जुगाड़ अर्थात प्रगति

आज तक हमने अनेक ‘इनोवेटर्स’ के बारे में जाना। वस्तुत: ‘इनोवेशन’ कहते किसे हैं यह भी जाना। अब हम ‘जुगाड़’ को एक अलग नजरिये से देखेंगे।

किसी वस्तु के मूल उपयोग को छोड़ कर अन्य कार्यों के लिये उसका उपयोग करने को भी जुगाड़ कहते हैं। इनमें निरुपयोगी वस्तुओं से उपयोगी वस्तुएं बनाना तो शामिल है ही, साथ ही उनसे अन्य कामों के लिये उपयोगी वस्तुएं बनाना भी शामिल है। यहां हम इसी प्रकार के जुगाड़ों पर नजर डालेंगे।

पहिये की खोज होने के बाद मानव की ‘प्रगति’ शुरू हो गयी। इस प्रगति का पहला पायदान था दुपहिया वाहन अर्थात सायकल की खोज। सन 1790 में फ्रांस के ‘कोम्टे मेडे दि सिवरॅक’ नामक संशोधक ने प्रथम सायकल जैसे वाहन का निर्माण किया। इसमें हैंडल और पैडल दोनों ही नहीं थे और यह संपूर्ण लकड़ी का बना था। इस वाहन को ‘सेलेरिफे रे’ कहा गया। सन 1816 में इस वाहन को हैंडिल जोड़ा गया और इसको ‘ड्रेसिने’ कहा गया। हमारे यहां बच्चों द्वारा धकेल कर चलाई जाने वाली स्कूटर की तरह ही इसका स्वरूप था।

स्कॉटलैंड के एक लुहार ‘किर्कपैट्रिक मैकमिलन’ ने सन 1839 में पहली बार पैडल वाली सायकल का निर्माण किया। इस सायकल के पैडल आगे के पहियों पर लगे थे और इसका पिछला पहिया आगे के मुकाबले थोड़ा बड़ा भी हुआ करता था। इस सायकल से उसने एक बार 2 दिन में 68 मील की यात्रा भी की थी। मजेदार बात यह है कि मैकमिलन ने इस सायकल का पेटेंट लेने का भी प्रयत्न भी नहीं किया। अनेक लोगों ने इसकी नकल करके खूब पैसे भी कमाये। इसके कारण सायकलों में समय-समय पर सुधार भी होता गया।

सायकल मूलत: मनुष्य के प्रवास के लिये थी परंतु उसके अन्य उपयोग भी शुरू हुए। शुरू में चालक का सामान रखने के लिये उसमें कैरियर जोड़ा गया। भीड़भाड़ वाले इलाकों में भीड़ को दूर हटाने के लिये घंटी लगाई गयी। रात की यात्रा को सुखकर बनाने के लिये पहले उसमें टार्च जोड़ा गया और फिर कालांतर में बिजली का निर्माण करनेवाला डायनेमो भी जोड़ा गया। ये सारे जुगाड़ सायकल की यात्रा को पूरे करनेवाले थे परंतु अनेक लोगों ने इस सायकल के अनेक उपयोग शुरू किये। हमारे यहां चाकू छुरे और कैंचियों को धारदार बनानेवाला भी सायकल पर ही आता है।

अफ्रीका में सायकल के पीछे ‘स्टे्रचर’ लगाकर ‘सायकल एंबुलेंस’ बनाई जाती है। यह जुगाड़ अफ्रीका जैसे देशों में अनेक लोगों के प्राण बचाता है। फायरब्रिगेड के जवानों के लिये कुछ जगहों पर सायकल उपयोग में लाई जाती है। इसमें मुख्य रूप से पानी के पाइप को लपेट कर सुरक्षित ले जाने की व्यवस्था होती है। पहले महायुद्ध में तो सायकलों पर बंदूकें भी लगाई गयीं थीं। सायकल के पीछे एक ट्राली लगाकर उसमें अनेक वस्तुएं ले जायी जा सकती हैं। हमारे यहां तो हमेशा से सायकल की क्षमता का पूर्ण उपयोग किया जाता है। तीन पहियोंवाली सायकल का उपयोग तो अनेक जगहों पर होता दिखाई देता है। इनमें वस्तुओं से लेकर व्यक्तियों तक सब कुछ लादकर ले जाया जा सकता है।

इसके साथ ही सायकल के कई अलग उपयोग भी पूरी दुनिया में किये गये हैं। सायकल का ही उपयोग करके उसका पानी के पंप के रूप में उपयोग किया जाता है। सायकल पर चलनेवाली वाशिंग मशीन भी बनाई गयी है।
सायकल से मिक्सर ग्राइंडर भी बनाया गया। इतना ही नहीं तो पेपर कटर और वुडकटर भी बनाये गये।
हमारे देश में भी सायकल का विभिन्न तरह से उपयोग किया गया। 75 वर्ष के द्वारकाप्रसाद चौरसिया ने सायकल के दोनों ओर दो छोटी-छोटी नौकाओं को जोड़कर पानी पर चलनेवाली सायकल तैयार की। बिहार में मोहम्मद सैदुल्ला ने भी ऐसी ही एक सायकल बनाई। भिन्नता केवल यह थी कि 2 की जगह 4 फ्लोटर लगाये।

परंतु इन सबसे अधिक अच्छा प्रयोग किया है महाराष्ट्र के जलगांव जिले के किसान गोपाल मल्हारी भिसे ने। उन्होंने अपने खेतों से खरपतवार हटाने के मुश्किल काम के लिये एक खास तरीका अपनाया। उन्होंने सायकल का पिछला पहिया निकालकर उससे हल जोड़ा। इस सायकल को उन्होंने पूरे खेत में घुमाया, जिससे खेत की खरपतवार अपने आप उखड़ गयी। इस संशोधन के लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया। सायकल के ऐसे कई उपयोग हम भी कर सकते हैं। जरूरत है तो सिर्फ अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप देने की।

एक ऐसे ही प्रयोग में भी अनुपयोगी वस्तुओं से उपयोगी वस्तुएं बनायी गईं। आज पानी के लिये बड़े पैमाने पर प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग किया जाता है। इन बोतलों का अनेक प्रकार से पुनर्प्रयोग किया जा सकता है। उनसे साज-सज्जा की वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। उपयोग में आ सकें ऐसी वस्तुएं बनाना, दो वस्तुओं को जोड़कर नवनिर्माण करना इत्यादि अनेक बातें अभी तक हो चुकी हैं। ये सारे प्रयोग हमारे और आपकी तरह के सामान्य लोगों ने ही किये हैं। आज इन प्रयोगों की ओर आंखें खोलकर देखने की आवश्यकता है। आवश्यकता है यह महसूस करने की कि हम भी ऐसा कुछ कर सकते हैैं। आपके किसी छोटे से प्रयास से किसी की जान भी बच सकती है।

टायर का पुर्नप्रयोग करके उनसे सायकल स्टैण्ड और टेबल कुर्सियां भी बनाई जा सकती हैं। हमारे दैनंदिन उपयोग में आनेवाले तार के ब्रश का भी अलग तरह से प्रयोग करने पर वह अत्यंत सुंदर और उपयोगी हो सकता है।
छोटी-छोटी वस्तुओं का अलग-अलग तरीकों से उपयोग करने को ही तो असली जुगाड़ कहते हैं। हमें भी ऐसे प्रयोग करके देखने चाहिये।
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