उम्रदराज वरिष्ठ नागरीक

आज मुझे मेंरी बचपन की याद आई। लगभग 70/75 साल की पूर्व की कहानी। एक देहात में हमारा घर था। घर में हमारे पिता-माता, चार भाई, तीन बहनें, दादाजी, दादी, चाचा इ. करके करीब 15-16 जन रहते थे। कुटुंब कबिला ब़ड़ा था। साथ में कभी-कभी हमारी आंटी उनके परिवार के साथ आया करती थीं। गांव में आनेवाले अधिकारी व्यक्ति भी हमारे घर पर ही पधारते थे। इतना बड़ा परिवार। उनकी सारी देखभाल मेरी माता और दादी करती थीं। हमारे दादाजी की आयु वर्ष 75 थी। अत्यंत प्रेम करनेवाले परंतु अनुशासनप्रिय। इसलिये हम उनसे ड़रते तो नहीं थे लेकिन एक आदर भाव से उनकी ओर देखते थे। घर में कुछ विशेष काम करना हो, विशेष निर्णय लेने हों तो उनका मार्गदर्शन मिलता था। उनका शब्द अंतीम माना जाता था।

उस समय समाज की परिस्थिति इसी प्रकार की थी। यही चित्र चारों ओर दिखाई प़ड़ता था। गांव में कई विवाद के प्रश्न उत्पन्न होते तो हमारे दादाजी के आयु के बुजुर्ग उसका न्याय करते थे। आज हम जिसे लोक अदालत कहते हैं, उस समय वह थी गांव पंचायत। ब़ड़ों का ब़ड़ा सम्मान होता था। भारतीय पारंपरिक समाज और कुटुंब पद्धती यही थी।

भारतीय समाज जीवन चार आश्रमों में विभाजित था। ब्रह्मचर्य आश्रम में गुरुकुल में अथवा शाला में विद्यार्जन करना। गृहस्थाश्रम में अर्थार्जन और कुटुंब वृद्धी। साथ में कौटुंबिक कारोबार चलाना। वानप्रस्थाश्रम में कौटुंबिक व्यवहार से मुक्त होकर सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कार्य में नि:स्वार्थ भाव से समाज में काम करना और संन्यासाश्रम में सर्व संग परित्याग करके मुक्त जीवन जीना। चारों आश्रमों में ‘श्रम’ शब्द जुड़ा हुआ है। अपने-अपने कार्य में प्रत्येक आश्रम के अनुसार व्यस्त रहना। आश्रम पद्धती के कारण भारतीय समाज जीवन में एक प्रकार की स्थिरता होती थी। साधारणत: 20वीं शताब्दि के पूर्वार्ध में इसी प्रकार समाज चलता था।

वैश्विक स्तर पर वृद्धों की संख्या में वृद्धी हो रही है। भारत में सन 1951 तक जनसंख्या में वृद्धों की संख्या 5% थी। जनसंख्या में वैश्विक स्तर पर बदल हो रहे हैं। पाश्चात्य राष्ट्रों में विशेषत: ब्रिटेन और फ्रान्स में औद्योगिक क्रांती के कारण जनसामान्य के जीवन में बहुत सुधार हुआ है। आर्थिक स्थिति सुधरी है। साथ ही वैज्ञानिक और चिकित्सकीय क्षेत्रों में संशोधन के कारण आयु मेेंं वृद्धि हुई है। मृत्युदर और जन्मदर घटने से और आयु मर्यादा बढ़ने के कारण रिष्ठों की संख्या में वृद्धी हुई है। प्रथमत: ‘वरिष्ठजन समाज पर एक बोझ हैं, वे अनुत्पादक हैं’यह विचार प्रसृत होने से वरिष्ठ एक उपेक्षीत और दुर्लक्षीत व्यक्तियां बन गये थे। लेकिन आगे चलकर इस विचारों में बदलाव आया और वरिष्ठ नागरीकों के अनुभव, कौशल, ज्ञान के कारण वे एक संपत्ति हैं, समाज के मार्गदर्शक हैं इस निर्णय पर समाज अब पहुंच चुका है।

वरिष्ठ नागरीकों के वयोवर्धन से उठे सवालों पर सन 1944 में प्रथमत: गंभीर रुप से चर्चा हुई। वरिष्ठ नागरिकों के हक के लिये एक प्रस्ताव पारित किया गया। बाद में विविध वैश्विक परिषदों और यूनो में भी समय-समय पर व्हिएन्ना, और माद्रिक में अनेक चर्चाएं हुईं। वरिष्ठ नागरीकों की स्वतंत्रता, उनकी देखभाल, उनका व्यक्तित्व विकास, स्वयंप्रतिष्ठा और विविध स्तर पर उनका सहभाग इत्यादि पांच विभाग में कुल 18 तलों का समावेश है।

वैश्विक स्तर पर सभी परिषदों में और यूनो में भारत के प्रतिनिधि मंड़ल सहभागी होते थे। 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में भी इन बातों पर विचार हुआ। उनके कल्याण के लिये कुछ ठोस उपाय किये जाने की चर्चा भारत में होने लगी। और उसके परिणाम स्वरूप 1999 में भारत सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में वरिष्ठ नागरिकों के लिये राष्ट्रीय नीति की घोषणा की थी। परंतु अभी 14 वर्ष के बाद में भी भारत सरकार ने उसे मान्यता नहीं दी है।

वैश्विक स्तर पर भी वरिष्ठ नागरिकों के बारे में विचार विमर्ष चलता था। उनके संघटन भी कार्यरत हो रहे थे। भारत में भी वरिष्ठ नागरीकों का संगठन ड़ोंबीवली स्थित स्वर्गीय ड़ॉ. राधाकृष्ण भट ने 1977 में शुरु किया और सन 1980 महाराष्ट्र में फेड़रेशन अ‍ॅफ सीनियर सिटिजन ऑफ महाराष्ट्र (फेस्काम)की स्थापना हुई।

महाराष्ट्र में फेस्कॉम के 2700 संघ कार्यरत है। सदस्य संख्या लगभग 7 लाख है। वरिष्ठ नागरिकों की संख्या ध्यान में रखते हुये केवल 5 से 7 प्रतिशत ही संगठन जुड़े हैं, लेकिन फेस्कॉम ने वरिष्ठ नागरिकों के लिये बहुत परिश्रम किये हैं। भारतीय संविधान की धारा41 के अनुसार सरकार वरिष्ठ नागरिकों के समस्याओं का निराकरण करने के लिये बाध्य है। फेस्कॉम ने कभी शांती से कभी आंदोलन द्वारा वरिष्ठ नागरिकों की समस्या पर सरकार का ध्यानाकर्षण किया है। वरिष्ठ नागरिकों की आर्थिक, आरोग्य, सुरक्षा, निवास, शिक्षण प्रशिक्षण, आदि बहुत सी समस्याएं हैं। वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में 1/3 गरीबी रेखा के नीचे हैं। और इतने ही गरीबी रेखा बहुत नजदीक है। वरिष्ठों में से केवल 10% राज्य अथवा भारत शासन, बैंक, बड़े उद्योग समूह में कार्यरत है। पेन्शन, प्राव्हिड़ंड़ फंड़, ग्रॅच्युइटी के साथ अन्य आरोग्य जैसे सेवाएं उनको मिलती है। लेकिन बाकी 10% को उदरनिर्वाह के लिये अंतिम समय तर झगड़ना पड़ता है। वरिष्ठ नागरीकों का संगठन उनकी समस्याओं का निराकरण करने में जुटी है और कुछ हद तक उनको सफलता भी प्राप्त हुई है। जैसे-

1) वरिष्ठ नागरिकों को (महिला 50% और पुरुष 40%) रेल भाड़े में छूट।

2) वरिष्ठ नागरिकों को बहु आयामी परिचय पत्र महाराष्ट्र शासन द्वारा प्राप्त।

3) 65 वर्ष से अधिक के लोगों को महाराष्ट्र परिवहन (डढ) द्वारा बस भाड़े में, एशियाड़ बस सहित 50% छूट।

4) शासकीय दवाखाना, हॉस्पीटल, प्राथमिक आरोग्य केंद्र में 65+ वरिष्ठ नागरिकों की मोफत आरोग्य चिकित्सा।

5) स्थानिक महापालिका बस सेवा तथा एसटी में वरिष्ठ नागरिकों के लिये आरक्षित स्थान।

6) बैंक ड़िपॉझिट में 1/2 से 1% ज्यादा व्याज।

8) आय कर में 2.40 लाख में छूट। 65+ वरिष्ठ नागरिकों को।

9) चढछङ के मासिक भाड़े में 25% छुट। 65+ वरिष्ठ नागरिकों को।

10) पुलिस द्वारा वरिष्ठ सुरक्षा के लिये हेल्पलाईन।

11) निराधार एकाकी वरिष्ठ को रु. 600/- मान वेतन।

12) वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण के लिये मेन्टेनेन्स एण्ड प्रोटेक्शन ऑफ सीनियर सिटिजन एण्ड पेरेन्ट्स 2007 की महाराष्ट्र शासनद्वारा स्वीकृती और उसकी कार्यवाही के लिये नियमावली

उपरोक्त सुविधाएं मिली हैं जरूर, लेकिन जैसे-जैसे महंगाई बढ़ रही है, बहुसंख्य वरिष्ठ नागरिकों का जीना मुश्किल हो रहा है। अखिल भारत में वरिष्ठ नागरीकों के 3000 संघ है। और भी अभी बन रहे हैं। संघटन क्षेत्र में महाराष्ट्र सबसे आगे है। विशेषकर ग्रामीण भाग में जहां 70% वरिष्ठ रहते हैं फेस्कॉम ने अपने संघ बनाये हैं और समस्याएं सुलझाने में सहायता की है।

10-12 वर्ष पूर्व भारत में अखिल भारतीय स्तर पर वरिष्ठ नागरिकों का संघटन नहीं था। केंद्रीय शासन के साथ चर्चा करने में कठिनाई आती थी। सन 2001 में महाराष्ट्र स्थित श्रीरामपूर में ऑल इंडिया सीनियर सिटिजन कॉन्फेड्रेशन की स्थापना हुई। अभी 26 राज्यों में उसका विस्तार हुवा है। वरिष्ठ नागरीकों को उचित न्याय और प्रतिष्ठा प्राप्त हो विभिन्न स्तर पर उनका सहयोग बढे उसके लिय यह कार्यरत है।

अनेक समस्याओं का सामना करते हुए वरिष्ठ नागरिक अपने संगठन द्वारा केवल मांगों के लिये ही प्रयत्नशील है ऐसा नहीं है, उन्होंने अनेक समाजोपयोगी कार्य भी किये हैं और करते रहेंगे।

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