जनता ने चुना अपना उत्तराधिकारी

सोलहवीं लोकसभा चुनाव एक ही कारण से ऐतिहासिक माना जाएगा, वह कारण है कि यह पूरा चुनाव एक ही प्रश्न पर केंद्रित हो गया था कि जनता को नरेंद्र मोदी चाहिए या नहीं। अगर किसी राज्य में कोई समस्या आती है तो अपवाद स्वरूप इस समस्या पर सबसे मत लिए जाते हैं। गोवा का महाराष्ट्र में विलीनीकरण किया जाए या उसे स्वतंत्र रखा जाए? इस मुद्दे पर जब गोवा की जनता का मत पूछा गया तो उन्होंने गोवा को स्वतंत्र रखने का निर्णय दिया। परंतु किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया जाए या नहीं?, इस विषय पर मेरी जानकारी के अनुसार कहीं भी जनमत संग्रह नहीं हुआ है। नरेंद्र मोदी एक अपवाद हैं।

इसका अर्थ यह है कि चुनाव आयोग ने या किसी राजनैतिक पार्टी ने चुनाव घोषित होते समय यह तय नहीं किया था कि हमें जनमत संग्रह करना है। हर पांच साल में आम चुनाव करने होते हैं, अत: चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम घोषित किया। चुनाव एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है और संविधान के अनुसार लोकसभा के चुनाव हर पांच साल में कराने ही होते हैं। हमारा देश कोई पाकिस्तान नहीं है। पाकिस्तान में संविधान है, परंतु वह संविधान के अनुसार चले ही हैं, ऐसा आवश्यक नहीं है। हमारा देश संविधान के अनुसार चलता है, अत: चुनाव करवाना आवश्यक होता है।

यह चुनाव नरेंद्र मोदी पर केंद्रित था। ऐसा होने का श्रेय कांग्रेस, प्रसार माध्यम, मोदी विरोधी राजनेता तथा मोदी विरोधी बुद्धिजीवियों को देना होगा। चार गलत व्यक्ति अगर एक साथ आते हैं तो सामान्य रूप से उन्हें चांडाल चौक़डी कहा जाता है। यह शब्द असंवैधानिक होने के कारण यहां इसका प्रयोग करना उचित नहीं होगा। इन चारों के कारण चुनाव घोषित होने के पूर्व ही नरेंद्र मोदी चाहिए या नहीं, इस विषय पर घमासान शुरू हो गया। मोदी क्यों नहीं चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर देते समय बार-बार समान विषयों को सामने रखा गया।

वे विषय थे- 1) 2002 के दंगों में मोदी का हाथ है। 2) मुसलमानों को मोदी नहीं चाहिए 3) अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश में हिंसा ब़ढेगी। 4) मोदी तानाशाही प्रवृत्ति के हैं। 5) अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो देश के लोकतंत्र को खतरा होगा। 6) मोदी धनाढ्यों के मित्र हैं। 7) मोदी अगर प्रधानमंत्री बनते हैं तो दुनिया में भारत की भद्द पिटेगी। 8) मोदी अगर प्रधानमंत्री बने तो देश का आर्थिक विकास थम जाएगा। 9) मोदी अगर प्रधानमंत्री बने तो देश में अलगाव ब़ढेगा। 10) मोदी प्रधानमंत्री बने तो अल्पसंख्यक और दलितों के जीवन को खतरा होगा। बार-बार इन विषयों को राजनेताओं के द्वारा जनता के सामने रखा गया। किसी ने उन्हें कसाई कहा, किसी ने हिटलर तो किसी ने झूठ बोलने वाला कहा। इन सबके परिणाम स्वरूप प्रचार का मुख्य मुद्दा रहा, मोदी क्यों नहीं?

आश्चर्य की बात यह थी कि सामान्य जनता बहुत पहले ही यह फैसला कर चुकी थी कि इस बार मोदी को ही चुनना है। मोदी को चुनना अर्थात भाजपा को चुनना, भाजपा के मित्र दलों को चुनना। मोदी विरोध का जब अधिक प्रचार होने लगा, तभी लोगों का निश्चय अधिक पक्का हुआ कि इस बार मोदी को ही चुनना है। मोहम्मद रफी ने हिंदी फिल्म में एक बहुत अच्छा गीत गाया है। उसकी पंक्तियां हैं ‘इस दुनिया में ए दिलवालों…..’ इसके अंतरे की पंक्तियां हैं ‘और ब़ढेगी उनकी मुहब्बत जितने भी होंगे जुल्मों-सितम, कह दो कोई नादानों से हमको मिटाना खेल नहीं।’

मोदी से प्रेम करने का निश्चय जनता कर चुकी थी, अत: सोनिया, राहुल और प्रियंका क्या ब़डब़डाएं तथा मुलायम, लालू व पवार ने क्या छींटाकशी की, इसका असर उन पर शून्य रहा।

दूसरी बात यह है कि नरेंद्र मोदी ने कभी भी यह नहीं कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए। राहुल गांधी की तरह वे शहजादे के रूप में नहीं आए। वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अभी तक भारत के चुनावों में कभी भी मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने का मुद्दा नहीं आया। दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण देवेगौ़डा कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री बने। मायावती स्वयं को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में हाहाकार मचाती फिरती हैं। परंतु मोदी ने कभी नहीं कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए। नरेंद्र मोदी ने चुनावों को अपनी ओर केंद्रित करने का कार्य नहीं किया। यह काम विपरीत प्रचार के कारण लोगों ने ही किया।
लोगों ने देखा कि नरेंद्र मोदी भी हमारी तरह ही सामान्य परिवार से आगे आए हैं। उनका बचपन गरीबी में बीता। मिट्टी के घर में वे ब़डे हुए। वडानगर नामक उनका गांव मेहसाना जिले में आता है। उनके पिता की चाय की एक छोटी सी दुकान थी। वे वडानगर स्टेशन पर यात्रियों को चाय दिया करते थे। उनके पिता का नाम दामोदरदास मूलचंद मोदी और मां का नाम हीराबेन है। अपने पिता के साथ नरेंद्र मोदी के भाई और स्वयं नरेंद्र मोदी भी काम करते थे। बाद में नरेंद्र मोदी ने भी बस स्टैंड पर चाय बेचने का व्यवसाय किया। उन्होंने ब़डे कष्टों से एम.ए. तक की शिक्षा पूर्ण की। अपनी उम्र के आठवें वर्ष में ही वे संघ के संपर्क में आए। मोहनजी भागवत के पिता मधुकरराव भागवत उस समय गुजरात प्रांत प्रचारक थे। लक्ष्मणराव इनामदार, गजेंद्र गडकर इत्यादि ज्येष्ठ संघ कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन में नरेंद्र मोदी ब़डे हुए।

एक स्वयंसेवक दो प्रकार से ब़डाहोता है। वह वैचारिक रूप से ब़ढता है और दूसरा संघ जीवन में उसकी ब़ढोत्तरी होती है। दुर्भाग्य से हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों में से निन्यांनवे प्रतिशत को संघ का वैचारिक पहलू समझ में नहीं आया। संघ क्या है?, यह उनकी आंकलन क्षमता से परे है। संघ की वैचारिकता अर्थात देश की वैचारिकता। यह देश मेरा है, यहां का समाज उसके सभी गुण-दोषों के साथ मेरा है, हमारी प्राचीन संस्कृति है, जीवन मूल्य हैं। इन पर जिसकी श्रद्धा है, वह हिंदू है। ऐसे हिंदुओं का देश अर्थात हिंदुस्थान। यह हिंदू राष्ट्र है। हिंदू राष्ट्र का अर्थ इस्लाम, क्रिश्चियन जैसे धर्ममत हैं, वैसा ही यह धर्ममत है और यह उसका राष्ट्र है, ऐसा नहीं है। हमारा एक ही धर्म है और वह है मानव धर्म। उसी का दूसरा नाम है हिंदू धर्म। नरेंद्र मोदी पर इन्हीं विचारों के संस्कार गहराई तक हुए हैं।

संघ के विचार सिखाते हैं कि समाज का विभाजन अलग-अलग जातियों में न करें। अलग-अलग उपासना पंथों में न करें। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई ये शब्द गीतों में ठीक हैं। व्यावहारिक रूप से हम सभी को एक देश, एक संस्कृति मानने वाला ही होना चाहिए। नरेंद्र मोदी समाज का विभाजन अलग-अलग जाति में नहीं करते। वे मुसलमानों का मुसलमान के रूप में, सिखों का सिख के रूप में, जैनों का जैन के रूप में विचार नहीं करते। हम सभी भारतवासी हैं। मोदी विचार करते हैं कि हम सभी भारतवासी, एक देशवासी हैं। यही संघ की शिक्षा है।

नरेंद्र मोदी संघ जीवन जीते हैं। सत्तर के दशक से वे संघ के प्रचारक हैं। प्रचारक के रूप में उन्होंने संघ के विभिन्न दायित्व निभाए हैं। सन 1985 में संघ की योजना के अनुरूप ही उन्हें भाजपा में भेजा गया था। समय-समय पर ऐसे कर्तृत्ववान व्यक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में भेजा जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में स्वयंसेवकों को भेजने का कार्य पहली बार संघ पर लगी पाबंदी के बाद शुरू किया गया। जिस किसी क्षेत्र में कार्यकर्ता को भेजा गया है, वह उस क्षेत्र का अध्ययन करे और उसे मजबूत करने का प्रयत्न करे, यही उससे अपेक्षा की जाती है।

उससे यह भी अपेक्षा की जाती है कि कार्यकर्ता संघ जीवन से अर्थात संघ के जीवन मूल्यों से न तो समझौता करे, न ही उसकी अवहेलना करे। अधिकांश संघ कार्यकर्ता इस अपेक्षा को पूर्ण करते हैं। मोदी का रहन-सहन सादा है। वे एक सामान्य कार्यकर्ता से भी मिलते हैं, उससे संवाद स्थापित करते हैं। उनका नैतिक आचरण उच्च है। नीतिमत्ता का अर्थ भ्रष्टाचार न करना, मद्यपान न करना, स्त्रियों से दुर्व्यवहार न करना, यह तो है ही पर इतना ही नहीं है, नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाए तो उन्होंने संघ के नैतिक मूल्यों की अवहेलना नहीं की और नैतिक मूल्यों का अर्थ भी व्यापक है। वह चराचर में चैतन्य का अंश देखना सिखाती है। उसमें मैं और तुम अलग-अलग न होकर मैं और तुम एक ही होने का वैश्विक भाव होता है। यही संघ की मूल्य रचना है। नरेंद्र मोदी के रूप में सही मायने में देश के सामने एक विकल्प आया है। यह विकल्प विकास की राजनीति, भ्रष्टाचारमुक्त राजनीति, सर्वसमावेषक राजनीति, सहभागिता की राजनीति, आतंकवादियों के विरुद्ध शून्य सहिष्णुता की राजनीति इत्यादि तक ही सीमित नहीं है। यह विकल्प एक व्यापक विकल्प है। इस देश में दो विचारधाराएं चलती हैं पहली विचारधारा कांग्रेस की है। यह विचारधारा हिंदू समाज को जातियों में विभाजित करके जातियों के आधार पर उनका विचार करने वाली है।समाज को भिन्न-भिन्न धर्मों में बांटकर धर्म के आधार पर समाज का विचार करने वाली है। देश का इतिहास, संस्कृति, मूल्य, परंपरा इत्यादि का मनचाहा अर्थ निकालने वाली है।

दूसरी विचारधारा संघ की है। वह देश का एकात्मिक विचार करने वाली है। यह समाज का जातीय या धार्मिक विभाजन नहीं करती। संघ की विचारधारा बताती है कि हम सभी को मिलकर इस देश को वृहद स्वरूप देना है। अत: किसी का भी विरोध न करते हुए सभी को साथ लेकर कार्य करना है। विरोध के लिए विरोध, एकत्र मतों के लिए विरोध, दृष्टिकोण अलग होने के कारण विरोध, यह संघ की पद्धति नहीं है। संघ का मानना यह है कि सत्य एक ही है। केवल उसकी अभिव्यक्ति अलग-अलग रूपों में और शब्दों में होती है। विविधता में ही एकता है। विविधता को संजोकर ही उसे ढूं़ढना प़डता है। अपनी इस वैचारिक भूमिका पर सन 1925 से संघ डटा है। संघ कोई भी वाद नहीं स्वीकारता। समाजवाद, साम्यवाद, सेक्युलरवाद, संप्रदायवाद इत्यादि किसी से भी संघ का लेना-देना नहीं है। संघ की एक ही देवता हैं भारत माता। संघ का एक ही लक्ष्य है भारत को संपन्न करना। संघ का एक ही ध्येय है भारत को अजेय करना।

राजनीति के माध्यम से यह काम भाजपा को करना है। नरेंद्र मोदी भाजपा में हैं, अत: उन्हें यह काम करना है, यह वे अच्छी तरह से जानते हैं। इस लेख के माध्यम से उन्हें कुछ नया बताने का विचार भी नहीं है और उद्देश्य भी नहीं है। पाठकों को यह बताना आवश्यक है कि देश में परिवर्तन हो रहा है। यह परिवर्तन केवल सत्ता का परिवर्तन नहीं है, एक प्रधानमंत्री जाकर दूसरे प्रधानमंत्री के आने का नहीं है। यह परिवर्तन ऐतिहासिक परिवर्तन होगा।

यह परिवर्तन नैसर्गिक है। भारतीय आत्मा की पुकार व्यक्त करने वाला परिवर्तन है। विश्व के सभी समाजों में हिंदू समाज अति प्राचीन समाज है। हर तरह के परिवर्तनों को पचाकर यह समाज आज भी ख़डा है। जब-जब इस समाज पर अस्तित्व रक्षा का प्रश्न आया, तब-तब इस समाज ने अपने अंदर की ऊर्जा को बाहर निकाला है और अपने अस्तित्व की रक्षा की है। स्वामी विवेकानंद, डॉ. हेडगेवार, महात्मा गांधी, डॉ. बाबा साहब अंबेडकर इत्यादि सभी उस समाज के द्वारा निकाली हुई ऊर्जा ही हैं। हिंदू समाज के अस्तित्व की रक्षा के संदर्भ में इस प्रत्येक ऊर्जा का अत्यधिक महत्व है।

इस चुनाव की पार्श्वभूमि फिर एक बार हिंदू समाज की अर्थात राष्ट्रीय समाज की अर्थात भारतीयत्व के अस्तित्व रक्षा की है। भोगवाद ने हमारे जीवन को पंगु कर रखा है। भ्रष्टाचार भोगवाद का ही शिशु है। मतपेटी की राजनीति जातिवाद की जननी है। तुष्टिकरण की राजनीति इस्लामी आतंकवाद को जन्म देने वाली है। अत्यधिक आर्थिक विषमता से नक्सलवाद ब़ढ रहा है। अभारतीय विचारधाराओं के कारण कश्मीर और पूर्वांचल में अलगाव ब़ढ रहा है। यह एक सत्य है कि आग की चिंगारी भले ही छोटी हो, परंतु वह दावानल का निर्माण कर सकती है। अत: उस चिंगारी को बुझा देना ही बेहतर होता है।

भारतीय समाज को इस संकट का आभास हो चला है। सौभाग्य से इस बार इस संकट से जूझने वाला एक चेहरा देश की जनता के सामने है। बंगाल में ममता भी क्रूर हिंसा से ल़डीं, परंतु उनकी विषय सूची एकांगी रही। वह आत्मकेंद्रित हो गईं। वे अखिल भारतीय नहीं हो पाईं। उनकी दृष्टि कांग्रेसी ही रही। यह स्वाभाविक ही था, क्योंकि उनका विकास भी कांग्रेस में ही हुआ है। नरेंद्र मोदी को शुरू से ही अखिल भारतीय विचार का उत्तराधिकार मिला है। अखिल भारतीय दृष्टि मिली है। अखिल भारतीय स्वप्न देखने की उनको आदत प़ड गई है। उनकी दृष्टि में गुजरात भारत का नवरूप है। विशाल भारत का विश्व मार्गदर्शक रूप सामने लाने का नीति निर्धारित कार्य मोदी को करना है।

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