छोरा गंगा किनारे वाला

हिंदी सिनेमा की कई विशेषताओंमें से एक विशेषता यह है कि इसने देश-विदेश के विभिन्न कलाकारों और तकनीकी विशेषज्ञों को समाहित किया और उन्हें काम करने का मौका दिया। उत्तर प्रदेश के अनेक लोगों ने फिल्म जगत में अपना नाम कमाया। सबसे उत्तम उदाहरण है ‘शहंशाह’ बिग बी अर्थात अमिताभ बच्चन का। वे भी इलाहबाद (उत्तर प्रदेश) से हैं। इसीलिए उन्हें ‘छोरा गंगा किनारे वाला’ कहा जाता है।
अमिताभ बच्चन का जन्म इलाहबाद में हुआ, परन्तु शिक्षा और नौकरी के लिए वे कोलकाता में आये और वहां से अभिनय के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मुंबई आये। उनकी कुछ बातोंसे यह साफ दिखायी देता है कि उत्तर प्रदेश से उनका गहरा सम्बन्ध है। सन 1984 में लोकसभा चुनाव में अमिताभ बच्चन ने इंदिरा कांग्रेस के टिकट पर इलाहबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और समाजवादी पार्टी के ‘पावरफुल नेता’ हेमवती नंदन बहुगुणा को भारी मतों से हराया था। हालांकि उस समय सुपर स्टार पद के लिए उनकी ‘रेस’ जारी थी पर अपने मित्र और तात्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के ‘हाथ’ मजबूत करने के लिए वे राजनीति में उतरे थे, परन्तु लोकसभा में उन्हें मौन सांसद के रूप में ही जाना जाता था। (शायद उनके साथ तब सलीम जावेद के जोशपूर्ण संवाद नहींथे, इसलिए)। बोफोर्स काण्ड के बाद जब अमिताभ बच्चन ने इस्तीफा दिया था तो ऐसा कभी नहीं लगा था कि वे कभी भी फिर से राजनीति में जाएंगे। लेकिन कुछ समय के बाद ही उनकी पत्नी जया बच्चन भी उत्तर प्रदेश से ही समाजवादी पार्टी की सांसद के रूप में निर्वाचित हुईं । कुछ समय पश्चात अमिताभ बच्चन ने उत्तर प्रदेश के ‘ब्राण्ड एम्बेसेडर’ के रूप में कार्य करते हुए उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ कहा और उत्तर प्रदेश से अपना लगाव दिखा दिया। वे वहां के राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र के अपने मित्रों को नहीं भूले। अमिताभ बच्चन के गुणों और लोकप्रियता की ‘ऊंचाई’ के कारण उत्तर प्रदेश का नाम पूरे संसार में प्रसिद्ध हुआ।

उत्तर प्रदेश से हिंदी फिल्म में इण्डस्ट्री में आये लोगों की संख्या बहुत बड़ी है। उमा देवी अर्थात टुनटुन से लेकर श्वेता तिवारी तक उसमें कई नाम शामिल हैं। श्वेता प्रतापगढ़ की हैं। केवल मेरठ शहर से ही मंदाकिनी, दीप्ती भटनागर, चित्रांगदा सिंह ने फिल्म इण्डस्ट्री में प्रवेश किया। सोनल चौहान मुजफ्फरपुर से आयीं। मुंबई की फिल्म इण्डस्ट्री का जादू ही कुछ ऐसा है कि सभी मन ही मन यह सोचते हैं कि प्रत्यक्ष रूप से यहां आये बिना काम नहीं होगा।

पुराने जमाने में भारत भूषण, इफ्तेखार, के.एन सिंह उसके बाद रेहाना सुलतान, जॉय मुखर्जी,रजा मुराद, अरुण गोविल इसके बाद आयी पीढ़ी में दीपा साही, अचिंत कौर, राजपाल यादव, अभिजीत भट्टाचार्य, अर्चना पूरण सिंह, जिमी शेरगिल, युविका चौधरी, रवि किशन(ये प्रमुखता से भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता के रूप में ही प्रसिद्ध हुए) सुरेन्द्र पाल, हिमानी शिवपुरी, राजू श्रीवास्तव इत्यादि उत्तर प्रदेश से मुंबई आये हुए अभिनेता हैं। कहीं न कहीं सभी को इस बात का विश्वास था कि मुंबई में आकर ही हमारे सपनों की पूर्तता होगी। साथ ही उन्हें यह भी ज्ञात था कि इस गतिमान और स्पर्धात्मक शहर में उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी। बाहर से देखने पर मुंबई एक स्वप्न नगरी प्रतीत होती है, परन्तु प्रत्यक्ष रूप से यहां आने के बाद हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है यह भी उन्हेंने अवश्य समझा होगा। पहले उत्तर प्रदेश अविकसित राज्य के रूप में प्रसिद्ध था। वहां के लोगों को स्वाभाविक रूप से यही लगता था कि उनके कार्यों को यहां उचित दर्जा नहीं मिलेगा। एक कोई नसिरुद्दीन शाह जैसा अभिनेता उत्तर प्रदेश से बाहर निकलते समय अपनी गुणवत्ता पर ही ज्यादा विश्वास रखता है। बुद्धिवादी कलाकार होने के कारण उन्होंने केवल स्वप्न देखने में ही विश्वास नहीं किया। उत्तर प्रदेश से आकर आज के फिल्म जगत में नाम कमाने वाली हरफनमौला कलाकार हैं प्रियंका चोपड़ा। उनके एक साक्षात्कार के दौरान उनका उत्तर प्रदेश पर जो प्रेम है, वह साफ नजर आया। राज कंवर द्वारा निर्देशित ‘अंदाज’ फिल्म से उन्होंने फिल्म जगत में पदार्पण किया। वे मूलत: बरेली की हैं। बरेली से दिल्ली वह गाड़ी से कैसे यात्रा करती थीं, उत्तर प्रदेश किन‡किन मायनों में अच्छा है, वहां कौन‡कौन से प्राकृतिक, दर्शनीय स्थल हैं इत्यादि बातों पर उन्होंने दिल खोलकर चर्चा की। एक महत्वपूर्ण बात और है कि उत्तर प्रदेश की होने के कारण उनका हिंदी भाषा पर प्रभुत्व है। वरना आजकल की अन्य अभिनेत्रियोंको हाय‡फाय अंग्रेजी ही आती है अगर वे थोड़ी सी भी हिंदी सीख लें तो उनका अभिनय सुधर सकता है।

उत्तर प्रदेश सौ प्रतिशत हिंदीभाषी क्षेत्र है। वहां की दूसरी भाषा है उर्दू। हिंदी फिल्मों और धारावाहिकों में उत्तम कार्य करने के लिए उत्तम हिंदी होना आवश्यक है। इस तरह की अच्छी हिंदी के लिए ही उत्तर प्रदेश से लोगों का हिंदी फिल्मों में आना अवश्यक है। टीवी चैनल का क्षेत्र बढ़ने के कारण और उनमें महामालिकाओं की संख्या बढ़ने के कारण उत्तर प्रदेश से आये कई लोग केवल अच्छी हिंदी के बल पर अपना करियर ऊंचाई पर ले जा सके। हिंदी भाषा की नजाकत और मिठास उत्तर प्रदेश द्वारा हिंदी फिल्मों की दी गयी बेहतरीन सौगात है, जिसके लिए उस राज्य का आभार मानना चाहिए। उत्तर प्रदेश के गीतकारों को जानने के बाद यह बात और भी सही लगती है।

उत्तर प्रदेश से आये गीतकारों के नामों पर प्रकाश डालते हैं। शकील बदायुनी(बदायूं), जावेद अख्तर(खैराबाद), कैफी आजमी(आजमगढ़), अंजान और उनके पुत्र समीर(वाराणासी), नीरज (इटवा), प्रसू

न जोशी(अल्मोड़ा), इंदीवर(धामना गांव), नीलेश मिश्रा(नैनीताल) इत्यादि (उत्तर प्रदेश विभाजन के बाद अल्मोड़ा और नैनीताल जिले अब उत्तराखण्ड में हैं )। संगीतकार विशाल भारद्वाज भी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से हैं। निर्देशक अनुराग कश्यप(गोरखपुर), तिग्मांशु धूलिया(इलाहबाद), अश्विनी धर(कानपुर) भी उत्तर प्रदेश के ही हैं।

कुछ और भी बातें हैं जो उत्तर प्रदेश का हिंदी फिल्मों में स्थान समझने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। जे.पी. दत्ता ने गुलामी,यतीम,बंटवारा जैसी फिल्मों को भव्य कैनवास पर साकारते समय आगरा, फतेहपुर सीकरी, प्रतापगढ़ पर ही ध्यान केन्द्रित किया है। इससे उनका उत्तर प्रदेश से गहरा प्रेम दिखायी देता है। मुजफ्फर अली के पास ‘उमरावजान’ के लिए लखनऊ के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लखनऊ का अपना एक अलग अंदाज है। के.सी.बोकाडिया ने ‘फूल बने अंगारे’ और ‘आज का अर्जुन’ जैसी फिल्मों के माध्यम से उत्तर प्रदेश दिखाया है। हालांकि ये फिल्में अतिरंजित लगती हैं। दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक आगरा का प्रसिद्ध ताजमहल हम ‘लीडर’ जैसी फिल्मों में देख सकते हैं। ताजमहल नाम से ही तीन फिल्में बनी हैं, यह भी उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में गौरवपूर्ण बात है। उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्तर पर भी छोटी‡छोटी फिल्में बनती हैं। स्थानीय कलाकार उत्तर प्रदेश से सटे नयी दिल्ली में जाकर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय का प्रशिक्षण लेते हैं और वहीं से मुंबई की उड़ान भरते हैं।

उत्तर प्रदेश ने कलाकार (जिसमें गीतकार, निर्माता,लेखक इत्यादि शामिल हैं) और शुद्ध हिंदी भाषा के रूप में हिंदी फिल्म जगत को बहुत कुछ दिया है, जिसका यह नमूना मात्र है। उत्तर प्रदेश हिंदी फिल्म जगत के लिए ‘उत्तम प्रदेश’ साबित हुआ है।

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