संघ विचारों की प्रेरणा से सफल होने वाला एक भारतीय अमेरिकी उद्यमी

विदर्भ के नांदुरा के मूल निवासी श्री रमेश भूतड़ा अमेरिका के विकसित ह्यूस्टन शहर में एक सफल उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने ‘स्टार पाइप प्राडक्ट्स’ के नाम से वहां कारखाना लगाया, जो ख्यातिप्राप्त कर चुका है। वहां के समाज में भी उनका सम्माननीय स्थान है। विशेष यह कि श्री भूतड़ा संघ विचारों पर अमल करते हुए अपना व्यवसाय करते हैं। उनसे हुई बातचीत के अंश-

समय का पूरी तरह पालन करने वाले रमेशजी भूतड़ा स्वागत-कक्ष में आकर हमारे आने के बारे में पूछताछ करें तभी हम करीब चालीस मील का अंतर चालीस मिनट में ही पार कर कारखाने में पहुंच गए। गोरी स्वागतिका को हमें फोन लगाने से रोकते हुए रमेशजी ने स्वयं ही हमारा स्वागत किया। उन्होंने कहा, ‘आरंभ में हम कारखाना देख लें। इससे हमारा अगला काम आसान होगा।’

रमेशजी के सादगीभरे किंतु आधुनिक कार्यालय से हमने आरंभ किया। पहरा कमरा लगा ‘ध्यान कक्ष।’ किसी कारखाने में ध्यान कक्ष होता है! मेरी उत्सुकता बढ़ी। इसके बाद आया भोजन कक्ष। सभी कर्मचारी भोजन के समय में अपने टिफिन और चाय-कॉफी के साथ किसी भारतीय व्यंजन को चख रहे थे और अपने काम के बारे में भी दिल खोलकर चर्चा कर रहे थे। रमेशजी एक-एक कक्ष और उसमें आधुनिक व्यवस्था दिखा रहे थे। अमेरिका के तेरह केंद्रों में होने वाले कार्यों का केंद्रीय प्रबंधन यहां से होता है। एक-एक प्रमुख से मुलाकात करते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। इसके बाद आया प्रत्यक्ष कारखाना। मशीनों की आवाजों के बीच कर्मचारी शांति से काम कर रहे थे। विभागों के अनुसार बड़ी-बड़ी रैकों पर कोई 3500 पुर्जें रखे हुए थे। दीवार पर कार्य की प्रेरणा देने वाले सूचक बोध-वाक्य लिखे हुए थे। इस तरह भव्य दीर्घाएं लांघते हुए कोई एक घंटे में हम अंतिम दीर्घा तक पहुंचे। रमेशजी ने उस दीर्घा की ओर संकेत किया। दीर्घा का नाम था ‘केशव सृष्टि।’ मैंने प्रश्नभरी नजर से उनकी ओर देखा। उन्होंने कहा, ‘यह हिंदू स्वयंसेवक संघ का कार्यालय है। यहां संघ की शाखा लगती है और अन्य कार्यक्रम भी होते हैं। संघ की विचारधारा और कार्यप्रणाली पर हमारा विश्वास है। हमारा अनुभव है कि यह पद्धति व्यवसाय के लिए भी उपयुक्त है। इसलिए यहां यह कार्यालय बनाया गया है।’

मैंने पूछा, ‘रमेशजी, भारत का सम्पन्न और सुरक्षित पारिवारिक जीवन छोड़कर आप अमेरिका की स्पर्धा में किस तरह आए?’

हम मूलतया विदर्भ के एक छोटे-से गांव नांदुरा के हैं। लगभग 18 हजार की आबादी वाले इस गांव में डोंबिवली की तरह भाजपा की नगरपालिका थी। संघ विचारों से प्रेरित ‘नांदुरा अर्बन को-आप. बैंक है हमारे छोटे से गांव में। आज भी हमारे परिवार का दुकानदारी का स्वतंत्र व्यवसाय है। मेरे पिता माणिकचंदजी संघ के तृतीय वर्ष में शिक्षित स्वयंसेवक हैं। वे 1948 में संघ पर प्रतिबंध के काल में तथा 1975 के आपातकाल में राजनीतिक बंदी के रूप में कारावास भोग चुके हैं। विचारों और व्यवसाय की घुट्टी मुझे उनसे ही मिली। मेरी प्राथमिक शिक्षा मेरे गांव में ही हुई। बाद में अमरावती गया और तदुपरांत पिलानी जाकर 1968 में बी. टेक. की उपाधि हासिल की। अगली शिक्षा के लिए अमेरिका के शिकागो आया। वहां से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग व प्रबंधन में उपाधियां प्राप्त कीं। यह शिक्षा पाते समय आर्थिक दिक्कतों व बेहद परिश्रम करने पड़े। लेकिन अनेकों के आशीर्वाद व मदद भी मिली। 1969 में नौकरी के लिए ह्यूस्टन आया। वह समय अमेरिका में मंदी का समय था। सालभर में ही कम्पनी बंद पड़ गई। इस तरह पहली नौकरी समाप्त हो गई। इसके बाद एक ब्रिटिश कम्पनी में कंप्यूटर कक्ष के प्रमुख के रूप में करीब दस वर्ष तक जिम्मेदारी सम्हाली। यह नौकरी करते समय बार-बार मन स्वतंत्र व्यवसाय करने को उद्यत होता था।
इस बीच भारत से आए एक परिचित ने परिधानों के व्यवसाय का सुझाव दिया। हमने व्यवसाय आरंभ किया, लेकिन कुछ ही दिनों में ध्यान में आया कि हमने गलत जगह, गलत समय और गलत व्यवसाय शुरू किया है। जो होना था वही हो गया। व्यवसाय जम नहीं पाया। इसके बाद कई नौकरियों- व्यवसाय का काफी अनुभव लिया। मन की जिज्ञासा शांत नहीं बैठने दे रही थी। इस बीच गांव आ गया और पिता से खुलकर बातचीत की। मैंने कहा, ‘अनेक अनुभव ले रहा हूं। कुछ दिन अच्छे जाते हैं, लेकिन दो-एक साल में ही पुनश्च हरिओम करने की बारी आती है।’ उन्होंने मेरी बात शांति से सुनी और बाद में प्रश्न किया, ‘अपने पैर में नासूर हो जाए तो हम क्या करते हैं? उत्तर यह है कि वह पैर काट डाले अन्यथा वह बीमारी पूरे शरीर में फैल जाती है और मौत को निमंत्रण मिलता है।’ पढ़ाई अधूरी रख स्कूल से विदा लेने वाले उनका अनुभव मेरी उच्च शिक्षा से कहीं अधिक श्रेष्ठ था। उन्होंने मुझे अन्य व्यवसाय छोड़कर एक ही व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी।

अन्य व्यवसाय बंद करते समय भी हमने कम्पनी को ताले न जड़ते हुए बैंक का कर्ज चुकाया। कर्मचारियों को ठीक मुआवजा दिया। देनदारों का देना पूरी तरह चुकाकर हमने अपनी नैतिक जिम्मेदारी पूरी की।

पिता की मूल्यवान सलाह ने मन में पक्का घर कर लिया था। चार-दो लोगों को साथ लेकर व्यवसाय की रूपरेखा बनाई। यह कम्पनी आज ‘स्टार पाइप प्राडक्ट्स’ के रूप में ख्याति अर्जित कर चुकी है। आरंभ से ही गुणवत्ता, सामूहिक निर्णय, व्यावसायिक निष्ठा और सामाजिक प्रतिबद्धता की चतुःसूत्री पर व्यावसायिक संस्था चलाने पर हमारा बल था। व्यावसायिक लाभ पाना तो किसी भी व्यवसाय का अपरिहार्य अंग होता है, लेकिन वह किस तरह चलाते हैं इस पर उस व्यवसाय से प्राप्त होने वाला आनंद निर्भर होता है। हमने सामूहिक निर्णय करने की प्रणाली स्वीकार की थी। किसी एक के कहने और अन्य के अमल करने से शायद कम समय लगेगा, लेकिन हरेक को उसे विश्वास में लेकर निर्णय करने का आनंद व संतोष नहीं मिलता। कई बार अनेकों के सुझाव तर्क के अभाव में स्वीकार नहीं जाते, लेकिन वह निर्णय सामूहिक होने से हरेक की उससे प्रतिबद्धता होती है और वे ईमानदारी और उत्साह से अपना कार्य पूरा करते हैं। वे प्रश्न निर्माण न करते हुए उत्तर खोजने में अपनी कुशलता लगा देते हैं। मुझे स्वयं भी इस प्रणाली का लाभ हुआ है। कुछ आत्मनिष्ठ लोगों को आरंभ में यह प्रणाली अच्छी नहीं लगी। उनके अहंकार को चोट पहुंची। दिक्कतें पैदा करने के प्रयास हुए। ऐसे लोग छोड़कर चले गए। लेकिन 5-6 वर्षों में ही एक जिम्मेदार प्रबंधन टीम तैयार करने में हम सफल हुए। व्यावसायिक नैतिकता, विश्वास और परस्पर समन्वय के बल पर हम अपना व्यवसाय आगे बढ़ा रहे हैं। कई बार लोग ऊंचे-ऊंचे सिद्धांत बघारते हैं, लेकिन वैसा आचरण नहीं करते। ‘स्टार पाइप प्राडक्ट्स’ के बारे में संघ के विचारों और कार्यपद्धति पर अमल करने का निर्णय किया। आपस में सुसंवाद, खुली चर्चा और सामूहिक निर्णय और एक बार निर्णय हो जाने पर पूरी शक्ति के साथ उसका पालन करने की संघ की जो कार्यप्रणाली है वह व्यवसाय में भी क्यों न लागू हो! आज विश्व स्तर पर विकास का नैतिकता से नाता जोड़ा जाने लगा है। संघ विचारों के कारण हमारा यह रिश्ता आरंभ से ही जुड़ा हुआ है।

ग्राहक सेवा आज सब से महत्वपूर्ण हो गई है। व्यवसाय करते समय ग्राहकों से आपके रिश्तें केवल व्यवहार तक सीमित नहीं होने चाहिए अपितु उनसे प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए। हम इसका कड़ाई से पालन करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के गृह निर्माण व्यवसाय को आघात सहना पड़ा। उसका प्रभाव अन्य व्यवसायों पर भी हुआ। हमारे व्यवसाय पर भी उसका परिणाम अपेक्षित था ही। 2007 की तुलना में 30 प्रतिशत कमी आई। फिर भी सौभाग्य से हम इस अवधि में भी अच्छा व्यवसाय कर सके। बाजार में हमारे उत्पादों का प्रतिशत बढ़ा। व्यवसाय का यह धागा मजबूत रहने का प्रमुख कारण था यह किसी एक व्यक्तित्व का कर्तृत्व न होकर यह स्टार के व्यावसायिक संगठन और उसकी नैतिकता की यह सफलता थी। छोटे-छोटे प्रयोग भी काफी सफल रहे।

दोपहर के तीन बजे थे। रमेशजी को अचानक याद आया और उन्होंने कहा, ‘हम छोटा ब्रेक ले लेते हैं। आप मेरे साथ चलिए। हम कम्पनी के भोजन कक्ष में पहुंचे। वहां सभी कर्मचारी एकत्रित चाय-पान कर रहे थे। रमेशजी स्वयं अपना कप भरकर उनके साथ हो लिए। अपना अधिकार भूलकर सभी कर्मचारी मित्र बन गए थे। पंद्रह मिनट बाद ही सभी अपने-अपने काम पर चले गए।

रमेशजी ने कहा, ‘हमारा हर शुक्रवार को यह कार्यक्रम होता है। इस खिलाड़ी वृत्ति के कारण खुलापन आता है। श्रम भूल जाते हैं, उत्साह बना रहता है। बॉसिंग की जरूरत ही नहीं रह जाती।’ बात करते- करते रमेशजी के दफ्तर में पहुंचे।

मैंने आगे पूछा, ‘रमेशजी स्टार पाइप की प्रगति का आलेख किस तरह है?’

उन्होंने बताया, ‘आरंभ में हमारे पास 40,000 वर्ग फुट की ही जगह थी। वह आज 1,77,000 वर्ग फुट हो गई है। आरंभ में 4-5 लोगों की टीम थी, जो आज करीब 300 लोगों की हो गई है। लगभग 3500 पाइप्स और पुर्जों का हम व्यवसाय करते हैं। अमेरिका में अलग-अलग स्थानों पर हमारे तेरह वितरण केंद्र हैं। इनके जरिए हम सर्वत्र फैले हमारे ग्राहकों को तुरंत आपूर्ति कर सकते हैं। बिल्कुल दूसरे ही दिन उन्हें आपूर्ति हो जाने से उन्हें अपने पास बहुत माल संग्रहित रखने की आवश्यकता नहीं होती। इससे उनकी बचत होती है और हम पर विश्वास कायम रहता है। कुछ व्यावसायिकों की तरह माल जबरन नहीं लादते और न अपने ग्राहकों पर दबाव डालते हैं। अमेरिकी उद्यमियों में अधिसंख्य की यह प्रवृत्ति होती है। डॉमिनेट करने की उनकी शैली होती है। एक तरह से उन्होंने जिस पूंजीवादी प्रणाली का स्वीकार किया है उसका शायद यह स्वाभाविक परिणाम हो। हमारी व्यावसायिक नैतिकता में यह नहीं बैठता। उन लोगों को व्यवसाय से धन कमाना होता है। नैतिकता की वे बहुत परवाह नहीं करते। नैतिकता के बंधन का हमें यद्यपि आरंभ में कष्ट हुआ लेकिन कालांतर में हमारे ग्राहकों का भारी विश्वास हमें प्राप्त हुआ। कोई ग्राहक हमसे दूर नहीं हुआ। उसमें लगातार वृद्धि ही हो रही है। आज अमेरिका में स्टार के ‘स्पिरिच्युएलिज्म’ व ‘पैट्रियाटिज्म’ का उल्लेख किया जाता है। स्टार को विश्वविख्यात व्यावसायिक के रूप में स्थान मिला है। अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं और सभी के सहयोग से आज कारोबार सौ दस लाख डॉलर पर पहुंच गया है।

अमेरिकी कर्मचारियों की तुलना में आपके प्रतिष्ठान में भारतीय अधिक मात्रा में दिखाई देते हैं?

यह स्वाभाविक ही है। लेकिन हमारे कर्मचारियों के बारे में हमारा अनुभव अच्छा है। उनकी उत्पादन क्षमता अधिक तो है ही, सब में वैचारिक समानता है। हम उन्हें उचित वेतन, उचित सुविधाएं, स्वतंत्रता और सामाजिक कार्य में सहभागिता की प्रेरणा देते हैं और इसी कारण ह्यूस्टन के सामाजिक जीवन में कई लोगों ने सम्मानपूर्ण स्थान निर्माण किया है। जैसे संघ में शाखा महत्वपूर्ण है लेकिन वह शाखा याने ही संघ नहीं है। संघ एक जीवन प्रणाली है और वह व्यवसाय को भी उतनी ही लागू है। ‘स्टार’ को अपने प्रबंधन और कर्मचारियों पर गर्व है। अचानक संकट आने पर ‘स्टार’ सदा उनके साथ होती है। हम उन्हें कर्मचारी न मानते हुए स्टार के बढ़ते परिवार का घटक मानते हैं और वे भी सदाचार व सुसंगति को प्राथमिकता देकर व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा संस्था के कुल हित का ही विचार करते हैं।

ह्यूस्टन के सामाजिक जीवन में रमेशजी को आदर व सम्मान का स्थान है। किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में उनकी गणना विशेष अतिथि के रूप में होती है। साक्षात्कार धीरे-धीरे अमेरिका व भारत के भविष्य व सामाजिक कार्य की ओर मुड़ा।

रमेशजी ने बताया कि वे बचपन से ही संघ में जाते थे। लेकिन संघ मुझे अमेरिका में आने पर समझ में आया। प्रचारकों के साथ और बर्ताव की पद्धति से मुझे वह अधिक समझ में आया। ह्यूस्टन में हिंदू स्वयंसेवक संघ का अच्छा काम है। विवेकानंद सार्ध शती के हाल में हुए समारोह में आयोजित ज्ञान यज्ञ में स्थानीय 66 संस्थाओं का सहयोग लेने में हम सफल हुए। समारोह में संघ के विदेश विभाग प्रचारक प्रमुख सौमित्र गोखले पूरी समय उपस्थित थे। ह्यूस्टन में अन्य संगठनात्मक कार्यक्रम भी सफलता से आयोजित किए जाते हैं। हाल में 7 से 17 आयु समूह के बच्चों का निवासी शिविर आयोजित किया गया। 150 की संख्या के बाद प्रवेश रोक देना पड़ा। युवक- युवतियों ने इस शिविर की पूरी जिम्मेदारी सम्हाली थी। अमेरिका में अन्यत्र भी संघ का अच्छा काम चल रहा है। बचपन में डॉ. घारे का एक बौद्धिक सुना था। उस समय वह बहुत नहीं समझा था, लेकिन उनका एक वाक्य सदा स्मरण में रह गया। उन्होंने कहा था कि ‘भविष्य में विश्व स्तर पर भी संघ की भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है। उसका अनुभव आज हम ले रहे हैं।

भारतीय व अमेरिकी जीवन के बारे में आप को क्या लगता है?

अमेरिका दुनिया में सब से अमीर देश है यह सही है। ज्ञान विज्ञान में वह आगे है। भौतिक प्रगति के साथ उनका सामाजिक अनुशासन, पर्यावरण के बारे में कार्य, नागरी सुविधाएं आदि अनेक बातें सराहनीय हैं। लेकिन इतने बलशाली देश में क्या समाज जीवन सुखी है? इसका उत्तर स्वीकारात्मक देना संभव नहीं है। नैतिकता की अपेखा उन्हें धन अधिक महत्वपूर्ण लगता है। मौका पड़ने पर वे कूटनीति पर उतर आते हैं। अमेरिकी जीवन की पारिवारिक बुनियाद ढहती नजर आ रही है। जीवन मूल्य हटते जा रहे हैं। बच्चे घर छोड़कर जा रहे हैं। मां-बाप भी नियत उम्र के बाद बच्चों से मुक्ति पाना चाहते हैं। एक अभिभावक की संख्या अधिक है। पति पत्नी के सम्बंध टूट रहे हैं। फलस्वरूप तलाक लेने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसके विपरीत भारत का पारिवारिक जीवन समृद्ध है। एकत्रित परिवार के कारण संकटों के समय मिलने वाला आधार महत्वपूर्ण होता है। व्यक्तिगत प्रयासों को पर्याप्त समर्थन मिलता है। पारिवारिक जीवन ही शिक्षा का मूल स्रोत व समाज का आधार है। इस पारिवारिक सूत्र और धार्मिक मनोवृत्ति के कारण ही भाारतीय समाज में अनेक संकटों का सामना करने की शक्ति कायम है। दुर्भाग्य से स्वाधीनता के बाद 1947 में हुए परिवर्तनों का लाभ हमारे राज्यकर्ता नहीं ले सके। पं. नेहरू आणि उनके प्रभाव वाले नेताओं ने हिंदू विचार को जानबूझकर दबाए रखने का प्रयास किया। संघ के प्रति सदा नकारात्मक भूमिका ली। समाज के मूल स्रोत पर ही आघात करने का प्रयास किया गया। 1975 में आपातकाल के बाद जो परिवर्तन अपेक्षित था उसके पक्ष में बाद के राज्यकर्ता कायम नहीं रहे। मुझे लगता है कि आज देश फिर से परिवर्तन की दहलीज पर है।

इस पार्श्वभूमि में आपको भविष्य के भारत के बारे में क्या लगता है? जिन पर नजरें टिकी हुई हैं वे नरेंद्र मोदी क्या परिवर्तन ला सकेंगे?

इस पर रमेशजी का पक्का उत्तर था ‘हां।’जिस तरह मोदीजी गुजरात को विकास की राह पर ले गए, अल्पसंख्यकों का अनुनय न करते हुए उन्हें विकास परियोजनाओं के जरिए राज्य के विकास का भागीदार बनाकर उनका विश्वास प्राप्त किया, अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षितता की भावना दूर की वह सराहनीय है। मुझे और अमेरिका के सभी युवकों को भी लगता है कि राम मंदिर त्वरित आवश्यकता नहीं है। हरेक के हृदय में राम है ही। आज आवश्यकता है देश को विकास के रास्ते पर ले जाने की। युवकों को फौरन दर्शन नहीं चाहिए। उन्हें चाहिए अपने उज्ज्वल भविष्य का अवसर और निश्चिति। यहां हिंदू, मुसलमान या अन्य धर्मीय का प्रश्न ही कहां आता है? उन्हें न्याय मिले और उनमें विश्वास निर्माण हुआ कि अनेक प्रश्नों के उत्तर आसान हो जाएंगे। मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी इसे खूब जानते हैं। दुनियाभर में फैले भारतीय युवाओं की उनसे अपेक्षाएं हैं कि विकास और न्याय की राजनीति कर स्वामी विवेकानंद के सपनों के विकसित, बलशाली और नैतिकता से सराबोर राष्ट्र के रूप में विश्व में आदर्श राष्ट्र बनाने की। मुझे लगात है कि उनका नेतृत्व आश्वासक है।
वैदर्भीय भाषा में ‘आपके मुंह में घी-शक्कर’ कह कर मैंने उनसे विदा ली।
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