महाराष्ट्र के रणजीत सिंह डिसले को क्यों मिला ‘ग्लोबल टीचर प्राइज’?

महाराष्ट्र के रणजीत सिंह डिसले को शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए ग्लोबल टीचर प्राइज से सम्मानित किया गया। इस बड़े सम्मान के साथ ही उन्हे 10 लाख डॉलर यानी 7.38 करोड़ की धनराशि भी दी मिली है। इस ऐलान के साथ ही रणजीत सिंह ने अपनी ईनाम की आधी राशि को 10 उप विजेताओं में बांटने का फैसला किया है। कोरोना महामारी के समय जब स्कूल सहित पूरा देश बंद था तब रणजीत सिंह डिसले ने बच्चों की शिक्षा को लेकर कठिन परिश्रम किया और उन्हे जारी रखा। डिसले ने लड़कियों की शिक्षा को लेकर भी कड़ी मेहनत की और उन्हे शिक्षा के प्रति जागरुक किया। उन परिवारों से मिले जहां बच्चों को शिक्षा से दूर रखा जाता था और उन्हे शिक्षा के महत्तव को समझाया।

ग्लोबल टीचर प्राइज की जीत की धनराशि जितनी बड़ी है उसके पीछे की मेहनत भी उतनी ही कड़ी है। रणजीत सिंह डिसले ने सन 2009 में महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव में जाकर बच्चों को इकट्ठा करना शुरु किया और यहीं से शिक्षा में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला। रणजीत सिंह ने ऐसे बच्चों को अपने साथ लाने का निश्चय किया जो पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं रखते थे या फिर उनके परिवार की तरफ से पढ़ाई के लिए परमिशन नहीं दी जाती थी।

ग्लोबल प्राइज ?

ग्लोबल टीचर प्राइज पुरस्कार वार्की फ़ाउंडेशन की तरफ से आयोजित किया जाता है। इस फ़ाउंडेशन का उद्देश्य उन शिक्षकों का मनोबल बढ़ाने का होता है जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है और महाराष्ट्र के रणजीत सिंह डिसले इनमें से ही एक है। सोलापुर के रणजीत सिंह डिसले माढा के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक है। डिसले ना सिर्फ प्रतिदिन बच्चों को पढ़ाते है बल्कि हमेशा यह भी विचार करते है कि शिक्षा को आसान और रुचिपूर्ण कैसे किया जा सके। डिसले ने अपनी शिक्षा के दौरान यह नोटिस किया कि बहुत से विद्यार्थी मन और लगन से किताब नहीं पढ़ते थे ऐसे में कुछ ऐसे परिवर्तन की जरुरत थी जिससे बच्चों पूरी लगन से किताबों पर ध्यान दे सके।

रणजीत सिंह पिछले काफी समय से इस इसकी खोज में थे कि बच्चों की पढ़ाई को कैसे इंट्रेस्टिंग किया जाए और तमाम प्रयासों के बाद वह सफल हो गये उन्होने बच्चों के लिए क्यूआर कोडेड पुस्तकें बनाना शुरु किया जो बच्चों को पसंद आने लगी और रणजीत सिंह की इस कोशिश को जिला परिषद शिक्षा विभाग को भी काफी पसंद आयी और उनकी इस मेहनत को काफी सराहा गया। चौथी कक्षा तक की सभी पुस्तकों को क्यूआर कोडेड बनाया गया है। पुस्तकों के सभी पाठ और कविताओं का वीडियो और ऑडियो भी बनाया गया है जिसे पढाई के दौरान स्कैन करने पर सुना, देखा और पढ़ा जा सकता है।

ग्लोबल टीचर के मुताबिक इस परिवर्तन के बाद बच्चों का मन तेजी से पढ़ाई में लगने लगा और रिजल्ट भी सभी के अच्छे आने लगे। हर साल पास होने वाले बच्चों की संख्या में भी बढ़त देखने को मिली। रणजीत सिंह ने कहा कि बच्चे ज्यादातर समय मोबाइल पर गेम खेलने और सोशल मीडिया पर बिताते है जिसके बाद मेरे दिमाग में यह आइडिया आया कि क्योंना इसकी इस कमजोरी को इनकी ताकत बनाया जाए और मैने पाठ्यक्रम को ही मोबाइल पर उपलब्ध करवा दिया।

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