विश्व हिंदी दिवस की शुरुआत कैसे हुई?

“हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा” उर्दू शायर मुहम्मद इकबाल द्वारा देश प्रेम में लिखी यह पंक्ति सभी को याद होगी। इस पंक्ति में यह साफ साफ कहा गया है कि हिन्दी और हिन्दोस्तां ही हमारी पहचान है। हिन्दी हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और यह हमारे देश की पहचान भी है इसलिए हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है।  
 
हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्व में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है और लोगों को इसके प्रति जागरुक करना है। इस दिन देश के सभी कार्यालयों में हिन्दी पर आधारित कार्यक्रम होते है जहां हिन्दी में भाषण और व्याख्यान दिये जाते है। विदेशों में भारतीय दूतावास को भी हिन्दी दिवस के दिन सजाया जाता है और हिन्दी पर आधारित कार्यक्रम दूतावास में भी किये जाते है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को यह आदेश पारित किया था कि अब से हर वर्ष विश्व हिन्दी दिवस मनाया जायेगा और उसके बाद से ही विदेश मंत्रालय ने विदेशों में हिन्दी दिवस मनाने का कार्यक्रम शुरु किया है।  
 
विश्व हिन्दी दिवस की शुरुआत 10 जनवरी 1975 को नागपुर से हुई थी जो लगातार आगे बढ़ती जा रही है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रथम विश्व हिन्दी दिवस का उद्घाटन किया था। भारत में आजादी के पहले से ही हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने पर जोर दिया जा रहा था। राष्ट्रपिता महात्मां गांधी इसके पक्षधर भी थे और उन्होने कहा था कि भारत में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के तौर पर रखना चाहिए जिसके बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया था और इसके बाद से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस भी मनाया जाने लगा। महात्मा गांधी की मातृ भाषा गुजराती थी लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में पत्र लिखने के लिए गांधी जी हमेशा हिन्दी भाषा का उपयोग करते थे।  
 
सन 1975 से भारत, मॉरिशस, यूनाइटेड किंगडम, त्रिनिदाद, अमेरिका और टोबैगो सहित कई देशों में विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। इन देशों में भी हिन्दी बोलने और समझने वालों की संख्या अधिक है। विश्व हिन्दी दिवस के माध्यम से हिन्दी का पूरे विश्व में प्रचार किया जाता है। भारत विश्व का दूसरे नंबर का प्रवासी देश है जिससे हिन्दी बोलने और समझने वाले लोग दुनिया के हर देश में मौजूद है।   
 
वर्तमान शिक्षा नीति और रोजगार को ध्यान में रखते हुए अब अंग्रेजी को ज्यादा महत्तव दिया जाने लगा है क्योंकि विदेश में नौकरी की चाह और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने की कोशिश में हिन्दी से दूरी बढ़ती जा रही है। अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल विश्वस्तर पर भी बड़े पैमाने पर हो रहा है जबकि हिन्दी सिर्फ बोलचाल के लिए ही इस्तेमाल हो रही है और उसमें भी शुद्धता की बहुत कमी होती है। अंग्रेजी सीखना अब मजबूरी भी हो चुकी है क्योंकि बिना अंग्रेजी भाषा के रोजगार या व्यापार संभव नहीं है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि हम अपनी राजभाषा को ही भूल जाएं। अगर राजभाषा का इस्तेमाल इसी तरह से कम होता रहा तो यह एक दिन विलुप्त हो जायेगी। अंग्रेजो से हमे इस बात की सीख लेनी चाहिए कि हम जहां भी जाएं वहां अपनी भाषा और संस्कृति का प्रचार जरुर करें। भारत पर राज करने के दौरान अंग्रेजो ने अपनी भाषा और संस्कृति को जिंदा रखा जिसकी वजह से आज पूरा विश्व तेजी से उनकी संस्कृति और भाषा को अपना रहा है। हम हिन्दी को लेकर भी ऐसा कर सकते है ज्यादा से ज्यादा हिन्दी में ही बात करें और अपनी भारतीय संस्कृति को भी हर जगह अपनाते रहे।

This Post Has One Comment

  1. prashant

    हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

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