छत्तीसगढ़ में सकारात्मक जनादेश

कभी म. प्र. का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव अन्य चार राज्यों की तुलना में पूरी तरह अलग कहे जा सकते हैं। आदिवासियों की बहुतायत वाला यह राज्य धान का कटोरा कहलाता है। खनिज संपदा यहां भरी पड़ी है। वन क्षेत्र की काफी व्यापक है। अतिरिक्त बिजली की वहज से औद्योगिक विकास भी जबर्दस्त है परन्तु पशुपति से तिरूपति तक बनाये जा रहे रेड कॉरीडोर षडयंत्र के अंतर्गत छत्तीसगढ़ का बड़ा इलाका नक्सलियों के आतंक से ग्रसित है। कोढ़ में खाज के रूप में यहां ईसाई मिशनरियों का जाल समूचे राज्य में फैला हुआ है। पिछली गर्मियों में बस्तर की जीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं का सामूहिक हत्याकांड आज भी तमाम रहस्यों को अपने आप में समेटे है परन्तु इसकी वजह से कांग्रेस को सहानुभूति मिलने की उम्मीद बढ़ गयी। ऊपर से नक्सलियों एवं ईसाई मिशनरियों के अदृश्य गठजोड़ ने आदिवासी बहुल सीटों पर भाजपा विरोधी मोर्चे बंदी खड़ी कर दी। विगत दस वर्ष से सत्ता में बने रहने की वजह से व्यवस्था विरोधी लहर चलने की आशंका भी चर्चा में थी। पहले चरण के मतदान में 18 सीटों पर 80 प्रतिशत तक मतदान ने भाजपा को सकते में डाल दिया था।

2008 में इनमें से 12 जीतकर डॉ. रमन सिंह ने लगातार दूसरी मर्तबा सरकार बनाई थी। कहा जाता है छत्तीसगढ़ की सियायत की कुंजी बस्तर के हाथ में रहती हैं। पहले चरण के मतदान के बाद भाजपा भी सनाके में थी परन्तु डॉ. रमन सिंह ने इस अग्निपरीक्षा का सामना पूरी सफलता के साथ किया। बाकी 72 सीटों का मतदान दूसरे चरण में एक साथ हुआ जिसमें भाजपा ने सुनियोजित रणनीति एवं संगठन की शक्ति के बल पर कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बस्तर में अपने नेताओं की सामूहिक हत्या से सहानुभूति बटोरने के अति आत्मविश्वास ने कांग्रेस को मुगालते में रखा। हमेशा की तरह वह अपने नेता के करिश्मे पर निर्भर रही। राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने छत्तीसगढ़ में कई सभाएं कीं, किन्तु नरेन्द्र मोदी की आक्रामक शैली ने उनको बेअसर कर दिया।

सबसे महत्वपूर्ण पहलू रहा बतौर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की निर्विवाद छवि एवं लोक कल्याणकारी योजनाएं व कार्यक्रम। गरीब परिवारों को एक रुपया प्रति किलो की दर पर चांवल देने की जो योजना छत्तीसगढ़ में चलाई गयी वह केन्द्र सरकार की खाद्यान्न सुरक्षा योजना की जनक बन गई। सार्वजनिक वितरण प्रणली का यह मॉडल पूरे देश के लिये अनुकरणीय बन चुका है। परिणाम ये निकला कि कहां तो कांग्रेस सरकार बनाने के मंसूबे पाल रही थी और कहां उसके 24 वर्तमान विधायक अपनी सीट गंवा बैठे। भाजपा को यद्यपि 2008 की तुलना में एक सीट कम हासिल हुई परन्तु उसने बस्तर अंजल के बाहर के इलाकों में कांग्रेस के परंपरागत गढ़ों में सेंध लगाकर इस आदिवासी राज्य पर अपना आधिपत्य बनाए रखा। भाजपा की इस जीत का प्रभाव लोकसभा चुनाव में पड़ोसी राज्य उड़ीसा एवं झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में पड़े बिना नहीं रहेगा। चाउंर (चांवल) वाले बाबा के रूप में लोकप्रिय डॉ. रमन सिंह ने इस राज्य में भाजपा का परचम लहराकर नक्सली एवं मिशनरीज के राष्ट्र विरोधी गठजोड़ की कमर तोड़ दी है।

पांच राज्यों के चुनाव में सर्वाधिक अनिश्चितता छत्तीसगढ़ को लेकर ही थी। मतगणना में भी विभिन्न चरणों में स्थिति ऊपर नीचे होती रही, परन्तु अंत में बाजी भाजपा के हाथ रही। ये विजय इसलिये महत्वपूर्ण कही जाएगी क्योंकि यह किसी लहर या करिश्मे की नहीं बल्कि सुशासन एवं जनसेवा का प्रतिफल है। एक सकारात्मक जनादेश के साथ डॉ. रमन सिंह की गणना देश के दिग्गज राजनेताओं में होने लगी है। उनके नेतृत्व में इस राज्य ने विकास के नये-नये आकाश छूए हैं। इस विजय ने निश्चित रूप से उनका और भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ाया है जो मिशन 2014 की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।

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