संघ विचारों के वाहक गोपीनाथ राव मुंडे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेता तथा केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सांसद गोपीनाथ राव मुंडे की दुर्घटना में हुई मृत्यु से सारे देश में शोक छा गया। उस समय मैं नागपुर के संघ शिक्षा वर्ग में था, वहीं मा. दत्ताजी होसबाले, मा. कृष्णा गोपालजी, मा. मधु भाई कुलकर्णी, मा. मनमोहन जी वैद्य आदि केंद्रीय अधिकारी भी थे। आपस में बहुत सारी चर्चा हुई। उसमें गोपीनाथ राव की संघ स्वयंसेवक के नाते भूमिका सभी के लिए चर्चा का विषय था। मा. कृष्णगोपाल जी तो उनमें आगामी प्रधानमंत्री होने की क्षमता देख रहे थे।

वे जिस परली-वैजनाथ क्षेत्र के निवासी थे, उस विभाग के तत्कालीन विभाग प्रचारक मा. मधुभाई कुलकर्णी थे। वहां की शिक्षा पूरी होने पर गोपीनाथ राव की आगामी शिक्षा के बारे में सोचा गया और सभी ने मिलकर उन्हें पुणे में लॉ कॉलेज में अध्ययन करने के लिए भेजना तय किया। उसके अनुसार गोपीनाथ राव पुणे आकर लॉ कॉलेज में दाखिल हुए। पुणे में उनका तत्कालीन प्रांत शारीरिक शिक्षण प्रमुख मा. सुरेश राव केतकर जी से संपर्क हुआ। उसी दौरान प्रा. श्रीपति शास्त्री, मा. शिवराय तेलंग इनके साथ संघ के संबंध में चर्चा होती चली। ठेठ ग्रामीण इलाके से पुणे महानगर में आए गंवार लगने वाले गोपीनाथ का जीवन संघ संस्कारों द्वारा पहलू दान बनने लगा। सन 1972 में पुणे में मराठवा़डा मित्र मंडल हॉस्टल के सामने लगने वाली ‘समर्थ सायं’ शाखा में वे जाने लगे। वहां उन्हें प्रमोद महाजन, शरद भाऊ साठे, रवि घाटपांडे, अनिल शिरोलेे, धनंजय काले, बाबा चव्हाण आदि मार्गदर्शक एवं समन्वयक सहयोगियों का लाभ हुआ। वे समर्थ सायं शाखा के कार्यवाह बने। शाखा कार्यवाह का पद निभाते हुए उन्होंने काफी मेहनत की। स्वयंसेवक से ब़डे ही प्यार के उनके संबंध बने। वे सभी स्वयंसेवकों का निरंतर क्षेम कुशल पूछा करते। उनके घर जाते थे। मंडल में आठ शाखाएं शुरू हुईं और गोपीनाथ राव मंडल कार्यवाह बने। आगे चलकर वे पुणे के महाविद्यालयीन प्रमुख बने।

                                                       बहुजन आधारहीन बने…

 राजनीति में जि. प. सदस्य से लेकर विधायक, उप मुख्यमंत्री, सांसद, केंद्रीय मंत्री तक की यात्रा हम सभी ने देखी ही है; फिर भी इस यात्रा के दौरान राजनीतिक क्षितिज पर एक तूफानी व्यक्तित्व के रूप में उदित होते समय ‘संघ विचार’ ही गोपीनाथ राव के व्यक्तित्व की नींव बना हुआ था। उनका घनिष्ठ मित्र होने से मैं यह भलीभांति जानता हूं। संघ के प्रांत कार्यवाह के मेरे कार्यकाल के दौरान रिडल्स, नाम परिवर्तन आंदोलन, अयोध्या आंदोलन, अनुसूचित जनजाति एवं पारधी समाज की समस्याएं, ओबीसी की समस्याएं, आरक्षण का मामला, मंडल आयोग आदि, ऐसी कितनी सारी समस्याएं उभरीं। इन सभी समस्याओं को लेकर रा. स्व. संघ की अपनी धारणा बिल्कुल स्पष्ट थी। उसी दौरान जिनके साथ काफी महत्त्वपूर्ण संवाद तथा चर्चा हुई, उसमें गोपीनाथ जी का काफी सहयोग हुआ करता था।

लॉ कॉलेज में उन्होंने छात्रों का मार्गदर्शन किया। महाविद्यालय के वे विश्वविद्यालय प्रतिनिधि चुने गए। ग्रामीण क्षेत्र से आया एक छात्र पुणे जैसी विद्यानगरी में विश्वविद्यालय प्रतिनिधि के रूप में चुना गया, यह उस समय की विशेष घटना थी। सन 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में वे ब़डे ही जोश से सम्मिलित हुए। संघ का एक स्वयंसेवक, अ. भा. वि. प. का कार्यकर्ता, छात्र नेता आदि विभिन्न स्तरों पर अपनी दार्शनिक भूमिकाओं को निभाते हुए वे आंदोलन में सम्मिलित हुए। पुणे की सर्वदलीय समिति के वे अध्यक्ष चुने गए। लक्ष्मी रोड पर गोखले हॉल में गोपीनाथ जी की अध्यक्षता में सभा संपन्न हुई। जेएनयू विश्वविद्यालय में (दिल्ली) छात्र प्रतिनिधि (वी. आर.) के रूप में निर्वाचित अरुण जेटली इस सभा में उपस्थित थे। गोपीनाथ जी की राजनीतिक यात्रा का सूत्रपात किसी हद तक इसी सभा में हुआ। संयोग ऐसा कि नरेंद्र मोदी के ये दोनोें दोस्त उनके मंत्रिमंडल में महत्त्वपूर्ण विभागों के केंद्रीय मंत्री बने।

संघ का विचार ही सारे समाज का विचार है, यह युवावस्था में ही उनके मन पर अंकित हुआ। संघ का द्वितीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक होने से बहुत सारे संघ कार्यकर्ता, प्रचारक आदि का सहवास, बौद्धिक वर्ग, चर्चा आदि सभी के फलस्वरूप राष्ट्रवाद, देशप्रेम, समर्पण, क्रियाशीलता आदि सभी सद्गुण उनके व्यक्तित्व में ब़डी मात्रा में दिखाई देने लगे। आगे चलकर विभिन्न घटनाओं में वे प्रकट भी होते चले। उन्होंने अपने जीवन में निरंतर संघ विचारों के अनरूप ही आचरण किया। मा. प्रल्हादजी अभ्यंकर, मा. दामूअण्णा दाते, मा. श्रीपति शास्त्री और प्रमोद महाजन जी का इनके ऊपर गहरा प्रभाव था। आपात काल के दौरान गोपीनाथ राव और प्रमोद महाजन मुंबई के कारागृह में कैद थे। वह इन दोनों के व्यक्तित्व विकसित-प्रगल्भ होने की वह कालावधि थी। आपात काल के उपरांत गोपीनाथ राव और प्रमोद महाजन दोनों राजनीति में कार्य करें, ऐसा सर्वसम्मति से निर्णय हुआ और एक नए पर्व का आरंभ हुआ। राजनीतिक लाभ-हानि का विषय उनके मन को भी कहीं छूता न था। सामाजिक परिवर्तन का संदर्भ तथा संघ विचारों का अधिष्ठान उनके चिंतन का विषय होता था। नामातंतर की समस्या यह राष्ट्रीय समस्या है तथा डॉ. आंबेडकर राष्ट्र पुरुष हैं, इस आशय का पत्रक संघ के प्रांत कार्यवाह होने से मैंने प्रसारित किया। उसे देखकर उन्हें जो आनंद हुआ, वह अवर्णनीय ही था। उनका स्नेहभाव ब़ढता रहा। उनके बंधुतुल्य प्यार का लाभ लगातार होता ही रहा।

चैत्यभूमि पर संघ के अधिकारी आ रहे हैं, ऐसा समाचार मिलने पर वे खुद हाजिर हुआ करते थे। लगभग 30 साल बिना भूले दि. 6 दिसंबर के दिन मुंबई में चैत्यभूमि पर जाकर पू. आंबेडकर जी का पुण्य स्मरण किया करते थे। एक बार पू. रज्जू भैय्या चैत्यभूमि के दर्शन करने दि. 6 दिसंबर को पधारे थे। उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था। भी़ड में वे परेशानी महसूस करते थे। ऐसी हालत में क्या किया जाए, ऐसी स्थिति में मैंने गोपीनाथ जी को अवगत कराया। तुरंत वे कार्यालय में दाखिल हुए और एक स्वयंसेवक के नाते पू. रज्जू भैय्या को साथ लेकर चैत्यभूमि पर पहुंचे। उन्होंने रज्जू भैया का पूरा ख्याल रखा।

अनुसूचित जनजातियों की और साथ ही पारधी समाज के सदस्यों को लेकर चर्चा करने के लिए एक प्रतिनिधि मंडल के साथ मैंने उप मुख्यमंत्री मुंडे जी से मुलाकात की। उन्होंने संबंधित सभी विभागों के अधिकारियों को बुला लिया। पारधी समाज की समस्याओं की जानकारी होने पर वे पसीज उठे। बहुत ही भावुक होने पर उन्होंने उसी क्रम में अनुसूचित जनजाति विकास एवं अनुसंधान समिति का गठन किया। उसकी सिफारिशों को स्वीकार करके काम करना आरंभ किया और महाराष्ट्र के इतिहास में पहली बार अनुसूचित जनजातियों के लिए एक कैबिनेट तथा एक राज्यमंत्री नियुक्त हुआ। 49 कर्मचारियों का एक अलग ऊळीशलीेींरींश पुणे में स्थापित हुआ। नई आश्रम शालाओं का (त. ग. छ. ढ.) शुभारंभ हुआ। उस अवधि में आयोग का अध्यक्ष होने से हम दोनों लगातार संपर्क में रहे और उसी सिलसिले में संघ विचारों के एक राजदूत के नाते राजनीति में कार्यरत एक नेता उनके व्यक्तित्व में मुझे दिखाई दिया।

सामाजिक समरसता मंच, अनुसूचित जनजाति विकास परिषद, समता परिषद आदि संस्थाओं की सभी प्रकार की सहायता वे नियमित रूप से कर रहे थे। डॉ. आंबेडकर के विचारों का काफी प्रभाव उन पर था। चैत्यभूमि और डॉ. आंबेडकर के नाम की संस्थाओं की वे सहायता करते ही रहे। दलित आंदोलन में उतरे कार्यकर्ता हमेशा ही उनसे सहायता चाहते थे। गोपीनाथ जी उन कार्यकर्ताओं की सभी प्रकार की सहायता किया करते थे। उसी के फलस्वरूप ‘अनाथों का नाथ, वही गोपीनाथ’ यह घोष वाक्य महाराष्ट्र में चारों ओर गूंजता चला।

रत्नागिरी जिले के मंडणढ तहसील में डॉ. आंबेडकर के मूल गांव में पाठशाला सिर्फ चौथी कक्षा तक ही होने की उन्हें जानकारी मिली। वे उप मुख्यमंत्री थे, तब वहां पांचवी कक्षा से पाठशाला शुरू हो, इस हेतु उन्होंने खुद पहल की और सावित्री बाई फुले शिक्षण प्रसारक मंडल को मंजूरी दिलाई। पाठशाला के उद्घाटन समारोह में वे स्वयं उपस्थित रहे और खुद अपनी ओर से उस पाठशाला को दो लाख रुपए दान में दिए।

संघ के सामाजिक विचाक को महाराष्ट्र में उन्होंने स्थिरता प्राप्त करा दी। संघ-भाजपा की प्रतिमा जानबूझकर गलत चित्रित की गई थी, जिसे गोपीनाथ राव ने राजनीतिक स्तर पर पूरी तरह उजली बना दी। हजारों संघ स्वयंसेवक समाज समर्पित भावना से कार्य कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं। उस विचार को धारण करते हुए राजनीति में सभी से संघर्ष करते हुए उन्हें मात देने वाला वही संघ स्वयंसेवक ऐसा आदर्श निर्माण करते हुए यह स्वयंसेवक हमेशा के लिए विदा हो गया। संघ विचार ही समाज विचार है। समूचे समाज में सभी को एक दूसरे से जो़डने वाला यह विचार विभिन्न क्षेत्रों में, विभिन्न विचारों के लोगों में भी निर्माण करने वाले मेरे इस परम मित्र स्वयंसेवक को भावभीनी श्रद्धांजलि!

This Post Has 2 Comments

  1. Anonymous

    एक तेजस्वी नेतृत्व हरपले!!
    त्यांना शतशः प्रणाम.

  2. रवी खेडकर

    सर्वसमावेशक नेतृत्व हरपलं!

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