नेताओं का नेता

बीसवीं शताब्दी में मानव जाति के इतिहास को एक नया मोड देने का काम जिन व्यक्तियों ने किया उनमें नेलसन मंडेला की गिनती करना अत्यावश्यक है। 6 दिसम्बर 2013 को उनकी मृत्यु हुई। 18 जुलाई 1918 को उनका जन्म हुआ था। उनकी आयु के 94 वर्षों में से 27 वर्ष उन्होंने जेल में गुजारे। अपने जीवित कार्य के लिये जीने का उनका असली कालखंड 1995 से 1999 तक का है, क्योंकि इन चार वर्षों में वे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थे। हालांकि किसी देश का राष्ट्रपति होना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। प्रत्येक देश को किसी प्रमुख नेता की आवश्यकता होती है और उस विशेष कालखंड में जो नेता होते हैं उनमें से एक का उस देश के प्रमुख नेता के रूप में चुनाव होता है। राज्य भी एक संस्था ही है अत: इस संस्था का कार्यभार ठीक ढ़ंग से चलने के लिये इस संस्था को भी प्रमुख नेता की आवश्यकता होती है। नेल्सन मंडेला इस अर्थ में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नहीं थे।

दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति बनने की उनकी महत्वाकांक्षा भी नहीं थी। उसी तरह जिस तरह जार्ज वाशिंगटन को अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की इच्छा नहीं थी। उनकी तीव्र इच्छा अमेरिका को स्वतंत्र करने की थी। स्वतंत्रता मिलने के बाद यह प्रश्न सामने आया कि देश का प्रमुख कौन होगा और सर्वसम्मति से जार्ज वाशिंगटन का नाम सामने आया। नेलसन मंडेला के साथ भी यही हुआ। नेलसन मंडेला का संघर्ष द. अफ्रीका में चल रहे वंशवाद को खत्म करके अफ्रीका के मूल निवासी कृष्णवर्णीयों को उनका जन्मसिद्ध अधिकार दिलवाना था। यही उनका मुख्य कार्य था। जार्ज वाशिंगटन की तरह उन्हें दक्षिण अफ्रीका को गोरों से मुक्त कराने के लिये सशस्त्र लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी। अर्थात उनका युद्ध दो सेनाओं के युद्ध का नहीं था। महात्मा गांधी की तरह वह पूर्ण रूप से अहिंसात्मक भी नहीं था, परंतु वह सहनशक्ति की सीमा का अंत देखने वाला युद्ध था। यह लड़ाई नेलसन मंडेला अर्थात उनके सभी सहकारी और सभी कृष्णवर्णीय समर्थकों ने जीती। अंग्रेजी में इसे ही बॅटल ऑफ नर्व्हस् कहते हैं। इसी प्रकार की लड़ाई महात्मा गांधी ने भारत में लड़ी थी। यही लडाई मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में लड़कर सफलता प्राप्त की और यही लड़ाई नेलसन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में सफल कर दिखाई। इसलिये ही नेलसन मंडेला को दक्षिण अफ्रीका का गांधी कहा जाता है और उनकी मृत्यु दूसरे गांधी की मृत्यु हुई।

कुछ लोगों को नेलसन मंडेला की तुलना गांधी जी से करना नहीं सुहाता। उनका युक्तिवाद यह है कि गांधी जी सादी धोती पहनते थे और अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते थे, जबकि नेलसन मंडेला का रहन-सहन शान-शौकत भरा था। वे विविध रंग के कपड़े पहनते थे। उनका जीवन साधारण नहीं था। गांधी जी ने एक पत्नीव्रत का पालन किया, जबकि नेलसन मंडेला के तीन विवाह हुए। गांधीजी ने अत्यंत नियमित जीवन जीया। हिंदू धर्म का उन पर गहरा प्रभाव था। अहिंसा पर उनका विश्वास था। उन्होंने कभी भी हिंसा का समर्थन नहीं किया। नेलसन मंडेला की तुलना इन बातों में गांधी जी से नहीं की जा सकती। इस स्तर पर इन दोनों की तुलना करना हास्यास्पद होगा। धोती पहनने से कोई गांधी नहीं होता और बकरी का दूध पीने से भी कोई गांधी नहीं होता। गांधी एक वृत्ति है। वह मन की एक अवस्था है और ‘गांधी’ नाम का सामाजिक और राजनैतिक ब्रांड है। नेलसन मंडेला इस ब्रांड के राजदूत थे।

नेलसन मंडेला, इस नाम के साथ शांतता, न्याय, सहभागिता, सहनशीलता, निरपेक्ष प्रेम और अपने जीवन मूल्यों के लिये मृत्यु को भी आलिंगनबद्ध करने की तैयारी इत्यादि सभी विषय जुड़े हुए है। उनका पोषाक कैसा था या उन्होंने कितने विवाह किये ये सारी बातें फालतू (निरर्थक) हैं। दक्षिण अफ्रीका को एकरूप रखते हुए गोरों और कृष्णवर्णीयों में समरसता निर्माण करने का कार्य उनका युगप्रवर्तक कार्य था और यही उनकी महानता थी। इस बारे में वे महात्मा गांधी से भी आगे निकल गये थे। महात्मा गांधी को हिंदू-मुस्लिम एकता संभालनी थी। इन दो समाज में समरसता निर्माण करनी थी। हम सभी यह जानते हैं कि गांधी जी यह नहीं कर पाये और मुसलमानों ने अलग देश का निर्माण किया। नेलसन मंडेला ने गोरों से अलग होकर स्वतंत्र देश का निर्माण नहीं किया। अगर यह दक्षिण अफ्रिका है तो वह हम सभी का देश है। यह हम सभी की मातृभूमि है और हम सभी को इसी भूमि पर रहना है। यह सब उन्होंने करके दिखाया, भाषण बाद में दिये।

उनका सर्वोत्कृष्ट भाषण ‘रेनबो स्पीच’ अर्थात ‘इन्द्रधनुषी भाषण’ शीर्षक के रूप में जगप्रसिद्ध है। इस भाषण में उन्होंने अपना देश इंद्रधनुष जैसा अर्थात अनेक भाषाओं और समुदायों से मिला हुआ है, यह प्रतिपादित किया। 10 मई 1994 को उन्होंने राष्ट्राध्यक्ष के रूप में देश को संबोधित किया।

उन्होंने कहा ‘एक लंबे काल तक अपना अस्तित्व बनाये रखनेवाले और मानवी पतझड़ का अनुभव लेने के बाद एक ऐसे समाज का निर्माण हो रहा है जिसका मानव जाति को अभिमान होगा।

मैं नि:संकोच रूप से यह कह सकता हूं कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति इस सुंदर देश की मिट्टी से जुड़ा हुआ है। जिस तरह से प्रिटोरिया का जकारंडा और मिनोसा वृक्ष इस मिट्टी से जुड़े हैं उसी तरह हम भी इसी मिट्टी से जुड़े हैं।

जब-जब हम इस मिट्टी को स्पर्श करते हैं तब-तब हममें से प्रत्येक व्यक्ति जागरण की अनुभूति करता है। प्रत्येक ऋतु के परिवर्तन के साथ-साथ अपनी भावनाएं उस ऋतु से संवाद साधने लगती हैं।

अपनी समान पितृभूमि के बारे में अपनी ये आध्यात्मिक और आदि भौतिक भावनाएं हैं अत: एक समान वेदना हम सभी के अंत:करण में निर्माण हो रही है। एक भयानक संघर्ष में अपना देश विभक्त हुआ। अपने देश में गलत प्रकार की विचारधारा निर्माण हुई। उसने वंशवाद और अनुवांशिक छलावा प्रारंभ किया।

हम आज आनंदित हैं क्योंकि अब मानव जाति ने हमें गले से लगाया है। कल-परसों तक हम बहिष्कृत थे, परंतु आज दुनिया के अनेक देशों का हमने अपनी ही भूमि पर यजमान के रूप में स्वीकार किया है। हमारे निमंत्रण को स्वीकार कर आप सभी यहां आये इस लिये मैं आप सभी का आभार मानता हूं।’

नेलसन मंडेला के भाषण का यह पूर्वार्ध है। यह पूर्वार्ध (और उत्तरार्ध भी) केवल दक्षिण अफ्रीका की जनता के लिये नहीं था। उनका यह भाषण पूरी मानव जाति के लिये था। इस भाषण के द्वारा उनके अंदर के सभी नेतृत्व गुणों की पहचान होती है। और इसके साथ ही वे नेताओं के नेता थे, एक महान ध्येयवादी थे और नवराष्ट्र का निर्माण करनेवाले थे, यह भी परिलक्षित होता है। यह कैसे? यह जानने के लिये भाषण के उत्तरार्ध की ओर बढ़ना चाहिये। वे कहते हैं- ‘अब जख्मों को भरना होगा। अब हमें विभक्त करने वाली खाइयों को पाटना होगा, अब हमें खड़े होना है। हमने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है अत: हम अब स्वत: से ही यह प्रतिज्ञा करते हैं कि भूख, उपेक्षा, दुख, लिंगभेद जैसे सभी भेदों को दफन करने की। हम स्वत: से ही यह वादा करते हैं कि हम पूर्ण शांतता और निरपेक्ष न्याय की प्रस्थापना करेंगे। हम ऐसा संकल्प करते हैं कि हम ऐसे समाज का निर्माण करेंगें जहां काले-गोरे भेद भुलाकर एक साथ रहेंगे और उनकी पहचान दक्षिण अफ्रीका के लोगों के रूप में ही होगी। वे सिर उठाकर चलेंगे और उनके मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहेगा। स्वत: को शांतता का आश्वासन देने वाला एक इंद्रधनुषी राष्ट्र हमें खड़ा करना है। इस ध्येय को साध्य करने के लिये हमें एकत्रित काम करना होगा। देश को खड़ा करने के लिये और एक नयी दुनिया को जन्म देने के लिये हमें यह कार्य करना होगा। सभी को न्याय मिलना चाहिये। सभी जगह शांतता होनी चाहिये। सभी को रोजगार मिलना चाहिये। सभी को अन्न-पानी मिलना चाहिये और सभी की थाली में नमक होना चाहिये। हम सभी को इसका ध्यान रखना होगा कि प्रत्येक शरीर में आत्मा और मन होता है। वह अब मुक्त हो चुका है। इस मुक्तता से हम परिपूर्णता साधेंगे। इस सुंदर भूमि को फिर कभी भी एक जाति की ओर से दूसरी जाति का छल किये जाने का अनुभव कभी नहीं, कभी भी नहीं आयेगा। मानव जाति की इस विरासत पर सूर्यास्त कभी नहीं होगा। नेलसन मंडेला को गोरों ने राजद्रोह के आरोप में 27 साल तक जेल में रखा था। दक्षिण अफ्रीका गोरों का देश नहीं है। पुर्तगालियों ने 15 वीं-16 वीं शताब्दियों में अलग-अलग समुद्री मार्ग खोजे। इनमें से एक मार्ग अफ्रीका का चक्कर काटकर भारत और एशिया के अन्य देशों में आने का था। वैश्विक व्यापार के बाद इंगलैंड, डच, फ्रैन्च, जर्मन भी उतरे। दक्षिण अफ्रीका में इन गोरों ने बस्तियां बनाई। भूभाग अपने अमल में लाये। इन भूभागों में अनेक अफ्रीकन समुदाय रहते थे और उनके वहां के निवास स्थान कई लाख वर्षों से हैं। डच लोगों की दक्षिण अफ्रीका में प्रबलता थी। दक्षिण अफ्रीका में डच और अंग्रेजों के मध्य झगड़ा हुआ। कई बड़े युद्ध हुए। उसमें से बोअर युद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें डचों का पराभव हुआ और अंग्रेजों का झंडा फहराने लगा। अंग्रेज हमें राजनैतिक अधिकार देंगे और राज्य संचालन में सहभागी करेंगे, ऐसा दक्षिण अफ्रीका के कृष्णवर्णियों को लगता था, परंतु ऐसा हुआ नहीं उल्टे कृष्णवर्णियों पर जुल्म, जबरदस्ती बड़े पैमाने पर बढ़ने लगी।

वहां के शासन ने अनुवांशिक भेदभाव को संस्थात्मक रूप दिये और कानून बनाकर उसे वैधानिक मान्यता भी दी। काले-गोरे आपस में विवाह नहीं कर सकते थे। कुशलता पूर्वक किये जानेवाले सभी रोजगार गोरों के लिये आरक्षित किये जाने लगे। उनकी बस्तियां अलग कर दी गईं। जनगणना में गोरे-काले और वर्णीय इस प्रकार के तीन भेद किये गये। तीसरे प्रकार में काले और गोरों से उत्पन्न संतति को रखा गया। गोरों के वर्ग में आने के लिये माता-पिता दोनों का गोरा होना आवश्यक कर दिया गया। मां गोरी और पिता काला या पिता गोरा एवं मां काली इनके बच्चों को वर्णीय वर्ग में ही रखा गया। कृष्णवर्णियों को राजनैतिक अधिकार नहीं थे। उन्हें मतदान करने का अधिकार भी उनकी बस्ती तक ही सीमित था। यह राष्ट्रीय अधिकार नहीं था। कालों को पहचान पत्र आवश्यक कर दिये गये। लोकसुरक्षा कानून और अन्य पुलिस कानून इन काले लोगों पर अन्याय करनेवाले हो गये। अत: दक्षिण अफ्रीका के गोरे धनाढ्य हो गये और काले अधिक से अधिक गरीब हो गये। कृष्णवर्णियों की सारी जमीनें गोरों ने हड़प ली। इस अन्याय के विरोध में दक्षिण अफ्रीका में बहुत बड़ा संघर्ष हुआ।

अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की स्थापना बहुत पहले ही हो चुकी है। हमारे यहां जिस तरह राष्ट्रीय कांग्रेस उसी तरह वहां वह कांग्रेस थी। नेलसन मंडेला ने इस कांग्रेस में प्रवेश किया। आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया। सशस्त्र लड़ाई में भी उन्होंने भाग लिया। अनेक वर्ष वे फरार रहे और अंत में उन्हें गिरफ्तार कर रॉबिन आयलैंड की जेल में रखा गाया। उनकी जेलें बदलती रही। दक्षिण अफ्रीका की परिस्थिति भी बदलती रही। वैश्विक परिस्थिति बदलती रही। दक्षिण अफ्रीका के वंशवाद के विरुद्ध दुनिया के अनेक देशों ने दक्षिण अफ्रीका का बहिष्कार किया। देश की अंतर्गत परिस्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गई। किसी भी क्षण बहुत बड़ा रक्तपात करनेवाले गृहयुद्ध शुरु होने वाले हालात निर्माण होने लगे।

नेलसन मंडेला जेल में थे और यह सारी परिस्थितियां वे देख रहे थे। प्रदीर्घ काल तक जेल में रहने के कारण नेलसन मंडेला के अंदर का चिंतक जागृत हो गया। दक्षिण अफ्रीका के कृष्णवर्णियों की समस्या हिंसा के माध्यम से हल नहीं हो सकती। गोरों का बदला लेकर भी हल नहीं निकला। इस समस्या को हल करने के लिये एक देशा, एक देशवासी यही मार्ग अपनाना होगा। इस बारे में उनका मत और अधिक पक्का होता गया। गोरों की गुलामी जितनी बुरी उतनी ही कालों के द्वारा गोरों को गुलाम करने की कल्पना भी बुरी है। गुलामी में काले-गोरे का भेद नहीं किया जा सकता। सरकार ने उन्हें जेल में रखा, लंबे समय तक रखा, परंतु उनकी मन:स्थिति कैसी थी?

रिचर्ड लव्हलेस की To Althea, from Prison शीर्षक वाली एक प्रसिद्ध कविता है। इस कविता की कुछ अंतिम पंक्तियां इस प्रकार हैं-

Stone walls do not a prison make,
Nor iron bars a cage
Minds innocent and quit take
That for a hermitage.
If I have freedom in my love,
And in my soul am free,
Angels alone, that soar above,
Enjoy such liberty.

इसका अर्थ कुछ इस प्रकार है कि पत्थरों को दीवारों या लोहे की सलाखों से जेल तैयार नहीं हो सकती। शांत और निष्पाप मन की ऐसी जगह आश्रम की तरह लगती है। मैं प्रेम और आत्मतत्व में मुक्त हूं। केवल देवदूत ही इस तरह की मुक्ति की अनुभूति कर सकते हैं। नेलसन मंडेला के लिये अगर इन पंक्तियों के रूप में सोचें तो वे देवदूत दिखाई देते हैं। जेल में भी वे शांत थे और मानव जाति के लिये उनके मन का प्रेम बिलकुल कम नहीं हुआ था। अत: 27 साल बाद जब वे जेल से रिहा हुए तो उनका वक्तव्य इस प्रकार था।

“I have fought against white domination and I have fought against black domination. I have cherished the ideal of a democratic and free society in which all persons will live together in harmony with equal opportunities. It is an ideal which I hope to live for, and to see realised. But my Lord, if needs be, it is an ideal for which I am prepared tp die.”

इसका अर्थ यह है कि ‘मैने गोरों और कालों के वर्चस्व के विरोध में संघर्ष किया। मेरे सामने लोकतंत्र और स्वतंत्र समाज की संकल्पना है। जहां सभी लोग सामंजस्य से रहेंगे और प्रत्येक के समान अवसर मिलेंगे यही मेरे जीवन का ध्येय है और मैं इसी के लिये जी रहा हूं। मेरी इच्छा है कि मैं इसे पूरा होता हुआ देखूं, परंतु अगर भगवान की इच्छा हो तो इस ध्येय के लिये मैं प्राण देने को भी तैयार हूं।

राष्ट्रनेता में सामान्य नेताओं से भी असामान्य गुण होने आवश्यक हैं। क्या नहीं हो यह बात जैसे उसे पता होनी चाहिये वैसे ही क्या हो यह भी उसे मालूम होना आवश्यक है। सपनों को साकार करने के लिये ऐसा नेता बहुत कष्ट करता है। यह स्वप्न उसका व्यक्तिगत नहीं होता। वह समाज से जुड़ा होता है। व्यक्तिनिष्ठा उसके जीवन का आधार नहीं बन सकता। वह पूरे समाज का विचार करता है। व्यक्ति-व्यक्ति में कोई अंतर न हो और सभी मिलजुलकर आनंदपूर्वक रहें यही उसकी अपेक्षा होती है। इसके लिये उस नेता के पास बहुत बड़ा अंत:करण और क्षमाशीलता का भंडार होना आवश्यक है। इस बारे में अब्राहम लिंकन का जीवन आदर्श समझना चाहिये। उनके मन में बदले की भावना थी ही नहीं। नेलसन मंडेला के मन में भी वह नहीं था। लिंकन का चेहरा खिन्नता से भरा था। मानवीय दुख की खिन्नता उनके चेहरे पर दिखाई देती थी। नेलसन मंडेला का चेहरा सदैव प्रसन्न रहता था। सहजीवन, सहअस्तित्व और समरस जीवन का महत्व उन्हें आनंदित रखता था।

इस आनंद की पूंजी को नेलसन मंडेला छोड़ गये हैं। मानव जीवन को उन्नत करने का उनका कार्य बहुत बड़ा है। हमारे देश का विचार करें तो हमारे देश में वंशवाद नहीं है। देश पर राज करनेवाले सभी राजनेता एक ही वंश के हैं। फिर भी अन्याय और अत्याचार के कीचड़ में सना समाज पूरी जनसंख्या के चौथाई से भी अधिक है। नेलसन मंडेला का विचार अपने यहां लागू करने हों तो हमें भी अन्यायग्रस्त समाज को न्याय दिलवाना होगा। दक्षिण अफ्रीका के गोरे लोग और उनके नेता एफ.डब्लू.डी. क्लर्क ने राष्ट्रीय होशियारी का परिचय करवाया। उन्होंने लोकतंत्र के माध्यम से अपनी सत्ता छोड़ी। हमारे देश में भी शूद्र जातियां उच्चवर्णियों के प्रभाव से मुक्त होने के लिये जद्दोजहद कर रही हैं। अपना सैकड़ों वर्ष का प्रभाव उच्चवर्णीय लोग आसानी से छोडने को तैयार नहीं होते। दक्षिण अफ्रीका के गोरे लोगों ने कृष्णवर्णियों की उन्नति का बीड़ा उठाया और समय आने पर दो कदम पीछे भी हटे इसके कारण ही सही मायनों में दक्षिण अफ्रीका इंद्रधनुषी राष्ट्र बन सका। हमारे यहां भी इसी प्रकार की प्रक्रिया होनी चाहिये।

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