवा समिति से उस स्त्री को फोन आया। उस व्यक्ति ने कहा ‘‘ नमस्कार मैं अमित चिटनिस बोल रहा हूं। हम आपके पास आ रह हैं। ट्रेन धीरे चलने के कारण हमें पन्द्रह मिनट देर हो सकती है। आप कृपया वहीं हमारा इंतजार करें।’’ इन वाक्योंको सुनकर उसे थोड़ी दिलासा हुई। श्रेया को सीने से लगाये वह उस अस्पतल को निहारने लगी। मुंबई में कोई रिश्तेदार न होने के कारण देशभर से आये विभिन्न लोगों ने इस अस्पताल के बाहर ही डेरा जमाया था। टाटा में होने वाले इलाज की कालावधि कई दिनों या कई महीनों की होती है अत: रोगी को दूर से लाने वाले उसके रिश्तेदारों को रास्ते पर ही रहना पड़ता है, वहीं खाना बनाना होता है। अपने क्रमांक की राह देखने वाले रोगियों को भी कई दिनों तक रास्ते पर ही रहना पड़ता है। अचानक उसे लगा कि ‘रास्ते पर आ गये’ वाली कहावत सही मायनों में इतनी बुरी होती है।

उसका विचार चक्र निरन्तर घूम रहा था। कौन हैं ये आमदार जठार? मैं इनको जानती भी नहीं, न ही मैं उनके निर्वाचन क्षेत्र में आती हूं। फिर भी इतनी दूर मुंबई में उनके लोग मेरी मदद कर रहे हैं। इसे ईश्वरी कृपा ही कहनी चाहिए। उसकी सोच को बीच में ही रोकते हुए अमित चिटणिस उसके सामने खड़े हुए और कहा ‘‘नमस्कार, हम विधायक प्रमोद जठार के यहां से आये हैं।’’

उसके चेहरे से चिन्ता के बादल अब छंट रहे थे।अमित ने उसे बताना शुरू किया ‘‘ दीदी विधायक प्रमोद जठार की यह रुग्ण सेवा समिति मुंबई में है। उसके कार्यों का स्वरूप हम आपको बताते हैं जिसे आगे काम करने में सहूलियत होगी। हम मुख्य रूप से कोकण के सिंधुदुर्ग जिले के लोगों को यह सेवा प्रदान करते हैं। मुंबई के के.ई.एम.,जे.जे.,नायर,टाटा इत्यादि अस्पतालों में हम ये सेवा देते हैं। केस पेपर निकालने से भर्ती कराने तक हम सेवाएं देते हैं। इन सभी अस्पतालों का जो स्टाफ कोंकण का है, उनसे हमारे अच्छे सम्बन्ध हैं। इसका लाभ हम उन रोगियों को दिलवाते हैं। कई बार विधायक जठार स्वयं रोगियों के अस्पताल के डीन और वरिष्ठ अधिकारियों से मिलकर रोगियों के विषय में चर्चा करते हैं। गरीब लोगों को अर्थिक मदद दिलवाने का कार्य भी करते हैं। मुख्यमंत्री सहायता निधि, जीवनदायी योजना, राजीव गांधी जीनदायी योजना इत्यादि से हम लोगों को मदद करते हैं। इसके लिए आवश्यक कागजात बनवाने और सम्बन्धित अधिकारियों से मुलाकात भी की जाती है। सरकारी विभागों के अतिरिक्त कई निजी संस्थाओं जैसे ‘लालबाग का राजा’, ‘सिद्धिविनायक’ के ट्रस्ट से भी विधायक जठार मदद उपलब्ध करवाते हैं। रोगियों के साथ आये लोगों के रहने की व्यवस्था विधायक निवास या अन्य स्थानों पर की जाती है। हमने इसी पद्धति से कई लोगों को मदद की है अत: अब आप निश्चिंत हो जाइए।

बड़ी से बड़ी समस्या भी चुटकियों में सुलझ सकती है, इस बात का अनुभव वह ले रही थी। विधायक जठार की रुग्ण सेवा समिति की ओर से अमित चिटणिस द्वारा दिया गया प्रत्येक वचन निभाया गया था।

जीवनदायी योजना से ‘श्रेया’ के उपचार के लिए ढाई लाख रुपयों की इंतजाम किया गया था। इसके लिए सारी भागदौड़ उन्होंने ही की थी। उसके एक रिश्तेदार की रहने की व्यवस्था भी विधायक निवास में ही की गयी थी। श्रेया का इलाज पूर्ण होने के बाद जब उसे डिस्चार्ज किया जा रहा था तो संस्था के कार्यकर्ता एक बड़ा सा पुष्पगुच्छ लेकर उसे मिलने गये थे। उस समय जो राहत भरी मुस्कान राजश्री के चेहरे पर खिली थी, उसे श्रेया कई दिनों बाद देख रही थी।

इस सारी घटना के बाद राजश्री के मन में नये उत्साह का संचार हो गया था। गांव वापस आने के बाद उसने भगवान की पूजा की और अमित द्वारा दिये गए विधायक जठार के मोबाइल पर फोन किया। अपनी सारी परिस्थिति समझायी और उनका शुक्रिया अदा करते हुए पूछा कि ‘‘ मैं आपकी मतदाता नही हूं और न ही आपके निर्वाचन क्षेत्र से हूं। मेरा न आपसे कोई सम्बन्ध है न ही भाजपा के किसी कार्यकर्ता से फिर भी आपने मेरी मदद कैसे की ?

विधायक प्रमोद जठार ने कहा ‘‘ दीदी, आपके प्रश्न का उत्तर ‘ईश्वरी प्रेरणा’ है। मेरे सिंधुभूमि रुग्ण सेवा का घोष वाक्य है ‘रुग्णसेवा ही ईश्वर सेवा’ है। दीदी मनुष्य का अन्तिम गंतव्य कौन सा है? जहां राजनीति, जाति,धर्म,भाषा,पंथ जैसे सारे मुखौटे गिर जाते हैं। मैं खुद गरीबी से ऊपर उठा हूं अत: इन परेशानियों को जानता हूं। इसी से यह ईश्वर सेवा मेरे द्वारा होती है।’

विधायक प्रमोद जठार से बात होने के पश्चात उसका ध्यान श्रेया की ओर गया। अस्पताल में मिले पुष्पगुच्छ के पुष्प तीन दिन के बाद मुरझा गये थे, परन्तु उनकी ताजगी अब श्रेया के चेहरे पर दिखायी दे रही थी।

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